चमत्कार को नमस्कार

(कॉलबेल की आवाज़

बीवी के दरवाज़ा खोलने पर पति अन्दर आता है और अपना बैग साइड पर रखने के बाद भगवान के आगे माथा टेकता है। उसे ऐसा करते देख बीवी हैरान हो कर कहती है....

"अरे!...ये अचानक सूरज पश्चिम से कैसे निकल आया? तुम और मंदिर में?...ये तो सच्ची कमाल हो गया। आज ना सच्ची...मैं बहुत खुश हूँ....भगवान ने मेरी सुन ली। तुम बस रुको एक मिनट...मैं प्रसाद ले कर आती हूँ।"

"अरे!....प्रसाद की तुम चिंता ना करो... मैं अभी मंदिर से ही हो कर आ रहा हूँ। लो...तुम भी प्रसाद ले लो।"

"मुझे ना सच्ची....विश्वास ही नहीं हो रहा कि आप...ऐसे अचानक...कमाल है...इतना कायापलट एक ही दिन में?"

"अरे!....एक ही दिन में नहीं बल्कि कुछ ही घँटों में कहो। अभी कुछ घँटों पहले ही मुझे ये एहसास हुआ कि कोई ना कोई ऐसी शक्ति तो ज़रूर है इस नश्वर संसार में जो हवा, पानी, आग और हम सबको अपने कंट्रोल में रखती है।"

"मगर कैसे?....तुम तो इन सब चीजों को बिल्कुल नहीं मानते थे। उलटा मुझे डाँटते रहते थे कि मैं खामख्वाह के फण्ड करती रहती हूँ।"

"अब यार...क्यों शर्मिंदा कर रही हो? मैं अपनी ग़लती मान तो रहा हूँ। बस इतना समझ लो कि जब जागो तब सवेरा। अब तो मैनें ठान लिया है कि रोज़ सुबह शाम मंदिर जाया करूँगा और सारे के सारे व्रत उपवास वगैरह भी रखूँगा।"

"सच्ची....मैंने तो भगवान से कुछ और भी माँगा होता ना तो मेरी वो मन्नत भी पूरी हो जाती...थैंक गॉड।"

"सच बताऊँ...आज अगर वो बाबा मुझे नहीं मिलता ना तो मुझे कभी भी इन चमत्कारों और दैवीय शक्तियों में यकीन नहीं आता।"

"बाबा?"

"हाँ!....आज एक बहुत ही चमत्कारी बाबा से मेरी मुलाकात हुई।"

"लेकिन कहाँ?...तुम तो सीधा अपने काम पर ही गए थे ना?  या कहीं और तो नहीं चले गए थे? देखो...मुझसे झूठ बिल्कुल नहीं बोलना। तुम्हें मेरी कसम है।"

"अरे!...बाबा...काम पर ही गया था और कहीं नहीं गया था। तुम चाहो तो सीसीटीवी की रेकॉर्डिंग चैक कर लो।"

"वो तो मैं करती ही रहती हूँ हमेशा। बस...आज ही नहीं की।"(बीवी के चेहरे पे अफसोस के भाव।)

"तुम ना बस्स मुझे शुरू से सब बताओ कि क्या हुआ था?"(बीवी का उत्साहित स्वर।)

"सुबह जब मैं घर से निकला ना तो बीच रस्ते मुझे लिफ्ट के एक लिए एक बूढ़े फकीर ने हाथ दे के रोक लिया।"

"लिफ्ट के लिए?"

"हाँ!...

"दिमाग खराब है तुम्हारा? उस खटारा बैट्री वाले स्कूटर में इतनी जान भी है कि तुम किसी को लिफ्ट देते फ़िरो? 18- 20 से ज़्यादा की स्पीड तो पकड़ता नहीं है और....

"18- 20 नहीं...वो तो बड़े आराम से  24- 25 की स्पीड दे देता है। मैन खुद कई बार चैक किया है कि.....

"बात मानने वाली तो है नहीं लेकिन चलो...मैं मान लेती हूँ...24- 25 की ही सही लेकिन इस स्पीड की स्कूटरी भर भला कौन किसको लिफ्ट देता है? हुंह!....लिफ्ट देने वाला भी पागल और लिफ्ट देने वाला भी पागल।"

"अरे!....उनको तो पागल बिल्कुल मत खो। उनकी वजह से ही तो...उनके चमत्कार की वजह से ही तो मेरा ईश्वर में विश्वास जगा है। मैं उसके वजूद को मानने लगा हूँ।"


"चमत्कार?"

"हाँ!....चमत्कार।"

"तुम मुझे पूरी बात बताओ कि क्या हुआ था?"


"अब मैंने स्कूटर को रोक तो लिया....

"स्कूटर नहीं...स्कूटरी को।"

"हाँ...जो मर्ज़ी समझ लो।"

"जो मर्ज़ी समझ लो का क्या मतलब? स्कूटर...स्कूटर होता है और स्कूटरी...स्कूटरी होती है।"

"ओके बाबा....अब मैंने स्कूटरी को रोक तो लिया मगर बाबा के डील डौल देख कर असमंजस में पड़ गया कि कहीं...ये हम दोनों को ले के ही ना बैठ जाए।"

"हम्म....मेरे दिल में तो सुन के ही हौल पड़ने लगा है कि...उस पिद्दी सी बेचारी के साथ इतना अत्याचार? खैर...फिर क्या हुआ?"

"उनको बिठाने के बाद कायदे से तो ये होना चाहिए था कि उसके इंजर पिंजर सब एकदम ढीले हो जाने चाहिए थे।"

"किसके?...बाबा के?"

"नहीं!...स्कूटरी के।"

"नहीं हुए"?( हैरानी का भाव।)

"अरे!....यही तो कमाल है कि स्कूटरी एकदम टनाटन।"

"और तुम? तुम भी ठीकठाक हो ना? कहीं कोई गुम चोट वगैरह तो नहीं लगी?"

"अरे!...मैं भी टनाटन...स्कूटरी भी एकदम टनाटन।"

"ओह!....इसका मतलब बाबा तो गया काम से। चच्च...बेचारा।" बीवी अफ़सोस जताते हुए बोली।

"अरे!...उनको भी कुछ नहीं हुआ। एकदम सही सलामत हैं वो भी।"

"पक्का ना? कहीं मेरा मन रखने के लिए झूठ तो नहीं बोल रहे हो?"

"झूठ बोल के क्या मुझे वड़ेवें मिलने हैं?"

"अच्छा...चलो छोड़ो...तुम मुझे बताओ की उसके बाद क्या हुआ?"

"अब उनको बिठाने के बाद मेरा दिमाग घूमने लगा कि आज तो मीटर की सुई 18-20 से ऊपर तो बढ़ ही नहीं पाएगी।" 

"हम्म!....

"लेकिन कमाल ये कि उनके बैठते ही स्कूटरी तो फर्राटे भरती हुई हवा से बातें करने लगी और सुई?....सुई तो 35-36 से नीचे एक सैकंड को भी नहीं हुई।"

"क्या बात कर रहे हो? पक्का...तुम्हें वहम हुआ होगा।"

"वोही....तो...मैंने भी एकदम यही सोचा और दो चार बार आँखें मिचमिचा कर भी देखा लेकिन सुई तो नीचे उतरने  का नाम ही नहीं ले रही थी और कमाल ये कि बाबा के उतरते ही वही ढाक के तीन पात।"

"मतलब...स्पीड फिर वापिस वही की वही?"

"और नहीं तो क्या?"

"ओह!...

"बस...तभी मुझे विश्वास हो गया कि ज़रूर उनके पास कोई दैवीय शक्ति रही होगी या फिर बाबा खुद ही कहीं....ओह....ओह....माय गॉड....वो सचमुच भगवान ही थे...आज....आज उन्होंने मुझे साक्षात दर्शन दिए....ओह माय गॉड....मुझे तो विश्वास ही नहीं हो रहा।" पति प्रफुल्लता के अतिरेक में हड़बड़ा कर चिल्लाता हुआ बोला।

"एक मिनट...लैट मी थिंक...तुमने उन्हें कहाँ से लिफ्ट दी थी?"

"पंजाबी बाग से....क्यों?....क्या हुआ?"

"और कहाँ तक दी थी?"

"ज़्यादा नहीं बस...आधे पौने किलोमीटर के बाद वो उतर गए थे।"

"हम्म!....पंजाबी बाग में कहाँ?..एगजैकट लोकेशन बताओ....उसके आसपास कोई मंदिर या मज़ार ज़रूर होनी चाहिए।"

"पहले एक थी तो सही लेकिन शायद pwd वालों ने तोड़ दिया उसको।"

"फिर तो बहुत ग़लत किया उन्होंने। ज़रूर कोई भटकती रूह होगी।"

"ओह!....

"चलो!....उठो....प्लीज़ मुझे अभी ले चलो वहाँ पर। मुझे भी दर्शन करने हैं उस दिव्य आत्मा के।"

"लेकिन वो तो शायद कह रहे थे कि उन्हें वहाँ से बस मिल जाएगी झंडेवालान की।"

"ओह!...तुमने उन्हें कहाँ पर छोड़ा था?"

"पंजाबी बाग गोल चक्कर पर।"

"और लिया कहाँ से था?"

"पंजाबी बाग फ्लाईओवर के ऊपर से।"

"क्या?"

"हाँ...वहीं से लिया था....फ्लाईओवर के ऊपर से ही।"

"हे भगवान!....जाने कब अक्ल आएगी मेरे इस निखट्टू पति को।"

"क्या हुआ?"

"अरे!...बेवकूफ....फ्लाईओवर से जब कोई भी गाड़ी नीचे उतरेगी तो उसकी स्पीड अपने आप नहीं बढ़ जाएगी।"

"ओह!....शिट...ये तो मैंने सोचा ही नहीं।"

(समाप्त)

 
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