"बिन माँगे मोती मिले"

***राजीव तनेजा***     

"बात सर के ऊपर से निकले जा रही थी...कुछ समझ नहीं आ रहा था कि आखिर!...माजरा क्या है?"
जिस बीवी को मैँ कभी फूटी आँख नहीं सुहाया,वो ही मुझ पर दिन पर दिन मेहरबान हुए जा रही थी। बहुत दिमाग लड़ाने के बाद भी इस सब का कोई  वाजिब कारण मुझे दिखाई नहीं दे रहा था|जो कल तक मुझे देख 'नाक-भों' सिकोडा करती थी,वही अब मौका देख जाने-अनजाने मुझसे लिपटने की कोशिश कर रही थी|मेरी पसन्द के पकवानों का तो मानो तांता लगा था|मेरी हर छोटी-बडी खुशी का ख्याल रखा जा रहा था|एक दिन आखिर सब राज़ खुल ही गया जब बीवी इठलाती हुई...बल खाती हुई चली आयी और बडे ही प्यार से बोली..."जी!...इस बार 'वैलैंटाईन' के मौके पर मुझे 'गोवा' घुमाने ले चलो|"

मेरा माथा तो पहले से ही सनका हुआ था।सो!...' वैलैंटाईन' के नाम से ही भड़क खडा हुआ|ऊपर से 'गोवा' जाने के नाम ने मानों आग में घी का काम किया।

{नोट:वैलैनटाईन के इस अवसर पर मैँने अपनी पुरानी कहानी "बिन माँगे मोती मिले" को आज के समय के हिसाब से संपादित किया है।उम्मीद है कि ये आपको पसन्द आएगी।}

 

"क्या बकवास लगा रखी है?"... 

"कोई काम-धाम है कि नहीं?"...

"अपनी औकात...मत भूल"...

"हिन्दुस्तानी है...हिन्दुस्तानी की तरह ही रह"

"पर इसमें!..आखिर गलत ही क्या है?"

"गलत?...अरे!...ये बता कि सही ही क्या है इसमें?"

"ये तो प्यार करने वालों का दिन है"...

"मनाने में आखिर हर्ज़ा ही क्या है?"

"अरे!...अगर मनाना ही है तो फिर...'लैला-मजनू'...'सस्सी-पुन्नू'... या फिर 'शीरही-फरहाद' को याद करते हुए उनके दिन मनाओ"

"ये क्या?...कि बिना सोचे-समझे सीधा मुँह उठाया और नकल कर डाली इन फिरंगियों की?"

बीवी कुछ ना बोली लेकिन मेरा ध्यान पुरानी यादों....पुरानी बातों की तरफ जाता जा रहा था।यही कोई दो-चार साल पुरानी ही तो बात थी जब 'वैलैंटाईन' आने वाला था और दिल में दुनिया भर की उमंगे जवाँ हुए जा रही थी कि पिछली बार तो मिस हो गया था लेकिन इस बार नहीं।अब की बार तो दिल की हर मुराद पूरी होकर रहेगी।कोई कसर बाकी नहीं रहने दूंगा लेकिन कुछ-कुछ डर सा भी लग रहा था कि अगर कहीं...भगवान' ना करे किसी भी तरह से बीवी को पता चल गया तो?"...

"मैँ तो कहीं का ना रहूँगा।...

मेरी हालत तो धोबी के कुत्ते जैसी हो जाएगी...ना घर का....ना घाट का"

"अरे यार!..किसी को कानों-कान भी खबर नहीं होगी"...

"तुम बस दिल खोल के खर्चा किए जाओ"....

"बाकी सब मेरे पे छोड़ दो"...

"एक से एक टॉप' की' आईटम' के दर्शन ना करवा दूँ तो मेरा भी नाम...'सूरमा भोपाली' नहीं"एक दोस्त बोला

अब दिन-रात...सोते-जागते...उठते-बैठते यही ख्वाब देखे जा रहा था मैँ कि सब की सब मुझ पर फिदा हैँ।दिल बस यही गाए जा रहा था कि...
"मैँ अकेला....मैँ अकेला...

मेरे चारों तरफ...हसीनों का मेला"

"हॉय!...हर तरफ बस लडकियाँ ही लडकियाँ...दूजा कोई नहीं"... 

"उफ!...कोई इधर से छेडे जा रही थी तो कोई...उधर से"

"अपनी बल्ले-बल्ले हो ही रही थी कि अचानक ऐसे लगा जैसे दिल के अरमाँ...आँसुओ में बह गए।सब के सब ख्वाब एक ही झटके में टूट के बिखर चुके थे।PICST3416 कुछ धर्म के ठेकेदार जो सरेआम...रेडियो'...टीवी चैनलों और... अखबारों' के जरिए अपना धमकी रूपी विज्ञापन दे रहे थे कि जिस किसी ने भी कुछ उलटा-सीधा करने की कोशिश की..उसकी वहीं पर मंतर पढवा...फेरे लगवा शादी करा दी जाएगी या फिर उसका मुँह काला कर'..गधे पे बिठा पूरे शहर का चक्कर कटवाया जाएगा" images

"गधे पे बिठाने की बात सुन दोस्त खुद ही अपना मुँह काला करता हुआ ऐसे गायब हुआ जैसे गधे के सर से सींग।और अपुन रह गए फिर...वैसे के वैसे...सिंगल के सिंगल....प्यासे के प्यासे लेकिन दिल ने हिम्मत ना हारी...खुद को जैसे-तैसे करके समझाया और बीवी'से ज़रूरी काम का बहाना बना..जा पहुँचा सीधा 'गोवा'

'गोवा' माने!...जन्नत।यहाँ किसी का कोई डर नही...जैसे मर्ज़ी...वैसे घूमो-फिरो।जो मर्ज़ी करो...कोई देखने-सुनने वाला नही...कोई रोकने-टोकने वाला नहीं।सो!...मै भी पूरे रंग में रंग चुका था।इधर_ उधर...पूछताछ   करके पता लगाया कि 'सब कुछ दिखता है वाला बीच कहाँ है? जा पहुँचा!...सीधा वहीं।एक हाथ में बीयर की बोतल और दूसरे हाथ में गुलाब का फूल थामे मै अल्हड़ शराबी की तरह इस तलाश में कभी इधर डोल रहा था तो कभी उधर कि कहीं ना कहीं तो अपुन की चॉयस की मिलेगी ज़रूर।

लेकिन जिसे देखो...वही स्साली!....अपने लैवेल से नीचे की...याने के बिलो स्टैंडर्ड दिखाई दे रही थी। और मै था कि हाई क्लास से नीचे उतरने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता।बस इसी चक्कर में सुबह से दोपहर और दोपहर से शाम होने को आई लेकिन जो अपुन की समझ में बैठती याने के इस दिल को जंचती...वो ऑलरैडी किसी का हाथ थामे नज़र आती।

हाय री!...फूटी किस्मत...सब की सब...पहले से ही बुक्कड थी।काम बनता ना देख निराश हो मैने ये एहम फैसला लिया कि..अब की बार कोई नखरा नहीं...जैसी भी मिलेगी...काम चला लूंगा।अपना किस्मत में जो होगा...मिल जाएगा...बेकार में हाथ-पैर मार के क्या फायदा?अभी ये सब सोच ही रहा था कि...देखा तो स्विम सूट पहने तीन नीग्रो लडकियाँ अपनी मर्ज़ी से खुशी-खुशी सबके साथ फोटू खिंचवा रही हैँ।

क्या गज़ब की ऑईटम थी रे बाप?

लार टपकाता मैँ भी लग गया लाईन में।थोडी-बहुत...टूटी-फूटी अंग्रेज़ी आती थी...सो!...उसी से काम चलाते हुए बात आगे बढाई और उनसे दोस्ती कर डाली।थोड़ी ही देर में मैँने उनको अगले दिन डेट पे चलने के लिए इनवाईट कर डाला।हैरानी की बात ये कि मेरी तमाम आशंकाओं के विपरीत वो तीनों झट से मान गयी।ये तो वही बात हुई कि... बिन माँगे मोती मिले...माँगे मिले ना भीख

कहाँ एक तरफ तो मैँ तरसता फिर रहा था लेकिन कोई भाव देने को तैयार नहीं और कहाँ ये बिना कोई खास मेहनत किए ही अपने आप ही बे-भाव टपक पडी।शायद!...मेरी डैशिंग(धाँसू)पर्सनैलिटी का कमाल था ये।हे प्रभू!...तेरी लीला अपरम्पार है।थोडी काली हुई तो क्या हुआ? अपने'श्री कृष्ण महराज भी कौन सा गोरे थे?

"काले ही थे ना?"

सो!...मैने भी यही सोचा कि इस वैलैनटाईन के पावन अवसर पर इन तीनों के साथ रास-लीला मना ही ली जाए।अब!...मजबूरी का नाम  'महात्मा गाँधी' है तो...यही सही।खैर!...अगले दिन मिलने की जगह फिक्स हुई और वो अपने होटल चली गयीं।आफकोर्स!..रात का खाना मेरे साथ खाने के बाद।अब ये भी कोई पूछने वाली बात है कि नोट किसने खर्चा किए? समझदार हो!....खुद जान जाओ।

पूरी रात नींद नहीं आई।कभी इस करवट लेटता...तो कभी उस करवट।घडी-घडी...उठ कर घडी देखता कि अभी कितनी देर है सुबह होने में? अल्सुबह ही उठ गया था मैँ लेकिन इंतज़ार की घडियाँ तो जैसे खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही थी।खैर!..किसी तरीके से वो आ पहुँची।एक की तबियत कुछ ठीक नहीं थी  सो!...नाश्ता करने के बाद उसने साथ चलने से इनकार कर दिया।अच्छा हुआ!...स्साली ने खुद ही मना कर दिया वर्ना मुझे ही कोई ना कोई बहाना गढना पड़ता...चौखटा जो कुछ खास नहीं था उसका।

उसे होटल में आराम करने की कह हम तीनों चल दिए अपनी मंज़िल याने के बीच की ओर।वहाँ पहुँचते ही मेरी तो निकल पडी।दोनों की दोनो सीधा पानी में कूद पड़ी और इशारे कर-कर मुझे बुलाने लगी।मै भी झट से हो लिया उनके पीछे-पीछे मगर बुरा हो इस कम्भख्त मारी यादाश्त का...उतावलेपन के चक्कर में कास्ट्यूम लाना तो मैँ भूल ही गया था।

अब दिल उदास हो ही चला था कि अचानक उम्मीद की एक किरण दिखाई दी।देखा तो नज़दीक ही रंग-बिरंगे कास्ट्यूम बिक रहे थे।जा पहुँचा सीधा वहीं...शायद मेरा चेहरा पढ लिया था पट्ठे ने....तभी उसने हर एक पीस उल्टे-सीधे दाम बताए लेकिन मैँ कहाँ पीछे हटने वाला था?...जितने माँगे...पकडा दिए चुपचाप....और चारा भी क्या था मेरे पास?....अकेला होता तो थोड़ी-बहुत बॉरगेनिग वगैरा भी करता लेकिन यहाँ?...इनके सामने?....सौदेबाज़ी?....मतलब ही नहीं पैदा होता।लड़कियों के सामने ऐसी छिछोरी हरकते करने से अच्छा है कि बन्दा डूब के ही मर जाए।इसलिए मैँने चुप हो जाना ही बेहतर समझा।

तुरंत तौलिया लपेटा और फटाफट कपडे बदल छलांग लगा सीधा कूद पडा पानी में।बस!...यही एक छोटी सी बहुत बड़ी गलती हो गयी मुझसे।शायद!..ना चाहते हुए भी कुछ ज़्यादा उतावला हो उठा था मैँ। पर्..रर...र्रर्र'...की सी आवाज़ आई...देखा तो...एक तरफ से मेरी निक्कर जवाब दे चुकी थी।खैर!...मैने परवाह नहीं की क्योंकि ऐसे छोटे-मोटे हादसे तो अक्सर होते ही रहते थे अपुन के साथ।एक हाथ से निक्कर थाम मैँ बेफिक्र अन्दाज़ में जा पहुँचा सीधा उनके पास।

मज़े आने अभी शुरू ही हुए थे कि दूसरी तरफ से भी निक्कर ने साथ छोड दिया।मजबूरन!...मुझे उनसे कुछ दूर जाना पडा क्योंकि मैँ अच्छी तरह जानता था कि 'सावधानी हटी तो दुर्घटना घटी' लेकिन कोई गम नहीं...अभी कुछ दिन पहले ही तो मैँने हाई इंडैक्स का फ्रेम लैस चश्मा बनवाया था।सो!...दूर से भी सब कुछ साफ-साफ दिखाई दे रहा था।राज़ की बात तो ये कि ऐसी दिलचस्प चीज़े तो मैँ घुप्प अँधेरे में भी बिना किसी मुश्किल के ढूढ लूँ।फिर यहाँ तो ऊपरवाले की दया से खूब धूप खिली हुई थी।

अजीब हालत हो रही थी मेरी....बाहर से तो ठण्ड लग रही थी मुझे लेकिन अन्दर ही अन्दर गर्मी से मैँ परेशान था।बुरा हो इस कम्भख्त मारी निक्कर का....आज ही जवाब देना था इसे?....उफ!...दोनों हाथों से इसे थामे-थामे कितना थक चुका था मैँ?...जिस हाथ को ज़रा सा भी आराम देने की सोचूँ निक्कर फट से स्प्रिंग माफिक ऊपर उछले और झट से तैरने लगे।सो!...हाथ वापिस...वहीं का वहीं पुरानी पोज़ीशन पर।तसल्ली थी कि कुछ कर नहीं पा रहा तो क्या हुआ?...आँखें तो सिक ही रही हैँ ना कम से कम?मजबूरीवश सोचा कि चलो!...अभी इसी भर से ही काम चला लिया जाए...बाद की बाद में देखी जाएगी।

अभी ठीक से आँखे सेंक भी नहीं पाया था कि एक बावली को जाने क्या सूझी कि उसने बॉल से खेलते-खेलते अचानक उसे मेरी तरफ उछाल दिया।पता नहीं कहाँ ध्यान था मेरा?...जाने कैसे गल्ती हो गयी और मैँ पागलों की तरह निक्कर छोड़ दोनों हाथो से गेंद की तरफ लपक लिया।वही हुआ...जिसका अँदेशा था।फिर से 'पर...र्..र..र.र्र'...की चरमराती सी आवाज़....और फिर सब कुछ शांत।

काम खराब होना था सो!...हो चुका था।निक्कर' ने ऐन मौके पे बीच मंझधार के मुझे अकेला छोडते हुए अपने हाथ उर्फ दोनों पाँयचे खडे कर दिए थे।सारी की सारी सिलाई उधड चुकी थी।अब वो निक्कर कम स्कर्ट ज़्यादा दिखाई दे रही थी और वो भी मिनी(छोटी)वाली नही बल्कि माइक्रो(सूक्ष्म)वाली।

सही कहा है किसी नेक बन्दे ने कि मुसीबत कभी अकेले नही आती...आठ-दस को हमेशा साथ लाती है।दरअसल!..हुआ क्या कि अब इस निक्कर ऊप्स सॉरी स्कर्ट के नीचे तो अपुन ने कुछ पहना नहीं था..हमेशा की तरह।तो जैसे ही मैँ पानी में आगे बढा....स्साली!...खुद बा खुद तैर के ऊपर आ गयी और नीचे......

"अब!...अपने मुँह से कैसे कहूँ?"

"जवान पट्ठे हो!....खुद ही अन्दाज़ा लगा लो मेरी हालत का" 

"यूँ तो मैँ पक्का बेशर्म हूँ  लेकिन यहाँ?...खुले आम?"....

"बाप..रे...बाप"
"अरे यार!...हिन्दुस्तानी हूँ मैँ...कोई काली या गोरी चमड़ी वाला फिरंगी नहीं कि आव देखूँ ना ताव और झट से बीच बज़ार ही कर डालूँ एक....दो...तीन।

अब तरसती निगाहों से सिर्फ और सिर्फ ताकते रहने के अलावा कोई और चारा भी तो न था मेरे पास।अभी सोच ही रहा था कि...क्या करूँ?...और..क्या ना करूँ? कि अचानक शरारती मुस्कान चेहरे पे लिए वो दोनों मेरी तरफ बढी।... 

ओह!...कहीँ मेरी हालत का अन्दाज़ा तो नही हो गया था उन्हें?"...

उन्हें अपनी तरफ बढता देख मैँ कुछ घबराया...कुछ शरमाया...कुछ सकुचाया और फिर बिना सोचे समझे भाग लिया सीधा किनारे की तरफ।कुछ होश नहीं कि क्या दिखाई दे रहा है और क्या नहीं।बाहर पहुँचते ही झटका लगा।

देखा तो!...कपडे गायब।कोई हराम का  *&&ं%$#$%&   उन पर हाथ साफ कर चुका था।पीछे मुड़ के देखा तो दोनों हँसती-खिलखिलाती हुई मेरी ही तरफ चली आ रही थी।उनकी परवाह न करता हुआ मैँ दोनों हाथों से अपनी निक्कर थामे सरपट भाग लिया सीधा होटल की ओर।मुसीबतो का खेल अभी खत्म कहाँ हुआ था?पहुँचते ही एक झटका और लगा।वो 'कल्लो' मेरे सामान पे झाडू फेर चुकी थी।सब कुछ बिखरा-बिखरा सा था....
मेरा 'कैश'....
मेरे 'कपडे-लत्ते'...
मेरा 'क्रैडिट कार्ड'...
मेरा 'ए-टी-एम कार्ड'..

कुछ भी तो नहीं बचा था।सब का सब लुट चुका था।उन दोनों का नम्बर ट्राई किया तो मोबाईल स्विचड ऑफ की आवाज़ मानों मेरा मुँह चिढा रही थी।ऐसा लग रहा था जैसे तीनों की मिलीभगत थी इसमें।दिल तो कर रहा था कि अभी के अभी निकालूँ कहीं से रिवाल्वर और दाग दूँ पूरी की पूरी छै इनके सीने में।

मैँ लुटा-पिटा चेहरा लिए उस घडी को कोस रहा था जब मुझे वैलैनटाईन मनाने की सूझी।बड़ी मुश्किल  से होटल वालो से पीछ छुडा मैँ भरे मन और बोझिल दिल से वापिस लौट रहा था।

अगर मै ऐश नहीं कर सकता तो और भला कोई क्यूँ करे?

सही हैँ!...ये धर्म के ठेकेदार।ये वैलैंटाईन-शैलेंटाईन' अपने देश के लिए नहीं बने हैँ।

ढकोसला है ढकोसला...सब का सब।

देखते ही देखते मैँ भी पेंट का डिब्बा और ब्रश हाथ में लिए प्यार करने वालों का मुँह काला करने को बेताब भीड में शामिल था। _41416508_bajrang203ap

***राजीव तनेजा***

मेरी सातवीं कहानी नवभारत टाईम्स पर

पहली कहानी- बताएँ तुझे कैसे होता है बच्चा

दूसरी कहानी- बस बन गया डाक्टर

तीसरी कहानी- नामर्द हूँ,पर मर्द से बेहतर हूँ

चौथी कहानी- बाबा की माया

पाँचवी कहानी- व्यथा-झोलाछाप डॉक्टर की

छटी कहानी-काश एक बार फिर मिल जाए सैंटा

सातवीं कहानी-थमा दो गर मुझे सत्ता

 

नोट: इस कहानी के एक हिस्से को लिखने के लिए मुझे 'बामुलाहिज़ा' वाले श्री क्रितिश भट्ट जी के नैनो वाले कार्टूनों से प्रेरणा मिली।मैँ उनका तहेदिल से शुक्रगुज़ार हूँ कि उन्होंने मुझे अपने कार्टूनों को तथा आईडिए को इस्तेमाल करने की इज़ाज़त दी।

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थमा दो गर मुझे सत्ता


2 Feb 2009, 1259 hrs IST,नवभारतटाइम्स.कॉम 

राजीव तनेजा

' ओफ्फो ! पता नहीं , कब अक्ल आएगी तुम्हें ? चलते वक्त देख तो लिया करो कि पैर कहां पड़ रहे हैं और नज़र कहां ?' बीवी चिल्लाई , ' कुछ तो शर्म करो ! दिखाई नहीं देता कि तुम्हारी बच्ची की उम्र की है। किसी को तो बख्श दिया करो कम से कम। तुम्हें तो बस लड़की दिखनी चाहिए , भले ही जैसी भी हो। क्यों , है ना ?

' लड़की दिखी नहीं कि बस , चल दिए नाक की सीध में मुंह उठाकर। उसने मुस्कुरा कर क्या देख लिया , हो गए झटाक से फ्लैट। पहले नज़र फिसला करती थी जनाब की , अब तो खुद ही फिसलने लगे हैं। माशा अल्लाह , क्या तरक्की हो रही है ! आ गए मज़े ? गिर पड़े ना धड़ाम से !

' अब उसी को बुला लेना यह गोबर से लिपे - पुते जूते साफ करने के लिए ,' बीवी बोले चली जा रही थी , जैसे आज रुकने का नाम न लेना चाहती हो। ' मैं पूछता हूं कि इन गाय - भैंसों को मैंने कहा है कि यूं रास्ते में गोबर करती फिरे ?' मुझे भी ताव आ गया , अच्छी - भली डेरियां बसा कर दी हैं सरकार ने। अपना आराम से दुहो और लोड कर ले आओ दूध शहर में। लेकिन नहीं , लोगों को कीड़ा जो काटता है कि ' प्यॉर ' माल होना चाहिए।

खाक मिलता है प्योर ! पता है , कितना पानी पहले से मौजूद रहता है इन दूधियों के डोल्लू में ? पब्लिक को तो बस थन से धार निकलती दिखाई देनी चाहिए। डिरेक्ट फ्रॉम द सोर्स। भले ही सुबह - शाम इंजेक्शन ठुकवा - ठुकवा कर क्यों न भैंस बेचारी का पिछवाड़ा सूजा पड़ा हो। इन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता। पता नहीं , अपनी मेनका कहां गायब हो जाती है ऐसे वक्त ?

शायद उसे भी डिरेक्ट फ्रॉम द सोर्स की आदत पड़ी हो। बीवी उसकी भद्द पीटती हुई बोली। इंसान भी ना , पैसों के लालच में कितना अंधा हो गया है। पता नहीं क्या - क्या ( स्टेरॉयड ) मिलाते हैं चारे में दूध बढ़ाने के वास्ते। कोई शराफत नाम की चीज़ ही नहीं बची है दुनिया में। दूध तो बच्चों को पीना होता है , उनके भविष्य के साथ तो खिलवाड़ न करें कम से कम , बीवी तमक कर बोली।

बस , तुम्हें कोई टॉपिक मिलना चाहिए , हो जाती हो शुरू। अब , गाय - भैंस को क्या पता कि कहां गोबर करना है और कहां नहीं। बस हूक उठी और उन्हें पूंछ उठा देनी है। तुम गाय - भैंस का रोना रो रहे हो , सामने देखो दीवार कैसी सनी पड़ी है , बीवी इशारा करती हुई बोली।

साले ! न दिन देखते हैं न रात , जहां खाली दीवार देखी कि बेशर्मों की तरह पैंट की ज़िप पर हाथ गया , मैंने हां में हां मिलाई। कोई कंट्रोल - शंट्रोल भी होता है कि नहीं ? बीवी खुंदक भरे स्वर में बोली। लाख लिखवा दो कि यहां पेशाब करना मना है , लेकिन बेवकूफ वहीं खड़े होकर शुरू हो जाएंगे। मैं भी शुरू हो गया।

औरत - मर्द में कोई फर्क ही नहीं करते। यह भी नहीं देखते कि कौन गुज़र रहा है पास से। शर्म - वर्म तो बेच खाई है सबने , मुंह बनाते हुए बीवी बोली। इन्होंने तो पूरे देश को खुले शौचालय में तब्दील कर रखा है। किसी और देश में कर के दिखाएं ऐसा , तो पता चले , मैं भी भड़कता हुआ बोला। काट कर नहीं रख देगा वहां का कानून , बीवी हंसते हुए बोली। बिना डंडे के कोई नहीं सुधरता है। इन्हें बस डंडे का डर दिखे , तभी सीधे होंगे। मेरा पारा भी लाल हो चला था। तुम भी कौन सा कम हो ? तुम भी तो कई बार ...

अरे ! तब तो मेरी तबियत ठीक नहीं थी। मैं झेंपता हुआ बोला। एक - आध दिन की बात हो तो अलग है , यहां तो रोज़ की आदत बना रखी है इन्होंने। ऊपर से ज़ुबान पर गालियां ऐसी छाई रहती है कि बस पूछो मत। छोटी - मोटी गाली देना तो शान के खिलाफ समझते हैं ये लोग। बीवी का गुस्सा बढ़ता ही जा रहा था। मां - बहन की गाली तो आजकल प्रसाद स्वरूप देने लगे हैं लोग , मैं हंसता हुआ बोला।

रहने दो , तुम भी कुछ कम नहीं हो , बीवी ताना मारते हुए बोली। तुम तो हर चीज़ में मुझे ही घसीट लिया करो। क्या , मैं कहता - फिरता हूं लोगों से कि यूं सड़क पर कूड़ा फेंकते फिरो या थूक - थूक कर पूरी दिल्ली को यूं थूकदान बना डालो ? अपने ऊपर आरोप लगता देख मेरा भड़कना जायज़ था।

क्या मैं कहता फिरता हूं , इन पैसों के लालची गुटखा - खैनी वालों से कि बच्चे - बच्चे को चस्का लगवाकर नशेड़ी बना दो ? मेरा बस चले तो सब सालों को जेल की चक्की पीसने पर मजबूर कर दूं। दूसरों पर कीचड़ उछालना कितना आसान है ? तुम्हारे हाथ में पावर हो तो तुम ही क्या उखाड़ लोगे ?

मैं ? हां तुम ! बीवी मखौल उड़ाते हुए बोली। अरे , मैं तो दो दिन में सुधार कर रख दूं पूरी दिल्ली को। एक बार मुझे सत्ता थमा कर तो देखो , उम्मीदों पर खरा न उतरूं तो कहना। यूं ! चुटकी में। हां ! चुटकी में दिल्ली का चौखटा ठीक न कर दूं तो मेरा भी नाम राजीव नहीं। ये , इन्हें तो मैं एक ही दिन में सिखा दूं कि दिल्ली में कैसे रहा जाता है। कैसे सड़कों पर चला जाता है ? कैसे सड़कों पर थूका जाता है ? कैसे कचरा फैलाकर दिलवालों की दिल्ली का बेड़ा गर्क करते हैं ये लोग ? मैं बोलता चला गया।

कैसे सरेआम कानूनों की धज्जियां उड़ाई जाती हैं ? कैसे खुलेआम सिगरेट - बीड़ी के कश लगाकर सबकी नाक में दम किया जाता है ? मैं आखिरी कश लगाकर सिगार पैर से मसलते हुए बोला। सालों को नाम के लिए भी ट्रैफिक सेंस नहीं है। न पैदल चलने की अक्ल है , ना गाड़ी - घोड़ा दौड़ाने की। बस मुंह उठाते हैं और चल देते हैं सीधा नाक की सीध में। भले ही कोई पीछे सौ - सौ गाली बकता फिरे , इन्हें कोई मतलब नहीं। कोई सरोकार नहीं कि पीछे , कोई इनकी गाड़ी के नीचे आते - आते बचा।

या ये खुद ही किसी गाड़ी से कुचले जाते अभी , बीवी ने बात पूरी की। ऊपर से ये पैदल चलने वाले ... उफ ! तौबा। पता नहीं , कौन सी दुनिया में खोए रहते हैं ? ये तो ग्यारह नम्बर की बस पर सवार होते हैं , यानी कि पैदल चलते हैं और गलती तो हमेशा बड़ी गाड़ी की ही मानी जाती है। मैं व्यंग्यपूर्वक चिढ़ता हुआ बोला। उल्टा , मुआवज़ा और ले मरते हैं साले। बीवी का पारा भी हाई हो चला था।

अरे ! हाथ में सत्ता आ जाए एक बार , इन्हें तो दिल्ली का रुख करना तक भुलवा दूं। हुंह ! थोथा चना , बाजे घना। क्या ? हां , क्या कर लोगे तुम ? बीवी मानो मुझे जोश दिलाने पर तुली थी। मेरा बस चले तो सबसे पहले इन फाइनैंस कम्पनियों को ही ताला लगवा दूं , जहां न बंदा देखते हैं , न बंदे की जात। बस फाइल बनवाओ और ले जाओ। साले , पांच - पांच हज़ार में स्प्लैंडर बांटते फिरते हैं कि ले बेटा , मौज कर। बाकी के देते रहियो किश्तों में। नहीं दे पाएगा तो फिक्र नॉट कर। हमने गुंडे - पहलवान भी पाल रखे हैं।

उफ ! रिकवरी एजंट पाले हुए हैं इसी खातिर। पता भी है कुछ ? अब तो नया स्यापा खड़ा होनेवाला है। बीवी तपाक से बोल पड़ी। वह क्या ? इस टाटा की ' नैनो ' ने तो और नाक में दम कर दिया है। वह कैसे ? इतना अच्छा काम कर रहा है और ऊपर से दुनिया की सबसे सस्ती कार। वही तो ! बीवी के चेहरे पर असमंजस का भाव था। जिसे देखो , वही ' नैनो ' पर सवार दिखाई देगा। फिर बुरा क्या है इसमें ?

भला क्या फर्क रह जाएगा अमीर और गरीब में ? बीवी अपनी मंहगी साड़ी का पल्लू ठीक करते हुए बोली , दोनों एक ही गाड़ी में घूमते नज़र आएंगे। कोई स्टेटस भी होता है कि नहीं ? काम वाली बाइयां तक घरों में काम करने गाड़ी से ही आया करेंगी , मैं मुस्कुराता हुआ बोला। नए बहाने मिल जाएंगे उन्हें कामचोरी के , कभी टायर पंक्चर तो कभी ट्रैफिक जाम। बीवी बुरा सा मुंह बनाते हुए बोली।

ऊपर से पुलिस का चलान हो गया तो समझो दो दिन की छुट्टी , मैंने मन ही मन सोचा। अभी तो हर किसी को नया - नया चाव चढ़ रहा है ना ' नैनो ' का। पता तब चलेगा बच्चू , जब पार्किंग की समस्या सर चढ़कर बोलेगी , बीवी मानो भविष्य की तरफ ताकती हुई बोली। अभी से बुरे हाल हैं , आगे रखने के लिए जगह तक नहीं मिलेगी। इस मामले में ये जापान वाले सही हैं , पूरी दुनिया को गाड़ियों पर सवार कर दिया और खुद घूमते हैं साइकिल पर।

ऊपर से तुर्रा ये कि सेहत ठीक रहती है। साले , कंजूस कहीं के ! मैं बीच में ही बोल पड़ा। सुना है ! वहां बन्दे को गाड़ी तब मिलती है जब वह पक्का सबूत दे कि इसे रखेगा कहां। पर , बीवी के चेहरे पर प्रश्नवाचक चिन्ह मंडरा रहा था। और नहीं तो क्या ? मैं उसकी जिज्ञासा शांत करता हुआ बोला। अभी नौकरियों में रिजर्वेशन मांगा जा रहा है। आनेवाले समय में पार्किंग कोटा फिक्स करने की डिमांड उठने लगे तो कोई ताज्जुब नहीं , बीवी बोली।

ताजुब्ब नहीं कि कल को कोई जेबों में हाथ डाले मज़े से यूं ही टहलता - टहलता शो - रूम जा पहुंचे और जेब से दो तीन बंडल मेज़ पर रखते हुए बोले , दो नैनो देना डीलक्स वाली। जय शनिदेव , जय बजरंग बली का हुंकारा लगाते भिखारी तक नैनो में भीख मांगते नज़र आएंगे। आनेवाले समय का मंज़र मेरी आंखो के सामने नाचने लगा। कल को नज़र बट्टू के नाम पर दफ्तर - दुकानों में नींबू - मिर्च टांगने वाले भी नैनो पर आने लग जाए तो कोई अजीबोगरीब बात न होगी।

बस ! स्टाइल कुछ यूं होगा। गले में सोने की चेन , माथे पर गॉगल , धन्धे का नाम मॉडीफाई करके ' लैमन चिली ' हो जाएगा। बीवी मज़ाक में बोली। मुझे तो अपने पप्पू की चिंता हो रही है , बीवी परेशान होकर बोली। वह क्यों ? मेरे चेहरे पर सवाल था। कल को वह भी खिलौनों से आज़िज आकर नैनो की ही डिमांड न करने लगे , मेरी तरफ देख बीवी बोली।

कोई बड़ी बात नहीं। मैंने जवाब दिया। कहीं बच्चों के लिए सस्ते पेट्रोल की डिमांड भी न उठने लगे। उफ ! क्या ये नैनो का पंगा लेकर बैठ गए ? जब आएगी , तब की तब देखी जाएगी। तुम तो बात कर रहे थे दिल्ली सुधारने की , क्या हुआ उसका ? बस ! बातों - बातों में ही हवा कर दी बात। अरे , हवा कहां ? पहले मौका मिले तो सही। सिखा दूंगा इन्हें कि कैसे थूका जाता है खुलेआम। वहीं थूके हुए को चटवा न दिया , तो मेरा भी नाम राजीव नहीं।

अपने घरों में , दफ्तरों में थूक कर देखो तब पता चलेगा। खुद से ही घिन न आ जाए तो कहना। बता दूंगा इन ठेकेदारों को कि कैसे लूटा जाता है सरकारी माल। हथकड़ियां न लगवा दी तो कहना। डंडा चलेगा जब मेरा तो बड़े - बड़े सीधे हो जाएंगे। किसे सुधारोगे तुम ? सारा ढांचा ही बिगड़ा पड़ा है दिल्ली का। अब , इन रिक्शे को ही लो , रोज़ तो जब्त करते - फिरते हैं एमसीडी वाले इसे।

मगर , अगले दिन फिर सड़क पर नाचते नज़र आते हैं ये। रिक्शेवालों की मनमानी से त्रस्त एक आम भारतीय नारी की आवाज़ थी यह। सुना है , पूरा माफिया होता है इस गोरखधन्धे के पीछे। रजिस्ट्रेशन के नाम पर एक - एक पर्ची पर बीस - बीस रिक्शे को रजिस्टर करवा रखे हैं सालों ने। अरे , लाखों का खेल है ये। एक - एक के पास हज़ार - हज़ार रिक्शे हैं।

बीस रुपए प्रति रिक्शे के हिसाब से लगा लो कि कितने का गेम बजता होगा हर रोज़। लेकिन , जो हो गया सो हो गया। सारी माफियागिरी धरी की धरी रह जाएगी , जब मेरा कटर चलेगा। कटर चलेगा ? बीवी चौंकती हुई पूछी। हां , कटर। कटर चलवा दूंगा , इन अवैध रिक्शों पर। ये नहीं कि जब्त कर गोदाम में फिकवा दूं सड़ने के लिए , ताकि कुछ ले - देकर सड़कों पर फिर से वे उछल - कूद मचाते फिरें।

एक ही बार में टंटा खत्म कर दूंगा इनका। न रहेगा बांस और न ही बजने दूंगा इनकी बांसुरी। काट के इतने टुकड़े करवा दूंगा कि कबाड़ी भी दो रुपए किलो से ऊपर का भाव न लगाए। यह सब तो ठीक है , लेकिन इन पैदल चलने वालों का क्या करोगे ? कैसे सिखाओगे इन्हें तमीज़ से चलना।

लठैत पहलवानों की भर्ती करूंगा , इन साले सड़क पार करने वालों के लिए। इधर गलत तरीके से सड़क पार की कि उधर लट्ठ बरसा , दे दनादन। पट्ठों को हथकड़ी लगवाकर वहीं रेलिंग से ही बंधवा न दिया तो मेरा नाम भी राजीव नहीं। फोटो अलग से खिचवाई जाएगी ऐसे नमूनों की , ताकि जान ले पूरा इंडिया।

पूरा इंडिया ? फिर बीवी के चेहरे पर सवाल था। हां , पूरा इंडिया। देख लो , जान लो कि क्या हश्र होने जा रहा है अब बददिमागों का। इससे फायदा ? फायदा तो बहुत है। पड़ेगी एक को , लगेगी सबको। सभी सीधे हो जाएंगे। बहुत देख लिया आराम से समझा - समझाकर। हम लातों के भूत बातों से भला कब माने हैं , जो अब मानेंगे ?

बिल्कुल , यही इलाज है इनका। डंडा सर पर हो तो बड़े - बड़े सीधे हो जाते हैं। यहां न डर है और न ही कानून की परवाह है किसी को। यहां साला जुर्म आज करो , सज़ा का कोई पता नहीं होता कि कब मिले ? मिले या न भी मिले , कोई गारंटी नहीं। सालों तक लंबे केस चलते हैं , किसी को सज़ा होते देखा है ? नहीं न ? इसी से तो बेड़ा गर्क हुए जा रहा है , पूरे हिन्दुस्तान का।

आम जनता भी तो इन्हीं नेताओं से सबक लेती है। देखती है कि जब इनका बाल भी बांका नहीं हो पा रहा , तो अपना क्या बिगड़ेगा। बीवी भी मेरे रंग में रंग चुकी थी। मुझे तो अरब देशों का कानून बहुत पसन्द है जी। जैसा जुर्म , वैसी सज़ा। चोरों के हाथ काट दिए जाते हैं। बीवी की आवाज़ में आवेग था। नशे के सौदागरों को पूरी ज़िन्दगी जेलों में सड़ने के लिए छोड़ दिया जाता है और बलात्कारियों को ... मैंने बात अधूरी छोड़ दी।

पता नहीं , क्या मिलता है लोगों को अच्छी खासी चल रही लाइफ को बिगाड़ कर। किसकी बात कर रही हो ? अब प्रश्न मेरे चेहरे पर नजर आ रहा था। बेड़ा गर्क करके रख दिया है , इन मसाज पार्लरों ने। मेरी बात सुने बिना ही बीवी बोलती चली गई। दिन पर दिन ये कुकुरमुत्तों की तरह गली - गली उगते जा रहे हैं। कोई गली , कोई मोहल्ला तक अछूता नहीं है इनसे। पता नहीं , कहां से ये फिरंगी कल्चर इंडिया का नाश करने पर तुला है।

पता नहीं , क्या आग लगी है आज के नौजवानों को ? बीवी का आवेश बढ़ता ही जा रहा था। पार्लर की आड़ में सारे उल्टे काम। मेरे हाथ में पावर आ जाए तो पुलिस का पहरा न बिठवा दूं , इन मसाज पार्लरों पर। एक - एक की ऐसी ठुकाई करवाऊंगा कि आनेवाली सात नस्लें तक जान जाएंगी कि मसाज कैसे करवाई जाती है।

मेरा बस चले तो सबसे पहले यह सब लेटेस्ट मोबाइल बन्द करवाऊंगी। बड़े गंदे - गंदे एमएमएस बनाने का चलन चल निकला है आजकल। हर बंदा मोबाइल में कुछ न कुछ पुट्ठा सामान लिए फिरता है। मैंने बात पूरी की। जिसे देखो चोरी से किसी न किसी लड़की की छिपाकर फोटो खींच रहा होता है। सही है , मैंने सहमति जता दी। तुम कौन सा कम हो , तुमने भी तो उस दिन ... बीवी आंखे तरेर मुझसे बोली।

वो ? वो तो बस ! ऐसे ही मज़ाक - मज़ाक में ... मैं झेंपता हुआ बोला। बस ऐसे ही ? सभी मज़ाक - मज़ाक में ही खींच लिया करते हैं। यह तो सोचो कि कोई इसी तरह तुम्हारी भी मां - बहन या बीवी एक कर रहा होगा। बीवी भड़कते हुए बोली। ये साले , सभी मर्द एक से होते हैं। लड़की देखी नहीं कि लार टपकना शुरू। काबू में नहीं रख पाते अपने जज़्बात। अरे ! तुम भी कौन सी बात लेकर बैठ गई ?

अगर सामने से थोड़ी - बहुत लिफ्ट मिलती है , तभी हम मर्दों की हिम्मत होती है। वर्ना हमारे जैसा दब्बू , पूरे जहां में कोई नहीं मिलेगा। मैं बिगड़ी बात संभालता हुआ बोला। तुम भी न , उल्टे - सीधे टॉपिक बीच में छोड़कर असली बात ही गोल कर देती हो। बात हो रही थी दिल्ली सुधारने की। तो सुनो , सब साले कामचोर बाबुओं को सस्पेंड कर बता दूंगा कि कैसे बिना ड्यूटी पर आए हाज़री लगवाई जाती है।

वो सब तो ठीक है , पर इन नेताओं का क्या करोगे ? जीना हराम कर रखा है , इन्होंने आम पब्लिक का। इन्हें तो बस पैसेवाले ही नज़र आते हैं। इनकी तो मैं ... बिना बोले मैंने बात अधूरी छोड़ दी। जेल की रोटी खाने और चक्की पीसने पर मजबूर ना कर दिया तो कहना। सब सीख जाएंगे कि कैसे बड़ी - बड़ी मॉलों को लाइसेंस देकर , छोटे दुकानदारों से जीने का लाइसेंस ही छीन लिया जाता है।

कैसे बडे़ - बडे़ लाल , हरे , नीले स्टोरों को कोठियों में खोलने की इज़ाज़त देकर आम आदमी की रोज़ी - रोटी पर लात मारी जाती है। सिखा दूंगा कि कैसे गिने - चुने निशानों का डिमॉलिशन कर पूरी पैसे वाली जमात को बचाया जाता है। सिखा दूंगा कि कैसे अपने धूल फांकते उजाड़ बंजर खेतों पर सरकारी पैसे से हॉट बज़ार या सुभाष चन्द्र बोस स्मारक बनवाकर अपनी तिजोरियां भरी जाती हैं।

कैसे सरकारी गोपनीय दस्तावेजों का नाजायज़ इस्तेमाल कर गरीब किसानों से कौड़ियों का दाम लेकर उसी जमीन से बाद में लाखों करोडों नहीं , बल्कि अरबों रुपए कमाए जाते हैं। कैसे अपने नेम - फेम की खातिर मेट्रो का रूट तब्दील करवाया जाता है। बीवी भी पिल पड़ी। कैसे सौ के ऊपर , सीधा पांच सौ का टैक्स लगाकर ट्रैफिक चलान की फीस को बढ़ाया जाता है। कैसे सरकारी जमीन पर रातों - रात झुग्गी बस्तियां बसवा कर अपना वोट बैंक मज़बूत किया जाता है।

कैसे सरकारी ड्रॉ में मलाईदार प्लॉट अपनों के नाम किए जाते हैं। बीवी का गुस्सा कम होने को ही नहीं था। कैसे पैसे ले लेकर कुक्करमुत्ते की भांति उगने वाली जाली फ्रॉड कंपनियों को राज्य में काम करने की छूट दी जाती है। कैसे प्राइवंट बिजली कम्पनी को नए तेज़ भागते मीटर लगाने की छूट देकर करोड़ों के वारे - न्यारे किए जाते हैं। कैसे ऑटो , टैक्सी के इलेक्ट्रॉनिक मीटरों के जरिए पब्लिक की जेब से पैसा खींचा जा सकता है , बिना रुके मैं भी बोलता रहा।

इतना सबकुछ हो रहा है , लेकिन पब्लिक कुछ कहती ही नहीं। अरे ! पिद्दू पब्लिक है , ये कुछ नहीं जानती है। हमारे यहां डर नहीं है , न किसी को कानून का और न ही समाज का डर है। मौका मिले कि हर बंदा कानून तोड़ने से परहेज नहीं करता। मज़ा आता है , शेखी दिखाई देती है इसमें। भीड़ में सबसे अलग , सबसे जुदा होने की चाहत होती होगी शायद। अब ये ट्रैफिक पुलिस वालों का आलम तो देखो - हर एंट्री के नाम पर जहां पचास का पत्ता झटकते थे , टैम्पो वालों से सरकारी चालान बढ़ने के कारण इन्होंने भी अपना रेट बढ़ा दिया है।

ऊपर से सीनाजोरी देखो इनकी , कहते हैं कि हम यहां क्या मुफ्त में ... मेरा बस चले तो इन सभी रिश्वतखोरों के एमएमएस बनवा कर इनके दूध धुले चेहरों का लाइव टेलीकास्ट करवा दूं। खुदा समझते हैं अपने आपको। जिसे देखो ! वही दिल्ली की कब्र खोदने पर उतारू हैं।

अब इन ब्लूलाइन वालों को ही लो , बंदे की जान की कोई कीमत ही नहीं है इनकी नज़र में। जब चाहे रौंद डालते हैं। ब्लूलाइन वालों की तो मैं ... । सुना है , सब बड़े नेताओ की करनी है। इसीलिए लाख इनके खिलाफ आवाज़ें उठने के बावजूद भी बसें रौंदे चली जा रही हैं पब्लिक को। बस एक बार मेरे हाथ में ताकत आ जाए। सारे परमिट कैंसल करवा के दिल्ली से बाहर फिंकवा दूंगा कि चलो अब यूपी , बिहार। अरे ! तब तो बहुत दिक्कत हो जाएगी। इतनी भीड़ , इतनी पब्लिक ... । बाप रे !

होती रहे मेरी बला से। कुछ पाने के लिए कुछ खोना भी ज़रूरी होता है। इतना भी नहीं जानती ? तुम तो बुद्धू हो। अरे ! एक ही झटके में नहीं साफ होगा पत्ता इन ब्लूलाइनों का , बल्कि सिलसिलेवार ढंग से कुछ ही महीनों में सबकी बत्ती गुल कर दूंगा दिल्ली से।

तब तक पब्लिक क्या घर बैठी रहेगी ? अरी बेवकूफ ! कॉर्पोरट सिस्टम लागू करूंगा मुम्बई के माफिक। एक ही कम्पनी की दो - दो हज़ार बसें होंगी कम से कम। पब्लिक भी खुश , कम्पनी भी खुश और लगे हाथ हम भी खुश। अब कौन हर बस से अलग - अलग मंथली इकट्ठी करता फिरे ? हमें तो बस एक मुश्त रकम मिल जाए पूरे साल भर की तो ही जा के चैन पड़े।

एक बार में ही पूरे मिल जाए तो कहीं ढंग से ठिकाने भी लगे। छोटे - मोटे बंडल तो वैसे ही बियर बार - बालाओं को ही खुश करने में साफ हो जाएंगे। मेरे चेहरे पर वासना चमक उठी थी। ये क्या कि खेत का खेत जुता , फसल की फसल कटी और अनाज कब चूहे ले गए पता भी नहीं चला। मैं दिखाउंगा पूरी दिल्ली को कि कैसे खेला जाता है खेल।

कैसे सबकी नज़रें बचाकर लाखों करोड़ों के वारे - न्यारे किए जाते हैं। मेरी आंखों की शैतानी चमक सारी कहानी खुद बयां कर रही थी। कैसे हर छोटी - बड़ी ठेकेदारी में अपना हिस्सा फिट किया जाता है। सही कह रहे हो , बीवी की आंखों में भी लालच का परचम लहरा चुका था। कैसे पुलिस और ट्रैफिक की कमाई में अपनी गोटी फिट की जाती है ! कैसे नौकरी जाने के साथ - साथ जेल जाने का डर दिखा बेईमान अफसरों से अपनी मंथली सेटिंग की जाती है ! कैसे हर फैक्ट्री वाले की बैलन्स शीट के हिसाब से अपना परसेंट तय किया जाता है।

बातें तो तुम सारी एकदम सही कर रहे हो , लेकिन सत्ता हाथ आएगी कैसे ? इसके लिए तो बहुत नोटों की ज़रूरत पड़ेगी और वो तो है नहीं ना अपने पास। ज़्यादा उड़ो मत , बड़ी पावर की बातें किए जा रहे हो। यहां रिलायंस की पावर खरीदने लायक पैसे भी नहीं हैं , बीवी बैंक की पासबुक देख निराश होते हुए बोली। बस यही तो एक कमी रह गई। बाकी सारा मास्टर प्लैन तो मुंहज़बानी रटा पड़ा है हम दोनों को। मेरी आवाज़ में हताशा का पुट था।

काश ! कहीं से पैसा आ जाए इलेक्शन लड़ने के लिए , मैं ठंडी आह भरता हुआ बोला। बस पैसा आ जाए किसी तरह , बाकी सब दांवपेच पता है कि कैसे लड़ा जाता है चुनाव ? कैसे झटके जाते हैं विरोधी खेमे के वोट ? कैसे दूसरे के वोट बैंक में सेंध लगाई जाती है ? अरे ! बैंक से याद आया , अपने गुप्ता जी तो बैंक में ही हैं न ! पता करो , कोई लोन - शोन का ही जुगाड़ बन जाए शायद। आजकल तो धड़ाधड़ बांट रहे हैं ये बैंक वाले लोन। रोज़ ही तो लोन ले लो , लोन ले लो कह कर सिर खा रही होती हैं फोन पर।

दुनिया भर की तो छम्मक छल्लो भर्ती कर रखी हैं इन्होंने इसी खातिर। एक मिनट रुको , कहकर मैं अपने मोबाइल की फोन बुक खंगालने में जुट गया। अभी परसों ही तो फोन आया था रूबी का। अरे वही ! बैंक वाली , और कौन ?

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