फेसबुक हाय हाय…हाय हाय…बन्द करो ये फेसबुक- राजीव तनेजा

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इस बात में रत्ती भर भी संदेह नहीं कि आजकल चल रही सोशल नेटवर्किंग साईट्स जैसे याहू..ट्विटर और फेसबुक वगैरा में से फेसबुक सबसे ऊपर है...
यहाँ पर हर व्यक्ति अपने किसी ना किसी तयशुदा मकसद से आया है...बहुत से लोग यहाँ पर सिर्फ मस्ती मारने के उद्देश्य से मंडरा रहे हैं..कईयों के लिए ये फेसबुक प्रेमगाह या प्रेम करने के लिए सर्वोत्तम अखाड़ा साबित हो रहा है...
हम जैसे लेखक टाईप के लोग फेसबुक जैसी सोशल साईट्स पर आए ही इसलिए हैं कि हमें अपने पंख फ़ैलाने के लिए एक नया आसमां...एक नया माहौल मिले..मुझ जैसे बहुत से सडकछाप लेखकों के लिए तो फेसबुक जैसे एक वरदान साबित हुआ है..खुद मुझे ही फेसबुक के जरिये एक नई पहचान तथा अपनी ऊट पटांग कहानियों तथा टू लाईनर्ज़ के लिए नए पाठक भी मिले हैं लेकिन हम लेखकों या कवियों में से भी सभी इससे खुश हों...ऐसी बात नहीं है...
यहाँ हमारी जमात में बहुत से ऐसे लोग भी है जो यहाँ महज़ अपनी हांकना चाहते हैं दूसरों की सुनना नहीं...ऐसे लोगों के लिए मैं बस इतना ही कहना चाहूँगा कि...

"यहाँ सभी अपने मन की बातें कहने आएँ है मित्र लेकिन ये सवाल भी तो साथ ही साथ उठ खड़ा होता हैं ना कि अगर सब अपने मन की बातें कहने आएँ हैं तो फिर उन बातों को सुनेगा कौन?...क्या स्वयं जुकरबर्ग?...अगर हाँ...तो उसे हिन्दी आती होगी क्या?....अगर नहीं आती होगी तो क्या इसके लिए वो दुभाषिए का जुगाड या सब टाईटल युक्त हिन्दी फिल्मों के जरिये वो हिन्दी सीखने का प्रयास करेगा?...हिन्दी फिल्मो के जरिये अगर हिन्दी सीख भी ली तो फेसबुक के लिए वो किस काम की?...क्योंकि यहाँ पर तो सब लिखत्तम चलता है...बकत्तम के लिए ना के बराबर गुंजाईश है यहाँ . इसका मतलब सीधे सीधे उसे हिन्दी लिखना और समझना सीखना होगा... लिख और समझ लिया तो बोलना तो वो खुद बा खुद ही सीख लेगा... लेकिन ऐसी परिस्तिथि में जिसके होने कि संभावना लगभग ना के बराबर है  ...किसी कारणवश चलो चलो मान भी लिया जाए कि फेसबुक का मालिक याने के खुद जुकरबर्ग फेसबुक पर हमारी आपकी बात सुनने के लिए बिना किसी लालच के ये सब पापड बेल भी लेता है तो भी इस बात की क्या गारंटी है कि अपनी तमाम व्यस्तताओं के चलते वो सबकी बात सुन ही पाएगा?...

कहीं बीच में ही किसी एक आध बुद्धिजीवी टाईप के कवि या व्यंग्य सम्राट ने उसे दुनिया भर के मीन मेख निकाल कविता या व्यंग्य के प्रकार...शब्द संयोजन...उसकी संरचना एवं कलात्मकता की पूर्ण रूप से रसहीन व्याख्या करते हुए उसके दिमाग का दही कर दिया तो?...खुद अपने सामने दिमाग को दही होता देखने से बचने के लिए ये भी हो सकता है कि वो हिन्दी सीखने या इसके नाम से बिदकने लग जाए तो हम लोग तो रह गए ना फिर वहीँ के वहीँ?...इसलिए हे मित्र दुनिया जहाँ तक अपने मन की बात पहुँचाने का सर्वोत्तम तरीका तो यही है कि
हम अपनी कहें तो दूसरों के भी मन की सुनें...
आमीन "

खैर हम बात कर रहे थे फेसबुक के गुण तथा दोष की ...

तो जहाँ एक तरफ फेसबुक और ट्विटर जैसी सोशल साईट्स के हमें अनेंकनेक फायदे नज़र आ रहे हैं तो इसमें कमियां भी कई हैं… कई सिरे से फिरे हुए सिरफिरे टाईप के लोग इसे आभासी दुनिया को जंग का मैदान बनाने से भी बाज़ नहीं आ रहे हैं.. दुनिया भर की भड़ास.. कुंठाएँ...विकृतियाँ यहाँ इस फेसबुकिये मंच के जरिये हमारे समाज में चौबीसों घंटे अनवरत रूप से परोसी जा रही हैं..इन्हीं चंद गिनी चुनी बुराइयों की वजह से समाज में इनके खिलाफ आवाजें भी उठनी शुरू हो गई हैं कि... 'फेसबुक हाय हाय…हाय हाय ‘…या बन्द करो ये फेसबुक'

लेकिन क्या महज़ फेसबुक या ट्विटर को बन्द करवा देने से ये सब बुराइयां मिट जाएँगी?...खतम हो जाएँगी? ...
नहीं...बिलकुल नहीं...
फेसबुक को या ऐसी ही अन्य सोशल साईट्स को लेकर सबसे ज़्यादा हाय तौबा मचने वाले हमारे देश के नेता लोग हैं...उनकी इस बौखलाहट से ही साफ़ साफ़ पता चल जाता है कि भीतर से ये लोग कितने डरे हुए हैं...इनके इस डर का सबसे बड़ा कारण ये है कि ये आम आवाम की ताकत को पहचान गए हैं कि ट्विटर पर इनके किसी भी घोटाले का एक ज़रा सा ट्वीट कर देने से या फेसबुक पर किसी नेता या मंत्रालय में हुए भ्रष्टाचार का जिक्र कर देने से
पूरी दुनिया में इनके खिलाफ तुरंत ही एक आभासी मुहिम सी शुरू हो जाती है|इसी सब से बौखला कर सरकार अपना दमन चक्र भी चलने से बाज़ नहीं आ रही है...
किसी को उसकी नौकरी छीन लेने की बात कह धमकाया जा रहा है या किसी प्रोफैसर को महज़ इसलिए जेल की काल कोठरी में ठूस दिया जा रहा है क्योंकि उसने किसी स्वयंभू टाईप की माननीय(?) मुख्यमंत्री खिलाफ कार्टून बना कर उसे फेसबुक पर अपडेट कर दिया था|

इन नेताओं से तो खैर उनका खुदा या भगवान खुद निबटेगा..हमें क्या?…

हम लोग तो हर बार इस बात का पुरजोर विरोध करेंगे कि 'फेसबुक हाय हाय…हाय हाय’…या बन्द करो ये फेसबुक'  

***राजीव तनेजा***

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अजब ये फेसबुक और अजब इसके रिश्ते -राजीव तनेजा

अजब ये फेसबुक और अजब इसके रिश्ते 




कभी कच्ची धूप से खिलते
कभी घुप्प अँधेरे में सिमटते 
तुरत फुरत इस पल बनते
झटपट उस  पल बिगड़ते

अजब ये फेसबुक और अजब इसके रिश्ते

बेगानों संग प्रीत जताते
अनजानों संग पेंच लड़ाते
कभी हँसते तो कभी रोते
सपने पर नित नए संजोते

अजब ये फेसबुक और अजब इसके रिश्ते

कभी किले हवा में हवाई बनाते
कभी रेतीली ज़मीं पर
कदम अपने ठोस टिकाते 
कभी वीराने में मरुद्यान ढूंढते 
कभी छिछली रेत में
समंदर उजला तलाशते

अजब ये फेसबुक और अजब इसके रिश्ते

अपनों को खुडढल लाइन लगा
बेगानों में खुशी सच्ची तलाशते
बिन मतलब इधर बढते उधर भटकते
निजता खोते  संभाले न सँभलते

अजब ये फेसबुक और अजब इसके रिश्ते

यहीं पर खाते यहीं पर पीते
यहीं पर नहाते यहीं पर धोते
दामन अपना हमेशा पाक साफ़ बताते
अपने किए पे कभी खुद खेद जताते
तो कभी लांछन दूजे पे सौ सौ लगाते

अजब ये फेसबुक और अजब इसके रिश्ते

कभी बेगानी शादी में
अब्दुल्ला बन दीवानों सा नाचते
कभी अपनों से ही हर पल कतराते
कभी बिन चाबी का ताला खोजते
कभी पैसों में हर चीज़ को तोलते

अजब ये फेसबुक और अजब इसके रिश्ते

कभी खुद को पाते कभी खुद को खोते
बेवजह इनमें पिसते एडियों को घिसते
पागल बन बिन मौसम बरसात माँगते 
आवारा बन सच्चा जीवन साथ चाहते

अजब ये फेसबुक और अजब इसके रिश्ते

इक पल में लाखों अरमां जवां कर डालते
पल अगले ही सबकुछ तबाह कर डालते
पल अगले ही सबकुछ तबाह कर डालते

अजब ये फेसबुक और अजब इसके रिश्ते 


***राजीव तनेजा***

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छोड़ो ना कौन पूछता है (ऑडियो) - राजीव तनेजा

मेरी कहानी छोड़ो ना...कौन पूछता है का ऑडियो वर्ज़न अर्चना चावजी की आवाज़ में 

archana_chaoji[3]

 

 

टाएं-टाएं फिस्स- राजीव तनेजा

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“ओहो!…शर्मा जी…आप….धन भाग हमारे जो दर्शन हुए तुम्हारे”…

“जी!…तनेजा जी….धन भाग तो मेरे जो आपसे मुलाक़ात हो गयी"…

“हें…हें…हें…शर्मा जी….काहे को शर्मिन्दा कर रहे हैं?….मैं भला किस खेत की मूली हूँ?….कहिये!…कैसे याद किया?”…

“अब…यार…क्या बताऊँ?…मेरी तो कुछ भी समझ में नहीं आ रहा है"…

“जब खुद की ही समझ में नहीं आ रहा है तो मुझे क्या ख़ाक समझाएंगे?”मैं झल्लाने को हुआ…

“न्नहीं!…दरअसल मैं समझाने नहीं बल्कि समझने आया हूँ?”….

“क्या?”….

“यही तो समझ नहीं आ रहा है"…

“क्क्या?”….

“जी!….

“आपको खुद ही समझ नहीं आ रहा है कि आप क्या समझने आए हैं?”…

“न्नहीं!….ऐसी बात नहीं है"…

“तो फिर कैसी बात है?”…

“यही सोच रहा हूँ कि बात…कहाँ से शुरू करूँ?”…

“बात का क्या है?….जहाँ से मर्जी शुरू कीजिये लेकिन हाँ!….उसे उसके क्लाईमैक्स याने के अन्त तक ज़रूर पहुँचाइएगा”…

“ज्जी!….जी…ज़रूर….बात को तो मैं उसके क्लाईमैक्स तक बड़े आराम से पहुँचा दूंगा…नो प्राब्लम लेकिन उसके मतलब तक तो आपको ही पहुँचाना पड़ेगा”…

“किसे?”….

“मुझे"…

“ओ.के…कोशिश करके देखता हूँ"…

“कोशिश नहीं…वायदा कीजिये"…

“अरे!…वायदे तो अक्सर टूट कर छिन्न-भिन्न हो इधर-उधर बिखर जाया करते हैं"…

“और कोशिशें?”…

“और कोशिशें अक्सर अपने दम पर कामयाब हो खुद बा खुद जश्न की तैयारी में तन…मन धन से मशगूल हो अकेली ही जुट जाया करती हैं"…

“ओ.के…तो फिर आप वायदा मत कीजिये….कोशिश ही कीजिये"….

“जी!…ज़रूर…ये तो मेरा फ़र्ज़ है लेकिन पहले आप…बात क्या है?…ये तो बताइए"…

“ओह!…अच्छा…सॉरी"….

“किस बात के लिए?”…

“उसी बात के लिए जो मैंने अभी तक शुरू नहीं की"…

“ओ.के….

“दरअसल हुआ क्या कि जब से मैं गोवा से घूम के आया हूँ…बीवी के रंग-ढंग ही बदल गए हैं"…

“तेवरों समेत?”…

“जी!….

“हद हो गयी यार ये तो…तौबा…तौबा…क्या ज़माना आ गया है?…..गोवा मर्द घूम के आ रहा है और रंग-ढंग उसकी बीवी के…यहाँ…दिल्ली में बैठे-बैठे बदल रहे हैं…वैरी स्ट्रेंज"मैं आश्चर्यचकित हो अपने कानों को हाथ लगाता हुआ बोला...

“न्नहीं!…दरअसल गोवा जाने से तो काफी पहले ही इसकी शुरुआत हो गयी थी"…

“ओह!…अच्छा…अब समझा…. बीवी के रंग-ढंग पहले से ही बदल गए…इसलिए आप उससे बदला लेने के लिए गोवा गए?”…

“न्नहीं!….दरअसल….ये बात नहीं है जो आप समझ रहे हैं"….

“तो फिर क्या बात है?”…

“यही तो मेरी समझ में नहीं आ रहा है"….

“जैसे तुम समझा रहे हो…ऐसे तो मेरी भी समझ में नहीं आ रहा है"….

“अब मैं आपको कैसे समझाऊँ कि मेरी बीवी पहले जैसी नहीं रही"….

“शादी को कितने साल हो गए?”…

“किसकी?”…

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“मेरी?”…

“अब….इस बारे में मैं क्या बता सकता हूँ…आप तो हर तीसरे महीने चोला बदल नए सिरे से शादी की तैयारी में जुट जाते हैं?”…

“तो?….कौन सा अपनी करता हूँ?…दूसरों की ही करता हूँ ना?”….

“जी!…लेकिन मुझे एग्जेक्ट डेट तो नहीं मालूम होती ना हर बार"…

“बेवाकूफ!…मैं अपनी नहीं बल्कि तुम्हारी शादी की बात कर रहा था"…

“ओह!…अच्छा…म्म..मेरी शादी को तो पूरे ग्यारह साल हो जाएंगे अगले साल नवंबर में"….

“और इस साल?"…

“पूरे दस साल हो जाएंगे"…

“भय्यी!…वाह…बहोत बढ़िया….तुम तो अपने फायदे के लिए ईश्वर को…उसकी पूरी कायनात को मात देना चाहते हो"…

“म्म…मैं कुछ समझा नहीं"….

“और मैं भी नहीं समझ पा रहा"…

“क्या?”…

“तुम्हारे दिमाग के दिवालिएपन को"…

“कैसे?”…

“तुम ईश्वर के लिखे को पलटना जो चाहते हो"….

“कैसे?”…

“ऐसे…(मैंने पास ही टेबल पे रखे हुए गिलास को उलटा कर दिया)…

“म्म…मैं कुछ समझा नहीं"शर्मा जी के स्वर में असमंजस था….

“तुम चाहते हो कि तुम्हारी बीवी अब भी वही दस साल पहले वाली ब्यूटी क्वीन जैसी लगे?”मैं शर्मा जी की तरफ शरारत भरी नज़र से घूर कर मुस्कुराता हुआ बोला…

“क्या तनेजा जी…आप भी…इतना मूर्ख समझते हैं क्या मुझे?….मैं क्या ईश्वर को और उसके लिखे को नहीं जानता हूँ कि हर इनसान को …बच्चे होने से लेकर बूढ़े होने तक के क्रम को झेलना है और एक दिन मर कर इसी मिट्टी में मिल जाना है"…

“तो फिर तुम ऐसा क्यों कह रहे हो कि…..बीवी पहले जैसी नहीं रही"….

“तो क्या झूठ कह दूँ कि वो पहले जैसी ही है…बिलकुल नहीं बदली?”….

“अच्छा!…ये बताओ कि पहले की अपेक्षा उसमें जो बदलाव हुए हैं …वो सुखद हैं कि फिर दुखद?”…

“ज्जी!…हैं तो सुखद ही लेकिन मुझे डर लग रहा है"…

“बीवी से?”…

“नहीं!…उसमें आए बदलावों से…डरता तो मैं उससे शुरू से ही था लेकिन….

“लेकिन अब नहीं डर रहे?"…

“जी!…

“लेकिन क्यों?”…

“अभी बताया ना?”….

“क्या?”…

“यही कि उसमें आए बदलावों से धीरे-धीरे मेरे अन्दर से डर जैसी फीलिंग जाती जा रही है"…

“दैट्स नाईस…ये तो अच्छी बात है"….

“ख़ाक!…अच्छी बात है?….मुझे तो ये तूफ़ान के आने से पहले के मंज़र जैसा लग रहा है"शर्मा जी के स्वर में किसी होने वाले अनर्थ की आशंका साफ़ झलक रही थी……

“ओह!…काफी इंट्रेस्टिंग केस है"मेरे स्वर में उत्सुकता थी….

“आपके लिए ये महज़ एक इंट्रेस्टिंग केस हो सकता है लेकिन मेरी तो जान पे बन आई है"शर्मा जी अपनी आँख में छलक आए आंसू को हौले से पोंछते हुए बोले…

“ओह!…सॉरी…आय एम् वैरी सॉरी…आप मुझे शुरू से सारी बात बताएँ कि किस-तरह के और कैसे बदलाव आए हैं आपकी मिसेज के बिहेवियर में?”…

“वैसे तो इस सब की शुरुआत हमारी शादी के साथ ही हो गयी थी?”…

“और आप मुझे इस सब के बारे में अब बता रहे हैं"मेरे स्वर में हैरानी थी….

“नहीं!…दरअसल मैं ये बताना चाह रहा हूँ कि पहले मेरी बीवी का बिहेवियर कैसा था और अब कैसा है?”…

“ओ.के”….

“दरअसल हुआ यूँ कि हमारी शादी के बाद पहले दिन से ही मेरी बीवी ने मुझसे मरवाना शुरू कर दिया था"….

“इट्स नैचुरल….कुछ भी गलत नहीं है इसमें"….

“जी!…लेकिन अब…इतने सालों बाद…

“आप उससे मरवाते हैं?”…

“जी!….

“क्क…क्या?”….

“जी!…

“आपको शर्म नहीं आती?”….

“काहे को?…मुझे तो इसमें बड़ा मज़ा रहा है"….

“और फिर भी आप उसकी शिकायत लेकर मेरे पास आए हैं"….

“जी!…

“लेकिन क्यों?”….

“अभी बताया ना कि आने वाले तूफ़ान का अन्देशा….

“ओह!…अच्छा…समझ गया…आपको डर है कि दिमाग फिरते ही कहीं वो फिर से आपसे मरवाना ना शुरू कर दे?”…

“जी!…दरअसल बात ये है कि उम्र के इस ढलते पड़ाव में मेरी सेहत मुझे इस बात की इजाज़त नहीं देती कि….मैं रोज-रोज….

“रोज-रोज?”…

“जी!…रोज-रोज"….

“इतना स्टेमिना है उसमें कि रोज-रोज….हर रोज…

“जी!…इसी बात से तो मैं भी हैरान और परेशान हूँ कि आज के भले ज़माने में क्या कोई औरत इतनी निर्दयी भी हो सकती है कि वो अपने पति से रोज-रोज….

“न्न्…ना…ना…मैं नहीं मानता….बिलकुल नहीं मान सकता कि कोई भारतीय पत्नी इस तरह….इतनी बेदर्दी से…

“आपको भला क्यों विश्वास होने लगा?…आप पर कौन सा बीत रही है?….बीत तो मुझ पर रही है ना?…य्य्य…ये देखिये…अभी तक डाक्टर से मेरी कमर की दवाई चल रही है”शर्मा जी अपने चेहरे पे दर्द भरे भाव ले जेब से डाक्टर का प्रिसक्रिप्शन निकाल मुझे दिखाते हुए बोले…

“ओह!….(मेरे स्वर में सहानुभूति का पुट था)…

“रोज़मर्रा की इस उठापटक से तो कई बार तो मेरी कमर इस हद तक बुरी तरह दुखने लग जाती थी कि मैं हाँफ-हाँफ के पसीने-पसीने हो उठता था और बिना ठीक से परफार्म किए ही बीच भंवर में टाएं-टाएं फिस्स हो जाया करता था”…

“ओह!…

“लेकिन पता नहीं वो करमजली किस मिट्टी की बनी है कि उसे मुझ बेचारे का हाल…बेहाल देख के भी बिलकुल तरस नहीं आता था….

“ओह!….

“उलटे पागलों की तरह हिस्टीरियाई अंदाज़ में जोर-जोर से गला फाड़ …पड़ोसियों को सचेत करते हुए बिना आव और ताव देखे चिल्लाने लग जाती थी कि…

“यहाँ से भी मारो….इधर से भी मारो?”…

“जी!…

“ठीक से क्यों नहीं मार रहे?…ऐसे मारो…वैसे मारो…वगैरा…वगैरा?”..

“जी!…आप तो यार सचमुच में जीनियस हो"…

“सच्ची?”….

“जी!…

“इट्स ओ.के…फोर्मेलिटी की ज़रूरत नहीं है…तुम आगे बताओ"…

“पागल की बच्ची ऐसे बिहेव करती थी जैसे मैं बहुत बड़ा एक्सपर्ट होऊँ  इस सब काम का"…

“एक मिनट…कहीं ऐसा तो नहीं कि शादी से पहले तुमने उससे डींगें मारी हों कि…तुम ऐसे मार सकते वो…वैसे मार सकते हो…इस तरीके से भी मार सकते हो और उस तरीके से भी मार सकते हो?”….

“येस्स!…यू आर राईट…मैंने तो ऐसे ही मजाक-मजाक में उससे….(शर्मा जी कुछ याद करते हुए बोले)…

“और वो पागल इस सब को सच समझ बैठी?"…

“जी!…

“इसलिए मैं सबसे कहता फिरता हूँ कि…पहले तौलो…उसके बाद बोलो"…

“जी!…

“और अब इसके ठीक उलट बिहेवियर है उसका?”…

“जी!…

“याने के अब वो नहीं बल्कि तुम उससे मरवाते हो?”…

“जी!…

“तो फिर इसमें क्या दिक्कत है?….अपना मज़े करो”…

“दिक्कत तो यही है कि वो हर तीसरे दिन मुँह फाड़ के खड़ी हो जाती है….

“तुमसे मरवाने के लिए?”…

“नहीं!…नया झाडू लाने के लिए"…

“तुमसे मरवाने के लिए?”….

“नहीं!…अभी बताया ना मैंने कि आजकल मैं उससे मरवाता हूँ?”…

“झाडू से?”…

“जी!….

“ओ.के….फूल वाले से या फिर तीले वाले से?”…

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“तीले वाले से"…

“कोई दिक्कत या परेशानी नहीं होती?”…

“वैसे तो खैर इसके अलावा और क्या दिक्कत होनी है कि वो हर तीसरे दिन नया झाड़ू लाने के लिए कह देती है?”…

“तो फिर प्राबलम क्या है इसमें?….ला दिया करो उसे झाडू"….

“भय्यी!…वाह….बहुत बढ़िया…मेरे यहाँ तो जैसे सिक्कों की टकसाल लगी है ना?…नोटों का अम्बार लगा है ना?….पता भी है कि एक ढंग का लंबे तीलों वाला…फुल्ल भरा हुआ झाडू कितने का आता है?”….

“कितने का आता है?”…

“पूरे पचास रूपए का"….

“हद हो गयी यार ये तो….अपनी पूरी जिंदगी में मैंने तुम जैसा कँजूस…मक्खीचूस बन्दा नहीं देखा….अपनी खुशी के लिए तुम पचास रूपए नहीं खर्च सकते?…प्प…पचास रूपए में आता ही क्या है?…तुम्हारी जगह पर अगर मैं होऊँ और मुझे भी तुम्हारी तरह अपनी बीवी से या फिर किसी भी गैर से मरवाने का मौक़ा मिले तो मैं पचास क्या पूरे सौ रूपए भी खर्च करने से गुरेज़ नहीं करूँगा"…

“रहने दो…रहने दो….सब कहने की बातें हैं…दूर से ही सब ढोल सुहावने दिखाई देते हैं…पास जा के देखो तो *&^%$#$ फट्ट के हाथ में आ जाती है"….

“अच्छा?”मेरे स्वर में उपहास का पुट था……

“उड़ा लो…उड़ा लो…जितना मर्जी मजाक उड़ाना है…उड़ा लो…तुम पर बीत नहीं रही है ना…बीत तो मुझ पर रही है…इस शादी से तो मैं कुंवारा ही भला था…अपना जब जी में आए…झाडू मारता था…जब जी में आए नहीं मारता था"….

“त्…तुम शादी से पहले भी झाडू मार के गुज़ारा करते थे?"मेरे चेहरे फक्क होने को आया….

“नहीं!…मैं तो जैसे सफाई पसन्द हूँ ही नहीं ना?..अपने कमरे को ऐसे ही गन्दा छोड़ देता था"शर्मा जी का आँखें तरेरते हुए तैश भरा जवाब…

“त्…त्…तुम इतनी देर से घर में सफाई वाला झाड़ू मारने की बात कर रहे थे?”मेरे चेहरे पे आश्चर्यमिश्रित भाव आने को हुए..…

“तो क्या झाड़ू किसी और भी काम आता है?”शर्मा जी प्रश्नवाचक मुद्रा अपनाते हुए बोले….

“न्न्…नहीं तो"मेरा सकपकाते हुए जवाब….

“फिर?”….

“क्क….कुछ नहीं"….

“कुछ नहीं?”….

“जी!….

“पक्का?”….

“जी!….

“ओ.के”….

“लेकिन आपकी बीवी के पिछले रेकार्ड को देखते हुए उसमें ये सुखद बदलाव अचानक आया कैसे?”…

“इसी गूढ़ पहेली का हल जानने के लिए ही तो मैं आपके पास आया हूँ"….

“पहली बात तो ये कि मैं इन सब बातों का एक्सपर्ट नहीं….तुम्हें किसी साईकैट्रीस्ट याने के मनोवैज्ञानिक के पास जाना चाहिए था लेकिन फिर भी….कोई बात नहीं…पार्टनर….अब आ ही गए हो तो कैसे ना कैसे करके इस सिचुएशन को भी हैण्डल कर ही लेंगे"….

“जी!…शुक्रिया"…

“अच्छा!….इस सबके अलावा और क्या-क्या हुआ तुम्हारे साथ जो तुम्हें परेशान कर रहा है?”मेरे स्वर में उत्सुकता थी….

“इसी कड़ी में बताऊँ?”…

“हाँ!…क्या दिक्कत है?”…

“पाठक बोर हो जाएंगे"…

“हम्म!…इस बात का तो अन्देशा है कि पाठक इतनी लंबी कहानी को पढकर बोर हो जाएंगे"…

“जी!…ये बात तो है"….

“लेकिन उनको ये भी तो पता है कि राजीव तनेजा ऐसी ही लंबी-लंबी कहानियाँ लिखता है"…

“जी!…पता तो है लेकिन नए पाठकों पर भी तो थोड़ा तरस खाइए"…

“ओ.के…तुम कहते हो तो अपनी इस कहानी क्रमश: कर के यही छोड़ देते हैं"….

“जी!…

“ठप्प पड़े हुए काम-धंधे से फुर्सत मिलते ही इस कहानी का अगला भाग लिख लेंगे"…

“जी!…बिलकुल…

“ठीक!…है…तो फिर दोस्तों…इस कहानी यहीं…इसी मोड़ पर एक छोटा सा अल्प विराम देते हुए हम जल्द ही पुन: मिलते हैं इसके अगले भाग को लेकर…जय हिन्द"…

क्रमश:

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