मेरी बीवी….उसकी बीवी

**राजीव तनेजा***
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“ओह्हो…शर्मा आप?..आज ये सूरज अचानक पश्चिम से कैसे निकल पड़ा?…कहिए सब खैरियत तो है?”…
“जी…बिलकुल”….
“तो फिर आज अचानक…यहाँ कैसे?”…
“कैसे क्या?…ये आपके सामने वाले पेट्रोल पम्प से स्कूटर में पेट्रोल भरवा रहा था कि अचानक ख्याल आया कि यहीं सामने वाली बिल्डिंग में ही तो आपका दफ्तर है"…
“ओह!….
“तो मैंने सोचा कि क्यों ना आज दोपहर की चाय अपने तनेजा साहब के साथ…उनके दफ्तर में ही बैठ के पी जाए?"…
“हाँ-हाँ!…क्यों नहीं?…बड़े शौक से लेकिन अभी तो सिर्फ ग्यारह ही बजे हैं"मैं घड़ी की तरफ इशारा करता हुआ बोला…
“तो मुझे कौन सा जल्दी है?…अपना सारे काम निबटा के आया हूँ"…
“सारे काम से मतलब?”…
“झाडू…पोंछा…बर्तन…सफाई वगैरा”...
“ओह!….वैसे शर्मा जी!….एक बात कहूँ?…बुरा मत मानिएगा"…
“उम्र में आप मुझसे छोटे हैं तो क्या हुआ?…दोस्त तो आप मेरे ही हैं ना?”…
“जी"…
“तो फिर आपकी बात का क्या बुरा मानना तनेजा जी?…बेधड़क हो के निसंकोच वो सब कह डालिए  जो आप कहना चाहते हैं"…
“आप अपनी बीवी से बड़ा डरते हैं"…
”जी!…बात तो आप कुछ-कुछ सही ही कह रहे हैं”…
“कुछ-कुछ नहीं…मैं बिलकुल श्योर हूँ"…
“जी"…
“लेकिन क्यों?….मर्द हो के आप…..
“डरना पड़ता है तनेजा जी!…डरना पड़ता है….घर में अगर सुख-शान्ति बनाए रखनी हो तो डरना पड़ता है"….
“शर्मा जी!…आप अपनी जगह बेशक लाख सही हों लेकिन मैं आपकी बात से कतई इतेफाक नहीं रखता"…
“क्या मतलब?”…
“हर बार आप ही क्यों सैक्रीफाईज़ करें?”…
“क्या मतलब?…मैं आपकी बात का मंतव्य नहीं समझा… ज़रा खुल के समझाएं”…
“मेरा कहने का मतलब ये है कि मियां-बीवी एक ही गाड़ी के दो पहिए होते हैं कि नहीं?”….
“जी!…होते हैं…तो?"…
“उनमें से एक भी अगर टूट गया या किसी कारणवश बेकार या कंडम हो गया तो ग्रहस्थी की गाड़ी दो कदम भी अपने दम पर नहीं चल सकती"…
“जी"…
“तो फिर आप अकेले ही क्यों डरें?”…
“क्या मतलब?”…
“कभी-कभार उसे भी तो डरना चाहिए"…
“तो फिर वो कौन सा इनकार करती है?”…
“डरने से?”…
“जी!….मेरे लाख धमकाने के बावजूद वो डरने से इनकार कर देती है"…
“ओह!…खैर ये सब तो आपकी माया है..आप ही जानें"…
“लेकिन उसका नाम तो रश्मि है"…
“नाईस नेम"…
“थैंक्स"…
”अपने दड़बे में से आप किसी खास काम से बाहर निकले थे या फिर ऐसे ही?”चेहरे पे व्यंग्य भरा प्रश्नवाचक चिन्ह लिए मैंने अपना वाक्य अधूरा छोड़ दिया ….
“नहीं-नहीं!…काम तो कुछ खास नहीं था…मैं तो बस ऐसे ही…..आपसे मिलने का मन किया तो….
“तो अपना झुल्ली-बिस्तरा उठा…सीधा यहीं चले आए?”मैं उनके हाथ में पकड़े सामान को गौर से देखता हुआ बोला …
“अरे नहीं!…ये तो मैं घर से बाज़ार के लिए निकल रहा था तो बीवी ने दो ठौ थैले धर दिए हाथ पे”….
“काहे को?”…
“आप अन्तर्यामी हैं क्या?”…
“कैसे?”…
“मैंने भी सेम टू सेम यही क्वस्चन पूछा था अपनी मैडम जी से"…
“तो?…क्या जवाब दिया उन्होंने?”…
“यही कि….आजकल पोलीथीन पर बैन लगा हुआ है दिल्ली में….इसलिए इन्हें ले जाओ साथ में ….नहीं तो वापसी में मुश्किल होगी"..
“ओह!…तो इसका मतलब जनाब पूरी तैयारी के साथ शापिंग के लिए निकले हैं”…
“अजी!…काहे की शापिंग?….ये तो मैं बस…ऐसे ही….बीवी बिना शापिंग अपने बस की कहाँ?”…
“तो फिर ये बड़े-बड़े थैले उठा कर आप बाज़ारमें क्या कद्दू लेने के लिए जा रहे थे?”….
“आपने मेरे घर पे फोन किया था?”…
“म्म….मैंने?….नहीं तो…मैं भला क्यों फोन करने लगा?”…..
“तो फिर आपको कैसे पता चला?”…
“क्या?”…
“यही कि मैं कद्दू लेने के लिए घर से निकला हूँ"…
“ओह!…
“और आपकी जानकारी के लिए ये बता दूँ कि ये कद्दू मैं बीवी की मर्जी से नहीं बल्कि अपनी खुशी से लेने जा रहा हूँ"…
“लेकिन क्यों?”…
“क्यों क्या?…शौक है मेरा"…
“कद्दू खाना?”…
“नहीं!…पकाना”…
“ओह!…
“खाने का तो उसको शौक है…मुझे तो सिर्फ पकाने का शौक है”…
“वाह!…शर्मा जी वाह…बहुत बढ़िया से आप अपना पति धर्म निभा रहे हैं"…
“थैंक्स"…
“कुर्बान जाऊं आपके पतीत्व पर… पति हो तो आपके जैसा"…
”थैंक्स…थैंक्स अगेन फार यूअर काम्प्लीमैंट"…
”बेवाकूफ!…ये काम्प्लीमैंट नहीं तेरी औकात है"…
“क्क्या…क्या मतलब?”…
“तेरी बीवी चाहे जितनी भी निर्दयी…निखट्टू क्यों ना हो…तेरे मुंह से हमेशा उसके लिए तारीफ़ ही निकलती देखी है मैंने”…
“नहीं!…ये बात नहीं है"…
“कैसे नहीं है?….मैंने तो कभी भी आपके मुंह से उसके खिलाफ एक लफ्ज़ भी नहीं सुना है…मैं कैसे मान लूँ?…हमेशा ही आपके मुंह से उसकी तारीफ़ में फूल झड़ रहे होते हैं?”मैं उनकी तरफ हिकारत भरी नज़र से देखता हुआ बोला ..
“अब यार!…पतझड़ के मौसम में झड़ेंगे नहीं तो क्या उगेंगे?”शर्मा जी का मायूस स्वर…
“क्या मतलब?”..
“मैं बयालीस का हूँ और वो मात्र इक्कीस की”शर्मा जी कुछ शरमाते…सकुचाते हुए बोले…
“तो?…उससे क्या फर्क पड़ता है?…यहाँ मैं भी तो इक्कीस का हूँ और वो बयालीस की लेकिन मजाल है जो मैंने कभी उसकी बात मानी हो…हमेशा वो ही मेरे आगे-पीछे गुटरगूं-गुटरगूं करती फिरती है"मेरे स्वर में गर्व का पुट था…
“ओह!….
“टाईम क्या हुआ है अभी?”…
“सवा ग्यारह…क्यों?…क्या हुआ?”…
“अभी देखना…उसका फोन बस आता ही होगा…देखना!…मैं कैसे उसकी वाट लगता हूँ?"…
“ट्रिंग ट्रिंग…ट्रिंग ट्रिंग"…
“लो…शैतान का नाम लिया और वो हाज़िर भी हो गया"…
“क्या मतलब?”…
“उसी का फोन है"….
“ओह!…
“ट्रिंग ट्रिंग…ट्रिंग ट्रिंग"…
फोन तो उठाइये तनेजा जी"…
“करने दो इंतज़ार सुसरी को…पहला सबक गाँठ बाँध लो कि बीवी का फोन कभी भी एकदम से ना उठाओ"…
“जी"…
“ज़्यादा पुच्च-पुच्च करने लगो तो दिमाग चढ जाता है बावलियों का"…
“जी"…
“फोन तो कट गया"….
“कट गया नहीं…मैंने काट दिया है"…
“ओह!…
ट्रिंग ट्रिंग …ट्रिंग…ट्रिंग…”
“फोन फिर आ गया"…
“हाँ”…
“तो फिर उठाइये ना"…
“नहीं!…अभी दो-चार बार घंटी और बजने दो…फिर उठाऊंगा"…
“भाभी जी कहीं नाराज़ ना हो जाएँ"…
“बीवी मेरी है कि आपकी?”…
“आपकी"…
“तो फिर मुझे ज्यादा पता है कि आपको?”…
“आपको"…
“तो फिर?”…
“अब देखना तमाशा…मैं स्पीकर आन कर के बात करता हूँ"…
“जी"…
“हैलो"…
“बार-बार फोन क्यों काट रहा था बेवाकूफ?”…
“ओह!…सर आप….
*&^%$%^#
मैंने सोचा सर….
*&^%$#%^ …
“वो गलती से…
$%^&*&^%$#….
“सॉरी!…सर”…..
“&*^%$%#@”…
“यैस सर”…
“$%^%$%#@#@”….
“आईन्दा से गलती नहीं होगी सर”….
“)*^&(^%$%#@”….
“ओ.के सर”…
“*&^%$%$%#”…….
“थैंक यू सर"…
“*&^&%$#$@#$”…
“माई प्लेज़र सर"…
“किसका फोन था?”…
“मेरे सर का"…
“सर मतलब?”…
“म्म…मेरे बॉस का"मेरा सकपकाया सा स्वर …
“ओह!…
“ट्रिंग…ट्रिंग…ट्रिंग…ट्रिंग “…
“फिर फोन आ गया"…
“हाँ!…अब की बार बीवी का है"मेरी आवाज़ में अब गर्व का पुट आ चुका था …
हैलो!…पहले फोन नहीं कर सकती थी क्या?…पता है ना कितनी देर से इंतज़ार कर रहा हूँ?”…
“खाना खा लिया?”…
“अभी नहीं…आज बहुत ज्यादा काम है….खाना तो दो बजे के बाद ही नसीब होगा"….
“तुमने चाय पी ली?”…
“अभी कहाँ?…अभी तो नहा-धो के फ्रेश हुई हूँ …अब थोड़ी देर में…
“याद है ना कि आज शाम को गुप्ता जी की डैथ एनिवर्सरी पे अफ़सोस प्रकट करने जाना है?”…
“हाँ!…उसी लिए तो फोन किया था कि कौन सी पहनू?”…
“अरे यार!….तनेजा की बीवी हो तुम…कोई मजाक थोड़े ही है?…अपना जो भी पहनोगी…सुन्दर ही लगोगी"…
“लेकिन फिर भी…कोई सजैशन तो दो"…
“वो पिंक वाली पहन लो"…
“जलूस नहीं निकलवाना है मुझे अपना”….
“क्यों?…क्या हुआ?”…
“क्या हुआ?…छिज्ज-छिज्ज के कई तो आर-पार के रौशनदान बन चुके हैं उसमें"…
“तो क्या हुआ?…अपना हवा भी फ़ोकट में आती-जाती रहेगी"…
”हवा भी फ़ोकट में आती-जाती रहेगी….तुम तो हमेशा मजाक के मूड में रहा करो…..लोग देखेंगे तो क्या कहेंगे?…कि तनेजा अपनी बीवी की ऐसी देखभाल करता है?”…
“वहाँ पर लोग मातमपुर्सी के लिए आ रहे हैं ना कि ये पता लगाने के लिए कि मैं अपनी पत्नी का कितना?…और कैसे ख्याल रखता हूँ?”मैं तैश में आ उसे डांटता चला गया…

“लेकिन फिर भी…. अच्छा!…मैं वो क्लिओपैट्रा’ वाली पहन लेती हूँ”…

“नहीं!…वो ‘क्लिओपैट्रा’ वाली तो बिलकुल नहीं…गर्मी का मौसम है…उसमें तुम दुखी हो जाओगी”…
“लेकिन….
“जानती हो ना कि उसकी झालर कितनी सफोकेशन पैदा करती है?…और फिर पसीने से तुम्हें एलर्जी भी तो है"…
“हम्म!…
“तो फिर?”…
“अच्छा!…तो फिर वो काली वाली पहन लेती हूँ…
“क्यों?..इतने दिनों बाद उसकी याद कैसे आ गई?”…
“कैसे क्या?…अपना कई दिन से पहनी भी नहीं है…बाहर निकलेगी तो थोड़ी हवा-हुवू भी लग जाएगी…
“पता है ना कि कितना बड़ा ‘एंटीक’ पीस है वो?…..मेरे परदादा ने सन 47 में….
“उसे नवाब सिराजुदौला के नाती से पूरे दो टके में खरीदा था”…
“तो फिर तुम ही बताओ कि क्या पहनूँ?”…
“मैं क्या बताऊँ?…अपने आप सोचो"…
“वो ’नाईटेंगल’ वाली कैसी रहेगी?”…
“खबरदार!…जो उसे हाथ भी लगाया…उसे मैंने अपनी मैरिज एनिवर्सरी वाले दिन के सैलीब्रेशन के लिए सम्भाल के रखा है और तुम हो कि डैथ एनिवर्सरी पर पहन के उसका सत्यानाश करने पे तुली हो"…
“ओह!….
“कोई शादी-ब्याह या पार्टी-शार्टी का मौक़ा हो तो तुम उसे पहनो …ये क्या कि किसी की मातमपुर्सी पे भी तुम स्टाईल मारती फिरो?”…
“लेकिन वो….
“अरे यार!….अच्छी तरह मालुम है मुझे कि तुम उसमें बड़ी क्यूट और सेक्सी दिखती हो लेकिन मौके की नजाकत को भी तो समझो कम से कम"…
“लेकिन….
“अरे जानू!…मालुम है मुझे अच्छी तरह कि वो ‘सोफ्ट एण्ड सिल्की’ है  …इसीलिए तो मना कर रहा हूँ मैं”… ….
“लेकिन क्यों?…इतनी सुन्दर तो है वो"…

“सुन्दर है तो डेलीकेट भी है…ठीक से देखभाल नहीं की तो जल्दी खराब हो जाएगी”…
“हो जाएगी तो हो जाने दो …कौन सा ऐसे मातमपुर्सी के मौके बार-बार आते हैं?"…
“ओफ्फो!…मेरी बात तुम्हारी समझ में क्यों नहीं आ रही है?….किस चीज़ की?….कैसे देखभाल करनी है?…इसका अंदाज़ा तो तुम्हें बिलकुल है नहीं और बात करती हो….…अपना पहन के जहाँ-कहीं भी उलटी-सीधी हो के बैठ जाओगी और बाद में भुगतना पड़ेगा मुझे"…
“नहीं बैठूंगी….प्रामिस"…
“पक्का प्रामिस?”…
“बिलकुल पक्का…फेविकोल के जोड़ के माफिक पक्का प्रामिस"…
“ओ.के…ठीक है…तो फिर फोन रखो…मुझे बहुत काम है"…
“ओ.के…बाय"…
“ब्बाय”…
“लव यू"….
“लव यू टू"…
“कहिये शर्मा जी!…कैसी रही?”…
“बहुत बढ़िया…आप बहुत लकी हैं?”…
“कैसे?”…
“आपको इतनी बढ़िया आज्ञाकारी बीवी मिली है"…
“बात तो तुम्हारी सही है लेकिन बस एक कमी है उसमें"…
“क्या?”…
“बड़ी भोली है वो"…
“कैसे?”…
“बताओ…ये भी कोई पूछने की बात थी कि क्या पहनूँ?….अपना जो जी में आए पहन ले….कच्छी ही तो पहननी थी…कौन सा साड़ी पहननी थी?"…
“क्या?”…
“और नहीं तो क्या?”…
“ओह माय गाड"…
“क्या हुआ?”…
“मैं भी भूल गया"…
“कच्छा पहनना?”…
“नहीं!….कौन सा पहनूँ?…ये पूछना"…
“ओह!…
***राजीव तनेजा***
Rajiv Taneja
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आओ खेलें हम ब्लॉगर-व्लागर

अपनी ब्लोगिंग के शुरूआती दिनों में एक ब्लॉग गीत लिखने की कोशिश की थी…मामूली फेर-बदल के बाद उसे आपके सामने पुन: पेश कर रहा हूँ…

आओ खेलें हम ब्लॉगर-व्लागर

***राजीव तनेजा***

Blog

आओ खेलें हम ब्लॉगर-व्लागर... 

आओ खेलें हम ब्लॉगर-व्लागर...


सम-समायिक पे तुम लिखो
हास्य में व्यंग्य मैँ लाता हूँ 
चिट्ठे पे मेरे तुम टिपिआओ
तुम्हारे चिट्ठे मैँ टिपियाता हूँ


आओ खेलें हम ब्लॉगर-व्लागर... 

आओ खेलें हम ब्लॉगर-व्लागर...


जतन से तुम ये-ये लिखो
प्रयत्न से मैँ वो-वो लिखता हूँ
कॉपी तुम वहाँ से करो
पेस्ट यहाँ से मैँ करता हूँ


आओ खेलें हम ब्लॉगर-व्लागर... 

आओ खेलें हम ब्लॉगर-व्लागर...


पसंद मेरी तुम चटकाओ
तुम्हारी किस्मत मैँ ज़माता हूँ
टीका टिपण्णी तुम करो..
नुक्ता चीनी मैँ कर आता  हूँ


आओ खेलें हम ब्लॉगर-व्लागर... 

आओ खेलें हम ब्लॉगर-व्लागर...

तुम ई-मेल कर मेल बढाओ
मोबाईल से मैं बतियाता हूँ
ऑनलाइन नहीं..घर आओ
वाईन-पकोड़े मैँ मँगवाता हूँ


आओ खेलें हम ब्लॉगर-व्लागर... 

आओ खेलें हम ब्लॉगर-व्लागर...

कवि गोष्ठी तुम रखवाओ
ब्लॉगर मीट मैँ बुलवाता हूँ
नॉन वैज तुम खिलवाओ
शाकाहार मैँ परोसवाता हूँ


आओ खेलें हम ब्लॉगर-व्लागर... 

आओ खेलें हम ब्लॉगर-व्लागर...


ब्लॉग-प्रहरी तुम हो आओ 
चिट्ठाजगत मैँ जा आता हूँ
नारद बन चुगली तुम करो
चिट्ठा मैँ सबका फैलाता हूँ


आओ खेलें हम ब्लॉगर-व्लागर... 

आओ खेलें हम ब्लॉगर-व्लागर...

ब्ळोगवाणी से तुम्हें प्यार हो
सारथी रथ का मैँ घुडसवार हूँ
इष्ट का अपने तुम नाम जपो
सिद्ध को अपने मैँ तकता हूँ


आओ खेलें हम ब्लॉगर-व्लागर... 

आओ खेलें हम ब्लॉगर-व्लागर...

***राजीव तनेजा***

खंजर दिल के आर-पार करता है

आज कल ब्लॉगजगत में जो हो रहा है या जो चल रहा है…उसे देख-सुन और पढकर कर अनायास ही ये पंक्तियाँ दिल से निकल पड़ी… आप सबके साथ बांटना चाहूँगा…

  heart...

 

कोई सामने से वार करता है

कोई छुप के प्रहार करता है

तोड़ के भरोसा मेरा हर कोई

खंजर दिल के आर-पार करता है 

ना कोई खर्चा-पढ़ने को मिलेगी ब्लॉग चर्चा

lalit ji cartoon yashwantRajivTaneja

sangeeta puri

लीजिए साहिबान …अब ना कोई झमेला ..ना कोई टंटा…चूंकि आ पहुंची है हम तीन तिलंगों की फ़ौज ले के अपनी नई-नवेली..अनूठी ब्लॉग चर्चा  

अब ना कोई लफडा…ना कोई खर्चा…पढ़ने को मिलेगी बस… उम्दा …अनूठी…अलबेली ब्लॉग चर्चा  

अब ललित शर्मा जी की दुनाली से होंगे धमाकेदार फायर… यशवंत मेहता करेंगे अपनी लच्छेदार बातों से आप सबको घायल …

और फिर हँसते-खिलखिलाते हुए मरहम लगाने के लिए तो…मैं हूँ ना

ब्रेकिंग न्यूज़:ब्लॉगजगत पर छाए बुरे ग्रहों को शांत करने के लिए संगीता पुरी जी भी हमारा साथ देने आ पहुंची हैं…

हिंदी ब्लॉगरस - षड्यंत्र या साजिश?

हँसते रहो के फ्रंट डैस्क को अभी-अभी विश्वसनीय सूत्रों के जरिए अपुष्ट खबर मिली है कि देश-विदेश के जाने-माने हिंदी के ब्लॉगर कुछ दिन पहले मुंबई में इकठ्ठा हुए थे|

  • क्या ये एक सोची-समझी साजिश के तहत एक ही मंच पर विराजमान थे?…
  • या फिर इसे महज़ एक संयोग समझा जाए? …

मीडियाजगत में इनकी एक साथ उपस्तिथि को लेकर तरह-तरह के कयास लगे जा रहे हैं…

  • क्या नई पोस्टों पर टिप्पणियों के बढते हुए अकाल ने इन्हें एका कर एक-दूसरे का  हाथ थमने पर मजबूर कर दिया?…
  • या फिर एक दूसरे को ‘समय आने पर देख लेने' की इनकी चाहत ने इन्हें एक-दूसरे के सामने ला पटका?

आपसी विरोधाभासों के बावजूद उन सभी का एक ही मंच पर इकठ्ठा हो एक-दूसरे से हंस-हंस कर बतियाना अजूबा नहीं तो कम से कम हैरत का विषय ज़रूर है |

कुछ भी हो लेकिन एक साथ इतने ब्लोगरों का…एक ही समय में…एक ही स्थान पर इकठ्ठा होना अपने आप में संदेह जगाता है

  • क्या ये मात्र एक संयोग हो सकता है?…
  • या फिर किसी सोची-समझी साजिश के तहत किसी षड्यंत्र को अंजाम तो नहीं दिया जा रहा ?……

आप क्या कहते हैं?….आपकी अमूल्य प्रतिक्रियाओं का इंतज़ार रहेगा …

हँसते रहो-फ्रंट डैस्क

 

jfgjhgfjhgf

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होली अभी बाकी है मेरे दोस्त-

 

मित्रों….होली के अवसर पर इन चित्रों को सिर्फ शुद्ध एवं निर्मल हास्य के मकसद से बनाया गया है लेकिन अगर फिर भी किसी सज्जन को अपनी फोटो पर ऐतराज़ है तो कृपया कर के मुझे सूचित करें…उनकी फोटो बिना किसी विलम्ब के तुरंत पोस्ट से हटा दी जाएगी

राजीव तनेजा

हे प्रभु!…मुझे वर दे...मुझे वर दे...मुझे वर दे

praying-hands

हे प्रभु... .. 

मुझे वर दे..मुझे वर दे...मुझे वर दे

विनति तुझसे प्रभु है बस इतनी

नहीं पसन्द मुझे दिखावा

तू मुझे शील संयत संतुलित व्यवहार दे

 

नहीं चाहिए ‘जैम’ ‘बर्गर’ औ ‘पिज़्ज़ा’ मुझे

तू मुझे पानीपत का ‘पचरंगा’ अचार दे

नहीं पसंद सिक्कों की खनकार मुझे

तू मुझे हरे नोटों का बस हार दे

 

मुझे धन दे  मुझे मोटर कार दे

नहीं प्यारी ‘सैंत्रो’ ‘आई टैन’ मुझे

तू बस मुझे 'वैगन ऑर' दे

एक नहीं हाँ!.. दो-चार दे

 

बीवी चाहिए नायिका  सी ..नहीं कोई बेकार दे

नहीं पसन्द मुझे ‘करीना’ औ ‘बिपाशा’

‘कैटरीना’ औ ‘दीपिका’ का तू मुझे प्यार दे 

 

हे प्रभु... ..

मुझे वर दे..मुझे वर दे...मुझे वर दे

विनति तुझसे प्रभु है बस इतनी

नहीं पसन्द मुझे दिखावा

तू मुझे शील संयत संतुलित व्यवहार दे

***राजीव तनेजा***

 
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