"राम मिलाई जोड़ी...एक अन्धा...एक कोड़ी"




"राम मिलाई जोड़ी...एक अन्धा...एक कोड़ी"

***राजीव तनेजा***
नोट: ये कहानी मेरी पिछली कहानी "ना हींग लगी ना फिटकरी...रंग चढा चोखा ही चोखा" का ये दूसरा भाग है

"हाँ राजीव!..क्या हुआ तुम्हारी उस 'निम्मो' चूरन वाली का?"...
"पिछली कहानी में जिक्र कर रहे थे ना तुम उसका"शर्मा जी मेरी तरफ देख बोले
"शर्मा जी!...'निम्मो' नहीं...'कम्मो' "...
"हुँह!...'निम्मो' हो या 'कम्मो'...क्या फर्क पड़ता है?"...

"हाँ...हाँ!...क्या फर्क पड़ता है...
कोई तुम्हारा नाम बिगाड़ दे और तुम्हें कोई फर्क ना पड़ता हो तो बेशक ना पड़े"...
"मुझे फर्क पड़ता है"....
"आखिर!...मेरी कहानी की मेन सदस्या है वो ..
कोई ऐव्वें ही वेल्ला करैक्टर नहीं कि...जो जी में आए पुकार लो "
"मैडम जी!...अगले स्टेशन...'दिवाना' है"मैँ बात बदलने की गर्ज़ से मैडम से मुखातिब होता हुआ बोला....
"अब!...ये स्टेशन कब से दिवाने होने लग गए?"अनुराग मेरी बात को हँसी में उड़ाता हुआ बोला
"बेवाकूफ!...पूरे सवा दो साल होने को आए हैँ तुझे ट्रेनों में धक्के खाते हुए"...
"इतना भी नहीं पता कि...इस स्टेशन का ना 'दिवाना' है"मैँ उसे झाड़ पिला... अपने नम्बर बनाता हुआ बोला
"शायद!..आपने सुना तो होगा?"मैँ मैडम की मोहिनी सूरत ताकते हुए बोला...
"वही दिवाना?...जहाँ पिछले साल पाकिस्तान जा रही 'समझौता एक्सप्रैस' में बम्ब फटा था"मैडम दिमाग पे ज़ोर डालते हुए बोली
"जी!..जी हाँ...वही"...
'ये देखें...कैसे जले हुए दोनों डिब्बे अभी भी जस के तस वहीं के वहीं खड़े हैँ"मैँ खिड़की से बाहर खड़े डिब्बों की तरफ इशारा करता हुआ बोला
"उफ!..बहुत बुरा हुआ उन बेचारे यात्रियों के साथ"...
"अपनी तो ट्रेन ही कैंसिल हो गई थी...
सो!...पूरे पौने चार सौ का पैट्रोल फूँक के पहुँचा था उस दिन पानीपत"..
"क्यों झूठ बोल रहा है?...तेरी कार तो 'सी.एन.जी' पे चलती है"अनुराग मेरी पोल खोलता हुआ बोल पड़ा
"बारह किलो की टंकी है ना?...तो उन्नीस रुपए बीस पैसे पर किलो के हिसाब से...."अनुराग मन ही मन हिसाब लगाने लगा
"तो क्या हुआ?....
'एक सौ अस्सी' की 'सी.एन.जी' और बाकि बचे दो सौ का चाय-नाश्ता"मैँ झेंपता हुआ बोला...
"हाँ...हाँ!...पूरे रस्ते फोक्की चाय तो पिलाई नहीं गई थी तुझ से"...
"बड़ा आया ...नाश्ता करवाने वाला"...
"भूल गया क्या?...उस दिन शास्त्री सब के सामने तेरी दरियादिली की ऐसी तैसी ही तो फेर रहा था"....
"वो भी तो तेरे साथ ही गया था ना उस दिन?"
"हाँ!...हाँ...गया तो था"मुझे इस अनुराग के बच्चे की वजह से झेंपना पड़ रहा था
"सब पता है मुझे !..कितना बड़ा 'कंजूस-मक्खीचूस' है तू". ..
हमारी आपसी नोक-झोंक जारी ही थी कि साथ बैठे सज्जन पुरानी बात पे वापिस आते हुए बोले....
"अच्छा हुआ!....स्साले...मर..खप्प गए अपने आप"
"क्यों?...क्या वो इनसान नहीं थे?"मैडम ने तुनक कर पूछा...
"हाँ!...नाम भर के लिए तो वो इनसान थे ही"...
"नाम भर के लिए?"मैँ प्रश्नवाचक चिन्ह चेहरे पे लिए उन सज्जन की तरफ ताक रहा था ...
"जी!...नाम भर के लिए"...
"वो कैसे?"...
"वो ऐसे!...कि अगर वो सब इनसान थे तो जिनका...
सरेआम कश्मीर में कत्ल किया जा रहा था...या किया जा रहा है....
जिन हज़ारों को घर से बेघर किया जा रहा था...या किया जा रहा है ..
वो क्या इनसान नहीं ...जानवर थे...या जानवर हैँ?"वो महोदय सवाल के जवाब में और सवाल दागते हुए बोले
"हुँह!...अपना देश तो संभाला नहीं जाता ढंग से....चले हैँ दूसरे देश में इस्लामियत का परचम लहराने"...
"बड़े आए कश्मीर को आज़ाद करवाने वाले"...
"अपने देश का बच्चा-बच्चा जान दे देगा लेकिन...
अपनी आन...अपनी बान...अपनी शान पे बदनामी का दाग नहीं लगने देगा"अनुराग भी देशभग्ति से ओतप्रोत हो बोला
"ये तो वो शुक्र करें कि...ये हम ही हैँ जो सहन करते चले आ रहे हैँ"...
"अमेरिका...इंगलैंड...जर्मनी या फ्राँस या फिर किसी भी अन्य छोटे-मोटे देश के साथ ऐसा कर के दिखाएं ना"...
"तब पता चलेगा"शर्मा जी भी बात से सहमत थे
"दुनिया के नक्शे से पूरे देश का वजूद ही साफ ना हो जाए तो कहना"

"लेकिन!..अपने सिक्योरिटी वालों ने भी कम गलत नहीं किया"मैडम भी पीछे कहाँ हट रही थी....
"सुना है!...कि बाहर से सभी डिब्बों में ताला लगा दिया गया था"...
"सही है!...कम से कम इनसान को इनसान तो समझा जाना ही चाहिए"मेरा मैडम की हाँ में हिलाना तो जायज़ था ही

"शायद!...सिक्योरिटी के हिसाब से ठीक लगा होगा...तभी किया होगा"गुप्ता जी कुछ सोचते हुए बोले
"सिक्योरिटी का ये मतलब तो नहीं कि...इनसान को जानवर के माफिक दड़बे में बन्द कर बाहर से ताला लगा दिया जाए?"मैँ भी कौन सा कम था..
"मैडम जी!..सालों से हमारा खून चूस रहे हैँ ये कटुए स्साले. .."वो सज्जन मैडम से मुखातिब होते हुए बोले ...
"पाकिस्तान हमेशा अपने जन्म से ही हमारा दुश्मन रहा है"मुझे मैडम से बात करता देख अनुराग हमारा एंटी होता हुआ बोला....
"उसे कोई कुछ नहीं कहता"...
"हमारी बहस दो धड़ों में बंट चुकी थी"...
"हर बार लड़ाई की पहल वही करता है"...
"ध्यान रहे कि!...हर बार पहले उसी ने हमला किया है....हमने नहीं"गुप्ता जी भी अनुराग का पक्ष लेते हुए बोले...
"क्यों!...बांग्लादेश को किसने आज़ाद करवाया था"....
"हमने ना?"उन्हें दूसरे पाले मे देख मैँ आवेश में बोला...
"हमने उसके देश के दो टुकड़े कर दिए...और तुम कहते हो कि उसे ठेस भी ना लगे?"
"क्यों!...उसकी रीढ की हड्डी नहीं है क्या?"...
"वाह!...तुम चाहे जो करो...वो बदले में हाथ जोड़े खड़ा रहे?"मैडम भी मेरा साथ देने से पीछे नहीं हटी...
"इतना बे-गैरत भी ना समझो उसे"मैडम को अपने पाले में देख मैँ चौड़ा होता हुआ बोला...
"वहाँ अत्याचार हो रहा था बेचारे बंगालियों के साथ"अनुराग बोला...
"झगड़े हो रहे थे रोज़ाना"गुप्ता जी ने हामी भरी...
"अरे!...उनका देश था...वो खुद निबटते"मैडम भी पूरा लुत्फ उठा रही थी बहस का ....
"मेरे ख्याल से!...हमें बड़ा भाई बन उनका आपसी झगड़ा निबटाना ही नहीं चाहिए था"...
"क्या ज़रूरत पड़ गई थी इंडिया को दूसरे के फटे में टाँग अड़ा अपनी चौधराहट दिखाने की?"शर्मा जी का दार्शनिक अंदाज़ फिर सामने था
"सही कह रहे हो शर्मा जी आप भी!...हमें क्या ज़रूरत थी दूसरे के फटे में टाँग अड़ाने की?"...
"माना कि कोई ज़रूरत नहीं थी लेकिन वो कहते हैँ ना कि..
'ईंट का जवाब पत्थर से देना'....
तो बस!...यूँ समझ लो कि यही किया था हमारी प्रधानमंत्री 'श्रीमति इंदिरा गान्धी' ने"अनुराग गौरान्वित होता हुआ बोला.
"आखिर!...और कितना सब्र करते हम?"चुपचाप बहस का आनंद ले रहा दहिया भी अचानक विरोधी खेमे में जा घुसा ...
"सन पैसंठ की लड़ाई में हमने उसे नाकों चने चबवा दिए थे और दोबारा फिर 'इकहत्तर' की जंग में एक ही झटके में ऐसा बदला ले लिया कि. ..
ताउम्र ये घाव उसे टीसता ही रहेगा"वो बेनाम सज्जन फख्र से अपना सीना फुला...ऊप्स सॉरी...छाती फुला बोले..
"सीना तो...."शर्मा जी की घूरती आँख देख मुझे चुप हो जाना पड़ा
"ऐसा ज़ख्म दिया है...जो ना भर सकेगा"ध्यान ही नहीं रहा कि कब मैँ मैँ आमिर खान का नामालुम किस फिल्म का ये गीत गुनगुनाने लगा
"शायद कोई...हिट फिल्म थी"
"सही कह रहे हो इतनी आसानी से भरने वाला भी नहीं"मैँ फिल्म का नाम याद कर ही रहा था कि मैडम की आवाज़ से मेरा ध्यान भंग हुआ

"इसी सब का नतीजा है है ये आंतकवाद...ये छद्दम युद्ध... ये कारगिल"मैडम जी बात आगे बढाते हुए बोली...
"वो भी जानता है कि सीधे हमले में नहीं जीता जा सकता हमसे"
इसीलिए वो कभी 'कारगिल' ...तो कभी घुसपैठ...तो कभी...आत्मघाती 'बम विस्फोटों' के जरिए अपनी भड़ास निकाल रहा है"शर्मा जी बोले ...
"अपनी खुन्दक की वजह से. ..
हमारे देश की युवा वर्ग रूपी तलवार पे नफरत का पानी चढाया जा रहा है उसकी तरफ से"गुप्ता जी भी यदा कदा हमारी बातचीत में शामिल हो जाते थे
"इसे कहते हैँ खिसियानी बिल्ली खंबा नोचे"अनुराग भी मेरी नकल मार मुहावरा जड़ता हुआ बोला....
"आखिर इस सब से उसे मिलेगा क्या?"...
"देश की जनता तो भूखों मर रही है और वो है कि...
परमाणु हथियारों का जखीरा इकट्ठा करता फिर रहा है"शर्मा जी का समझ नहीं आ रहा था कि वो किस तरफ हैँ...
"कुछ पता नहीं चल रहा था कि कौन सी पार्टी उनका वोट अपनी तरफ पक्का समझे"
"उनकी बातें कभी हमारी तरफ तो कभी उनके दूसरी तरफ होने का आभास सा दे रहीं थी"...
"उसे खतरा जो है हम से"दहिया भी बीच-बीच में अपनी उपस्तिथि दर्ज कराना नहीं भूल रहा था ...
"हम हिन्दुस्तानियों ने कभी पहले हमला किया है उस पे...जो उसे हम से खतरा है?"मैँ बोला
"किया तो नहीं लेकिन...डर तो है ही उसे"मुझे बोलता देख मैडम भी कौन सा कम थी ...
"यहाँ हमने पोखरन के जरिए अपनी परमाणु क्षमता उजागर की तो वो भी भला क्यों पीछे रहे?"
"वो?...वो परीक्षण तो हमने अपने ऊपर से अमेरिका का वर्चस्व हटाने को किया था..और वो इसे अपने एहं पे चोट समझ बैठा"शर्मा जी बोले
"शायद!...हमारे परीक्षण करने के अगले दिन ही उसने भी तो अपना परमाणु बम्ब चैक कर डाला था ना?"मैडम शर्मा जी की तरफ ताकते हुए बोली
"हम्म!...इसका मतलब...पहले से बना रखा होगा"उन्हें बोलता देख मैँ भला पीछे कैसे रहता...
"अरे!...रुको"...
"रुको तो सही"...
"ये क्या?...ये हम किस पाले से. ...किस पाले में एंटरी मार रहे हैँ?"
"कुछ पता ही नहीं चल रहा"...
"अभी थोडी देर पहले तो हम पाकिस्तान के हिमायती बने बैठे थे...और अब ये क्या है?"
"लगता है जैसे... सब गड़बड़ झाला हो रहा है"...
"खैर छोड़ो!...मज़ा तो आ रहा है ना?"...
"तो क्या ख्याल है?...चलने दें ऐसे ही?"...
"हाँ!..यही ठीक भी रहेगा"...
"अब!..उमड़ते-घुमड़ते विचारों का क्या है?...कभी इस तरफ तो कभी उस तरफ"मैँ जैसे खुद से ही बात कर रहा था...
"मैँ तो यही सोच रहा था कि हमने रातोंरात तैयार कर डाला था?"अनुराग भोली सूरत लिए-लिए बोला...
"हाँ!..हाँ...तुम्हारे हिसाब से तो इधर वाजपेयी जी ने फरमाईश की होगी कि "चलो!...फटाफट तैयार करो...सुबह फोड़ना है"
"और हमने रातोंरात तैयार कर डाला"मैँ उसका मज़ाक उड़ाते हुए बोला...
"अरे!...डोसा...इडली...सांबर नहीं है ये कि...
दिन में भिगोया...रात में खमीर उठा और अगले दिन सुबह पीस के...'इल्ले...लिल्ले...पिल्ले ....सापिलिण्डे पो'...
याने के इडली...डॉसा...वड़ा सब तैयार"मैँ पास से गुज़रते साउथ इंडियन खाना बेचने वाले वैंडर को देखता हुआ उसी अन्दाज़ में बोला
"हुँह!...लेना लिवाना कुछ होता नहीं है इन डेली पैसैंजरों को और बातें सुन लो इन से दुनिया भर की"वो भी मुझे देख बड़बड़ाता हुआ आगे निकल गया
"अरे बुद्धू!...ये सब तैयारी तो कई सालों से चल रही थी"...
"दोनों ही देश परमाणु हथियारों से आलरैडी लैस थे"मैँ अपना ज्ञान बघारते हुए बोला...
"बस कुछ यूं समझ लो कि..अमेरिका और कुछ बड़े देशों के डर से कोई भी अपने पत्ते खोल नहीं रहा था"दार्शनिक बने शर्मा जी बोले ...
"ये तो अपने वाजपेयी जी ही थे जिन्होंने तमाम तरह के प्रतिबन्धों की परवाह ना करते हुए हिम्मत दिखाई और मजबूरन हमारी देखादेखी
पाकिस्तान को भी अक्षरश हमारे किए का पालन करना पड़ा"गुप्ता जी भी हमारी बातचीत के ओवर में एक आध अपनी तरफ से बाउंसर डाले दे रहे थे
"हम तो झेल गए...लेकिन उसकी फटने को आई थी"मुझे डबल मीनिंग के डायलाग बोलते देख शर्मा जी ने मुझे घूर के देखा...
"राजीव!...तुझे कितनी बार कहा है कि अपने शब्दों में डी-सैंसी रखा कर"...
"अच्छे आदमी को शोभा नहीं देता है ऐसे शब्दों का प्रयोग करना"
"शर्मा जी!...क्या करूं मैँ भी?"...
"जब आम आदमी को अपनी भड़ास निकालनी होती है ...तो वो ऐसे ही शब्दों का इस्तेमाल करता है"...
"सो!...वही लिख देता हूँ कई बार"...
"सही कह रहे हो...मेरे साथ भी कई बार ऐसा होता है"गुप्ता जी भी मेरा साथ देते हुए बोले ...
"भई ...अपने से तो बिना गाली के बात ही नहीं होती है...
"ये तो साथ में ये महिला बैठी है...इसलिए पता नहीं कैसे मैँ कंट्रोल करे बैठा हूँ"...
वर्ना!...अभी तक सौ-पचास तो इस मुख से निकल ही चुकी होती"साथ बैठे सज्जन मेरी बात से सहमत होते हुए बोले
"अच्छी तरह मालुम हो चुका है इन पाकिस्तानियों को कि आमने-सामने की लड़ाई में वो कभी हमसे जीत नहीं सकते...
इसलिए अब बरसों से आंतकवाद और गुसपैठ के जरिए छद्म युद्ध जारी है उनकी तरफ से"वो सज्जन बोलते ही चले जा रहे थे ..
"वो कहते हैँ ना जिसे..सो कॉल्ड...'कोल्ड वॉर'...शायद 'दहिया' साहब मैडम को अपने अँग्रेज़ी के अध्यापक होने का अहसास कराने के मूड में थे
"इसलिए ताला लगा दिया तो कोई गुनाह नहीं किया"...
"एतिहातन...सावधानी बरतने में बुराई कैसी?"बातचीत को घुमा फिरा कर पुराने टॉपिक पे लाने का श्रेय गुप्ता जी को गया ...
"डर भी तो है कि कहीं से गलत लोग गाड़ी में सवार हों और ...दहशत फैलाने की गरज़ से बीच रास्ते में ही कहीं ना उतर जाएं"अनुराग बोला
"इसी वजह से ताला लगा दिया तो क्या बुरा किया?"
"उसके बजाए निगरानी हेतू सिक्योरिटी बढाई भी तो जा सकती थी"मैडम अपने पुराने रुख पे कायम थी....
"कोई चक्कर ही नहीं पड़ता अगर हर डिब्बे हथियारबंद जवानों की तैनाती की गई होती"
"वैसे भी पड़े-पड़े कौन सा दूध दे रहे होते हैँ या फिर...अँण्डे से रहे होते हैँ हमारे जवान?"...
"आराम ही कर रहे होते हैँ ना"मैँ भी हँसी-हँसी में व्यंग्य कस मैडम जी का साथ देता हुआ बोला
"क्यों है कि नहीं?मेरे इतना कहते ही सबकी हँसी छूट गई...
"तुम सही हो!...पुराने किस्से सुना मैडम को लुभा रहे हो. ...क्या हुआ तुम्हारी उस निगोड़ी ' कम्मो' का?"
" कोई है भी सचमुच में या यूं ही नम्बर बनाने को फोकट में रच डाला किरदार?"अनुराग शायद बोर हो बात बदलने के चक्कर में था
"अरे!...है क्यों नहीं?लेकिन...किसी बात तक पहुँचने के लिए 'भूमिका' तो बनानी ही पड़ती है"...
"क्यों!...मैडम जी?"...
"सही कहा ना मैँने?".मैँ मैडम की तरफ मुखातिब होता हुआ बोला
"इतनी लंबी भूमिका?"अनुराग मानों उपहास सा उड़ाता हुआ बोला
"सही है ना!...जैसा लम्बा खुद ये 'राजीव' ...वैसी ही लम्बी इसकी 'भूमिका'..."...
"एकदम सही मेल मिलाया है ऊपरवाले ने "ना जाने क्यों इतना कह वो मैडम हौले से मुस्कुरा दी....
"सही है!...लगे रहो"...
"राम मिलाई जोड़ी...एक अन्धा...एक कोढ़ी'.."मैडम की बाजू पे 'भूमिका' नाम खुदा देख जलभुन कोयला होता हुआ अनुराग बोला
"खैर!...उसकी बात से बेखबर...मैडम की तरफ से ग्रीन सिग्नल देख....मेरा बोलना जारी रहा"....
"पता भी है कुछ कि 'सूरत' के पास कितना बड़ा कांड हो गया?"...
"ज़रूर!... तुम्हारी ही 'सूरत' देख के हुआ होगा"बिना सोचे समझे अनुराग बोल पड़ा
"शश्श!...चुप....बिलकुल चुप"...शर्मा जी अनुराग को चुप कराते हुए बोले
"क्या हुआ?"....
"हाँ!...बताओ...क्या हुआ?"सबको मेरी तरफ ताकता देख दहिया मुझ से पूछ बैठा
"अरे मत पूछ यार मेरे कि.....क्या हुआ और..क्या नहीं".....
"बस!..यूँ समझ लो कि...
"धरती फटने वाली है...आकाश हिलने वाला है"मैँ ड्रामैटिक अंदाज़ में हाथ हवा में हिलाता हुआ बोला
"और ये सब हो रहा है...हम सब के पापों की वजह से"...
"अब क्या हुआ?"....
"कुछ बताएगा भी?"शर्मा जी मुझे बेफाल्तू में फुटेज खाते देख गुस्से से बोले ...
"शर्मा जी!...अगली कहानी में लिखता हूँ ना बाकि का किस्सा"......
"क्यों यार?...फ्री में सस्पैंस क्रिएट कर रहा है?"दहिया जी के चेहरे पे भी उत्सुकता का भाव था ...
"शर्मा जी!..आप ही तो कहते हो कि ज़्यादा लम्बा ना लिखा कर"...
"तंग आ के पढने वाले कम होते जाएंगे दिन प्रतिदिन"...
"अगर ज़्यादा लम्बी कहानियाँ लिखेगा तो...रीडरशिप भी घटती जाएगी तेरे ब्लॉग पे "
"इसलिए आपकी नेक सलाह को मानते हुए इस बार की कहानी यहीं खत्म"...
"तो फिर उस 'कम्मो' का क्या हुआ?'....
"पूरी कहानी में कहीं नज़र नहीं आई"अनुराग मेरी कहानी में कमी निकालने में जुटा था....
"ध्यान से देख बेटे लाल!...एक बार तो अवश्य जिक्र किया है मैँने कहानी में...
इनफैकट!...हमारी इस बार की कहानी भी उसी से शुरू हुई थी....
"विश्वास नहीं है तो. ..फिर से चैक कर ले"...
"बस!...इतना सा...पिद्दी सा रोल दिया उस बेचारी को?"...
"हुँह!...नाम बड़े और दर्शन छोटे"...
"अरे!...काहे को दर्शन छोटे?"......
"मेन करैक्टर है वो मेरी कहानी की"....
"यूँ समझ लो कि जान बसी है मेरी कहानी की उसमें लेकिन...
मैँ करूँ भी तो क्या करूं?...अब बात खिचने लगती है तो खिंचती ही चली जाती है"...
"अब आप ही बताओ कि इस कहानी में से भला कौन सा हिस्सा काट के अलग करूँ?"...
"कोई जल्दी नहीं है...आराम से बता देना"...
"ये कमैंट बाक्स इसीलिए है ना"
"तो मिलेगा ना आप सभी से कमैंट?"...
"खैर!..कहानी को अब बस यहीं विराम देते हुए...मिलते हैँ ब्रेक के बाद"
"क्यों ठीक रहेगा ना?"...
"अब रहे ना रहे..क्या फर्क पड़ता है?"...
"वैसे एक बात कहूँ मैँ सच्ची सच्ची?"...
"दरअसल सच तो ये है कि कहानी लिखते-लिखते सुबह के पाँच बज चुके हैँ और....
अब कीबोर्ड पे उँगलियाँ चटखाते चटखाते मेरी उँगलियाँ तक दुखने लगी हैँ"...
"कीबोर्ड की टक टकाटक से अपनी इकलौती श्रीमति जी भी थोड़ा डिस्टर्ब सा फील कर रही हैँ...
"अब सच कहें तो...टक टकाटक का मज़ा तो जागती आँखों से ही है"...
"गहरी नींद में टक टकाटक से तो आप भी 'फील गुड' करने से रहे"....
"अब ये टक टकाटक से आप मतलब समझते हैँ कि नहीं?"
"ऊप्स सॉरी!...शर्मा जी ने डबल मीनिंग के डॉयलॉग लिखने से मना किया है"
"सो!...फिलहाल इतना ही"...
"फिलहाल चलता हूँ ...और जल्द ही अगली कहानी में हाज़िर होता हूम अपनी 'कम्मो' के साथ"...
"इस बार पक्का"...
कसम से!...गॉड प्रामिस"...

***राजीव तनेजा****

1 comments:

अजय कुमार झा said...

wah rajiv bhai jodi mili ki nahin pataa nahin magar kya bhigaa kar maaraa hai apne aur sach kahoon to dhajjiyaan udaa de.

 
Copyright © 2009. हँसते रहो All Rights Reserved. | Post RSS | Comments RSS | Design maintain by: Shah Nawaz