कभी तो माएके जा री बेगम

मुझे मेरे एक मित्र ने ये कविता मेरे मोबाईल में ब्लूटुथ के जरिए फॉरवर्ड की थी।मुझे सुनने में बहुत अच्छी लगी तो मैँने सोचा कि इसे सभी के साथ शेयर करना बेहतर रहेगा।ये कविता दरअसल पंजाबी में है और जिन सज्जन ने इसे लिखा है ..मैँ उनका नाम नहीं जानता।शायद वो पाकिस्तान से हैँ।अपने सभी पढने वालों के फायदे के  लिए मैँने इसका हिन्दी में अनुवाद करने की कोशिश की है।

उम्मीद है कि आप सभी को पसन्द आएगी। असली रचियता से साभार सहित

फिलहाल मुझे ज्ञान नहीं है कि ऑडियो को ब्लॉग पर कैसे डाला जाता है।जैसे ही मुझे इस बारे में पता चलेगा तो मैँ इसके ऑडियो को भी नैट पे ज़रूर डालूँगा।

 

राजीव तनेजा

 

 

कदी ते पेके जा नी बेगम                         कभी तो माएके जा री बेगम

आवे सुख दा साह नी बेगम                      आए सुख की साँस री बेगम

कठेयाँ रै-रै अक्क गए हाँ हुण                    इकट्ठे रह-रह अक्क गया हूँ अब

लागे बै-बै थक्क गए हाँ हुण                     साथ बैठ-बैठ थक गया हूँ अब

ते टींडेयाँ वाँगू पक्क गए हाँ हुण               और टिण्डों जैसे पक गया हूँ अब

ते भर वी नक्को-नक्क गए हाँ हुण            ऊपर नाक तक भर गया हूँ अब

हुण सीने ठण्ड पा नी बेगम                      अब सीने को मेरे ठंडक दे री बेगम

कदी ते पेके जा नी बेगम                         कभी तो माएके जा री बेगम

इक्को छप्पड़ दे विच्च तर  के                   एक ही तालाब में तैर-तैर के

की लब्बा ए शादी कर के                         क्या मिला हमें शादी कर के

जिनद्ड़ी लंग्ग चल्ली मर-मर के               ज़िन्दगी गुज़र रही मर-मर के

अद्द्धे रै गए हाँ डर-डर के                        आधा रह गया हूँ डर-डर के

ओ मिल गई बड़ी सज़ा नी बेगम              मिल गई बहुत सज़ा री बेगम

कदी ते पेके जा नी बेगम                         कभी तो माएके जा री बेगम

की-की रंग विक्खा दित्ते ने                       क्या-क्या रंग दिखा दिए हैँ

सज्जन-यार छुड़ा दित्ते ने                          सज्जन-यार सब छुड़ा दिए हैँ

पिछले प्यार भुला दित्ते ने                         पिछले प्यार भुला दिए हैँ

बेंगन तक खव्वा दित्ते ने                           बेंगन तक खिला दिए हैँ

तरस कोई हुण्ण खा नी बेगम                   तरस अब कुछ खा री बेगम

कदी ते पेके जा नी बेगम                         कभी तो माएके जा री बेगम 

 

शाम मनान नूँ दिल करदा ए                    शामें हसीन करने को दिल करता है

सिग्रेट,पान नूँ दिल करदा ए                     सिग्रेट,पान को दिल करता है

बाहरों खान नूँ दिल करदा ए                    बाहर खाने को दिल करता है

ताज़े नॉन नूँ दिल करदा ए                      ताज़े नॉन को दिल करता है

कर दे पूरे चाह नी बेगम                         कर दे पूरी इच्छा री बेगम  

कदी ते पेके जा नी बेगम                        कभी तो माएके जा री बेगम

 

अपनी मर्ज़ी आईए-जाईए                          अपनी मर्ज़ी आएँ-जाएँ

मुण्डेयाँ वरगे कपड़े पाईए                          लड़कों जैसे कपड़े पहने

राताँ नूँ शबरात मनाईए                           रातों को शबरात मनाएँ

कुज्झ दिन असी वी ईद मनाईए               कुछ दिन हम भी ईद मनाएँ

बदले ज़रा हवा नी बेगम                          बदले ज़रा हवा री बेगम

कदी ते पेके जा नी बेगम                         कभी तो माएके जा री बेगम

9 comments:

सुशील छौक्कर said...

अरे वाह क्या बात हैं। दिल खुश कर दिया। आडियों डले तो पूरा आनंद आ जाए। हम जैसे बेसब्र आदमी को यू ही अधूरा प्यासा मत छोडो दोस्त।

Advocate Rashmi saurana said...

vah bhut badhiya. padhane ke liye aabhar.
Rajeev ji agar aap video dalana chahate hai to uska embed code ko apne new post me copy karke paste karna hoga. or ha apne new post ko pahale compose hatakar html kar le. fir paste kare. ye html aapko new post me upar ki taraf likha milega.

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत बढिया! पढ़ कर आनंद आ गया।

vineeta said...

बहुत बढ़िया....पढ़कर मज़ा आय गया. वहा भी लोग बेगमों से दुखी है.

कुश said...

दिल खुश कर दिया।

Udan Tashtari said...

हा हा!! मजेदार..आनन्द आ गया भई!

Cuckoo said...

हा हा हा ...
बहुत मजेदार.. भेजने वाले को बहुत बहुत शुक्रिया और आपका भी |
जल्दी ही ऑडियो डालने का इंतजाम कीजिये |
:)

P.S.- आप कृपया name/url भी enable कीजिये तो अच्छा रहेगा |

Cuckoo

अविनाश वाचस्पति said...

जब तक हम किसी कार्य को करना नहीं जानते, तब तक वो मुश्किल ही रहता है और जब जान जाते हैं तब वो सबसे आसान हो जाता है। यही ब्‍लॉग पर ऑडियो डालने के बारे में भी है। मेरे लिए भी यह मुश्किल है।
पर कविता समझना मुश्किल नहीं है। खूब आनंद आया है। बैंगन और टिण्‍डों के जिक्र ने आनंद को परमानंद में बदला है। शायद ये कमाल सब्‍जी का है। वैसे भी सब्‍जी दाल से अधिक गुणकारी होती है।

स्वप्न मञ्जूषा said...

bhai ham to sirf muskura kar hi rah gaye, ye thode hi kahenge ki bahut badhiya hai ......!!!!!!

 
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