"ये इंडिया है मेरी जान"
***राजीव तनेजा***
"और सुनाएँ शर्मा जी कैसे मिज़ाज़ हैँ आपके?"...
"बढिया!...धान की नवीं-नकोर फसल के माफिक एकदम फस्स क्लास"...
"गुड...वैरी गुड".....
"लेकिन आपके चेहरे के हाव-भाव....आवाज़ की 'टोन'...'पिच'...'रिदम और 'लय' तो कुछ और ही धुन गुनगुना रही है"...
"क्या?"...
"यही कि आपके बैण्ड बजे हुए चौखटे से आपकी पर्सनल लाईफ कुछ डिस्टर्ब्ड सी दिखती प्रतीत हो रही है"...
"नहीं!..ऐसी तो कोई बात नहीं है"...
"अपनी लाईफ तो एकदम से चकाचक और टनाटन चल रही है"...
"अच्छा?"....
"शायद!..मेरे ही दिल का वहम हो फिर ये"....
"अरे यार!...एक आज्ञाकारी...सुन्दर...सुशील एवं सुघड़ अर्धांगिनी के साथ बोनस स्वरूप चार गठीली...सुरीली और नखरीली सालियाँ मिल जाएँ...(वो भी बड़ी नहीं...छोटी)...तो और क्या चाहिए मेरे जैसे निहायत ही ठरकी और बेशर्म इनसान को?"...
"ही...ही....ही..."...
"जी!...ये तो है"...
"एक आम आदमी को भरपेट थाली के साथ-साथ कुँवारी साली मिल जाए तो कहना ही क्या"...
"अजी!...आप आम कहाँ?..इतनी सालियों के होते हुए तो आप अपने आप ही खासम-खास हो गए ना बिलकुल 'अभिनव बिन्द्रा' की तरह?"...
"अच्छा?...तो क्या उसकी भी चार सालियाँ हैँ?"....
"अजी कहाँ?...मेरे ख्याल से तो वो अभी तक 'अनमैरिड' है और अपने 'कुँवारेपन' को खूब तसल्ली से एंजॉय कर रहा है"...
"ऊपरवाला उसकी वर्जिनिटी को नेक व सलामत रखे"...
"अजी!...आज के युग में भी भला कोई इस उम्र तक वर्जिन होगा?"...
"अगर ऐसी बात है तो खुदा उसके कुँवारेपन को खूब बरकत दे"...
"ये क्या?..आपका खिला हुआ चेहरा अचानक मुर्झा कैसे गया?"..
"कहाँ?...कहीं भी तो नहीं"...
"दाई से भला कहीं पेट छुपाया जाता है शर्मा जी"...
"तनेजा साहब...कसम से...कुछ भी तो नहीं हुआ है"...
"लेकिन आपकी ये बुझी-बुझी सी...दबी-दबी सी आवाज़ तो कुछ और ही कहानी कह रही है"...
"अब क्या बताऊँ तनेजा जी?"...
"मैँ तो अपने इस ब्लॉग की वजह से दुखी हो परेशान हो गया हूँ"...
"क्यों?...क्या हुआ है आपके ब्लॉग को?"....
"ब्लॉग को क्या होना है?"...
"जो होना है ...सो तो मुझे ही होना है"...
"कभी बैठे-बिठाए 'बी.पी' हाई हो जाता है तो कभी 'कोलैस्ट्राल' लो"...
"अरे भई!...साफ-साफ बताओ ना कि...बात क्या है?"....
"यहाँ मैँ दिन-रात कीबोर्ड पे उँगलियाँ चटखाते-चटखाते अधमरा हो मर लेता हूँ और लोग हैँ कि मेरे ब्लॉग की तरफ आना तो दूर की बात उसकी तरह रुख कर के मूतना भी पसन्द नहीं करते"...
"ओह"...
"खैर!..मेरी छोड़ें और अपनी सुनाएँ"...
"कैसा चल रहा है आपका वो 'हँसने-हँसाने' वाला ब्लाग?"...
"कुछ कमाई-धमाई भी हो रही है उससे या नहीं?"...
"बस!...कुछ खास नहीं लेकिन...फिर भी तसल्ली है"...
"किस बात की?"...
"यही कि नया खिलाड़ी होने के नाते ज़्यादा उम्मीदें नहीं पाली हैँ मैँने"...
"तो?"...
"इसलिए कम पा कर भी मैँ बहुत खुश हूँ"..
"वर्ना!...बेकार में...बेफाल्तू में आपकी तरह दुखी हो परेशान हुए रहता"....
"हा....हा...हा..."...
"एक बात बताएँगे तनेजा जी आप?"...
"जी ज़रूर"...
"कब तक आप अपनी कमियों को इस 'नया खिलाड़ी' होने के तमगे के नीचे ढांपते रहेंगे?"...
"क्या मतलब?"...
"नया ही तो हूँ"....
"अभी कुल जमा डेढ साल ही तो हुआ है मुझे लिखते हुए"...
"जी नहीं!...मैँने खुद आपकी आत्मकथा को सौ बार पढा है"...
"पूरे दो साल या इस से भी कुछ ज़्यादा का समय हो चुका है आपको अपने ब्लॉग पे लिखते-लिखते"...
"हाँ!...याद आया"...
"वो 'पूनम' की सर्द चाँदनी रात थी जब 'अमृतसर' के 'जलियाँवाला बाग' में टहलते-टहलते आपने दिव्य ज्ञान को प्राप्त किया था"....
"वहीं ही तो अचानक 'लेखकीय शुक्राणुयों' ने आपके दिमाग के भीतर अपना डेरा जमाया था ना?"..
"आपको गलतफहमी हुई है जनाब!....वो 'पूनम' की नहीं बल्कि 'अमावस' की रात थी और वो 'अमृतसर' का 'जलियाँवाला बाग' नहीं बल्कि दिल्ली के 'शालीमार बाग' इलाके का 'मोटेवाला' बाग था"...
"एक ही बात है...रात तो थी ही ना?"...
"जी!...लेकिन वो तो 'चाँदनी' नहीं बल्कि....
"ओ.के बाबा!...अमावस की रात भी थी और घनघोर अन्धेरा भी था"...
"अब खुश?"...
"जी"...
"तभी से आप में एक लेखक बनने की धुन सवार हो गई थी"....
"सिर्फ लेखक नहीं!...बल्कि एक सफल और कामयाब लेखक"...
"जी!...और बस तभी से आप हर समय अपने साथ कॉपी-पैंसिल रखने लगे थे"...
"क्यों संध्या के समय सुबह-सुबह झूठ बोलते हो यार?"...
"संध्या का समय...और वो भी सुबह-सुबह?"...
"बात कुछ हज़म नहीं हुई"...
"अरे!...मेरा मतलब था कि...क्यों संध्या के समय सफेद झूठ बोलते हो?"...
"ओह!..तो फिर ऐसे कहें ना"...
"मेरा खुदा...मेरा गवाह है कि मैँने आजतक कभी लिखने-लिखाने के लिए पैंसिल का इस्तेमाल नहीं किया"...
"सच में?"...
"जी!...सोलह ऑने"...
"ओह!...सॉरी....दैन इट्स माय मिस्टेक"...
"हाँ!....याद आया"...
"आप वो 'रेनॉल्ड' का काले वाला 'बॉलपैन' और 'बिट्टू' की स्माल साईज़ की कॉपी हमेशा अपने साथ रखने लगे थे"...
"फिर झूठ!...एकदम झूठ"...
"कुछ तो ऊपरवाले के कहर से डरो यार"...
"पहली बात तो ये कि वो 'रेनॉल्ड' का नहीं बल्कि 'पार्कर' का पैन होता था और कॉपी भी 'बिट्टू' की नहीं बल्कि 'नीलगगन' की होती थी"...
"वो भी 'स्माल' नहीं बल्कि एक्स्ट्रा लार्ज साईज़ की होती थी"...
"हाथ कँगन को आरसी क्या और पढे-लिखे को फारसी क्या?"...
"आप खुद ही देख लें कि कौन सी कम्पनी का पैन है और कौन सी कम्पनी की कॉपी?"...
"छोड़ो ना तनेजा जी...क्या रखा है इन बातों में?"...
"अच्छा चलो!..अपने दिल पे हाथ रख के एक बात सही-सही बताओ कि वो 'बॉलपैन' था या फिर 'फाउनटेन पैन?"...
"क्या फर्क पड़ता है?"...
"पैन चाहे 'गेंद' वाला हो या फिर 'फव्वारे' वाला....एक ही बात तो है"...
"लिखना उसने भी है और लिखना इसने भी है"...
"कमाल करते हैँ आप भी"....
"एक ही बात कैसे है?"..
"बॉलपैन..'बॉलपैन' होता है और 'फाउनटेन पैन' ...'फाउनटेन पैन' होता है"...
"कैसे?"...
"एक में पेट खोल के उसमें स्याही भरी जाती है तो दूसरे का पॉयजामा उतार...नलिका सैट की जाती है"...
"तो?"...
"अब इसमें तो का क्या मतलब?"...
"पढे-लिखे समझदार और जाहिल इनसान हो तुम"...
"इस तरह की अनपढों वाली बातें करना तुम्हें शोभा नहीं देता"...
"जी"...
"तो फिर ध्यान रहेगा ना?"...
"क्या?"...
"यही कि 'बॉलपैन' और 'फव्वारे वाले' पैन में क्या फर्क होता है?"....
"जी"...
"गुड...वैरी गुड"...
"आगे बको"...
"बस जब से ये आपने 'बॉलपैन'...ऊप्स सॉरी!...'फाउनटेन पैन' का दामन थामा...तभी से बिना रुके लगातार लिखते चले जा रहे हैँ"....
"जी!...
"वैसे कितने कितने विज़िटर आ जाते हैँ आपके ब्लॉग पे डेली के हिसाब से?"
"दिल्ली से तो ऐसा कुछ भी फिक्स नहीं है लेकिन हाँ!...'अरुणाचल प्रदेश'.. 'नागालैण्ड'....'चिंचपोकली'... 'बाराबंकी' और 'झुमरी तलैय्या' से तो रोज़ाना कुछ ना कुछ आ ही जाते हैँ"...
"फिर भी कितने?"...
"नो आईडिया"....
"कुछ रफ सा अन्दाज़ा तो होगा?"...
"यही कोई बीस से पच्चीस"....
"बस?".....
"इन्हीं बीस से पच्चीस पाठकों की फौज के दम पे आप उछलते फिरते थे कि मैँ लेखन के क्षेत्र में क्रांति ला दूँगा..इंकलाब ला दूँगा"...
"गिनती से क्या फर्क पड़ता है?"...
"कंटैंट में दम होना चाहिए"...
"अरे वाह!... फर्क क्यों नहीं पड़ता?"...
"बिलकुल फर्क पड़ता है...बराबर फर्क पड़ता है"...
"ये गिनती का ही तो कमाल है जो वो 'भड़ास' उगलता 'भड़ासिया' आजकल 'इंडियागेट' और 'कनॉट-प्लेस' सरीखे खुले इलाकों में चौड़ा हो के बेधड़क घूमता-फिरता है"
"अरे!...बंदा अगर खुले में चौड़ा हो के नहीं घूमेगा तो क्या 'चांदनी चौक' और 'सदर बाज़ार' की तंग और सौड़ी गलियों में चौड़ा हो के घूमेगा?"...
"जी!...बात तो आप सोलह ऑने सही कह रहे हैँ"...
"खैर!...हमें क्या?...कोई जहाँ मर्ज़ी सिर सड़ाए"....
"हम तो पहले भी लिख रहे थे..अब भी लिख रहे हैँ और आगे भी लिखते रहेंगे"...
"क्या खाक लिखते रहे हैँ?"...
"आपको पूरे महीने में तीन या चार से ज़्यादा पोस्ट डालते तो कभी देखा नहीं"...
"अरे यार!..मैँ लिखने से ज़्यादा पढने में विश्वास करता हूँ"...
"नाचना ना आए तो आँगन तो अपने आप टेढा हो ही जाया करता है"..
"क्या मतलब?"...
"आप कहना चाहते हैँ कि मुझे लिखना नहीं आता?"...
"अभी तुम कहो तो आँखे बन्द कर के बिना कहीं रुके या अटके पूरी 'ए बी सी' लिख के दिखा दूँ"...
"अरे तनेजा जी!...'ए बी सी' लिखने में कौन सी बड़ी बात है?"...
"इसे तो कोई बच्चा भी बड़ी आसानी से लिख देगा"...
"अगर 'क ख ग' लिख के दिखलाएँ तो कुछ बात भी बने"...
"क ख ग ?"...
"जी...'क ख ग' "...
"इसमें कौन सी बड़ी बात है?"...
"ये लो!...लिख दिया 'क'.... 'ख' और 'ग' ".....
"अरे! मैँ सिर्फ तीन अक्षरों की बात नहीं बल्कि पूरी वर्णमाला की बात कर रहा हूँ"...
"अरे यार!...तो फिर ऐसे बोलो ना"...
"अभी फिलहाल तो मुझे पूरी तरह याद नहीं है लेकिन हाँ!...कोशिश करने पर दो-चार मिस्टेक के साथ थोड़ा आगे-पीछे कर के लिख ही लूँगा"...
"यही तो दुर्भाग्य है 'तनेजा जी' हमारा...आपका और अपने देश का कि यहाँ हमें 'ए बी सी' तो रट्टू तोते के माफिक रटी पड़ी है ...हम 'फ्रैच' से लेकर 'जैपनीज़' तक हर विदेशी भाषा को सीखने को आमादा हैँ लेकिन अपनी 'क ख ग' के नाम पे हम इधर-उधर...अगल-बगल की बगलें झाँकने लगते हैँ"....
"बात तो यार तुम एकदम सही कह रहे हो"...
"हैरानी की बात तो ये है कि यहाँ के 'नेता' से लेकर 'अभिनेता' तक सब हिन्दी का ही खाते..कमाते...पहनते और ओढते हैँ लेकिन उसी हिन्दी में बात करने में इन्हें शर्म आती है...हीनता महसूस होती है"...
"जी"..
"अगर कोई 'हिन्दी' में बात करने में सहजता महसूस करे तो उसे माफी माँगने पे मजबूर कर दिया जाता है"...
"आज भी हमारे देश की जनसंख्या का काफी बड़ा भाग हिन्दी में ही सोचता है लेकिन जब बात करने की बारी आती है तो ना जाने क्यूँ हमारी ज़बान से कचर-कचर कैँची के माफिक अँग्रेज़ी निकलनी शुरू हो जाती है?"...
"अगर हम खुद ही अपनी भाषा से प्रेम नहीं करेंगे...उसे बोलने में गर्व महसूस नहीं करेंगे तो क्या फिर बाहर से फिरंगी आ कर हमारी भाषा का उद्धार करेंगे?"...
"सोलह ऑने सही बात"...
"आप कुछ पढने-पढाने की बात कर रहे थे ना?"...
"जी!...मेरे हिसाब से तो अगर हम चाहते हैँ कि हमारे ब्लॉग पे विज़िटरज़ की संख्या बढे ...तो हमें दूसरों के ब्लॉग्ज़ पर भी दस्तक देनी चाहिए"...
"जी"...
"और खाली सिर्फ दस्तक देने से ही कुछ नहीं होगा...हमें वहाँ जा के कुछ सार्थक और सटीक से कमैंट भी करने होंगे"...
"चलो मान ली आपकी बात की हमें दूसरों को भी पढना चाहिए...नॉलेज बढती है इस से और दीन-दुनिया की खबर भी रहती है लेकिन बाद में ...बेफाल्तू में दूसरों के ब्लॉग्ज़ पे कमैंट कर अपना कीमती वक्त ज़ाया करने से हमें क्या फायदा?"...
"अरे यार!...इस से सामने वाले का हौसला बढता है"..
"और ये क्यों भूल जाते हो कि हमारे देश में बरसों से 'इस हाथ दे और उस हाथ ले' की परंपरा चली आ रही है"...
"अगर हम दूसरों को कमैंट करेंगे तो वो भी हमारे ब्लॉग पे आ अपनी हाजरी बजाने को प्रेरित होंगे"...
"जी!...बात तो आपने सोलह ऑने दुरस्त कही"....
"एक बात पूछूँ?"...
"ज़रूर"...
"ये सोलह आने वाली बात क्या आपका तकिया कलाम है?"....
"कुछ ऐसा ही समझ लो"....
"ओ.के"...
"आपकी बात कुछ-कुछ समझ आ रही है लेकिन क्या फायदा ऐसे पढने-पढाने का कि दूसरों को मज़े कराने के चक्कर में हम अपनी आँखे फुड़वा लें?"...
"अरे यार!....एक्सपीरियंस मिलता है इस सब से"...
"और कितना एक्सपीरियंस गेन करना चाहते हैँ आप?"...
"अरे!..तजुर्बे की कोई सीमा या तौल थोड़े ही होता है कि बस!...किलो दो किलो में बहुत हो गया"...
"ये तो सालों-साल नितत प्राप्त करने की चीज़ है"....
"तनेजा जी!...दो चार महीने बाद आपका जन्मदिन भी तो हैँ ना?"...
"जी!...है तो"...
"पूरे चालीस के हो जाएँगे आप"....
"तो?"..
"कब तक आप यूँ निप्पल चूसते वाले छोटे बच्चे की तरह बिहेव करते रहेंगे?"...
"मतलब?"...
"अजी!..परिपक्व बनिए और बड़ी बात कीजिए"...
"कब तक आप ये दस-बीस विज़िटरज़ की गिनती को गिन खुश होते रहेंगे?"...
"तो फिर क्या करू?"...
"करना क्या है?...बस ढीले-ढाले तरीके से नहीं बल्कि ज़ोरदार ढंग से काँटे की बात रखिए पब्लिक के सामने"...
"मजाल है जो कोई आपके ब्लॉग पे हाजरी लगाने से चूक जाए"...
"मसलन?"...
"किस तरह की बात?"...
"क्या सैक्स वगैरा?....
"अजी छोड़िए इस सैक्स-वैक्स को"...
"पूरा अंतर्जाल तो भरा पड़ा है इस सब से"...
"जी!...एक खोजो...हज़ारों साईटों में कैद...लाखों बालाएँ कूद-कूद के अपने एक-एक अंग...एक-एक जलवे को दिखाने को उतावली हुई फिरती हैँ"...
"बस!...एक दो क्लिक के साथ माउस को थोड़ा-बहुत...आगे-पीछे और ऊपर-नीचे..नचा के बरसों से गुप्त रहे इस दुर्लभ और आत्मीय ज्ञान को सरेआम पाया जा सकता है"...
"तो फिर क्या 'धर्म-कर्म' की बात करना उचित रहेगा"...
"अरे!..उसमें तो अपने ग्वालियर वाले 'दीपक जी' उस्ताद हैँ"..
"तो क्या हुआ?"...
"भजन-कीर्तन करना कोई अकेले उनकी ही बपौती तो नहीं"...
"नहीं यार!...अपने विशिष्ट मित्र हैँ....उनके साथ पंगा लेना ठीक नहीं"...
"तो फिर?"...
"क्यों ना हम 'पाकिस्तान' और 'नेपाल' में हो रही उठा-पटक को अपने ब्लॉग की विष्य-वस्तु बनाएँ?"...
"अरे नहीं यार!...एक से एक और धांसू से धांसू ब्लॉगर पहले ही इन विष्यों में अपनी महारथ सिद्ध कर चुके हैँ...उनके मुकाबले में हम कहीं ठहर नहीं पाएँगे"...
"ओह!..."
"एक आईडिया है"..
"क्या?"...
"यही कि हम गुज़रे ज़माने की चीज़ हो चुके 'रेडियो' के बारे में क्यों ना लिखें?"..
"मुझे तो लगता है कि गुज़रे ज़माने की चीज़ 'रेडियो' नहीं बल्कि तुम खुद एक पुराने ज़माने का ज़ंग लगा एंटीक हो"...
"क्या मतलब?"..
"अरे!...ये 'रेडियोवाणी' नाम के ब्लॉग के बारे में कुछ पता नहीं है क्या?"...
"रेडियोवाणी?....मैँने तो कभी नहीं सुनी इसकी वाणी"...
"इस नाम का भी कोई ब्लॉग है क्या?"...
"कितनी बार पहले भी समझा चुका हूँ कि सिर्फ लिखने-लिखाने से ही कुछ नहीं होता"...
"दूसरों को पढना भी ज़रूरी होता है"...
"अपने 'युसुफ खान' साहब पता नहीं कितने सालों से इस ब्लाग को सफलाता पूर्वक चला रहे हैँ"...
"तो फिर ये 'तकनीकी' टाईप का ब्लॉग बनाना कैसा रहेगा?"...
"रहेगा तो बढिया लेकिन मुझे तो इस 'तकनीक-वकनीक' का 'क ख ग' भी नहीं पता"...
"मैँ भला कैसे 'तकनीक' के ब्लॉग को तकनीकी तौर पर हैण्डल कर पाऊँगा"...
"अरे!...बहुत आसान है"...
"तकनीक?"...
"नहीं"...
"तो फिर?"...
"नकल करना"...
"वो कैसे?"...
"हम दूसरे ब्लॉगो से सीधे 'कॉपी-पेस्ट' कर दिया करेंगे"...
"लेकिन तुम तो जानते ही हो कि बचपन से मुझे 'चाय' पसन्द है ना कि कॉफी' और....आपकी तथा सभी पाठकों की जानकारी के लिए मैँ बता दूँ कि 'बाबा रामदेव' की नेक एवं उचित सलाह को मानते हुए मैँने आजकल 'पेस्ट' के बजाय 'नीम' या फिर 'कीकर' के(जो भी उपलब्ध हो) दातुन का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है"...
"अरे!...मैँ वो वाली नहीं बल्कि नकल कर के चिपका देने वाले 'कॉपी-पेस्ट' की बात कर रहा था"...
"ओह!...तो फिर ऐसे कहना था ना"..
"इसका तो मुझे पूरे 'अठारह साल' का तजुर्बा है"....
'लेकिन तुमने तो शायद 'बी.ए' किया हुआ है ना?"....
"बी.ए नहीं...'बी.कॉम'...
"एक ही बात है...लगते तो उसमें भी पन्द्रह साल ही हैँ ना?"..
"हाँ"...
"तो फिर ये अठारह साल का तजुर्बा?"....
"व्व्वो दरअसल नौंवी में दो बार...और कॉलेज में एक बार"..
"शश्श!...ऐसी बातें...नैट पे यूँ ओपन में खुलेआम करना ठीक नहीं"....
"जी"...
"अरे!...तुमने उस 'रतलामी' ब्लॉगर का नाम सुना है जिसे रोज़ाना के हिसाब से डेढ से दो हज़ार तक हिटस मिलते हैँ?"डेढ दो हज़ार?....
"जी"...
"रोज़ाना के हिसाब से?"...
"जी"...
"हो ही नहीं सकता"...
"ऐसा क्या खास लिखता है वो कि लोग बावलों की भांति उसके ब्लॉग पे खिंचे चले आते हैँ?"...
"ऐसे तो कुछ खास और स्पैसिफिक नहीं है"...
"कभी वो 'करैंट अफेयरज़' के बारे में बात कर रहा होता है तो कभी कभी वो 'वेद' और 'पुराणों' की बात करने लगता है"...
"मतलब कि ऐसे ही सब बेफाल्तू की हाँकता है?"...
"कह भी सकते हैँ"...
"कमाल है!..बेफिजूल की और ऊल-जलूल की हाँकने में तो हमसे अव्वल कोई हो ही नहीं सकता और हम हैँ कि अभी तक निद्रा अवस्था में ही प्राणायाम करते रहे?"...
"कभी भौतिक संसार में मन रमा माल कमाने की सोची ही नहीं"...
"खैर!...अब भी कुछ नहीं बिगड़ा है"...
"जी!...जब जाग जाएँ..तभी सवेरा समझना चाहिए"...
"बिलकुल"...
"तो फिर शुरूआत कहाँ से की जाए?"...
"अब मैँ क्या बताऊँ?"..
"आप तजुर्बेकार हैँ एवं मुझसे बेहतर इस ब्लॉग की दुनिया को जानते हैँ"...
"वैसे वो 'ब्लॉगर' इस लिखने लिखाने से कुछ कमाता-वमाता भी है कि यूँ ही बेफाल्तों में कीबोर्ड और माउस के साथ दिन-भर पिलता रहता है?"....
"अब इसका तो पता नहीं लेकिन सुनने में आया है कि पिछले महीने ही उसने नई 'एल्टो' खरीदी है"...
"ओह!....नकद या फिर आसान किश्तों पे?"....
"अब ये तो पता नहीं"...
"खैर छोड़ो!...हमें क्या?...कोई कुछ भी खरीदे या बेचे"...
"वैसे भी ये एल्टो-वैल्टो' जैसी छोटी गाड़ियाँ अपुन की चॉयस की हैँ ही नहीं"...
"जी!...आपके जैसी हाई-फाई पर्सनैलिटी के आगे तो वैसे भी ये छोटी और सिम्पल गाड़ियाँ हीन भावना से ग्रस्त हो अपने आप ही चलने से इनकार कर देंगी"..
"बिलकुल"...
"अपुन का तो सपना है कि जो भी काम करना है...लार्ज एवं वाईड स्केल पे करना है"...
"अब पानीपत के गोदाम को ही लो"...
"क्या किसी ने सोचा था कि ये राजीव अपने आपे से बाहर निकल के इतने ज़्यादा हाथ-पाँव फैलाएगा कि उसे लेने के देने पड़ जाएँगे?"....
"अरे!...नुकसान हुआ तो क्या हुआ?"...
"जैसे एक झटके में सब गवां दिया...वैसे ही एक झटके में सब कमा भी लूँगा"...
"जब आया था पानीपत तो मेरे तेवर देख के सब हक्के-बक्के रह गए थे...और अब पानीपत छोड़ के जा रहा हूँ तो भी सब हक्के बक्के हो रहे हैँ"...
"वाह!...क्या बात है....वाह...वाह"...
"इसे कहते हैँ स्पिरिट"...
"बिलकुल!...चाहे कुछ भी हो जाए...हौसला नहीं टूटना चाहिए"...
"तनेजा जी!....बीच में टोकने के लिए माफी चाहूँगा लेकिन हम बात कर रहे थे छोटी और बड़ी गाड़ियों की और आप बीच में अपनी राम कहानी ले के बैठ गए"...
"आपके लिए हो सकती है ये राम कहानी मेरे लिए तो आप बीती है"...
"जानता हूँ कि दुनिया मतलब की है और उसे किसी के दुख..किसी के दर्द से कोई लेना-देना नहीं है"...
"ये आपको किसने कह दिया कि दुनिया मतलब की है?"...
"यहाँ!...जब दिल्ली में एक के बाद एक लगातार पाँच बम विस्फोट हुए तो घायलों की मदद करने वालों में सबसे आगे मैँ था"...
"उस दिन मैँ भी तो करोलबाग में ही था और ये देखो...इस बाज़ू से मैँने पूरे एक यूनिट ब्लड डोनेट किया था"...
"ये देखो!...अभी भी निशान बाकी है"...
"कईयों को तो मैँ हरिद्वार की गंगा जी में डूबने से बचा चुका हूँ"...
"ओह!...रियली?"...
"जी"...
"दैट्स नाईस"...
"गुड...वैरी गुड"...
"कीप इट अप"...
"शर्मा जी!...एक आईडिया दिमाग में कौन्धा है अभी-अभी"....
"आप कहें तो बताऊँ?"...
"इसमें भी भला कोई पूछने की बात है?"...
"फरमाएँ!...क्या कहना चाहते हैँ आप?"...
"जब मेरे अन्दर और आपके अन्दर..याने के हम दोनों के अन्दर देश-प्रेम और देश भक्ति का एक जैसा पवित्र एवं पावन जज़्बा है तो क्यों ना हम मिलकर एक ऐसा ब्लॉग बनाएँ जो देश के हित के लिए काम करे"....
"आईडिया तो अच्छा है"...
"वैसे हमारे ब्लॉग का मेन कार्य-क्षेत्र क्या होगा?"...
"मतलब हम उस पर किस बारे में लिखेंगे और किस बारे में नहीं?"...
"सही मौके पे सही सवाल उठाया आपने"...
"अपने ब्लॉग में हम किसी की चुगली नहीं करेंगे और ना ही किसी का किसी भी प्रकार का छोटा या बड़ा गाली-गलोच सहन करेंगे"...
"और?"....
"देश सेवा से जुड़े हर मुद्दे को उठाएँगे"....
"जैसे?"...
"हम अपने ब्लॉग के जरिए लोगों को श्रम दान से लेकर रक्त-दान तक के लिए प्रेरित करेंगे"...
"और?"....
"ज़्यादा से ज़्यादा लोगों को हिन्दी से जोड़ने का सार्थक प्रयास करेंगे"...
"और?"...
"दिल्ली और 'एन.सी.ऑर' के लोगों की सेवा के लिए तन..मन और धन से जो बन पड़ेगा...वो सब करेंगे"...
"आपको नहीं लगता कि हमारी-आपकी सोच कुछ संकुचित होती जा रही है?"...
"कैसे?"...
"हम सिर्फ जो दिल्ली और उस से सटे 'एन.सी.ऑर' की बात जो कर रहे हैँ"...
"ओह!...इस बाबत तो मैँने सोचा ही नहीं"...
"आपको नहीं लगता कि हमें अपने ब्लॉग के जरिए सभी राष्ट्रीय मुद्दों को उठाना चाहिए?"...
"बिलकुल!...मुद्दा तो मुद्दा होता है"....
"चाहे वो ओवन में से ताज़ा निकला गर्मागर्म हो अथवा ठण्डे बस्ते में पड़ा कोई पुराना एवं बासा हो".
"हमें ध्यान रखना होगा कि हम किसी भी मुद्दे को कमज़ोर ना पड़ने दें"...
"भले ही वो 'सिंगूर' का नयनभिरामी 'नैनो' प्राजैक्ट हो या फिर वो हो 'राज ठाकरे' द्वारा 'बिग बी' से माफी मँगवाने का मुद्दा"...
"हमारे देश में अगर समस्याएँ बहुत है तो समाधान भी बहुत हैँ लेकिन हम दो अकेले चने भाड़ फोड़ें भी तो कैसे?"...
"जब हम इस दुनिया में आए थे...तब भी अकेले थे और जब इसे छोड़ ऊपरवाले के पास जाएँगे ...तो भी अकेले ही कूच करेंगे हम"...
"सत वचन"...
"लेकिन...
"कुछ लेकिन-वेकिन नहीं!...इस राजीव ने एक बार जो ठान लिया...सो समझो ठान लिया"...
"एक प्रार्थना है तुमसे...अगर साथ छोड़ना है तो बेशक अभी छोड़ दो लेकिन बस बीच में धोखा ना देना"...
"क्या बात करते हैँ तनेजा जी आप भी?"...
"आपने मुझे क्या समझ लिया है?"..
"पीछे हटने वालों में से मैँ नहीं"...
"यहाँ तो एक बार ज़बान कर दी तो कर दी"....
"अगर तुम्हारे मन में अब भी कोई शक या शुबह है तो बेशक अभी बता दो"...
"बिलकुल नहीं"...
कहीं ये ना हो कि मैँ तुम्हारे कन्धे पे बंदूक लिए गर्व से घूमूँ-फिरूं और ऐन फॉयर के वक्त तुम नदारद पाओ"...
"मैँ...और धोखा?"...
"हे ऊपरवाले!...ऐसा सुनने से पहले मैँ बहरा क्यों ना हो गया?"...
"मैँने तो सोच लिया है राजीव जी कि अब मेरे लिए देश-सेवा से बढकर कुछ नहीं"...
"ना ये बँगला..ना वो गाड़ी...ना ये बीवी...ना वो बच्चे"...
"अरे शर्मा जी!...क्या करते हो?"...
"आप जिस बँगले और गाड़ी की तरफ इशारा कर रहे हैँ...वो मेरी है..आपकी नहीं"...
"हाँ!...ये बच्चे...इनके बारे में तो मुझे पूरा यकीन है कि ये मेरे नहीं हैँ"...
"क्या?"...
"हाँ!..इन्हें आप बेशक अभी के अभी ले जाएँ".....
"और ये बीवी?"...
"फिलहाल तो मेरी ही है"...
"हे...हे...हे..."
"मैँ तो बस ऐसे ही मज़ाक कर रहा था"...
"सही है मियाँ!...एक आप हो कि मज़ाक-मज़ाक में ही सही...लेकिन पराए माल को अपना तो बना लेते हो"...
"और एक हम हैँ कि कई दिनों से पड़ोस वाली प्रिया पर ताड़ू नज़र रखने के बाद भी उसे हकीकत क्या सपने में भी अपना नहीं बना पाए"..
"अब क्या बताऊँ...तनेजा जी"...
"ऊपरवाले ने बनाया ही मुझे इतना दिलफैंक है कि.....
"खैर ये फैंकने और फिकवाने की बातें तो हम बाद में करेंगे पहले असली मुद्दे पे आते हैँ"...
"जी!..बिलकुल"...
"हाँ तो हम बात कर रहे थे कि अकेला चना भाड़ फोड़े ब्भी तो कैसे?"...
"जी"...
"तो क्यों ना हम एक नई शुरूआत करे?"...
"कैसी शुरूआत?"...
"हम अपने ब्लॉग को सामुदायिक ब्लॉग का रूप दे देते हैँ"...
"मतलब की हमारे ब्लॉग के कई मालिक होंगे?"...
"बिलकुल"...
"हर आदमी अपने-अपने लैवल पे देश हित से जुड़े मुद्दे उठाएगा और अपने सभी जान-पहचान वालों को हम से जुड़ने के लिए प्रेरित करेगा"...
"हमारे पैनल में छोटे से छोटा लिक्खाड़ और बड़े से बड़ा बुद्धीजीवी शामिल होगा"...
"हम धर्म...जाति और रुतबे के आधार पर आपस में कोई भेदभाव नहीं करेंगे"...
"धनी से धनी और निर्धन से निर्धन को हम समान भाव से गले लगाएंगे"...
"जल्द ही हमारी विचारधारा को मानने वालों की संख्या इतनी ज़्यादा हो जाएगी कि हम सरकार से अपनी हर जायज़ या नाजायज़ बात को आसानी से मनवा पाएंगे"....
"मसलन?"...
"जैसे एक्साईज़ और टैक्स वैगरा में छूट दिलवा कर हम अमीरों का हित साधेंगे तो अच्छे वेतनमानों के साथ सरकारी नौकरियों की संख्या बढवा कर हम गरीबों का भी भला करेंगे"...
"गुड!...वैरी गुड"...
"लेकिन मुझे डर है कि कहीं किसी वजह से हमारा ये सपना सिर्फ सपना बनकर ही ना रह जाए"...
"क्यों?...ऐसा क्यों लगा तुम्हें?"...
"जानते नहीं कि 'एकता' में बड़ा बल है"....
"एकता कपूर में?"...
"अरे बुद्धू!..मैँ उस 'एकता' की बात नहीं कर रहा"...
"तो फिर?"...
"मैँ तो एकता याने 'यूनिटी' की बात कर रहा था कि उसमें बड़ा बल है"...
"बल तो वैसे अपने 'खली दा ग्रेट' में भी बड़ा है लेकिन वो भाड़ नहीं बल्कि पत्थर फोड़ा करता था"...
"अरे यार!...उस खली का हमारे ब्लॉग या हमारे मिशन से क्या लेना-देना?"...
"लेना-देना क्यों नहीं?"...
"यूथ आईकॉन है वो"...
"बच्चे उस पे जान छिड़कते हैँ और यंग जैनरेशन उसके जैसा बनने को हैल्थ-क्लबों में मारी-मारी फिरती है"...
"ओह!...फिर तो अपने काम का बंदा है वो"...
"बिलकुल"...
"एक्चुअली!..हमें तो सिर्फ नए यंग एवं जवान लड़को की पूरी टीम खड़ी करनी होगी जो हमारे एक इशारे पे हर उस जगह तन के खड़ी हो जाए...जहाँ हम चाहें"...
"चाहे वो 'डी.सी' का दफ्तर हो या फिर हो किसी भी राज्य के 'मुख्यमंत्री' का आवास"...
"अरे वाह!...फिर तो मज़ा आ जाएगा"...
"बिलकुल"...
"तो फिर ऊपरवाले का नाम लेकर हम अपने ब्लॉग का श्री गणेश करें?"..
"बिलकुल"...
"वैसे हमारे ब्लॉग का सबसे पहला काम क्या होगा?"...
"इस समय बिहार के लोग 'कोसी' का कहर झेल रहे हैँ"...
"जी"...
"मैँ तो जब भी टीवी वगैरा में वहाँ के हालात के फुटेज देखता हूँ तो जी रुआँसा हो उठता है"...
"वहाँ बच्चों को भूखा देखता हूँ तो खाने की मेज़ से एक-दो निवाले खा के या फिर बिना खाए ही उठ जाता हूँ"...
"जी!...एक तरफ हमारे देश की जनता भूख और प्यास से तड़प-तड़प के हलकान हो जाने दे रही हो और दूसरी तरफ हम मज़े से बेफिक्र हो चना-चबैना चबाते रहें..ये उचित नहीं"...
"अगर ऊपरवाले ने मुझे धन्ना सेठ बनाया होता तो मैँ तुरंत ही अपने अनाज से भरे गोदामों के मुँह उन बेचारों के लिए खोल देता"....
"अब ये स्साले बैंक वाले चैरिटी करने के नाम पे लोन भी तो नहीं देते"...
"उफ!...कैसे मदद करूँ मैँ इन बेचारे गरीब-गुरबाओं की"...
"कोई रास्ता...कोई हमसफर भी तो नहीं दिखाई दे रहा अपने इस मिशन में"..
"कमाल करते हैँ तनेजा जी आप भी"...
"मैँ हूँ ना"...
"एक से एक ब्लॉगर से जान-पहचान है मेरी"...
"अगर पब्लिक का साथ ज़रा सा साथ मिल जाए तो इस बिहार समस्या का हल यूँ चुटकियों में हुआ समझो"....
"चिंता ना करें...जितने बंदे चाहिए मिल जाएँगे"...
"ये वादा है इस शर्मा का आपसे"...
"अरे!...बंदों का मैँ क्या अचार डालूंगा?"...
"वो तो मेरे एक इशारे पे ही बैनर और पोस्टर चिपकाने के लिए दिल्ली की जे.जे.कलौनियों से जितने चाहूँ..उतने दौड़े चले आएँगे"...
"तो फिर आपका क्या मतलब था?"...
"पब्लिक के साथ देने से मेरा मतलब था कि आम जनता अपनी तरफ से जी भर कर मदद करे"...
"किस तरह की मदद?"...
"जैसे पुराने कपड़े....बर्तन...कम्बल....दवाईयाँ इत्यादि....कुछ भी दे सकती है.....और हाँ!...अगर नकदी दे सके तो सबसे बेहतर"...
"वजह?"...
"वजह ये कि नकद-नारायण की तो हर जगह पूजा होती है और इसे एक जगह से दूसरी जगह पहुँचाना भी आसान होता है"...
"जी!...ये नहीं होना चाहिए कि बेचारे गरीबों को खाने-पीने के सामान की ज़रूरत हो और हम यहाँ से लीड़े-लत्तों की कनज़ाईनमैंट लाद दें"...
"बिलकुल"...
"इसलिए हम ज़रूरत के हिसाब से उनमें बाकी चीज़ों के अलावा नकदी भी बाँटेंगे"...
"गुड...वैरी गुड"...
"तो सबसे पहले हम अपने सांझे और निजी ब्लॉगों के जरिए आप जनता से अपील करेंगे कि वो अपनी तरफ से भरपूर मदद करे"....
"गुड"....
"एक काम करना"...
"जी"...
"मेरा वो नांगलोई वाला गोदाम आजकल खाली पड़ा हुआ है"...
"तो?"...
"जितनी भी राहत सामग्री इकट्ठी होगी...उसे वहाँ डम्प कर देंगे"...
"डम्प कर देंगे?"...
"अरे यार!..जब तक पूरे ट्रक का लोड ना हो जाए...तब तक कैसे भेजेंगे?"...
"ओह!...अच्छा"...
"मेरी राय में तो एक ट्रक भेजने में भी उतनी ही सिर दर्दी है जितनी दस ट्रकों को भेजने में"...
"जी"...सही फरमाया आपने"....
"तो यही ठीक रहेगा ना कि जब तक नांगलोई वाले गोदाम में आठ-दस ट्रक माल ना इकट्ठा हो जाए...हम चुप लगा के बैठे रहेंगे और बाद में सही मौके पे बिहार की जनता को एक साथ राहत सामग्री भेज आश्चर्यचकित कर देंगे"...
"बिलकुल!...वो भी अचानक सरप्राईज़ पा कर फूली नहीं समाएगी"...
"लेकिन ये सामान रखने के लिए इतनी दूर नांगलोई जाने की ज़रूरत ही क्या है?"...
"यही पास में ही किसी का खाली पड़ा गोदाम मिल जाएगा हफ्ते दो हफ्ते के लिए"...
"मुफ्त में?"...
"थोड़ा-बहुत किराया ही तो भरना पड़ेगा....भर देंगे"...
"हाँ!...भर देंगे"...
"तुम्हारा खुद का पैसा नहीं है ना...इसलिए तुम्हें दर्द नहीं हो रहा"...
तुम क्या जानो कि कैसे पब्लिक अपने खून-पसीने की कमाई का एक हिस्सा तुम्हें किसी भले व नेक काम के लिए सौंपेगी और तुम हो कि उसे ऐसे ही उड़ाने पे तुले हो"....
"मुझे कुछ नहीं पता!...बेशक किराया एक का दो लग जाए लेकिन राहत सामग्री का एक इंच भी नांगलोई नहीं जाएगा"....
"बावले तो नहीं हो गए हो तुम कहीं?"...
"वहाँ अपना खुद का गोदाम खाली पड़ा-पड़ा सड़ता रहे और हम यहाँ किराए-विराए में पैसे फूंक के पब्लिक की दी हुई अमानत में खयानत करते रहें?"...
"भई ये पाप तो मुझसे ना होगा"...
"देखो!...मैँ तुमसे बड़ा हूँ ना?"...
"तो?"...
"बड़े भाई होने के नाते ही मेरी बात मान लो"...
"वहाँ एक पैसा भी किराए का नहीं लगना है और फिर अपना गोदाम है तो चोरी-चकारी का भी कोई डर नहीं"...
"बाहर किसी दूसरे पे हम कैसे भरोसा कर लें?"...
"हम्म....चलो मान ली आपकी बात लेकिन जितनी भी नकदी आएगी उसे घर में नहीं बल्कि बैंक में रखा जाएगा"...
"बिलकुल!...इसमें मुझे कोई ऐतराज़ नहीं"...
"बैंक में रखना ही बेहतर होगा...आजकल चोर-डकैतों का कोई भरोसा नहीं"...
"ज़रा सी भनक लगी नहीं कि तुरंत धावा बोलने से नहीं चूकेंगे"...
"जी"...
"बैंक में पैसा सेफ भी रहेगा और कुछ ब्याज बट्टा भी मिल जाएगा"...
"जी"...
"तो फिर तय रहा ना सब कि सबसे पहले हम अपने ब्लॉगज़ के जरिए सभी ब्लागरज़ बन्धुओं से मदद की अपील करेंगे और उनसे मिले चंदे से पोस्टर...बैनर तथा इश्तेहार वगैरा छपवा कर हर गली...हर मोहल्ले...हर बाज़ार हर दिवार पर चिपकवाएंगे?"...
"जिससे आम जनता को हमारे मंसूबों की जानकारी मिलेगी और तत्परता से हमारी मदद के लिए अपनी जेबें खाली कर डालेगी"...
"हम पुराने कपड़ों से लेकर अनाज तक और...फर्नीचर से लेकर अखबार तक...सभी कुछ स्वीकार करेंगे"...
"पुराने अखबार तथा मैग्ज़ीन वगैरा भी?"...
"जी"...
"लेकिन पुरानी अखबारों का हम आखिर करेंगे क्या?"...
"अरे!...उन्हें रद्दी में बेच के नोट इकट्ठा करेंगे...और क्या?"...
"अरे वाह!...क्या धांसू आईडिया निकाला है"...
"लोग भी खुश और हम भी खुश"....
"बिलकुल"...
"सबसे मेन प्वाईंट"...
"कैश कहाँ रखा जाएगा?"...
"बैंक में...और कहाँ?"...
"गुड"...
"मेरा सिंडीकेट बैंक में ऑलरैडी खाता है...वहीं जमा करवा देंगे सारा पैसा"...
"नहीं सिंडीकेट बैक में तो बिलकुल नहीं"...
"क्यों?...क्या बुराई है सिंडीकेट बैंक में?"..
"अरे यार सरकारी बैंक है"...
"तो?"...
"क्या पता बदमाशों का ही सिंडीकेट हो इसमें?"..
"पैसा जमा होगा तो सिर्फ 'आई.सी.आई' बैंक में"...
"क्योंकि वहाँ आपका एकाउंट है?"...
"हाँ!...है"...
"तो?"...
"सब समझ रहा हूँ आपकी चालबाज़ी तनेजा साहेब"...
"गोदाम भी आपका और बैंक भी आपका"...
"तो?"...
"फुद्दू समझ रखा है क्या मुझे?"...
"इतना बावला नहीं हूँ मैँ कि तुम्हारी ये घटिया चालबाज़ियाँ ना समझ सकूं"...
"पहले अपने गोदाम में माल रखवाने के बाबत लॉजिक दिए...मैँ मान गया कि चलो कोई बात नहीं...कैश तो मेरे सिंडीकेट बैंक के खाते में ही रहेगा"...
"लेकिन फिर जब तुमने पैसे को अपने बैंक में रखने की बात कही तो मेरा माथा ठनका कि ये राजीव तो सारा माल खुद ही हड़पने की तिकड़म भिड़ा रहा है"...
"उफ!...मैँ तिकड़म भिड़ा रहा हूँ?"...
"ये कान ऐसे ओछे और छोटे इलज़ाम सुनने से पहले फट क्यों ना गए?"...
"तुम मुझ पर इलज़ाम लगा रहे हो कि मैँ गोदाम में जमा सारे माल को हड़प जाऊँगा?"...
"बिलकुल"...
"अरे यार पुराने लीड़े-लत्तों का भला मैँ क्या करूँगा?"...
"सब जानता हूँ मैँ तनेजा साहेब कि ट्रेन में आते-जाते आपकी यारी पानीपत के उन कबाड़ियों से भी हो गई है जो पुराने कपड़ों में डील करते हैँ"...
"चलो मानी आपकी बात कि मैँ ऐसे कुछ कबाड़ियों को जानता हूं लेकिन पुराने फर्नीचर के आड़-कबाड़ का भला मैँ क्या करूंगा?"...
"क्यों?...पहले भी तो आप पुराने दरवाज़े और खिडकियों का काम कर चुके हैँ ना?"...
"हाँ!..कर चुका हूँ"....
"तो?"
"आपकी जानकारी लोगों से ज़रूर होगी जो पुराने फर्नीचर में डील करते हैँ जैसे राजा कबाड़ी वगैरा...वगैरा"...
"चलो मानी तुम्हारी बात कि मैँ तिकड़म भिड़ा सारा माल अपने अन्दर करने की सोच रहा था लेकिन दूध के धुले तो तुम भी नहीं हो दोस्त"...
"क्यों?...क्या किया है मैँने?"...
"सब जानता हूँ मैँ कि तुम माल किसके गोदाम में और क्यों रखवाना चाहते थे"...
"ओ.के"...
"जब हम दोनों एक दूसरे के बारे में सब जान ही गए हैँ तो ठीक है...ऐसा ही सही"...
"अब क्या इरादा है?"...
"काम तो हम अब भी एक साथ ही करेंगे क्योंकि मोटा धन्धा है ये और इसे संभालना किसी एक के बस की बात नहीं"....
"हाँ!..एक साथ काम करेंगे लेकिन अपने-अपने हाथ पक्के करने के बाद"..
"कैसे?"...
"माल रखने के लिए गोदाम तुम्हारा नांगलोई वाला इस्तेमाल होगा"...
"गुड...वैरी गुड"...
"लेकिन मेरे आदमी भी वहाँ हमेशा तैनात रहेंगे"...
"तुम्हारे आदमी?"...
"जी!...मेरे आदमी"...
"ओ.के...मुझे कोई ऐतराज़ नहीं"...
"पुराने कपड़ों को ठिकाने का ज़िम्मा तुम्हारा रहेगा"..
"मेरा क्यों?"...
"क्योंकि तुम्हें इसकी पार्टियाँ मालुम है"....
"लेकिन....
"चिंता ना करो इसके बदले मे तुम्हें जायज़ कमीशन मिलेगी"...
"ओ.के!...फिर ठीक है"...
"नकदी को तो रोज़ के रोज़ हम बाँट ही लिया करेंगे"...
"बिलकुल!...नकदी में देरी करना ठीक नहीं"...
"और बाकी के सामान को भी थोड़ा-बहुत ऊपर-नीचे कर के साथ ही साथ निबटाते जाएँगे"...
"यही सही भी रहेगा"...
"और अगर कुछ ना बिकने वाला या फिर ना इस्तेमाल होने लायक सामान बच गया तो"...
"अरे!..ये इंडिया है मेरी जान"...
"यहाँ मिट्टी से लेकर कूड़ा-करकट तक सब बिक जाता है"...
"लेकिन अगर फिर भी कुछ बच-बचा गया तो इतने निर्दयी भी नहीं हम कि सब खुद ही हड़प कर जाएँ"...
"बिलकुल!...ये बिहार किस दिन काम आएगा?"...
"हा....हा.....हा....हा"...
***राजीव तनेजा***
Rajiv Taneja
Delhi(India)
http://hansteraho.blogspot.com
+919810821361
+919896397625
3 comments:
अजी एक धांसू सा ब्लोग बनाना है तो यार न्यूज सुना करो 8.30 और 10.30 वाली,वहाँ विचार लो बस लगा दो पोस्ट बन गया दोडने वाला ब्लोग। और "बॉलपैन..'बॉलपैन' होता है और 'फाउनटेन पैन' ...'फाउनटेन पैन' होता है"...ये तो हमें आज ही पता चला। एक ही पोस्ट में सब कुछ डाल दिया?
aapne to apne aap hi dhansu blog banaya hua hai
sabhi blogger ko bhi saath mein jodh liya
राजीव में नेता बनने के सारे अवगुण मौजूद हैं। वैसे भी तनेजा में से 'ज' चला जाए तो नेता ही बचा रह जाता है। कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि 'ब्लॉगर' से कल 'कारपोरेटर' बना नजर आए राजीव तनेजा। पर उम्मीद है इससे पहले इसे लाफ्टर चैलेंज में भाग ले लेना चाहिए। किसी भी पोस्ट में कुछ भी फिट करने में माहिर, जरूर हिट रहेगा।
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