परिणाम-चेहरा छुपा दिया है हमने नकाब में-1
पहली पहेली में मैँने एक नामी गिरामी ब्लॉगर का चित्र कुछ छेड़खानी के साथ आपके सामने पेश किया था।जिस पर कई लोगों ने अपने अन्दाज़े भी लगाए कि वो कौन है? लेकिन अंत में सफल हुए श्री अविनाश वाचस्पति जी..उन्होंने बिलकुल सही जवाब दिया कि ये चित्र है जाने-माने हास्य कवि श्री योगेन्द्र मौदगिल जी का है...आप भी देखिए
अविनाश जी...आपके लिए कंबा नोचती खिसियानी बिल्ली के टूटे नाखूनों की खोज जारी है...उपलब्ध होते ही आपको यथा शीघ्र ई-मेल द्वारा सूचित कर दिया जाएगा।कृप्या संयम बनाए रखें..
तो दोस्तो...अब चलते हैँ आज की पहेली की तरफ...आप आपको एक भारतोलक याने के वेट लिफ्टर के चित्र में पहचानना है कि उसमें कौन सा ब्लॉगर छुपा बैठा
आज की पहेली का सही हल खोजने वाले को ईनाम में मिलने वाले हैँ "ओस में भीगी छतरी के नीचे छिपे बैठे कनखजूरे के तिरछे कानों का एक जोड़ा"
तो दोस्तो...फिर देर किस बात की है?..अपनी उनींदी आँखों में ताज़े पानी के छींटे मार के पहचानिए इस ब्लॉगर को और ले जाईए मुफ्त में... "ओस में भीगी छतरी के नीचे छिपे बैठे कनखजूरे के तिरछे कानों का एक जोड़ा"
नोट:कमैंट मोडरेशन लगा दिया है ताकि पहेली का आनंद आखिर तक बना रहे...सभी कमैंट्स को कल एक साथ पब्लिश किया जाएगा
14 comments:
Raajiv Ji,
ham pahchaan to nahi paaye hain...lekin aapa sense of humor ko salaam karne ka dil kar gaya..
bahut hi badhiya...
dhanyawaad....
एक-एक ब्लोगर की फोटो छान मारेंगे और हम ही जीतेंगे, अविनाशजी से खतरा तो है पर उनको इस बार ना जीतने देंगें ! अविनाशजी, सावधान !आ गए हैं हम !
एक-एक ब्लोगर की फोटो छान मारेंगे और हम ही जीतेंगे, अविनाशजी से खतरा तो है पर उनको इस बार ना जीतने देंगें ! अविनाशजी, सावधान !आ गए हैं हम !
आपको सही से छिपाना नहीं आ रहा
या वे चेहरे ही छिपा रहे हैं जो
हमारी आंखों में और दिल में बसे हुए हैं
कितना ही रंग पोत लो
कितनी ही साज सज्जा कर लो
मेरी तलाश अधूरी नहीं रहेगी
यह जीत भी मेरी ही होकर रहेगी
ओस में भीगी छतरी के नीचे छिपे बैठे कनखजूरे के तिरछे कानों का एक जोड़ा शीर्षक इनाम मिलने पर ताऊ रामपुरिया जी को भिजवा दिया जाए ताकि वे इसे अपनी बहुचर्चित पहेली में शामिल करके एक और पहेली संरचना करसकें।
नाम तो बतला ही दूं
सुशील कुमार छौक्कर
बिना छौंके।
लगे रहो मुन्ना भाई....
राजीव जी ..सारे ब्लोगर्स के ब्लॉग छान लिए ,,समझ में नहीं आ रहा है ...
विवेक सिंह जी है
अरे राजीव जी यह क्या नया पंगा डाल दिया... अब दिमाग भी वरतो.... हम ने तो काफ़ी समय से दिमाग को एक तरफ़ रख छोडा था... भाई मुझे तो यह विवेक बाबु लगते है.... आगे आप जानो
इनको तो हम जानते हैं मगर ई रुप मा..कभी नहीं.
राजीव भाई,
इस बार बंदूक कहीं हमारी ओर ही तो नहीं दाग दी है...
जय हिंद...
rajiv ji ..hume to har tasvir mein aapki chhavi dikhti hai
yeh avinash ji hain ||
इनको तो भीड़ में बिना चेहरा देखे ही पहचाना जा सकता है !! हा..हा..
अजी हम अपने को ही पहचान नही पाए। हमारे तो बाल ही नही पर आपने तो बाल लगा दिए। चलिए ये अच्छा किया।
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