***राजीव तनेजा***
"हैलो!...तनेजा जी बोल रहे हैँ?"...
"जी!...बोल रहा हूँ..आप कौन?"...
"मैँ चमनलाल ढींगरा!...कलानौर(रोहतक के पास का एक जिला) से"...
"ओह!..चमनलाल जी आप"...
"जी"...
"कहिए!...कैसे याद किया?"..
"आजकल मैँ दिल्ली आया हुआ हूँ...किसी ज़रूरी काम से"..
"कहाँ ठहरे हैँ?"..
"ब्लू मून होटल की बगल वाले 'सनलाईट' होटल में"...
"लेकिन वहाँ क्यों?"...
"वहाँ क्यों से क्या मतलब?..कहीं ना कहीं तो ठहरना ही था"...
"लेकिन हमारे होते हुए भला आपको होटल में रुकने की ज़रूरत ही क्या थी?"...
"दरअसल!...परसों स्टेशन से भटकता-भटकता मैँ सीधा आप ही के घर आया था लेकिन आपके यहाँ तो ताला मुँह चिढा रहा था"...
"ओह!...तो फिर आपको आने से पहले फोन कर लेना चाहिए था ना"...
"जी!..कई बार किया था लेकिन आपने उठाया ही नहीं"....
"ओह!...तो उस दिन वो नामुराद शक्स आप ही थे जो बीस-बीस बार मिस काल कर के मुझे परेशान कर रहा था?"...
"जी!...जी हाँ...वो भलामानुस मैँ ही था...मेरे अलावा और भला कौन इतना ज़िद्दी और अड़ियल हो सकता है?"...
"और मैँ पागल का बच्चा...गुस्से में लाल-पीला हो के ऐसे ही खाम्ख्वाह...किसी और बेचारे को गाली पे गाली दिए जा रहा था"...
"क्या सच?"..
"जी"...
"वैरी स्ट्रेंज...बड़ी अजीब बात है"...
"जी!...अजीब तो मुझे भी बड़ा लगा था जब बार-बार मिस काल आ रहे थे"...
"तभी मैँ कहूँ कि परसों से मुझे चक्कर क्यों आए जा रहे थे?...और उसी दिन तो मैँ बार-बार ठोकर खा के गिर भी रहा था"...
"जी!...जैसे पुराने ज़माने में संत जनों की दुआओं वगैरा में बड़ा बल होता है...ठीक वैसे ही आजकल के कलयुगी ज़माने में हम जैसे शैतानों और हैवानों की बददुआओं में भी बड़ी ताकत होती है"मैँ गर्व से फूला ना समाता हुआ बोला...
"जी"...
"ओह!...लेकिन उस दिन आप सीधा कॉल करने के बजाए बार-बार मिस काल क्यों कर रहे थे?"...
"मिस कॉल नहीं करता तो और क्या करता?"...
"क्या मतलब?...सीधे-सीधे फोन भी तो कर सकते थे"...
"एक्चुअली!...हुआ क्या कि उस दिन स्टेशन पे उतरते ही एक कॉल सैंटर वाली छम्मक छल्लो से फोन पे सैटिंग हो गई और उसी के साथ बातें करने में मन ऐसा रमा कि ध्यान ही नहीं रहा कि कब फोन का बैलैंस खत्म हो गया"...
"ओह!..लेकिन अब तो हर जगह इनकमिंग फ्री है...इसलिए बैलैंस खत्म होने का तो सवाल ही नहीं पैदा होता"...
"जी!...लेकिन मैँ तो रोमिंग में था ना"...
"ओह!...तो फिर से रिचार्ज करवा लेना था ना"...
"करवाया ना!...पूरे पचास रुपए का रिचार्ज करवाया"...
"फिर तो आप बड़े ही आराम से मुझे कॉल कर सकते थे"...
"जी!...लेकिन वो पचास रुपए भी तो उसी कम्बख्तमारी से बात करने के चक्कर में स्वाहा हो गए"...
"ओह!...तो फिर कुछ काम बना?"...
"काम बना?...पागल की बच्ची ऐसे ही बेकार में टाईमपास-टाईमपास खेल रही थी"...
"ओह!...तो फिर आपको एक-आध एक्स्ट्रा रिचार्ज करवा के सीधे मेरे से बात करनी चाहिए थी"..
"जी!...लेकिन...
"लेकिन क्या?"...
"लेकिन उस दिन मेरे पास पाँच-पाँच सौ के बँधे नोटों के अलावा और कोई छुट्टा नोट बचा ही नहीं था"...
"और इस ज़रा से काम के लिए उन्हें तुड़वाने का मन नहीं हुआ होगा?"...
"जी"..
"गुड!...वैरी गुड...ये सब तो खैर चलता ही रहता है ज़िन्दगी में कभी नाव गाड़ी पे तो कभी गाड़ी नाव पे...इस सब से घबराने की ज़रूरत नहीं...तू नहीं...और सही...और नहीं...और सही"...
"जी"...
"तो फिर किसी दिन फुरसत निकाल के आप आईए ना हमारे यहाँ"...
"जी!...ज़रूर"..
"तो फिर कब आ रहे हैँ?"...
"जब आप कहें"...
"वैसे अभी आप और कितने दिन तक हैँ यहाँ?"...
"जी!...काम तो यही कोई दो-चार दिन का ही है लेकिन आपको तो पता ही है कि आजकल सरकारी दफ्तरों में काम-काज कैसे होते है?"...
"जी!...कभी साहब होते हैँ तो क्लर्क गायब मिलता है और कभी क्लर्क और साहब..दोनों होते हैँ तो चपरासी या फिर स्टैनो डेट पे गई होती है"...
"चपरासी के साथ?"..
"जा भी सकती हैँ...अब हर बार मोटी आसामी थोड़े ही फँसती है जाल में"...
"जी"...
"तो इसका मतलब एक हफ्ते के लिए गई आपकी भैंस पानी में"...
"जी!..वैसे तो मैँ अपने मँझले भाई को सख्त ताकीद कर के आया हूँ कि मेरे पीछे से रोज़ाना का नियम बाँध ले"...
"किस चीज़ का?"...
"यही कि अपनी 'राम प्यारी' को जोहड़ किनारे दो घंटे से ज़्यादा की आउटिंग नहीं करानी है और आउटसोर्सिंग तो बिलकुल नहीं...ऐड्स का ज़माना है भय्यी...क्या पता किससे?...क्या रोग लग जाए?""..
"जी!...वैसे भी बड़े-बुज़ुर्ग कह गए हैँ कि...सेफ्टी इज़ दा बैस्ट पॉलिसी"...
"जी"...
"लेकिन ये राम प्यारी कौन?"...
"हमरी अपनी...खुद की भैंस...अऊर कौन?"...
"ओह!...मैँ तो सोच रहा था कि आपकी पत्नि.....
"छी...छी-छी...कैसी अनहोनी और अनोखी बात करते हैँ तनेजा जी आप भी"...
"क्यों?...क्या हुआ?"...
"आपको भली भांति पता तो है कि...मैँ बाल ब्रह्मचारी...कन्या हो या नारी..मुझे सब हैँ प्यारी"...
"ये तो खैर अच्छी बात है लेकिन ऐसे...अकेले कब तक?"...
"मेरा बस चले तो ज़िन्दगी भर तक....उम्र भर तक"...
"ओ.के...ओ.के...जैसी आपकी मर्ज़ी...आपने अपना जीवन जीना है और मैँने अपना"...
"जी"...
"और वैसे भी अपने को क्या फर्क पड़ता है?...कोई मरे या जिए"मैँ मन ही मन बुदबुदाता हुआ बोला...
"ये सब तो खैर चलता ही रहेगा...आप मुझे ये बताएँ कि कब आ रहे हैँ हमारे यहाँ?"...
"मैँ क्या बताऊँ?...आपने बुलाना है...जब जी में आए...तब बुलाएँ"...
"अपुन ने तो बस आपका हुक्म बजाना है"...
"तो फिर...
"आप अपनी सुविधा देख लें...जब भी आपको कनवीनियैंट लगे"...
"ठीक है!..तो फिर कमिंग सनडॆ को आप आईए हमारे यहाँ...एक साथ डिनर करते हैँ"...
"सनडे को?"...
"जी"...
"मैँ तो सोच रहा था कि आज मैँ फ्री हूँ तो क्यों ना अभी...दोपहर को ही लँच टाईम में मिल लिया जाए"...
"अभी?"...
"जी"...
"अभी तो ज़रा मुश्किल है"...
"तो फिर रात को?"...
"नहीं!...रात को तो और भी मुश्किल है"..
"क्या मुश्किल है?"...
"एक्चुअली!... रात को किसी फंक्शन में जाना है और अभी भी जब आपका फोन आया तो मैँ किसी निहायत ही ज़रूरी काम में बिज़ी था"...
"ओह!...तो इसका मतलब मैँने आपको डिस्टर्ब किया?"...
"नहीं!...ऐसे तो कुछ खास नहीं लेकिन ऐसे अचानक...अनचाहा फोन आ जाने से बन्दा थोड़ा-बहुत डिस्टर्ब तो हो ही जाता है"...
"जी!..वैसे अभी मेरा फोन आने से पहले आप क्या कर रहे थे?"...
"कुछ खास नहीं...बस ऐसे ही एक ज़रूरी काम"...
"उस काम का कोई नाम भी तो होगा?"...
"दूध पिला रहा था"...
"दूध?"चमनलाल जी एकदम से चौंक कर बोल पड़े...
"जी"..
"लेकिन किसे?"...
"किसे से क्या मतलब?...अपनों को ही तो दूध पिलाया जाता है"...
"लेकिन अभी पिछले महीने ही तो मैँ कलकत्ता से हो के आया हूँ"...
"तो?"...
"वहाँ आपकी कलकत्ता वाली मौसी से मुलाकात हुई थी"...
"तो?"...
"वो तो कुछ और ही कहानी बता रही थी"...
"क्या?"...
"वो कह रही थी कि ..."वैसे ते साड्डे मुंडे विच्च कोई खोट कोईणी लेकिन थोहड़ी ज्यी...माड़ी-मोटी ज्यी कमी हैगी...तां कर के...
"उनकी बात पे मत जाईए...उनका क्या है?...वो तो हमेशा ऐसे ही बेमतलब का बकती रहती है"...
"क्या मतलब?"...
"उन्हें तो हमारी हर चीज़ 'थोहड़ी ज्यी' ही नज़र आती है"...
"क्या मतलब?"..
"उन्हें तो शुरू से ही अपने मट्ठे को शुद्ध मक्खन और दूसरे के 'इम्पोर्टेड चीज़'(Cheese) को भी दही बताने की आदत है"..
"क्या मतलब?"...
"जवानी के दिनों में उन्हें बॉय चाँस किसी भी वजह से...अगर ज़रा सी भी खरोंच लग जाती थी तो ऐसे हाय-तौबा मचा-मचा के पूरा मोहल्ला सिर पे उठा लेती थी कि मानों अभी के अभी...तुरंत अपना चौथा सिज़ेरियन करवा के आ रही हों"...
"ओह!...तो इसका मतलब आप अभी तक छड़े-छांट(कुँवारे) के बराबर हैँ"...
"छड़े-छांट के बराबर क्यों?...सांड के बराबर क्यों नहीं?"...
"लेकिन मौसी जी तो कह रही थी कि आप के घर में बच्चे नहीं"...
"जैसी प्रभु इच्छा...इसमें हम और आप भला कर ही क्या सकते हैँ?"...
"तो क्या होने की कोई गुंजाईश भी नहीं?"...
"गुंजाईश क्यों नहीं?...एक से एक इलाज आ चुके हैँ अब तो...बस थोड़ा सा समय लगेगा"...
"लेकिन फिर ये आप दूध किसे पिला रहे थे?"...
"बीवी को"...
"बीवी को?"...
"जी हाँ!...अपनी...खुद की...इकलौती बीवी को"...
"लेकिन क्यों?"...
"क्यों से क्या मतलब?...उसका मन कर रहा था"...
"लेकिन होना तो इसका उल्टा होना चाहिए"...
"क्या मतलब?"...
"होना तो ये चाहिए कि बीवी अपना कर्तव्य समझ आपको दूध पिलाए और आप रिलैक्स मूड में...अपना मज़े से...मज़े ले-ले के उसके एक-एक सिप का ऐसे आनंद लें मानों साक्षात अमृत का रसपान कर रहे हों"...
"जी"...
"लेकिन यहाँ तो उलटा हो रहा है"...
"क्या मतलब?"...
"आप पीने के बजाय पिला रहे हैँ"...
"तो?"...
"दूसरे शब्दों में कहें तो उलटी गंगा बहा रहे हैँ"...
"इसमें उलटी गंगा बहाने की क्या बात है?...जब मेरा मन करता है तो वो भी तो पिलाती ही है ना"...
"तो?"...
"इसमें तो की क्या बात है?...किसी दिन मैँने पिला दिया...किसी दिन उसने पिला दिया...एक ही बात है"...
"अरे वाह!..एक ही बात कैसे है?"...
"उसका पीना...आपका पिलाना...एक बराबर?"...
"जी"...
"लेकिन ये सब काम तो...
"किस?..किस ज़माने की बात कर रहे हैँ चमनलाल जी आप?"...
"आजकल बराबरी का ज़माना है...औरत-मर्द में कोई फर्क नहीं...दोनों एक समान हाड़-माँस के पुतले हैँ"....
"कोई किसी से...किसी भी सैंस में कम नहीं"...
"ऐसे कैसे कम नहीं है?...मर्द..मर्द होता है और औरत...औरत होती है"...
"चलो बताओ कि अगर कोई मर्द...किसी औरत की पिटाई करे तो उस औरत को दर्द होगा कि नहीं?"...
"बिलकुल होगा"...
"और अगर कोई औरत...भगवान ना चाहे किसी मर्द की पिटाई करे तो उस मर्द को दर्द होगा कि नहीं?"..
"होगा क्यों नहीं?...बिलकुल होगा...मैँ खुद इस बात का गवाह हूँ"...
"कैसे?"..
"मैँ खुद कई बार पिट चुका हूँ"...
"औरतों से?"...
"और नहीं तो क्या मर्दों से?"...
"दैट्स नाईस...आपने कभी बताया नहीं"..
"बस!...ऐसे ही...दरअसल क्या है कि मुझे अपने मुँह मियाँ मिट्ठू बनना बिलकुल भी पसन्द नहीं है"...
"ओ.के!...अब तो मान गए ना मेरी बात कि औरत मर्द सब बराबर होते हैँ...उनमें कोई दोयम नहीं...कोई सोयम नहीं"...
"जी!...लेकिन फिर भी मेरे हिसाब से जो काम औरतों के करने के होते हैँ...उन्हें मर्दों को करना शोभा नहीं देता"...
"लेकिन ईनाम में बराबर का हक लेना शोभा देता है?"...
"ईनाम?"...
"जी हाँ!...ईनाम और वो भी कोई छोटा-मोटा नहीं बल्कि पूरे पचास लाख का"...
"प्प...पचास लाख का?"चमनलाल जी हकलाते हुए बोले...
"जी हाँ!...पूरे प्प...पचास लाख का"मैँ भी उनकी नकल उतारते हुए बोला...
"लेकिन कैसे?"...
"कैसे क्या?...एन.डी टीवी इमैजिन वाले प्रोग्राम तो पेश कर रहे हैँ बच्चे को पालने वाला"...
"जी!...लेकिन आपके तो बच्चे हैँ ही नहीं"...
"तो क्या हुआ?...बच्चे को तो चैनल वालों ने खुद प्रोवाईड करना था..हमें तो बस पालना था"...
"लेकिन वो सब तो स्टूडिओ में होना था ना?"...
"जी"...
"तो फिर आप घर में क्या कर रहे थे?"...
"अरे बेवाकूफ!...घर में हम फीडर बॉटल से एक दूसरे को दूध पिला के बच्चे पालने की प्रैक्टिस कर रहे थे"...
"धत्त तेरे की!...मैँ तो कुछ और ही समझ बैठा था"...
"क्या?"...
"क्कुछ नहीं?"...
"तो फिर आप सनडॆ को आ रहे हैँ ना?"...
"नहीं!...मैँ तो आज ही वापिस कलानौर जा रहा हूँ"...
"लेकिन अभी कुछ देर पहले तो आप कह रहे थे कि अभी हफ्ते भर तक आप यहाँ दिल्ली में ही रहेंगे"...
"जी!...लेकिन अभी-अभी दूसरे मोबाईल पे मैसेज आया है कि...
"गई मेरी भैंस पानी में"
***राजीव तनेजा***
Rajiv Taneja
20 comments:
जाने दो/// दिवाली मनाओ!!
सुख औ’ समृद्धि आपके अंगना झिलमिलाएँ,
दीपक अमन के चारों दिशाओं में जगमगाएँ
खुशियाँ आपके द्वार पर आकर खुशी मनाएँ..
दीपावली पर्व की आपको ढेरों मंगलकामनाएँ!
सादर
-समीर लाल 'समीर'
बढ़िया रचना..दीवाली की हार्दिक शुभकामनाएँ!!
दीपावली, गोवर्धन-पूजा और भइया-दूज पर आपको ढेरों शुभकामनाएँ!
बहुत दूर दूर से डुबो कर मारा है भैंसिया को..लगता है आप भाभी से छुप छुपा कर लिख जाते हो।
चलो आज मदर डेयरी से ही काम चलाओ..और दिवाली मनाओ।
निशि दिन खिलता रहे आपका परिवार
चंहु दिशि फ़ैले आंगन मे सदा उजियार
खील पताशे मिठाई और धुम धड़ाके से
हिल-मिल मनाएं दीवाली का त्यौहार
भेंस को जाने तो गहरे पानी मे, ठ्ण्डी हो कर निकलेगी, फ़िर कोई डर नही...
दीपावली पर्व की ढेरों मंगलकामनाएँ!
भैस को पानी में जाने से अब कोई नहीं रोक सकता. आप तो मिठाईयां खायें
दिवाली की हार्दिक शुभकामनायें..
मदर डेयरी छोड़ो
फादर डेयरी खोलो
भैंस जाए पानी में
गाय जाए राजधानी से
मोबाइल और रामप्यारी
जो न करा दें वही थोड़ा है
इसमें घोड़ा क्यों नहीं जोड़ा है
बढिया लिखा है.....अब यह सब जब देखने को मिलेगा तो भैस तो पानी मे जाएगी ही:))
उम्दा आलेख....... हाहाकारी लेख........शानदार लेख
वाह !
बहुत ख़ूब लिखा
सारी थकान उतार दी........
उदासी की तो गई भैंस पानी में
बड़ा दम है आपकी कहानी में
आपको और आपके परिवार को दीपोत्सव की
हार्दिक बधाइयां
चैट के दौरान प्राप्त टिप्पणी:
kirti vardhan"
a.kirtivardhan@gmail.com
Sent at 11:19 PM on Saturday
kirti:
rajiv ji ,bhains paani me..... padha maza aa gaya.comments kahan jakar likhun samajh nahi paya.mujhe net ki jankari kam hai.pichle kai din se to net bhi support nahi kar raha tha
राजीव भाई,
ये ज़रा चमन महाराज का पता, मोबाइल नंबर तो मुझे भिजवाना...ऐसा वैसा सोचने के जुर्म में इन महाशय के खिलाफ मुकदमा ठुकवाने की तैयारी कर रहा हूं...और अगर ये सीधे ही मिल जाएं तो इन्हें इन्हीं की भैंसियां पर बिठवा कर इन्हीं के शहर का चक्कर कटवा देंगे...
जय हिंद...
bahut achha hasy prastut kiyaa hai ab apane apana ek rang sthapit kar liyaa hai ek pahchaan banaa lee hai
बहुत सुंदर.
gazab ka vyang ........... hanste hanste pait mein dard ho gaya........
काला अक्षर उसी के बराबर हुआ .......जिसके पास लाठी उसी के पास उसका वास हुआ ....ऐसे प्राणी को तो पानी में जाना ही चाहिए ...
taneja ju,
kahani lambi nai ho gi!!??
taneja ju,
kahani lambi nai ho gi!!??
तनेजा जी , आपने यह तो बताया नहीं की भैंस के साथ भैंसा तो नहीं गया पानी मे
पड़ोसी का ,
क्योकि सिर्फ़ भैंस के पानी मे जाने से कोई दर नही
शुक्रवार, २० नवम्बर २००९
जिंदगी का प्लान बदलो
आज शाम को यमुना पर से द्वारका वापिस आते हुए एक एड का बोर्ड देखा जिंदगी का प्लान बदलो एम् टी एस .
एक पैसा प्रति मिनट फॉर लाईफ...........
पड़ते ही मैं तो हैरान रह गया एक पैसा प्रति मिनट
इस तरह एक दिन का हुआ ८६४/- रुपया
सोचा अगर भगवन की तरफ़ से ऐसे ही प्लान बदलने का नोटिस आ जाए तो क्या होगा
अच्छे
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