***राजीव तनेजा***
"हैलो!...अविनाश जी?”…
“जी!...बोल रहा हूँ...आप कौन?"..
"मैँ...राजीव...राजीव तनेजा...दिल्ली से"...
"ओह!...आप...आप बिल्ली के साथ क्या कर रहे हैँ?...उसने कहीं अगर आपको काट लिया तो?"...
"नहीं!...काटने की संभावना वैसे तो ना के बराबर है लेकिन फिर भी आप चिंता बिलकुल ना करें...मैँ मोर्चा सँभाले तैयार हूँ"...
"लेकिन...
"वो हमला करेगी...ऐसा कोई अन्देशा भी फिलहाल नहीं लग रहा है"..
"ठीक है!...जैसी आपकी मर्ज़ी...चेताना मेरा फर्ज़ था"...
"जी"...
"बेशक अन्देशा नहीं हो लेकिन फिर भी आप सावधान रहिएगा"...
"जी!...ज़रूर...इसी के चलते ही तो मैँने अभी...परसों ही...एडवांस में पैसे दे के ऐंटी रैबीज़ का इंजैक्शन लगवाया है कि क्या पता कब लेने के देने पड़ जाएँ?"...
"गुड!...वैरी गुड"...
"जी"...
"चलो!...ये तो अच्छी बात है कि आप अपने स्वास्थ्य के प्रति जागरूक हैँ...देश के हर छोटे-बड़े नागरिक को अपनी सेहत का ध्यान रखना चाहिए"...
"जी"...
"सेहत है तो सब है...सेहत नहीं तो कुछ नहीं"..
"जी"...
"लेकिन आप ये ब्लॉगिंग वगैरा...छोड़ कर...एक बिल्ली के साथ अपनी सेहत से खिलवाड़ क्यों कर रहे हैँ?".....
"बस ऐसे ही"...
"मुझे तो विश्वास ही नहीं हो रहा है कि आप जैसा सज्जन पुरुष...एक अदना सी बिल्ली के झाँसे में फँस कर..कैसे?...बरसों से बनाए अपने रुतबे को...मेहनत और जतन से कमाई अपनी शोहरत को...एक ही झटके में दाव पे लगा..अपना सब कुछ नीलाम कर सकता है?"....
"जी!...विश्वास तो मुझे भी नहीं हो रहा लेकिन जो सच है...वो तो सच ही रहेगा?"...
"जी!...रहेगा तो सही लेकिन ऐसे...सार्वजनिक तौर पे इसे कबूलने से क्या ब्लॉगिंग की साख को बट्टा नहीं लगेगा?...क्या गँभीर और सुधी जनों में इसके प्रति वितृष्णा का भाव उत्पन्न नहीं होगा?"...
"बिल्ली के प्रति?"...
"नहीं!...ब्लॉगिंग के प्रति"...
"अब इसके बारे में क्या कहा जा सकता है?....उत्पन्न हो भी सकता है और नहीं भी हो सकता है"...
"लेकिन क्या आपकी इन ओछी हरकतों से ब्लॉगजगत में गलत सन्देशा नहीं जाएगा?"....
"मैँ उसके साथ हूँ...तो हूँ...अब इस बात को छुपाने से क्या फायदा?"...
"लाख छुपाओ..छुप ना सकेगा प्यार ये अपना गहरा"...
"और ना चाहते हुए भी मेरे इस कृत्य से अगर ब्लॉगजगत में कोई गलत सन्देशा जाता है तो जाता रहे...मुझे परवाह नहीं...और वैसे भी मैँ भला इसमें क्या कर सकता हूँ?"...
"बिल्ली को भगा तो सकते हैँ?"...
"आप तो ऐसे कह रहे हैँ जैसे मुझे ब्लॉगजगत की कोई चिंता ही नहीं"...
"अगर चिंता होती तो आप ऐसे हाथ पे हाथ धरे बैठे ना रहते"...
"तो आपका मतलब मैँ वेल्ला बैठा हुआ हूँ?"...
"जी!...लगता तो यही है"...
"यहाँ!...यहाँ आ के देखिए जनाब...कि मैँ कैसी-कैसी दुश्वारियों से जूझता हुआ उसे यहाँ से भगाने की जीतोड़ एवं भरसक कोशिश कर रहा हूँ लेकिन वो मेरी सुने...तब ना"...
"हम्म!..लगता है कि मेरे हाथों ही इसका कत्ल होना लिखा है"अविनाश जी अपनी आस्तीन ऊपर कर जोश में आते हुए बोले
"जी!...मोस्ट वैलकम...आपका स्वागत है"...
"बताओ!...कब करना है इसका क्रियाक्रम?"..
"कब क्या?...जितनी जल्दी हो सके..उतना बढिया है"...
"ठीक है!...तो फिर मैँ एक घंटे तक पहुँच रहा हूँ"...
"जी!...मैँ वेट कर रहा हूँ"...
"किसका?"...
"आपका"..
"लेकिन मैँ तो यहाँ हूँ"...
"आप वहाँ हैँ...तभी तो मैँ यहाँ वेट करूग़ा"...
"लेकिन कैसे?"...
"कैसे से क्या मतलब?...जैसे वेट करते हैँ..वैसे...मक्खियाँ मार के"...
"लेकिन आप उन्हें मारेंगे क्यों?...
"अब खाली बैठ मक्खियाँ नहीं मारूँगा तो क्या घास छीलूँगा?"...
"लेकिन ये तो पाप है"...
"घास छीलना?"..
"नहीं!...मक्खियाँ मारना"...
"किस गधे ने कह दिया तुमसे कि मक्खियाँ मारना पाप है?"...
"कहना किसने है?...मुझे पहले से पता है"...
"अरे!...मक्खियाँ मारने वालों का तो आजकल यशोगान होता है...वो पुरस्कार पाते हैँ और भी कोई छोटा-मोटा नहीं बल्कि नोबल पुरस्कार पाते हैँ...वो भी शांति का"...
"लेकिन शांति को क्या पड़ी है कि वो किसी गैर को अपना पुरस्कार दे?"...
"अब मुझे क्या पता?...कोई ना कोई लालच तो ज़रूर होगा"...
"इस ज़रा से लालच में ना..लोग पल भर में ही अपना सब कुछ गंवा बैठते हैँ और उन्हें खबर भी नहीं होती"...
"खैर हमें क्या?...कोई अपना सब कुछ गंवाए या कोई किसी का सब कुछ पाए"...
"जी"...
"लेकिन यार!...आपकी बातों से मुझे दो-दो कंफ्यूज़न हो रहे हैँ"...
"क्या?"...
"पहला तो ये कि तुम इन निरीह मक्खियों को मारना क्यों चाह रहे हो?"...
"और दूसरा?"...
"दूसरा कंफ्यूज़न ये कि मेरे यहाँ होते हुए आप मुझे वहाँ पर कैसे तौल सकते हैँ?"...
"ओह!...तो आप वो वाले वेट की बात कर रहे थे?"...
"तो आप कौन से वाले वेट की बात कर रहे थे?"...
"मैँ तो वो वाले वेट की बात कर रहा था"...
"और मैँ तो वो वाले वेट की बात कर रहा था"...
"ओह!...व्हाट ए कंफ्यूज़न...व्हाट ए कंफ्यूज़न"...
"तो फिर मैँ आ रहा हूँ"...
"जी!...मैँ वेट...ऊप्स!...सॉरी इंतज़ार कर रहा हूँ"...
हा...हा...हा...हा...
"लेकिन एक घंटे तक ज़रूर पहुँच जाईएगा"...
"जी!...बिलकुल...मैँ बस निकल ही रहा हूँ"...
"तब तक मैँ भी कुछ ज़रूरी फोन कॉल्ज़ निबटा लेता हूँ"...
"ठीक है!..तो फिर अपना पता बताओ"अविनाश जी कॉपी-पैंसिल ले कर तैयार खड़े हो जाते हैँ...
"अपना पता?"...
"जी"...
"मगर किसलिए?"...
"कमाल करते हैँ आप भी..अपना पता नहीं बताएँगे तो मैँ आपके घर कैसे आऊँगा?"...
"आपको मेरे घर आना है?...लेकिन किसलिए?"...
"अरे!...कमाल है...आपके घर नहीं आऊँगा तो क्या मैँ बिल्ली को यहीं...अपने घर से भगाऊँगा?"...
"जी"...
"क्या मतलब?...अभी आप कहाँ पर हैँ?"...
"आपके घर के पास"...
"क्क्या मतलब?...आप वाकयी मेरे घर के पास में हैँ?"अविनाश जी चेहरे पे अविश्वास के भाव लाते हुए बोले...
"जी"...
"लेकिन कहाँ?"...
"आपकी गली के नुक्कड़ पे"...
"क्या मतलब.?..आप...आप हमारी गली के नुक्कड़ पे हैँ?"...
"जी!...जनाब"...
"लेकिन आप वहाँ पर कर क्या रहे हैँ?"...
"आपसे बात कर रहा हूँ"...
"वो तो मैँ भी देख रहा हूँ"..
"देख रहे हैँ?...लेकिन कैसे?...आपकी गली में तो इतने बैनर वगैरा लटक रहे हैँ कि मेरा...आपको दिखना तो लगभग नामुमकिन है"..
"अरे!...बैनर तो ऊपर...खंबों पर लटक रहे हैँ ना?"...
"तो मैँ कौन सा ज़मीन अटक रहा हूँ?"...
"क्क...क्या मतलब?"...
"जनाब!...मैँ भी खंबे के ऊपर ही हूँ"....
"खंबे के ऊपर?...लेकिन किसलिए?"...
"आपसे कुछ ज़रूरी बात करने के लिए"..
"क्या मतलब?...बिना खंबे पे चढे मुझ से बात ही नहीं की जा सकती?"...
"बिलकुल नहीं की जा सकती"...
"वो किसलिए?"...
"आप ब्लॉगजगत से लेकर प्रिंट मीडिया तक दिन दूनी रात चौगुनी तेज़ी से नई-नई ऊँचाईयों को छू रहें है तो मैँने सोचा कि...
"क्या सोचा कि...
"यही सोचा कि आप जैसी ऊँचे लैवल की शक्सियत से बात करने के लिए मुझे भी किसी ऊँचे सिंहासन पर विराजमान होना पड़ेगा"...
"ओ.के!...नॉट ए बैड आईडिया"...
"ठीक है!...तो मैँ फिर लट्ठ के आ रहा हूँ"...
"लेकिन किसलिए?"...
"बिल्ली को भगाने के लिए"...
"लेकिन वो तो चली गई"...
"कब?"...
"जस्ट अभी"...
"ओह!...बच गई स्साली...किस्मत अच्छी पट्ठी की"...अविनाश जी अपनी बारीक मूँछों को उमेठने का उपक्रम करते हुए बोले
"लेकिन वो तो उल्लू की होती है"...
"क्या?"...
"पट्ठी"..
"क्या मतलब?"..
"उल्लू की पट्ठी"...
"ओह!...मॉय मिस्टेक"...
"जी"..
"ठीक है!...तो फिर उतर आईए नीचे...अपना आराम से बैठ के बातें करते हैँ"...
"नहीं उतर सकता"...
"क्यों?"...
"लाईन मैन को पूरे सौ का नोट दिया है"...
"वो किसलिए?"..
"उसी ने तो लाईन जोड़ कर दी है"...
"किसकी लाईन?"...
"फोन की"...
"क्या मतलब?...आप अपने मोबाईल से बात नहीं कर रहे हैँ?"...
"मुझे क्या पागल कुत्ते ने काटा है जो मैँ मोबाईल से इतनी लम्बी-लम्बी हाँकूंगा?...वो भी अपने मोबाईल से?...सवाल ही नहीं पैदा होता"...
"तो फिर ये ऐंटी रैबीज़ का इंजैक्शन आपने किस खुशी में लगवाया था?"...
"व्वो...वो तो बस ऐसे ही"...
"ऐसे ही से क्या मतलब?"...
"ऐज़ ए हॉबी!....शौक है मेरा"...
"कुत्तों से कटवाना?"...
"कुत्ते...बिल्ली...चील...कौवे में मैँ कोई भेद...कोई फर्क नहीं समझता...एक्चुअली!..कोई छोटा हो या बड़ा...मैँ सबको एक नज़र से देखता हूँ"...
"एक नज़र से?"...
"जी!...दूसरी वाली आँख में अब नज़र कहाँ रही?"...
"क्क...क्या मतलब?...आपकी एक आँख को क्या हुआ है?"...
"वो तो चल बसी"...
"लेकिन कब?...कैसे?..क्यों?"..
"सब मेरी ही हठधर्मी का नतीजा है"...
"क्या मतलब?"...
"मैँने एक दिन ऐसे ही मज़ाक-मज़ाक में धम्भूड़ी के छत्ते में...
"हाथ डाल दिया था?"...
"आपने मुझे क्या दूध पीता बच्चा समझा है?"...
"क्या मतलब?"...
"उसके बित्ते भर के छत्ते में मेरा हाथ कैसे जाएगा?"...
"ओह!..तो फिर कैसे?"...
"मैँ उसके छत्ते को पैंसिल की नोक से....
"खुरच डाला था?"...
"नहीं"...
"तो फिर तोड़ डाला था?"...
"अजी कहाँ?...उसको तोड़ने से पहले ही उसमें से उड़ान भरती हुई एक 'टूटू टाटे' वाली मक्खी निकली और ...
"टूटू टाटे वाली मक्खी?...लेकिन आप तो कह रहे थे कि 'धम्भूड़ी'...
"दोनों एक ही तो होती हैँ....
"वही!...जिसे पीला ततैया भी कहते हैँ?"...
"हाँ-हाँ!...वही"...
"ओह!...मॉय गॉड...फिर क्या हुआ?"...
"होना क्या था?...मेरे पैंसिल घुसाते ही हो वो फटाक से निकला और उड़ता हुआ सीधा मेरी आँख़ में घुस गया"...
"ओह!...
"बस!..तब से ही एक आँख से ही सब काम चलाना पड़ रहा है"...
"ओह!...
"आप इतनी दूर...इतनी मशक्कत करते हुए आए"...
"जी"...
"कोई खास काम था?"...
"जी"...
"क्या काम था?"...
"पहले तो मैँ आपको आपके ब्लॉग 'पिताजी' की खबर अखबार में छपने के जुर्म तहे दिल से बधाई देते हुए मुबारकबाद देना चाहूँगा"....
"ओह!..थैंक्यू...थैंक्यू...मेरा अहोभाग्य कि आप मेरे यहाँ पधारे"...
"पधारे कहाँ?...मैँ तो यहाँ खंबे पर हूँ"...
"जी!...एक ही बात है"...
"एक ही बात कैसे है?...खंबा..खंबा होता है और घर...घर होता है"...
"जी"...
"तो फिर कैसे?"...
"मॉय मिस्टेक"...
"ओ.के"...
"मुबारकबाद देने के अलावा और भी आपको कोई काम था?"..
"जी!...था ना"...
"तो फिर बोलिए ना"...
"आपसे एक गैर ज़रूरी सलाह लेनी थी"...
"तो फिर लो ना..उसमें तो मैँ एक्स्पर्ट हूँ"..
"वो तो मुझे मालुम है"...
"ओ.के!...तो फिर बताओ...क्या सलाह लेनी थी"...
"मैँ सोच रहा था कि...
"क्या सोच रहे थे?"...
"यही कि आपको पता होगा या नहीं?"...
"क्या पता नहीं होगा मुझे?"...
"यही कि इम्पोर्ट का लाईसैंस कहाँ से मिलेगा?"...
"इम्पोर्ट-एक्सपोर्ट के दफ्तर से"...
"लेकिन वो दफ्तर है कहाँ पर?"...
"ये तो पता नहीं"...
"तो फिर पता कीजिए ना"...
"ठीक है...एक-दो दिन में पता कर के बताता हूँ"...
"शुक्रिया"..
"लेकिन आपको क्या इम्पोर्ट करना है?"...
"मसखरा"...
"मसखरा?"...
"जी"...
"लेकिन क्यों?"..
"क्यों से क्या मतलब?...काम है मेरा"...
"मसखरे इम्पोर्ट करना?"..
"नहीं?"...
"तो फिर?"...
"अपनी कहानियों...अपने लेखन के जरिए लोगों को हँसाना"...
"तो फिर हँसाओ ना"...
"लेकिन कैसे?"..
"कैसे से क्या मतलब?...जैसे हँसाते आ रहे हो..वैसे ही हँसाते रहो"...
"वोही तो पूछ रहा हूँ कि कैसे हँसाऊँ?"...
"अभी तक कैसे हँसा रहे थे?"...
"अपनी सार्थक लेखनी के जरिए व्यंग्य में हास्य वगैरा पैदा कर के"...
"तो अब क्या दिक्कत है?"...
"अब किसी को मेरी कहानियों पर हँसी नहीं आती"...
"लेकिन क्यों?"...
"अब लोगों की रुचियाँ...उनके स्वाद...उनका नज़रिया...सब बदल चुका हैँ...अब उन्हें शालीनता के बजाय फूहड़ता भा रही है...नंगपना अच्छा लग रहा है"...
"तो आप भी वही सब लिखिए ना जो सबको भा रहा है"...
"नहीं!...मुझसे ये सब नहीं होगा"...
"लेकिन क्यों?"...
"क्यों से क्या मतलब?...एक बार कह तो दिया कि इस तरह का टुच्चापन हमसे नहीं होता और इसके बिना लोगों को हँसी नहीं आती"...
"ये आपसे किसने कह दिया?...मुझे तो आपकी कहानियों पर खूब हँसी आती है"...
"तो आप जैसे विरले इनसान हैँ ही कितने इस दुनिया में जिन्हें सार्थक लिखना...सुनना और पढना पसन्द है?"...
"ओह!...
"कोई नहीं पूछता है मुझे...कोई नहीं पूजता है मुझे"मैँ रुआँसा हो चला था...
"चुप हो जाईए...चुप हो जाईए प्लीज़...आपको ये गलतफहमी कि...कोई आपको...आपकी कहानियों को नहीं पूछता है ...आखिर हुई ही क्यों?...
"इसमें गलतफहमी की क्या बात है?...मेरे ब्लॉग का कमैंट बॉक्स को देखने से ही सब पता चल जाता है"...
"क्या पता चल जाता है?"...
"यही कि विज़िटर तो एक दिन में सौ से कुछ ज़्यादा ही आ जाते हैँ मेरी हर कहानी पर लेकिन कमैंट दो-चार यार-दोस्तों के अलावा कोई और नहीं करता"...
"ओह!...ये तो बड़ी गँभीर बात है"...
"जी"..
"तो फिर क्या सोचा है आपने?"..
"किस बारे में?"...
"यही कि कोई आपको कमैंट क्यों नहीं करता है?"...
"अब मैँ क्या बताऊँ?"...
"क्या आप सभी को कमैंट करते हैँ?"...
"बारह हज़ार से ज़्यादा हिन्दी के ब्लॉगर हैँ आज की डेट में"...
"तो?"...
"मैँ सबको कैसे कमैंट कर सकता हूँ?"..
"हो सकता है कि यही सब वो भी सोच रहे हों"...
"जी!...लेकिन...
"लेकिन-वेकिन...किंतु-परंतु को मारो गोली और चुपचाप अपना काम करते चलो...कभी ना कभी तो घूरे के दिन भी फिरते हैँ...आपके भी फिर जाएँगे"...
"जी!...लेकिन तब तक इंतज़ार करूँ...इतना सब्र कहाँ है मुझमें?"...
"तो फिर क्या सोचा है आपने?"...
"इसीलिए तो आपसे इम्पोर्ट लाईसैंस वगैरा के बारे में पता कर रहा था कि कितना खर्च आएगा?...कितना समय लगेगा?"..
"कौन से कंट्री से इम्पोर्ट करने की सोच रहे हो?"..
"पाकिस्तान से"....
"पाकिस्तान से?"...
"जी!...पाकिस्तान से"...
"लेकिन वहीं से क्यों?"...
"सबसे नज़दीक यही तो देश है"...
"क्यों?...बर्मा(म्यांमार)...नेपाल...बॉग्लादेश और श्रीलंका को भूल गए?"...
"ऐसे भूल तो मैँ चीन को भी गया हूँ"...
"लेकिन क्यों?"...
"क्यों से क्या मतलब?...इनमें से किसी भी देश के बाशिन्दों(मसखरों) में मुझे वो हुनर...वो कला...वो टैलेंट दिखाई ही नहीं दिया जिसकी मुझे तलाश है"...
"अरे वाह!...तुम्हारा ये टैलेंट हंट तो उस चिराग के माफिक हो गया जो सिर्फ अलाद्दीन को ही मिलेगा"...
"क्या मतलब?"...
"बाकियों को किस बिनाह पे रिजैक्ट कर रहे हो?"..
"भाषा की बिनाह पर"...
"क्या मतलब?"...
"अब अगर कोई बर्मी...बॉग्लादेशी...नेपाली या फिर लंका का बाशिन्दा...अपनी...अपने वतन की भाषा में कोई चुटकला या जोक सुनाएगा तो वो तुम्हारी समझ में आएगा?"...
"नहीं"...
"तो फिर?"...
"और अगर कोई पाकिस्तानी...अपनी खालिस उर्दू ज़बान में कुछ मज़ाकिया सा सुनाएगा....तो तुम्हें मज़ा आएगा?"...
"बिलकुल आएगा"...
"बस!...यही बात है"...
"सिर्फ यही बात है?"...
"इसके अलावा वो...वो सब कर सकते हैँ...जो मैँ नहीं कर सकता"...
"मसलन?"...
"मैँ बेशर्म हो के उनकी तरह ढूंगे नहीं मटका सकता"...
"बस?"...
"मैँ उनकी तरह लाउड...फटीचर टाईप की...ओछी हरकतों वाली कामेडी नहीं कर सकता"...
"हम्म!...आपकी बात में दम तो दिखाई दे रहा है...इसीलिए ये आजकल चैनलों के 'लॉफ्टर चैलेज' और 'लॉफ्टर चैम्पियन' सरीखे ऊल-जलूल प्रोग्रामों में छाए हुए हैँ"...
"जी!...
"तो तुम एक काम क्यों नहीं करते?"...
"क्या?"...
"उन्हीं में से किसी को हॉयर कर लो"...
"हाँ-हाँ!...आपने कह दिया और मैँने कर लिया?"...
"क्या मतलब?"..
"पता भी है कि एक-एक शो के कितने पैसे लेते हैँ?"...
"ये तो नहीं पता कि कितने लेते हैँ लेकिन इतना ज़रूर पता है कि बहुत लेते हैँ"...
"तो फिर...मैँ कैसे?"...
"ये तो आपको सोचना पड़ेगा"...
"लेकिन कैसे?"...
"दिमाग से"...
"दिमाग से?"...
"जी हाँ!...दिमाग से"...
"ओ.के!...लैट मी कंस्ट्रेट ऑन माई माईंड"...
"ओ.के"...
"क्या ऐसा हो सकता है? कि हम उनसे पूरे साल भर तक की पोस्टें इकट्ठी लिखवा लें और फिर बाद में....
"उन्हें लात मार के भगा दें?"...
"ज्जी....जी बिलकुल!...व्हाट ए कोइंसीडैंस....मैँने भी ऐसा...बिलकुल ऐसा ही...सेम टू सेम यही सोचा था"...
"पागल समझ रखा है क्या तुमने उन्हें?"...
"क्या मतलब?"...
"वहीं से आने से पहले ही पक्का ऐग्रीमैंट तुमसे साईन करवा कोरियर करवा लेंगे अपने पते पे"...
"ओह!...तो क्यों ना हम उनसे पोस्ट दर पोस्ट हिसाब कर लिया करें?"...
"हाँ!...ये ठीक रहेगा...जितनी भी टिप्पणियाँ आएँगी पोस्ट पे...उनमें से आधी उनकी और आधी तुम्हारी"...
"उनकी आधी क्यों?...ब्लॉग तो मेरा है और मेरे ही नाम से कहानी पोस्ट की जाएगी"...
"लेकिन मेहनत तो सारी उनकी ही होगी ना?"...
"तो?..उससे क्या होता है?...ये तो यहाँ की सदा से चली आई रीत है कि मेहनत कोई करता है और उसका फल कोई और भोगता है"...
"जी!...ये तो है"...
"तो फिर आप मेरी मदद करें ना प्लीज़"...
"ठीक है!...तो फिर आज ही मैँ अपने सभी ब्लॉगों पर "आवश्यकता है एक पाकिस्तानी मसखरे की" के नाम से पोस्ट लगा देता हूँ"...
"लेकिन सिर्फ एक से क्या होगा?"..
"क्या मतलब?"..
"मैँ तो चाहता हूँ कि मेरा ब्लॉग रातों रात सबके दिल औ दिमाग पे छा जाए...टिप्पणियों का ये बड़ा सा अम्बार लग जाए...वाह-वाह...और तालियों की गूंज से....
"आपके कान के पर्दे फट जाएँ?"...
"क्या मतलब?"...
"अरे!...सब्र रखो..सब्र...किसी भी चीज़ की इंतहा ठीक नहीं होती"...
"जी!...ये बात तो है"मैँ कुछ मायूस सा होता हुआ बोला...
"आपको क्या लगता है कि ब्लॉग वगैरा पे पोस्ट डालने से रिस्पांस मिलेगा?"...
"क्यों?...जब मैँने मोबाईल और बैट्री वाला स्कूटर खरीदने के लिए पोस्ट डाली थी तो रिस्पांस मिला था के नहीं"...
"जी!...तब तो मिला था...खूब मिला था...मैँने भी रिप्लाई किया था"...
"तो इस बार भी मिलेगा...चिंता क्यों करते हो?"...
"जी"..
"ट्रिंग...ट्रिंग...
"अविनाश जी!...आप दो मिनट ज़रा होल्ड कीजिए...मेरे मोबाईल पे फोन आया है"...
"किसका फोन है?"..
"नम्बर तो अपने देश का नहीं लग रहा है...आप रुकिए...अभी दो मिनट में पता कर के बताता हूँ"...
"जी"...
"हैलो"..
"राजीव तनेजा जी बोल रहे हैँ?"...
"हाँ जी!...बोल रहा हूँ...आप कौन?"...
"मैँ...मुनव्वर सुल्ताना..कराची से"...
"जी!...कहिए"...
"आप बहुत अच्छा लिखते हैँ"...
"ओह!...शुक्रिया...आपका बहुत-बहुत शुक्रिया कि आपने मुझे इस लायक समझा"...
"मैँने आपकी तकरीबन हर कहानी पढ रखी है"...
"रियली?"...
"जी"...
"मेरा अहोभाग्य"...
"यू रास्कल...ब्लडी फूल..ईडियट"
"क्क...क्या मतलब?"...
"मेरे को...मुनव्वर सुल्ताना को गाली देता है हरामखोर?"...
"म्म...मैँ तो...
"ये म्मैँ तो...मैँ तो क्या कर रहा है हरामी?....अब गाली दे के दिखा मुझको....फिर बताती हूँ तेरे को"...
"म्म...मैँने कब गाली दी आपको?"...
"ये अहोभाग्य...ये अहोभाग्य क्या तेरा फूफा कर रहा था?"...
"लेकिन ये तो गाली नहीं है"...
"क्या मतलब?"...
"इसका मतलब तो होता है 'मॉय प्लैज़र'"...
"तू!..तू झूठ तो नहीं बोल रहा ना?"...
"नहीं!...बिलकुल नहीं"...
"खा!...काले...कटखने कुत्ते की कसम"...
"जी!...कसम से...आई शपथ...मैँने तो यही कहा था कि मेरी खुशनसीबी है कि आपने मेरी सभी कहानियाँ पढ रखी हैँ"...
"पढ ही नहीं रखी...छाप भी रखी हैँ"...
"क्क्या मतलब?...आपने उन्हें छाप भी रखा है?"...
"हाँ!...उनका उर्दू में तर्ज़ुमा कर के मैँने अपने ब्लॉग पर उन सभी को छाप रखा है"...
"ओह!...तो फिर अब आप क्या चाहती हैँ मुझसे?"...
"यही कि तुम मेरे लिए काम करो"...
"क्या मतलब?"...
"मेरे ब्लॉग के लिए तुम कहानियाँ लिखो"...
"लेकिन जब आप ऑलरैडी चोरी से मेरा माल हड़प ही रही हैँ तो अब मुझे प्रोफैशनली हायर कर अपना खर्चा क्यों बढाना चाहती हैँ?"...
"ऐक्चुअली क्या है?..कि फॉर दा टाईम बीइंग...मैँ चोरी-चकारी और छीना-झपटी वगैरा से थोड़ा उकता चुकी हूँ...और कुछ दिन के लिए किसी हिल स्टेशन पे जा के आराम फरमाना चाहती हूँ"...
"ओह!...तो आप चाहती हैँ कि जब तक मोहतरमा जी आराम फरमा रही हैँ...उनके हिस्से का काम मैँ करूँ"...
"ऐगज़ैक्टली"...
"ओ.के!...आई हैव नो प्राब्लम"...
"पैसे कितने मिलेंगे?"...
"पैसे?"...
"पैसे तो नहीं हैँ मेरे पास"...
"तो फिर क्या झक्क मारने के लिए आपने मुझे फोन किया है?"...
"जी"...
"क्क...क्या मतलब?"...
"एकचुअली!...क्या है कि चिल्लड़ और नकदी वगैरा मुझे बिलकुल भी पसन्द नहीं"...
"तो?"...
"इसलिए मैँ हमेशा चैकबुक अपने पास रखती हूँ"...
"तो मैँ क्या करू?"...
"कहिए!...कितने का चैक फाड़ दूँ?"...
"क्या?"...
"जी!...कहिए...कितने का चैक फाड़ दूँ?"...
अजी!...फीस तो आप जितनी का मन करे...उतनी दे दें लेकिन एक गुज़ारिश है आपसे कि चैक को प्लीज़...फाड़ें नहीं"...
हा...हा...हा..जैसे आपके यहाँ कि...'पॉमोलिव दा जवाब नहीं'...वैसे ही आपके सैंस ऑफ ह्यूमर का जवाब नहीं"...
"जी!...मेरा अहोभाग्य"....
"यू रास्कल...ब्लडी फूल..ईडियट"...
म्म...म्मेरा मतलब...मॉय प्लैज़र...मॉय प्लैज़र"...
"हा...हा...हा...
"ठीक है!...तो फिर मैँ मुनव्वर सुल्ताना..कराची वाली...टेलीफोन के खंबे से नीचे उतर कर आपका चैक जल्द से जल्द भिजवाती हूँ"...
"क्या?...आप भी खंबे से?"...
"जी!...और नहीं तो क्या डण्डॆ से?"...
"हा...हा...हा..."हा...हा...हा...
***राजीव तनेजा***
Rajiv Taneja
Delhi(India)
http://hansteraho.blogspot.com
+919810821361
+919213766753
18 comments:
ek aur mazedar post wah.... ha ha ha
aaj to ham bhi turat tippanikar ho gaye
राजीव भाई,
आपको कसम कटखने कुत्ते की, ये बताइए आपकी बिल्ली कैटवॉक करती है या नहीं...अगर नहीं बताया तो अहोभाग्य..अहोभाग्य...
अहोभाग्य...
जय हिंद...
मजेदार रहा !
मजेदार जी, हंसते हंसते हम तो लोट पोट हो गये, बस अभी कपडे झाड कर आप कॊ टिपण्णी कर रहे है
वाह वाह तनेजा जी वाह....
wah! mera ahobhagya..... jo itni mazedaar post padhne ko mili....
ई-मेल द्वारा प्राप्त टिप्पणी:
from: अविनाश वाचस्पति
Re: मैँ मुनव्वर सुल्ताना...डाईरैक्ट फ्राम कराची
ब्लॉग नहीं खुल रहा है तो मेल से ही।
अच्छा मेल करा रहे हो
अविनाश को मुनव्वर सुल्ताना से
वाया राजीव तनेजा
हंसे जा हंसे जा
फंसे जो फंसे जा
तनेजा यह तो बतला
पिताजी ब्लॉग कौन से अखबार में छपा है
क्या वो अखबार मुनव्वर सुल्ताना का है।
बाप रे बाप कहां बिल्ली के कंधे पर चढ कर खंभे होते हुए पाकिस्तान पहुंच गये डायरेक्ट...और अविनाश भाई को भी लपेट लिया ये ठीक रहा ...
क्या बात है तनेजाजी बहुत ही अच्छी पोस्ट...!!!
आपकी कीर्ति तो विदेशो में भी फैलने लगी हैं...!!
मगर आप पैसे बचने के चक्कर में टेलेफोन के खंबे पर चड़कर दुसरो के कनेक्शन में अपना डब्बा लगाकर बात तो नहीं करते ना....!!!
बधाई..... :D
"अरे!...मक्खियाँ मारने वालों का तो आजकल यशोगान होता है...वो पुरस्कार पाते हैँ और भी कोई छोटा-मोटा नहीं बल्कि नोबल पुरस्कार पाते हैँ...वो भी शांति का"...
hanste hanste hee kayee baar bahut abdee baat kah jaate hain aap bahut achhaa kaha hai
behtareen hai jee!!
हा हा! मज़ा आ गया।
अपनी काया के कारण खंभे पर चढ़ने की कोशिश करते करते अभी पहुँचे हैं ऊपर, तब जा कर टिप्पणी कर पा रहे हैं।
badhiya vyangya hai rajiv jee...koi .paabla ji ko rokiye ...khambhe bharteey thekedaron ne banvaae hain....
अब अगली रचना कब...?
aapki shaili bahut achchi hai
vayang mein haasy shamil kar lete ho
baat bhi kah di aur hansa bhi diya
rajiv ji /
ye मुनव्वर सुल्ताना..ab kahan hai karanchi ya kahin or...
very nice
jaisa aap kahey- hans raha hoon muskra raha hoon khilkhila raha hoon khambhe par khade ho ker
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