रूपचंद शास्त्री जी…शब्दों के साथ ऐसा खिलवाड क्यूँ?…क्यूँ?…क्यूँ?

roopchand shaastri ji

आदरणीय एवं माननीय  रूपचंद शास्त्री जी ,नमस्कार

सबसे पहले तो मैं तहेदिल से आपका शुक्रगुजार हूँ और जीवनपर्यंत रहूँगा कि आपने मुझ जैसे अदना से ब्लॉगर द्वारा… आपके ब्लॉग पर की गई कुछ निरर्थक (आपके हिसाब से) एवं तीखी टिप्पणियों(मेरे हिसाब से) का जवाब देने के लिए अपना कीमती समय खर्च कर मुझे पत्र …ऊप्स!…सारी ईमेल भेजा…

उसी सन्दर्भ में मैं आपको ये पोस्ट लिख रहा हूँ  

आपका ये कहना १०० % सही है कि मैं सदैव ‘हँसते रहो’ का नारा बुलंद करता हूँ और इसके लिए मुझे खुद पर कुछ-कुछ गर्व भी है कि मैं अपनी लेखनी के जरिए लोगों के नीरस जीवन में हंसी के कुछ पल लाने का प्रयास करता हूँ लेकिन आपका मुझ पर ये इलज़ाम कि…’मैं विवाद पैदा करता हूँ’…ये कतई सही नहीं है ….उलटा विवाद तो आपने पैदा किया उक्त पोस्ट को लिख कर….अगर आप ये पोस्ट लिखते ही नहीं तो मेरा-आपका ये वैचारिक मतभेद किसी कीमत पर भी होता ही नहीं…

roop chand shastri

आज ब्लॉगजगत में विचरण करते हुए मुझे तकरीबन तीन साल या इस से कुछ अधिक समय होने को आया है …जहाँ तक मुझे याद है और इतिहास भी गवाह है कि आज से पहले मेरा कभी किसी ब्लॉगर से…किसी भी प्रकार का वैचारिक मतभेद नहीं हुआ है(शायद!…एक-आध किस्से को छोड़ कर) और उम्मीद करता हूँ कि आगे होगा भी नहीं…

आप कहते हैं कि… ’आपको मेरी टिप्पणियों की आवश्यकता नहीं है’ …. अगर ऐसा सच में सही है तो आपने अपनी उस पोस्ट से मेरी उन तथाकथित अवाँछनीय टिप्पणियों को हटाने के बावजूद उन्हीं तथाकथित बेफिजूल की टिप्पणियों को अपनी अगली याने कि इस पोस्ट में ससम्मान स्थान क्यूँ दिया? …यहाँ भी मैं आपका तहे दिल से शुक्रगुजारहूँ कि आपने मेरे द्वारा की गई टिप्पणियों को अलग चटख रंग से सुसज्जित कर उन्हें हाईलाईट करते हुए मुझ जैसे सुप्तावस्था में सो रहे अदना से ब्लॉगर को लाईमलाईट में आने का मौक़ा दिया …ये मैं नहीं जानता कि आपने अपनी किस मज़बूरी के चलते ऐसा किया….क्या आपने अपने ब्लॉग की ‘टी.आर.पी’ बढाने की गरज से ऐसा किया?…या फिर इसके पीछे कोई और ही मंशा थी? …

आप ये भी सही कहते हैं कि ब्लॉग की दुनिया बहुत बड़ी है और मुझे कोई दूसरा यूआरएल देखना चाहिए

वाकयी …ये ब्लॉग की दुनिया सच में बहुत बड़ी है लेकिन ये भी तो निर्विवाद सत्य है ना कि …दुनिया गोल है?….इसलिए ना चाहते हुए भी मुझे फिर-फिर लौट कर आपके ब्लॉग पर आना पड़ा..और ये मेरा दावा ही नहीं बल्कि पूर्ण विश्वास है कि इसी प्रकार की उत्कंठा मेरी इस पोस्ट को पढ़ने के बाद आपके मन में भी बार-बार…बारम्बार उत्पन्न होगी और आप भी लौट-लौट कर मेरे ब्लॉग पर ये जानने के लिए आएंगे कि वहाँ पर …..किस प्रकार की?… एवं कैसी हलचल हो रही है?…या फिर ये जानने कि जिज्ञासा आपको मेरे ब्लॉग पर स्वत: ही खींच लाएगी कि वहाँ पर हँसते-हंसाते हुए किसी घिनौने षड्यंत्र को जन्म दे उसे अंजाम तक तो नहीं पहुंचाया जा रहा? 

lalit ji cartoon

खैर!…ये तो हुआ आपके जवाब का जवाब …अब चलते हैं असल मुद्दे की तरफ…तो असल मुद्दा कुछ यूँ था कि आपने ललित शर्मा जी के द्वारा ब्लॉग्गिंग को त्यागने की बात पर फूल चढाते हुए ससम्मान उनकी ब्लॉग्गिंग के ताबूत में आखिरी कील ठोकने से गुरेज़ नहीं किया(मुझे काफी अफ़सोस के साथ कहना पड़ रहा है कि आपका ये सपना इस जन्म में तो पूरा होने वाला नहीं है)…ये सही है ललित जी ने अपनी मर्ज़ी से ब्लॉग्गिंग छोड़ने का मन बनाया था लेकिन ये भी तो सच है ना कि कई बार हम भावावेश में ऐसा बहुत कुछ करने की सोच लेते हैं जिसे असल जिंदगी में करना या अमल में लाना हमारे लिए कतई श्रेयस्कर नहीं होता…उदहारण के तौर पर कुछ वर्ष पहले किसी व्यासायिक निराशा के चलते कई बार मेरे मन में ख़ुदकुशी करने तक जैसे कुत्सित विचार बारम्बार उत्पन्न हो रहे थे लेकिन देख लीजिए अपने जीवट के चलते मैं मरा नहीं …और आज भलीभांति अपना तथा अपने बीवी-बच्चों का भरण-पोषण करते हुए आपके समक्ष ये माईक्रो पोस्ट लिख रहा हूँ…:-)

आइए!…अब हम बात करते हैं शुरू से…शुरुआत से….तो आप अपनी ताजातरीन पोस्ट में अपनी पिछली पोस्ट का उद्धरण देते हुए पूछते हैं कि मेरी इस पोस्ट में आपत्तिजनक क्या है? तो मैं आपको ये बता देता हूँ कि आपकी पोस्ट में आपत्तिजनक क्या-क्या नहीं है?…आपत्तिजनक बताने के लिए तो पूरी पोस्ट पड़ी है …क्यों!…है कि नहीं? 

आपने शुरू में ‘ललित जी’ की और उनके लेखन की तारीफ़ की …ये बिलकुल भी आपत्तिजनक नहीं है…मैं इसके लिए आपका तहेदिल से आभारी हूँ …लेकिन उसके बाद आपने अपने सारे अच्छे किए पे ये कह के भांजी मार दी कि आप उनके ब्लॉग्गिंग छोड़ने के निर्णय का स्वागत करते हैं (बेशक भारी मन से ही सही)….यही वह बात है जो मुझे एवं अन्य कुछ साथियों के मन में शूल बन के चुभी और कांटे की तरह खटकी…और उसी से व्यथित हो के मैंने भावावेश में वो कथित तीन तीखी टिप्पणियाँ कर दी जिन्हें अपने सपनों में भी कभी आप याद करना पसंद नहीं करेंगे |यकीन मानिए ऐसी कड़वी टिप्पणियाँ करना ना ही मेरी फितरत है और ना ही ऐसा मेरा स्वभाव है |ऐसा कर के मैं आपके या किसी अन्य के दिल को ठेस पहुंचा…उसके मन को दुखाना नहीं चाहता था लेकिन क्या करूँ?…मेरे सीने में भी तो एक धडकता हुआ दिल है ना?….वो ललित भाई के साथ होते हुए इस गलत बर्ताव को झेल नहीं पाया और व्यथित हो ऐसी….दिल में नश्तर की भांति चुभने वाली नकारात्मक टिप्पणियाँ कर बैठा| यकीन मानिए उन टिप्पणियों को लिखते वक्त मेरे मन में इस बात को लेकर रत्ती भर भी संशय नहीं था कि आप मेरी उन टिप्पणियों का खुले दिल से स्वागत कर…उन्हें सर-माथे से लगाएंगे…उन्हें तो शहीद होना था और वो हो गई…शायद!…किस्मत ही कुछ ऐसी थी उनकी

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मैंने अपनी पहली टिप्पणी में आपसे कहा था कि… “आप एक ही समय में अपने दोनों हाथों में लड्डू रखना चाहते हैं”….

तो बताइए मैंने क्या गलत कहा?….

पहली पंक्ति में आप ललित जी के दुःख में दुखी हो उनके साथ सहानुभूति जता रहे हैं …उसके ठीक विपरीत अगली ही पंक्ति में आप उनके ब्लॉग्गिंग छोड़ने के निर्णय का स्वागत करते हुए उनके विरोधियों को खुश करने का प्रयत्न कर रहे है और फिर इसके ठीक उलट उससे अगली पंक्ति में आप पुन:पलटी खाते हुए उन्हें सान्तवना दे …उनके उज्जवल भविष्य की कामना कर रहे हैं…मैं पूछता हूँ कि शब्दों के साथ ऐसा खिलवाड क्यूँ?…क्यूँ?…क्यूँ?

आप कहते हैं कि ….’ब्लॉगजगत को श्री ललित शर्मा जी के  पुनरागमन की बेसबरी से सदैव प्रतीक्षा रहेगी’…

अरे!…ख़ाक प्रतीक्षा रहेगी?…. जिस आदमी को आप अंतिम विदा दे उसके मनोबल को पूर्ण रूप से तोड़ने का प्रयास कर रहे हैं…उसे अंत में आप नाम भर के लिए पुचकार भी दें तो ऐसी मिथ्या…खोखली….निरर्थक सी पुचकुराहट का फायदा क्या?…

मेरी इस पोस्ट के जवाब में आप इस पर पलटवार करते हुए ये कह सकते हैं कि….”आपने नहीं कहा था ललित जी से ब्लॉग्गिंग छोड़ने के लिए और वो इसे अपनी मर्जी से छोड़ रहे थे वगैरा…वगैरा”…

ठीक है!…मानी आपकी बात कि उन्होंने ऐसा अपनी मर्ज़ी से…स्वेच्छा से कहा था लेकिन उन्होंने आपको भी तो भावभीनी विदाई देने के लिए नहीं कहा था ना? …फिर आपने क्यूँ दी?….  आपसे किसने कहा कि वो अपनी मर्ज़ी से….स्वेच्छा से रिटायर हो रहे थे?……क्या आप अपनी मर्ज़ी से रिटायर होना चाहेंगे?… शायद!…नहीं… आप क्या?…मुझ समेत कोई भी…तब तक रिटायर नहीं होना चाहेगा जब तक वो अपनी मंजिल …अपनी सारी खुशियों को ना पा ले….और अभी ललित जी ने तो बहुत कुछ लिखना था…बहुत कुछ पढ़ना था …लेकिन क्या करें?……घटनाक्रम कुछ ऐसा घटा कि यार ने ही लूट लिया घर यार का…

अगर आप जानते कि …अपनों द्वारा कही गई कड़वी बात कितनी पीड़ा…कितना दुःख देती है?… तो अपने आप समझ जाते कि ललित भाई ने ब्लॉग्गिंग छोड़ने का निर्णय किन परिस्तिथियों में? और क्यूँ लिया? और आप उनके इस कटु निर्णय का स्वागत करने के बजाय उनसे उसे वापिस लेने की मार्मिक अपील करते जैसी कि मुझ समेत बाकी के ब्लॉगर साथियों ने की थी लेकिन इसके उलट आपने तो ललित जी को रोकने…मनाने के बजाय उन्हें भावभीनी विदाई ऐसा पुख्ता इंतजाम कर दिया कि वो अपने फैंसले पर पुनर्विचार कर अगर यूटर्न लेना भी चाहें तो आसानी से ना ले सकें… 

कोई नौसिखिया या नया ब्लॉगर अगर ऐसा करता तो मैं उस नासमझ को नासमझ समझ कर उसकी बात को इग्नोर भी कर देता लेकिन आप जैसे वरिष्ठ ब्लॉगर द्वारा ऐसा किया जाना मुझे क्या?…किसी भी संवेदनशील ब्लॉगर को रास नहीं आया और ना ही आएगा…हाँ!…जिनकी आँख का पानी ही मर चुका हो …उनके बारे में क्या कहें?

मेरा आपसे सिर्फ इसी पोस्ट को लेकर मतभेद है…इसके अलावा ना मैंने आपकी भैंस खोली है और ना ही आपने मेरे खेत में अपने डांगर घुसाए हैं …हमारा-आपका कोई खानदानी…कोई पुश्तैनी वैर नहीं….जन्म-जन्मांतर से आप मेरे बुज़ुर्ग हैं….और सर्वदा रहेंगे …..इस नाते आपकी इज्ज़त करना मेरा धर्म ही नहीं बल्कि कर्त्तव्य भी है ….ब्लॉगजगत में आपकी इज्ज़त एवं रुतबे को देखते हुए मैं उम्मीद ही नहीं बल्कि आशा भी करता हूँ कि आप मेरी भावनाओं को समझते हुए मुझ नादान से हुआ सब कहा-सुना माफ कर अपने खुले दिल का परिचय देंगे

 

विनीत:

राजीव तनेजा

अंत में एक मार्मिक अपील फिर अपने ललित भाई से……कि वो सारे गिले-शिकवे भूल वापिस हमारे बीच लौट आएं…हिंदी के विकास और उत्थान के लिए सभी हिंदी प्रेमियों को उनके योगदान की आवश्यकता है

जय हिंद

ब्रेकिंग न्यूज़: अभी-अभी विश्वसनीय सूत्रों से अपुष्ट खबर मिली है कि ललित शर्मा जी ने वापिस ब्लॉग्गिंग करने का फैंसला किया है …आपका पुन: स्वागत है

16 comments:

Udan Tashtari said...

संयम बनाये रखिये- वक्त की मांग है.

Randhir Singh Suman said...

nice

Anonymous said...

रूपचन्द जी की उस पोस्ट से आहत तो मैं भी हुआ था, बता भी दिया था उन्हें। सोचा था इस संबंध में एक पोस्ट लिखूँ, किन्तु आपकी इस 'माइक्रो पोस्ट' को देख वह इरादा त्याग दिया है।

फिलहाल आपकी इस पोस्ट की मूल भावना से मैं सहमत हूँ। पूर्व में रूपचन्द जी को लिखे गए शब्द दोहराना चाहूँगा कि मुझे उनसे यह उम्मीद न थी

Unknown said...

"’ब्लॉगजगत को श्री ललित शर्मा जी के पुनरागमन की बेसबरी से सदैव प्रतीक्षा रहेगी’…

अरे!…ख़ाक प्रतीक्षा रहेगी?…. जिस आदमी को आप अंतिम विदा दे उसके मनोबल को पूर्ण रूप से तोड़ने का प्रयास कर रहे हैं…उसे अंत में आप नाम भर के लिए पुचकार भी दें"


चित्त भी मेरा पट्ट भी मेरा अंटी मेरे बाबा का!

घटोत्कच said...

पहली पंक्ति में आप ललित जी के दुःख में दुखी हो उनके साथ सहानुभूति जता रहे हैं …उसके ठीक विपरीत अगली ही पंक्ति में आप उनके ब्लॉग्गिंग छोड़ने के निर्णय का स्वागत

मक्कारपने की हद है,

कडुवासच said...

ब्रेकिंग न्यूज़: अभी-अभी विश्वसनीय सूत्रों से अपुष्ट खबर मिली है कि ललित शर्मा जी ने वापिस ब्लॉग्गिंग करने का फैंसला किया है …आपका पुन: स्वागत है

.... intajaar ... swagatam...swagatam !!

Birendra said...

बातें हो जाती हैं. बाद में उनपर पछतावा होता है. ललित जी एक बार फिर से ब्लागिंग शुरू करें, इसी बात का इंतज़ार है. शास्त्री जी के बारे में क्या कहा जाय? कुछ देर के लिए वे बुजुर्ग के स्वभाव को भूल गए.

Creative Manch said...

सुमन जी के बहुमूल्य विचारों से सहमत

अविनाश वाचस्पति said...

यह कुछ नहीं सिर्फ एक गलतफहमी है। हम सब अगर आपस में ही गुत्‍थम गुत्‍था हो जायेंगे और मर्यादाओं का ध्‍यान नहीं रखेंगे - तो हिन्‍दी ब्‍लॉगिंग को किन आदर्शों के बल पर शिखर पर ले जायेंगे। मुझे तनिक भी नहीं लगता कि माननीय मयंक जी ने कुछ भी गलत लिखा था। अगर जाने वाले को खुशी से जाने दिया जाए तो दोगुनी खुशी से वापिस आने पर स्‍वागत भी किया जाता है। इसमें कोई ऐसी बात नहीं है कि किसी की हेठी हो या किसी को इसमें आपत्ति होनी चाहिए। जितने भी कारक हैं सब होनी के हाथ हैं, होनी सदा बलवान है, इसमें किसी का दोष नहीं है। काल की गति कौन जान सका है ? समस्‍त मतभेद भुलाकर आपस में सभी फिर प्‍यार से सम्‍मानोचित व्‍यवहार करें और मन में तनिक भी गिला या गीला न रखें। ऐसा मेरा सबसे करबद्ध विनम्र आग्रह है। वरना तो तमाशबीनों की और चिंगारी देने वालों की कमी नहीं है राजीव भाई। संयम रखें और यम को हावी मत होने दें।

अजय कुमार झा said...

इस प्रकरण से एक बार फ़िर से बहुत सारी सीख मिली , जो कि अक्सर ऐसे प्रकरणों से सीखने को मिल ही जाती है । इस मामले में मुझे सिर्फ़ दो बातें थोडा सा दिल दुखाने वाली लगीं । पहली तो ये कि ललित जी का जाना कहीं से भी स्वेच्छापूर्वक नहीं लगा था मुझे इसलिए मैंने भी वो कहा था ..दूसरा ये कि ..दूसरा यूआरएल देखिए ....और ..। खैर छोडिए ...लगता है आजकल मौसम की गर्मी यहां भी असर दिखा रही है । सब कुछ जल्द ही पटरी पर आए जाए यही कामना है । राजीव भाई ....आप हंसते हंसाते रहिए ....हम यही चाहेंगे
अजय कुमार झा

axE said...

मेरी व्यक्तिगत राय से श्री रूपचन्द्र शास्त्री की प्रतिक्रिया निंदनीय है! उन्हें कोई अधिकार नहीं है की उनके सार्वजनिक ब्लॉग पर वे किसी को उत्तर देने से रोक सके!

राम त्यागी said...

hindi ka vikas ho raha hai ye ?? ya phir personal agenda par discussion ....??

शरद कोकास said...

दूसरों को हँसाने इतना संवेदंशील ?
take it easy भाई...............

घटोत्कच said...

@ राम त्यागी
personal agenda par discussion kya
farsi me ho raha hai kya?
hindi me hi likha hai.

M VERMA said...

मैने शास्त्री जी के उस पोस्ट पर यह टिप्पणी की थी कि मै ललित जी को विदा नही कर सकता पर कुछ दिनो का विश्राम की अनुमति दे सकता हूँ.
मुझे भी थोडा अजीब लगा था. पर शायद यह एक तरीका रहा हो.
गलतफहमियाँ दूर होनी चाहिये.

Girish Kumar Billore said...

शास्त्री जी से मैं भी बात करना चाहता हूं किंतु आज उनसे बात नहीं हो सकी गलत सदा गलत है आशा है शास्त्री समझदारी से काम लेगें

 
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