"अजी!…सुनते हो...चुप कराओ ना अपने लाडले को…रो-रो के बुरा हाल करे बैठा है…चुप होने का नाम ही नहीं ले रहा…लाख कोशिशे कर ली पर जानें कौन सा भूत सर पे सवार हुए बैठा है कि उतरने का नाम ही नहीं ले रहा"…
"अब क्या हुआ?…सीधी तरह बताती क्यों नहीं?"…
"जिद्द पे अड़े बैठे है जनाब..कि चाकलेट लेनी है और वही लेनी है जिसका एड बार-बार टी.वी पे आ रहा है"…
"तो दिलवा क्यों नहीं दी?"…
"अरे!...मैने कब ना करी है?…कईं बार तो भेज चुकी हूँ शम्भू को बाज़ार …लेकिन खाली हाथ लौट आया हर बार"..
"खाली हाथ लौट आया?"…
"और नहीं तो क्या मैं झूठ बोल रही हूँ?"....
"स्साले के भाव बढ़े हुए हैं आजकल...बैठ गया होगा कहीं पत्ते खेलने और बहाना बना दिया कि...मिली नहीं"…
“हम्म!…
"लगता है दिन पूरे हो चले हैं इसके इस घर में…घड़ी-घड़ी ड्रामा जो करता फिरता है…स्साला…नौटंकीबाज कहीं का”…
“और नहीं तो क्या"बीवी अपनी साड़ी के पल्लू को हवा में लहरा उसे ठीक करते हुए बोली….
“लेकिन तुम्हें भी तो कुछ सोचना चाहिए था कम से कम कि…नहीं मिली तो क्यों नहीं मिली?”…
"अब जब वो कह रहा है कि नहीं मिली तो इसमें मैं क्या करुं?"…
“अब इतनी भोली भी ना बनो कोई भी ऐरा-गैरा…नत्थू-खैरा मिनट दो मिनट में ही तुम्हें फुद्दू बना…अपने रस्ते चलता बने"….
“क्या पता…सच में ही ना मिली हो उसे …झूठ बोल के भला उसे क्या मिलेगा?”…
“हाँ!…शतुरमुर्ग का अंडा था ना जो नहीं मिला होगा"मेरे तैश भरे स्वर में उपहास का पुट था
"तो क्या मैं झूठ बोल रही हूँ?"…
"मैने ऐसा कब कहा?"…
"मतलब तो यही है तुम्हारा”…
"अरे!...सगी माँ हूँ...कोई सौतेली नहीं कि अपने ही बेटे की खुशियों का ख्याल ना रखूँ"…
"तो फिर शर्मा की दूकान पे जाना था ना"…
"अरे!…शर्मा क्या और...वर्मा क्या?...सभी जगह धक्के खा आई पर ना जाने क्या हुआ है इस मुय्यी नामुराद चाकलेट को कि जहाँ जाती हूँ…पता चलता है कि…माल खत्म"…
“हद हो गई ये तो…चाकलेट ना हुई..आलू-प्याज हो गया कि चुनाव सर पे आते ही बाज़ारों से ऐसे गायब जैसे गधे के सर से सींग"…
”और नहीं तो क्या?”…
"कहीं ये मुय्ये ‘चाकलेट’ फ़िल्म वाले ही तो नहीं उठा ले गये सब?”...
"अब…इतने सालों बाद उसे गायब कर के वो क्या उसका अचार डालेंगे?”…
“कुछ पता नहीं….पुरानी फिल्मों को फिर से ज़िंदा करने का चलन चल निकला है आजकल"…
'फॉर यूअर काईंड इन्फार्मेशन…इतनी पुरानी भी नहीं है कि उसे फिर से ज़िंदा करने की नौबत आन पड़े"…
“हम्म!…लेकिन फिर क्या वजह हो सकती है ऐसे..अचानक…एक चाकलेट जैसी अदना सी चीज़ के बाज़ारों से रातोंरात गायब हो जाने की?”…
"अब मैं क्या बता सकती हूँ इस बारे में?”…
“भय्यी…तुम कुछ भी कहो लेकिन मुझे विश्वास नहीं हो रहा है इस बात का"…
“अगर मेरी बात का विश्वास नहीं हो रहा है तो खुद ही बाज़ार जा के तसल्ली क्यों नहीं कर लेते अपनी?…थोड़ी-बहुत वर्जिश भी हो जाएगी इसी बहाने और वैसे भी घर में खाली बैठे-बैठे कहानियाँ ही तो लिख रहे हो…कौन से तीर मार रहे हो?”…
“हम्म!… (बीवी की बात मान मैं झोला उठा चल दिया बाज़ार की तरफ)
हैरानी की बात तो ये कि जहाँ-जहाँ गया हर जगह सब कुछ मौजूद लेकिन चाकलेट गायब
"हद हो गई ये तो….पता नहीं ऐसे कौन से सुरखाब के पर लगे हैँ इस स्साली चाकलेट में कि पूरी दिल्ली बावली हो उठी”…
अभी मेरे मुंह से ये शब्द निकले ही थे कि कहीं से आवाज आई
"दिल्ली?"..
"अरे!…बाबूजी...पूरे हिन्दोस्तान की बात करो पूरे हिन्दोस्तान की"…
“पूरे हिन्दोस्तान की?”…
“जी!…हाँ..पूरे हिन्दोस्तान की"…
“क्या मतलब?”..
“बिहार क्या और यू.पी क्या?…दिल्ली…मुम्बई और कलकत्ता क्या?…हर जगह से माल गायब है"…
“क्क्या…क्या कह रहे हो?”…
“सही कह रहा हूँ बाबूजी…अभी अपने भाई से बनारस में बात हुई है…वहाँ की मंडियों का भी दिल्ली जैसा ही हाल है"…
“ओह!…
"सुना है कि अब तो ब्लैक में भी नहीं मिल रही”...
“ओह!…
"कोई तो ये भी कह रहा था कि पड़ोसी मुल्क में भी इसके दिवाने पैदा हो चले हैं अब तो"…
“ओह!…कहीं वहीं तो नहीं सप्लाई हो गया सब का सब?"…
बात कुछ समझ में नहीं आ रही थी कि आखिर...हुआ क्या है?...माज़रा क्या है?"
"कईं-कईं तो खाली हाथ बैरंग लौट गये आठ-आठ घंटे लाईन में लगने के बाद और जब तक नम्बर आया तब तक झाडू फिर चुका था माल पे"वही आवाज फिर सुनाई दी….
"कमाल है!….चाकलेट ना हुई ससुरी अफीम की गोली हो गई"…
"आज की तारीख में तो अफीम से कम भी नहीं है"…
"पता नहीं क्या धरा है इस कम्बखत मारी चाकलेट में?"मेरे मुँह से निकला ही था कि किसी ने कमेंट पास कर दिया…
"बन्दर क्या जाने अदरक का स्वाद?"…
अब अगर सचमुच में कुछ ज़रा सा…तनिक सा भी मालुमात होता इस सारे मैटर के बारे में तो मुहतोड़ जवाब देता पट्ठे को लेकिन जब अपने दिमाग का सिक्का ही पैदल घूमने को आमादा हो तो कोई क्या करे?..उत्सुकता बढ़ती जा रही थी…जिज्ञासा लाख छुपाए ना छुप रही थी लेकिन कुछ समझ नहीं आ रहा था कि...आखिर चक्कर क्या है?…ये सारा चक्कर मुझे घनचक्कर बनाये जा रहा था कि …क्यों पागलों की तरह दिवाने हो चले हैं सब के सब?…जितने मुँह उतनी बातें सुनने को मिल रही थी…कोई कह रहा था कि….
“इससे 'डायबिटिज' गायब हो जाती है कुछ ही हफ्तों में”…
किसी को कहते सुना कि…
“इससे 'मर्दानगी' बढ़ती है…सबकुछ नया-नया सा लगने लगता है”…
तो कोई कह रहा था कि…
“यादाश्त’ भी अच्छी-खासी तेज हो जाती है इससे...'पेपरों' में अच्छे नम्बर आते है”...
“बंदा बिमार नहीं पड़ता”…
और भी न जाने क्या-क्या दावे किए जा रहे थे इसके कमाल के बारे में..
सौ बातों की एक बात कि चीज़ एक लेकिन फ़ायदे अनेक…ना पहले कभी सुना...ना पहले कभी जाना…अब ये तो पता नहीं कि क्या सच है और क्या झुठ?…
“भय्यी!…मुझे तो अभी भी विश्वास नहीं हो रहा”इतनी बातें सुनाने के बावजूद भी मैं मानने को तैयार नहीं था …
"अब आप भले ही मानो या ना मानो लेकिन इससे सच थोड़े ही बदल जाएगा?…बाकि सब बावले थोड़े ही है जो आँखे मुंदे कर विश्वास करते चले गये…कुछ थोड़ा-बहुत...कम या ज़्यादा सच तो जरूर ही होगा इसमें"मेरी बात से असहमति जताता हुआ एक बोल पड़ा
"अरे!..कुछ क्या?...सोलह आने सही बात है…खुद की आजमाई हुई है"एक नई आवाज सुनाई दी
सबकी मुंडी उधर ही घूम गई…देखा..तो गले में झोला लटकाए कोट-पैंट पहने एक सज्जन बड़े ही मजे से सीना ताने खड़े थे…
"हाथ कंगन को आरसी क्या? और पढ़े लिखे को फ़ारसी क्या?….साबित कर सकता हूँ"वो झोले की तरफ इशारा करते हुए बोले
सब कौतूहल भरी निगाहों से उसी की तरफ ताकने लगे…
"हाँ!...अभी तो मौजुद नहीं है मेरे पास लेकिन उसका खाली 'रैपर' ज़रूर है मेरे पास"उन्होंने झोले में हाथ घुमाते हुए कहा
"अगर उसी भर से दिवाने ना हो गये तो मेरा नाम 'जर्मनी’ वाला राज भाटिया नहीं" …
बस!…उसका झोले से 'रैपर' निकालना था और सबका उतावलेपन में उस पर झपटना था…छीना-छपटी में किसी के हाथ कुछ नही लगा…चिथड़े-चिथड़े हो चुके थे उस 'रैपर' के…उस दिन ऊपरवाले की दया से मेरी किस्मत कुछ बुलन्द थी जो सबसे बड़ा टुकड़ा मेरे ही हाथ लगा…देखते ही दंग रह गया…सचमुच…में 'काबिले तारीफ…जिसे मिल जाये उसकी तो सारी तकलीफें…सारे दुःख-दर्द...सब मिनट भर में गायब..
स्वाद ऐसा कि कुछ याद ना रहे...चारों तरफ़ खुशियाँ ही खुशियाँ..
"वाह!…क्या 'चाकलेट' थी?…वाह...वाह”…
खाली रैपर से भी खूशबू के झोंके हवा को खुशनुमा किये जा रहे थे…
“क्या सोचने लगे मित्र?….जब इतने गुण मैं गा रहा हूँ इस चाकलेट के..तो कोई ना कोई बात तो ज़रूर ही होगी इसमें”…
“क्यों?…है कि नहीं?”..
“तो फिर सोचते क्या हो?…मैं तो दर्शन कर ही रहा हूँ इस चाकलेट के…आप भी जल्दी से कर लें…
"दर्शन कर लो जी...कर लो...किसने रोका है?"…
"ऊप्स!...सारी...'चाकलेट 'नहीं तो उसका 'रैपर' ही सही...बोतल नहीं तो अद्धा ही सही…माल जो खत्म हो गया है...समझा करो...
"क्या मालूम?...'रैपर' भी...कल हो ना हो"
***राजीव तनेजा***
http://hansteraho.blogspot.com
+919810821361
+919213766753
+919136159706
21 comments:
@“इससे 'मर्दानगी' बढ़ती है…सबकुछ नया-नया सा लगने लगता है”
ओए होए! हकीम लुकमान का नुख्शा हाथ लग गया क्या?
क्या धांसू चाकलेट है।
मुन्नी बदनाम हूई लौंडे तेरे लिए--हा हा हा
हा हा हा आज पता लगा कि राजीव तनेजा भी भी लघु कथा लिखते हैं:)
आपको और संजु भाभी को दीवाली की ढेर सारी बधाई
।
बच्चों को शुभाशीष।
हिन्दु, मुस्लिम, सिख, ईसाई
जब सब हैं हम भाई-भाई
तो फिर काहे करते हैं लड़ाई
दीवाली है सबके लिए खुशिया लाई
आओ सब मिलकर खाए मिठाई
और भेद-भाव की मिटाए खाई
बहुत अच्छा पोस्ट , आपको दीपावली की शुभकामनाये....
sparkindians.blogspot.com
दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई
दिल्ली हो बनारस हो, हर कहीं एक जैसा दृश्य है. आपकी रचनाएँ देख कर खुशी होती है, की देश को एक अच्छा व्यंग्यकार मिल रहा है.
दीप पर्व की हार्दिक शुभकामनायें।
अरे अरे आप ने तो मुंह का स्वाद ही खराब कर दिया...
दिपावली की शुभकामनाये
पहले तो कथा को लघु रखने के लिए बधाई ।
अब दीवाली की हार्दिक शुभकामनायें तनेजा जी ।
वैसे आजकल मिठाइयों में चौकलेट ही रह गई है खाने लायक ।
दीप पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं
"चाकलेट" पुराण मे इस करारे "व्यंग्य" का जवाब नही। पहले दिन नही, दूसरे दिन नही, तीसरे दिन नही……अभी तो मेहमान के स्वागत मे उपयोग मे लाई गई होगी। मेहमान के चले जाने के बाद प्रसाद स्वरूप अपने देशवासियों को मिल जायेगी जरूर ये कम्बखत चाकलेट। उम्दा प्रस्तुति। दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें। घर मे हर दिन मने दिवाली। लक्ष्मी का भण्डार कभी न हो खाली। दीपावली की बहुत बहुत शुभकामनायें।
शुभकामनाएं
_____________________________________
“बराक़ साहब का स्वागत
_____________________________________
रैपर कब हटवा रहे हैं .. इंतजार है
्राज भाटिया जी से कहें वो जर्मनी से ले कर आयेंगे यही चाकलेट। लघु कथा मे भी व्यंग/ वाह।
जिस तरह डार्क चोकलेट होता है वैसे ही डार्क सेटैयर भी होता है.. यह व्यंग्य उसी श्रेणी का है... आदमी के भीतर के खोखलेपन पर को उजागर करती रचना.. हंसी नहीं आयी.. दुःख हुआ.. अपने भीतर के खोखलेपन को देख कर !
गज़ब की चाकलेट है गुरु
ब्लाग4वार्ता :83 लिंक्स
मिसफ़िट पर बेडरूमम
आज़ तक ऐसी चाकलेट न मिली पता नही किसे मिलेगी
यह लघु कथा है ?
आज तो दर्शन ने भी दर्शन कर लिए जी ..क्या बात हैं इस हॉट -चाकलेट की ..हैप्पी चाकलेट डे ....
राजीव बाबू की अन्य कथाओं के सामने तो यह लघु से भी माईक्रो कथा है...:)
Post a Comment