पिछले कुछ दिनों में घटनाक्रम जिस तेज़ी से उठापटक भरा गुज़रा..उसे देख कर एवं महसूस कर सदमें में हूँ| शायद!…हमेशा-हमेशा के लिए ब्लोगिंग छोड़ दूँ…या फिर लिखना भी :-(
30 अप्रैल,2011 की रात को दिल्ली के हिन्दी भवन में हुए भव्य कार्यक्रम के दौरान और उसके बाद के अगले कुछ दिनों में घटनाक्रम ने जिस तेज़ी से अपना रंग गिरगिट की तरह रातोरात बदला..उसे देख कर मन निराश….आशंकित एवं व्यथित है…धर्मसंकट में फँस फैसला नहीं कर पा रहा हूँ कि किस ओर जाऊँ और किस ओर नहीं…दोनों तरफ ही तो अपने हैं..दोस्तों का चेहरा देख आपसी सम्बन्धों का ख्याल करते हुए अपनी बात कहूँ या फिर सच्चाई का साथ दूँ?
इस सारी बात की शुरुआत तब हुई जब पहलेपहल पता चला कि परिकल्पना ब्लॉग पर कुछ उत्सव जैसा चल रहा है तो ये देखकर अच्छा लगा कि रवीन्द्र प्रभात नाम का कोई अनजाना शख्स सभी ब्लोगों को इतनी शिद्दत एवं मेहनत के साथ लगनपूर्वक पढ़ रहा है|हैरानी हुई उनके इस जज्बे को देखकर…उससे भी ज्यादा हैरानी हुई कि मेरे ब्लॉग ‘हँसते रहो" का भी एक-आध जगह जिक्र किया गया उनके द्वारा| हैरानी इसलिए नहीं कि मैं इस लायक ही नहीं कि मेरा कहीं जिक्र भी किया जा सके बल्कि हैरानी इसलिए कि इस कलयुग में ऐसा कौन सा कल्कि अवतार पैदा हो गया जो निष्पक्ष रूप से(वैसे…गलती से या फिर जानबूझ कर एक-आध जगह अपवाद स्वरूप ठीक इसके उलट भी होता दिखा) सभी ब्लोगों को एक ही फीते से उनकी योग्यता एवं पात्रता के अनुसार नाप रहा है वर्ना यहाँ तो हमें हमेशा भाई और उसके भतीजे का आपस में विवाद ही देखने को मिलता है(सभी ब्लोगर भाई-भाई जो हैं :-)) भाईचारा नाम का ये अनूठा कीड़ा तो उन्हीं के दिमाग में पहली बार कुलबुलाता हुआ दिखा|
खैर!…जो कुछ हो रहा है…अच्छे के लिए हो रहा है…बढ़िया हो रहा है…ये सोच के अपुन ने चुप्पी साध ली लेकिन ये चुप्पी बहुत ज्यादा दिनों तक चुप्पी लगा के बैठी ना रह सकी जब पता चला कि उनके द्वारा हम सभी ब्लोगर साथियों से एक-एक मौलिक रचना माँगी गई आकलन के लिए|अब जब खुद्हे माँगी गई तो अपुन भी क्या करते?..झाड-पोंछ के अपनी एक रचना “व्यथा झोलाछाप डाक्टर की" उन्हें ईमेल के जरिये इस आशा के साथ भेज दी कि जैसे बाकी सभी अपन की योग्यता को नहीं समझ पाए….ये भी नहीं समझ पाएंगे :-( और मेरी रचना खेद सहित…खुद बा खुद आभासी तौर पर मुझे लौटा दी जाएगी…आभासी तौर पर इसलिए कि स्थानीय बाज़ार में छाई घोर मंदी के चलते बचत करने के नापाक इरादे से अपुन ने अपने स्थायी पते के साथ डाक टिकट लगा लिफाफा जो नत्थी कर के नहीं भेजा था उन्हें :-) लेकिन घोर आश्चर्य कि उन्होंने मेरी रचना को उस सम्मान के लायक समझा जिसकी वो असलियत में हकदार थी :-) … (अपने मुँह मियाँ मिट्ठू बनने में क्या हर्ज है?)
खैर!…सब में से छाँट-छूंट के मुझे और मेरे अलावा पचास अन्य साथियों को इनाम का हकदार इसलिए माना गया क्योंकि हमने श्रमपूर्वक अपने लेख उन्हें भेजे और ऊपरवाले का करिश्मा देखिये…वो सर्वोत्तम निकले लेकिन…लेकिन…लेकिन उन लोगों के बारे में का कहें? जो ये चाहते हैं कि वो खुद तो तमाम जिंदगी पने घर में आराम से पलाथी मार के हाथ पर हाथ धरे बैठे रहे और कोई दूसरा(यकीनन …बाहर वाला) …आ कर चुपचाप उनके मुँह में रसगुल्ला…इमरती या फिर जलेबी ठूंस जाए|
ये नहीं है कि बाकी के बचे साथी इनाम के हकदार नहीं थे…बिलकुल थे बल्कि मैं तो कहता हूँ कि हम सभी साहित्य के बाग के ऐसे ताज़ा फलों के समान हैं जो हिन्दी के उत्थान की रेहड़ी पर अपने-अपने ब्लॉग के रूप में लदे खड़े हैं…कोई भी किसी से कम नहीं है| सभी में अलग-अलग गुण तथा अवगुण मौजूद हैं…
- कोई अपनी बातों की भीनी-भीनी सुगंध के लिए चारों दिशाओं में मशहूर है तो कोई अपनी अलग सी दुर्गन्ध के लिए शिद्दत से चहुँ ओर जाना तथा पहचाना जाता है…
- कोई अपनी मिठास भरी निर्मल वाणी से सबको सराबोर करने का सामर्थ्य रखता है तो कोई अपनी उबाऊ बातों से पल भर में सबको बोर करने की कुव्वत रखता है…
- कोई हास-परिहास के तीखे एवं सटीक तीरों से लैस है तो कोई अपने बेतुके व्यंग्य बाणों के लिए जग-जहान में प्रसिद्द है…
- कोई गज़ल गायकी में प्रवीण है तो कोई खाना-खजाना में निपुण है…
- कोई अपने तर्कों के धोबी पछाड़ से विरोधियों को धराशाई करने की हिम्मत रखता है तो कोई अपने कुतर्कों के जरिये मंगल को धरती पर लाने का असफल प्रयास करता है …
- सभी ब्लोगरों के स्थायी पते पर तुलसी की चंद ताज़ा तोडी गई कोमल कोपलों के साथ मिश्री की एक-एक डली और दो-दो बताशे कोरियर द्वारा सम्मान सहित भिजवा दिए जाते
पहली बात तो ये कि अगर पैसे दे के किताब छप सकती है तो भईय्या मेरी भी हज़ार-दो हज़ार कॉपी छपवा दो…ससुरी व्रत-त्यौहार के दिन यार-दोस्तों को मुफ्त में बांटने के काम आ जाएंगी| वो ससुरा युग्म वाला तो पईस्सन के बजाय पूरे पैंतीस हज़ार रुपिय्या नकद गिन के माँग रहा था पाँच सौ कॉपी के..बहुत बेइन्साफी है ये तो…इसकी सजा मिलेगी…बरोबर मिलेगी…
पहिले पहल तो हम सोचे थे कि पईस्सा नहीं देना पड़ेगा…जिसको गरज होगी..वो खुद्हे आ के हमरी रचनाएँ मांगेगा छापने के वास्ते लेकिन बाद में पता चला कि इहाँ तो एक ठौ पब्लिशर टाईप अनार है और ऊ को खाने के लिए सौ ठौ ब्लोगर बीमार होने की तबियत से तैयारी कर रहे हैं| असल बात तो ई है भईय्या कि ई पब्लिशर लोग भी उसी को छापते हैं जिसका नाम होता है…और जिसका नाम नहीं उसको दाम नहीं..
अब आप में से चन्द दिमाग से धन्ना सेठ टाईप लोग ये कहेंगे कि किताब छपवाने की ज़रूरत ही क्या है?…
“ज़रूरत तो भईय्या हर छोटे-बड़े लेखक को है भले ही वो मुँह से कहे या ना कहे क्योंकि जो मज़ा छपास में है वो आभास में तो कतई नहीं”
अभी इस बारे में सोच ही रहे थे कि फिर दूजे के फटे में टांग अडाते हुए एक स्वयंभू टाईप के बड़के ब्लोगर ने गाहे-बगाहे ये मुद्दा उठा दिया कि… पैसे दे के किताब में अपना नाम काहे को छपवाएँ?…
“अरे!…नहीं छपवाना है तो मत छपवाओ यार..कोई डाक्टर थोड़े ही कहता है कि पिछवाड़े में अपने इंजेक्शन ठुकवा के तुरन्त ही दुरस्त कर लो अपने ब्लॉग की दिन पर दिन गिरती हुई सेहत को?…
एक बात बताओ कि ये यैलो पेज वाली डायरेक्टरी में अपने कारोबार को बढ़ावा देने के लिए सब लोग पईस्सा दे के अपना तथा अपनी फर्म का नाम,पता और फोन नम्बर छपवाते हैं कि नहीं?…
छपवाते हैं ना?….तो ऐसे में अगर ब्लोगर लोग पईस्सा दे के अगर नाम छपवा रहे हैं तो इसमें आपको क्या दिक्कत है?…आपका खीस्सा जोर मार रहा है तो कर लो खर्चा नहीं तो जय राम जी की करते हुए फटाक से कलटी मार अपना रस्ता बदल लो…कौन रोकता है?…
खैर!…हम बात कर रहे थे नाक-भोंह सिकोड़ने वालों की तो संतुष्ट तो मेरे ख्याल से राम राज्य में भी सभी नहीं थे तो फिर यहाँ दिल्ली के इस हिन्दी भवन में कैसे और क्योंकर हो जाते?…कहने वाले तो ये कह कर भी ऊँगलियाँ उठा रहे हैं कि… “बिजनौर जैसे छोटे इलाके वालों को दिल्ली जैसे महानगर में आ के हिन्दी के ब्लोगरों को सम्मानित करने की क्या सूझी?”…
“अरे!…आत्मसंतुष्टि के विषैले कीड़े ने कस के…डंक मार…काट जो खाया था उन्हें कि उन्होंने अपना घर फूँक….हम हिन्दी ब्लोगरों को तमाशा दिखाने की सोची”…
“लेकिन दिल्ली में ही क्यों?”…
“अरे भय्यी…आप लोग शादी-ब्याह वगैरा करने के बाद हनीमून मनाने अपना गाँव-चौबारा छोड़ शिमला…मनाली या फिर कश्मीर जाते हैं कि नहीं?….वो भी दिल्ली चले आए तो कौन सी आफत आन पड़ी?….
“शादी के पचास साल बाद हनीमून मनाना कहाँ की समझदारी है?” यही सोच रहे हैं ना आप?…
“अरे!…यार पुरानी कहावत है कि मर्द और घोड़ा कभी बूढा नहीं होता…फिर ये तो एक प्रकाशन संस्थान है जिसने तो अभी ऐसी कई स्वर्ण जयंतियां मनानी हैं..
“सीधी सी बात है भय्यी कि पचास वर्ष पूरे हुए थे उनके संस्थान की स्थापना को…हैप्पी वाला बर्थ का डे था उसका….उसी को सैलीब्रेट करने की सोची उन्होंने बस…और क्या?”…
“लेकिन दिल्ली को ही टारगेट कर निशाना क्यों बनाया गया?…झुमरी तलैया या फिर चिंचपोकली जा कर भी तो….अपना बड़ागर्क करवाया जा सकता था"…
“हाँ!…करवाया जा सकता था लेकिन किस्मत ही खराब हो अगर दिल्ली वासियों की तो कोई कर भी क्या सकता है?…जिसे देखो…वही दिल्ली…वही दिल्ली…मैं पूछता हूँ कि देश की राजधानी होने से क्या उसमें सुरखाब के पर लग गए जो यहाँ अपनी ऐसी-तैसी करवाने चले आते हो?”…
“चलो!…मानी आपकी बात कि यहीं…दिल्ली में ही अपनी ऐसी-तैसी करवानी थी उन्होंने लेकिन हम ब्लोगरों के समक्ष ही क्यों?”…
“तो क्या अपने कार्यक्रम में वो मुम्बई के बेदम पानी-पूरी वालों को या फिर कोलकाता के झाड कर फूँक मारने वाले ओझाओं को हा हू …हू…हा करने के लिए आमंत्रित करते?”..
“ठीक है!…मानी आपकी बात कि प्रकाशन संस्थान होने के नाते हम लेखकों से बढ़िया कोई और बकरा नहीं मिलता उन्हें हलाल करने के लिए"…
“लेकिन हलाल हम कहाँ हुए?…हलाल तो वो बेचारे बिजनौर वाले हुए जिनका लाखों रूपया महज़ इसलिए खर्च हो गया कि हम हिन्दी के ब्लोगरों को सम्मानजनक ढंग से सम्मानित किया जा सके"….
“आपकी सारी बातें सही हैं लेकिन टाईम मैनेजमेंट भी तो कोई चीज़ होती है कि नहीं?…जब एक बार तय कर लिया कि फलाने-फलाने बंदे से इतने बजे तक स्थापना दिवस मनाने के बाद ब्लोगरों को तिया-पांचा कर निबटाना है तो इस नेक काम को इतनी ज्यादा देर तक लटकाया क्यों गया?”….
“क्या आप कभी किसी कार्यक्रम जैसे शादी-ब्याह या पार्टी के मौके पर लेट हुए हैं कभी?”…
“लेकिन इस मुद्दे का इस सब का क्या कनेक्शन?”..
“पहले आप बताइये तो सही"…
“बिलकुल हुए हैं…क्यों नहीं हुए हैं? लेकिन….
“क्या देरी से पहुँचने के कारण कभी ऐसा हुआ है कि मेज़बान द्वारा आपको अन्दर ना घुसने दिया गया हो?”…
“उसकी इतनी मजाल कहाँ?”…
“ओ.के…क्या आप किसी ऐसे कार्यक्रम में गए हैं जो आपके पहुँच जाने के बाद भी घंटो तक शुरू ना हुआ?”…
“हाँ!…कई बार ऐसा हो जाता है लेकिन उसकी वजह……
“वजह कोई भी रही हो बेशक लेकिन आप बताइये कि कभी ऐसा हुआ है या नहीं?”…
“हाँ!…हुआ तो है लेकिन……
“क्या आपने ऐसे किसी कार्यक्रम का बहिष्कार किया या करने की सोची?"…
“काहे को?”…
“वो देरी से जो शुरू हुआ…इसलिए"…
“तो?…उससे क्या होता है?..हम भी तो कई बार…
“एग्जैकटली…मैं भी तो यही कहना चाहता हूँ कि अगर किसी भी वजह से कार्यक्रम लेट हुआ या हो रहा था तो ऐसा तो कई बार हो जाता है लेकिन इसके लिए इतनी हाय-तौबा मचाने की क्या ज़रूरत थी?”…
“आपको पता है कि कितनी बड़ी तोप को बुलाया गया था कार्यक्रम की अध्यक्षता करने के लिए?…उसको प्रसन्न कर लेते तो पुण्य मिलता पुण्य ”…
“बिलकुल मिलता…और लेने से किसी को…किसी किस्म का इनकार भी नहीं था लेकिन आपके इन पुण्य कर प्रसन्न हो जाने वाले सज्जन जी को भी तो अन्दर जा के देखना चाहिए था कि उनसे भी बड़े कई टैंक कैसे बिना किसी नानुकुर के अन्दर बैठे चुपचाप कार्यक्रम का आनन्द ले रहे थे"…
“उन्होंने तो लेना ही था…सगे रिश्तेदार जो ठहरे"..
“तो?…उससे क्या होता है?”…
“सब देखा है हमने…सब देखा है…वो सगे रिश्तेदार थे इसलिए खूब आवभगत हो रही थी उनकी और ये हमारे पुण्य करने से प्रसन्न हो जाने वाले सज्जन उनके रिश्तेदार नहीं थे इसलिए उनका स्वागत करने के लिए कोई गेट पर आया ही नहीं…वाह…बहुत बढिया"…
“जी!…नहीं…ऐसी बात नहीं है…दरअसल…उस समय माननीय मुख्यमंत्री जी का भाषण चल रहा था…इसलिए सारे जिम्मेदार व्यक्ति वहीँ…मंच पर ही रुक कर व्यवस्था संभाल रहे थे"…
“वही तो हम भी कह रहे हैं कि निपट साहित्यकारों के निजी कार्यक्रम में किसी राजनीतिज्ञ…ऊपर से वो भी भ्रष्ट..…को बुलाने की आवश्यकता ही क्या थी?…क्या ज़रूरत पड़ गई थी किसी ऐसे व्यक्ति से ब्लोगरों का सम्मान कराने की जो खुद ही भ्रष्टाचारों के आरोपों से घिरा हुआ है?”…
“पहली बात तो ये कि माननीय मुख्यमंत्री जी राजनीतिज्ञ बाद में हैं और साहित्यकार पहले…कई किताबें छप चुकी हैं उनकी"…
“इसी प्रकाशन से?”..
“हाँ!…इसी प्रकाशन से और इसके अलावा और भी कई जाने-माने तथा अनजाने प्रकाशन संस्थानों से…उन्हें भला पब्लिशरों की क्या कमी?…वो तो हम जैसे आम लेखकों को होती है..जिनकी रचनाएँ हमेशा खेद सहित कह आदरपूर्वक लौटा दी जाती हैं बशर्ते उनके साथ नाम-पता लिखा डाक-टिकट सहित लिफाफा सलंग्न हो”…
“हम्म!…
“और फिर आज के ज़माने में भ्रष्टाचारी कौन नहीं है?…जिसे मौका लगता है..वही दूसरे की जेब ढीली करने से नहीं चूकता है"…
“लेकिन…
“क्या आपने कभी रिश्वन नहीं ली है?”…
“क्क..क्या बकवास कर रहे हैं आप?…खुदा गवाह है कि मैंने अपनी पूरी जिंदगी में कभी रिश्वत नहीं ली है…हाँ!…उलटा दी कई बार है"…
“तो भी तो आपने भ्रष्टाचार को बढ़ावा दिया"…
“लेकिन…
“भाई मेरे …इस देश में हर सौ में से नब्बे आदमी भ्रष्ट हैं…भले ही वो सीधे तौर पर रिश्वत ले के भ्रष्ट बने हों…या फिर छद्म तरीके से किसी भी तरह का टैक्स बचा कर"…
“हम्म!…
“यहाँ तक कि मूंफलली…तेल…जूते…कपडे तक जैसे खरीदे गए छोटे-छोटे सामान का बिल ना लेकर भी हम अप्रत्यक्ष रूप से भ्रष्टाचार को ही बढ़ावा दे रहे हैं"…
“ऐसे देखें तो हमारे पूरे देश में कोई भी एकदम से पाक-साफ़ नहीं निकलेगा"…
“वही तो मैं भी कह रहा हूँ कि अगर एक राजनीतिज्ञ से और वो भी मुख्यमंत्री तक जैसे हाई लेवल के से हम ब्लोगर सम्मानित हुए हैं तो इसे हमारे लिए गर्व की बात होनी चाहिए ना कि शर्म की"…
“लेकिन वो मीडिया वाले तो…
“वो तो बकते ही रहते हैं…उनका क्या है?….उन्हें बकने दो…देखा नहीं था खुद ही कि एक तरफ मुख्यमंत्री जी की फोटो और इंटरव्यू के लिए धक्कामुक्की और मारा मारी हो रही थी और वहीँ दूसरी तरफ कुछ गुट उनका बहिष्कार कर अपने आकाओं को खुश करने की जुगत भिडा रहे थे"…
“जी!…ये बात तो है…कुछ को तो मैंने वहाँ पर खुद ही देखा था कि वो किसी को ‘जैदी’ या फिर ‘जरनैल सिंह’ बनने के लिए प्रेरित कर रहे थे कि….’देख क्या रहे हो…सुर्ख़ियों में छाना है तो उठाओ जूता …लगाओ निशाना और खींच के दे मारो’”…
“वोही तो”…
“उन्हें ऐसा कहते देख मैंने मन ही मन सोचा कि…तुम लोग दूसरे को भड़का रहे हो…ये काम खुद ही क्यों नहीं कर लेते?…नाम भी हो जाएगा और पुलिस वाले मार-मार के लाल सुर्ख भी कर देंगे"…
“अरे!…सुर्ख तो उनमें से एक की एक बार पहले भी हो चुकी है सन 2008 में जब उस पर…उसके ही घर में…उसके ही ऊपर एक भद्र महिला ने बलात्कार का आरोप लगाया था"…
“ऐसे लोग बताओ नमक-मिर्च लगा के भडकाऊ रिपोर्टें लिखते हैं…गुस्सा तो इतना आता है मुझे इन जैसे नामुराद छोकरों पर कि इसी नमक-मिर्च का घोल बना कर कुप्पी के जरिये एंटर करवा दूँ इनके दिन पर दिन ढीले होते पिछवाड़े में"..
मुआफ कीजिये कुछ ज्यादा ही कड़वा लिख गया मैं…क्या करूँ?…गलत होता देख सुन के ही गुस्सा आ जाता है ऐसे नामुरादों पर जिनकी सोच ही ये है कि…
“खा तो लिया ही है…आओ अब थाली में छेद भी करते चलें"…
बताओ…कहते हैं कि इस बार मुख्यमंत्री से सम्मानित करवा लिया है…अगली बार राखी सावंत से करवाएंगे"…
“ये सज्जन बताएंगे कि इन्हें अचानक राखी सावंत कैसे याद आ गई?…या फिर दिन-रात उसी के सपने आया करते हैं इन्हें?”…
“क्या हुआ?…सांप क्यों सूंघ गया मेरी बात सुन कर?..या फिर जवाब देने की स्तिथि में ही नहीं हो?…जुबान तालू से जो चिपक गई है”…
“बताओ!…क्या कमी है उस बेचारी में?…अच्छी-खासी सेलिब्रिटी है…अपना नाच -गा के खा कमा रही है…कमाने दो…तुम्हारे फूफ्फा का क्या जाता है इसमें?…
“लो!….बताओ….ये मैं किस गधे से खामख्वाह बात करने लगा?…वो तो फिर भी अपना तन-बदन दिखा के खा-कमा रही है…इन सज्जन का पता नहीं कि अपना ज़मीर बेचने के बाद भी ये कुछ खा-कमा रहे हैं या नहीं"…
“जय हिंद"..
नोट: दोस्तो!…इस सारे घटनाक्रम को लेकर दिल में अनायास ही बहुत गुस्सा और तनाव इत्यादि पैदा हो गया था…दिल बैठने सा लगा था…इस पोस्ट के जरिये अपनी भड़ास को बाहर निकालने का प्रयास किया है….अब मन कुछ हलका और शांत लग रहा है…मुझे झेलने के लिए शुक्रिया… |
वैसे!…आपको क्या लगता है कि मैं ब्लोगिंग छोडूंगा या नहीं? :-)
***राजीव तनेजा***
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59 comments:
वैसे इसे भड़ास पे भी पोस्ट कर देते
पर अब जानिये सब कुछ ठीक ठाक है दादा
भैया राखी सावन्त मुझे पहली बहुत अच्छी लगीं ये फ़ोटो कहां से हैंची या कि बनाई है आपने
राखी जी की सौम्य तस्वीर के लिये आभारी हूं
अच्छा ये तो बताइये
घर में मालूम है न कि आप राखी सावंत पर रिसर्च भी कर रहे हैं जैसा आपने बताया था
राजीव भैया,
हम ने भी एक बार एक पुरुस्कार जीता था जिसकी ट्राफ़ी की आज तक प्रतीक्षा कर रहे हैं...२००७ से...फ़िर उसके बाद कभी किसी पुरुस्कार के लिये अपना नाम दर्ज नहीं करवाया.
बस ब्लोगर भाईयों से मिलने मिलाने के लिये जरूर कार्यकर्मों में चले जाते हैं... पर वहां भी ज्यादातर गुट बाजी ही चलती है... देखते हैं कब तक खुद को समझा कर ब्लोगरी चलती है हमसे... कभी दिल उखड गया तो हम भी राम राम कह कर दूसरी राह पकड लेंगे...
आप दिल और गुर्दे भारी न करें... पुरुस्कार मिल गया है... ठंड रखें ठंड और अगले पुरुस्कार की तैयारी करें.
Rajiv ji, aapki prashn-kundli kah rahi hai ki aap blogging nahi chhod sakte....
Bhadaas nikal hi gai hai.....
Sadhuwaad
aapke man ki baat mere man ki baat bhi hai. ravindra prabhaat aur any logon ki mehanat k karan ek badaa aayojan ho gayaa. kuchh logon ko ''mirchi'' lag sakati hai. koi n koi bahana nikal hi jaayergaalekin asali baat yah hai ki pahali baar ek badaa karykram huaa. dil se shubhkamna deta hoo ravindra bhai, avinash bhai aur girirajsharan ji ko. haan, jo kami rah gai hai, usde bhavishya men door karrane ki koshish kare.
क्या खूब लिखा है .. बहुत बढिया !!
हद कर दी पैसे दे कर नही तो क्या मुफ्त मे छापेंगे नाम? क्या राखी ने भी खरीदी वो किताब? राखी सामने हो तो आप ब्लागिन्ग नही छोड सकते--- इसी बहाने उसे दिन भर देख तो लेते हैं। बहुत बडःइया व्यंग। शुभकामनायें।
यार हिम्मत है तो ब्लोगिंग छोड़ कर दिखाओ!!!!!!!
:-) #-) %-) @-) ;-) &-) $-)
साला इत्ते सारे कोड लगाए.... एक भी स्माइली नहीं बना... :-(
राजीव भाई अपुन को तो पुरस्कार मिल गया है... हमने अपने घर में सजा भी दिया है... ऑफिस में वाह-वाही भी लूट ली है...
अब अपन खूब चिल्ल-पौं कर सकते हैं... कि पुरस्कार राजनेता से क्यों दिलवाया गया... किसी मशहूर ब्लोगर से दिलवा देते... (वैसे राजनेता को ही ब्लोगर क्यों न बनवा दिया जाए? :-), यहाँ वैसे भी लोग राजनेताओं से कौन से कम हैं? हे हे हे) , अपन यह भी कहेंगे कि डिनर का टाइम बहुत देर बाद रखा.. अब हम दिल्ली में रहते हैं, दूर जाना था इसलिए देर तक कैसे रुक सकते थे? फिर रात को एक पोस्ट भी तो ठेलनी थी??? थी कि नहीं??? ठेलते नहीं तो ब्लोगर धर्म कैसे निभता भला....
एक प्रोबिलम यह भी थी कि वहां ए.सी चल रहा था... ससुर इतनी ठंडी थी कि अपुन की घिग्गी निकल गयी... और ऊपर से पुरस्कार के साथ-साथ इतनी सारी किताबें थमा दी कि उन्हें घर लेजाते-लेजाते हमारा दम ही निकल गया... वैसे भी अपुन तो ब्लोगर है... किताबें ही पढनी-लिखनी होती तो साहित्यकार ना बनते.... ब्लोगर काहें बनते भय्या?? प्रोबिलम तो और भी बहुत हुई हमको.. पर क्या-क्या लिखें???? हुंह???
राजीव जी मै तो चार महिने पुराना ब्लागर हूं । लेकिन पुरूस्कार न मिलने का गम मुझे भी सताने लगा है भले ही मुझे कोई जानता नही पर पुरूस्कार दे रहे थे तो सप्लीमेंत्री टाइप एंट्री भी रखी जा सकती थी खैर ललित शर्मा जी रायपुर उतरेंगे तो उनके पुरूस्कार के साथ फ़ोटो खिचवा के काम चला लूंगा । पुरूस्कार पाने के लिये आपको बहुत सी बधाईयां
बेहद उम्दा पोस्ट ... आपने आइना सा दिखा दिया ... बहुत बहुत बधाइयाँ और शुभकामनाएं !
भैये कहा तो तुमने सच ही है ...पर यहाँ कोई माने तो ना ...अगर ये ही बात हम यहाँ कहते तो हमारी तो कोई सुनता भी नहीं ...तुमने तो दिल कि भडास निकाल ली ...जो ना निकाल पाए वो कहाँ जाये ....क्या राजीब भैया के दरबार में हाजरी लगा सकता है कोई ?
पोस्ट पढकर मजा आ गया
दर्पण दिखा दिया आपने
सभी ऊंगलियाँ जो उठी हुई थी, अब शायद जान गई होंगी कि बाकि तीन ऊंगलियाँ पीछे भी मुडी होती हैं।
प्रणाम स्वीकार करें
शुक्र है भडास निकली तो सही मगर उनका क्या जो अब भी अन्दर ही अन्दर उबल रहे हैं……………वैसे ऐसे सदमे मे मत आया कीजिये…………अभी तो इससे भी गंभीर सदमे और होंगे तब क्या होगा? मजबूत कर लीजिये दिल को और ब्लोगिंग दोनो को………हा हा हा।
shandar post
राजीव भाई बहुत सुंदर लिखे हो।
जैसे लोहार ने तलवार बनाई हो, दुधारी
इस ब्लॉग का शीर्षक और कंटेट-सब ऐसा है कि मामला सीरियस हो,तब भी कोई न माने!
आत्महत्या करने वाला किसी से पूछता नहीं है कि मैं करूँ या न करूँ।
आप क्यों पूछ रहे हैं?
हमारे यहाँ कहावत है कि
रांड रंडापा तो काट ले पर रंडुए काटने दें तब न!
आप छोड़ कर तो देखिए ब्लागरी, दूसरे ब्लागर जिन के सिर काट काट कर आपने फोटुओं में चिपकाए हैं आप को छोड़ेंगे तब न!
वैसे!…आपको क्या लगता है कि मैं ब्लोगिंग छोडूंगा या नहीं? :)
-अभी ब्लॉगिंग के इतने बड़े भाग्य भी नहीं जागे हैं कि ऐसी खुशफहमी भी हम पाल सकें...
अजी, ब्लॉगिंग छोड़ेंगे आपके दुश्मन...आपके तीर से घायल हो हो कर...आप तो मीटर में अपनी पोस्ट लिखते चलें. यह गज़ल वाला मीटर नहीं, लम्बाई वाले की बात कर रहा हूँ..हा हा!!!
:) :) ये हर शब्द के बाद सांटा माना जाये.
हा हा हा हा हा अमां राजीव भाई ,
जे बात हमें नहीं पता कि आप ब्लॉगिंग छोडोगे कि नहीं छोडोगे , मगर मियां जो तेवर यूं बने रहे तो एक आध को छुड्वा के ही मानोगे । अमां हम यहां हिंदी के ब्लॉग्स बनवाने की जुगत में रहते हैं आप हो कि दुकानदारी बंद करवाने पर तुले हो । अरे किसके साथ बैठ गए थे जी , जो पोस्ट लिखवाने के लिए एकदम मनमुताबिक प्रश्न पूछा ..हमें तो लगा कि जो अगले दिन भी साथ ही बैठे होते ...तो आपने पता नहीं कैसे बजानी थी ....ढपली ।
और जुलम ये कि फ़िर भी कह रहे हो ..हंसते रहो ...हाय ये तो इंतहा है इंतहा
वाह बहुत बढ़िया!
सब कुछ कह भी दिया और दामन भी बचा लिया!
आज तो दुधारी तलवार बड़ी जोरदार चलाई है जी ! मजा आ गया !
रण रोळ मचा दियो आज तो :)
mazaa aa gaya bhai........
waah waah
bahut khoob likha............
भई ...आपने बहत खूब लिखा है... आप प्लीज़ ब्लॉग्गिंग ना छोड़ें....हमें कौन हंसायेगा फिर... ? हां! बोलिए तो ज़रा.... एक बात तो है.... आप मज़ाक मज़ाक में बहुत गहरी बात छोड़ देते हैं... यही तो स्टाइल है आपका...
निष्पक्ष? कमाल है.
उन सब को सदमा नहीं
, दमा हो जाए, जो आकर वापिस कूद फांद कर रहे हैं , उस पापी की वजह से जिसने पुण्य नाम रखा है, सब हिन्दी ब्लोगिग छोड़कर माहौल खराब कर रहे हैं। और दवा भी नहीं मिले।
राजीव अब तुम कलम छोड़ भी दो तो कलम तुम को छोड़ने वाली नही है
लोग बहुत दीवाने हैं इस की धार के इसे चलाने दो
देखो भई राजीव जी आप ब्लागिंग भले ही छोड़ दो... कोई बात नहीं.
बस अपने ब्लाग पर इसी तरह की पोस्टें लेकिन ज़रूर होस्ट करते रहना...
:)
चलो इसी बहाने कुछ निकला तो...
दुनिया है... होता है... चलता है....
आप ने तो डरा ही दिया, शीर्षक पढ कर लगा कि अब तो टंकी की सफ़ाई बगेरा करवा ही लेनी चाहिये, लेकिन इस राखी का क्या करे? ईनाम मे आप को मिली हे ओर राखी पर आंख GirishMukul जी की भी हे, अब आप तीनो मिल बेठ कर खुद ही फ़ेंसला कर ले, राम राम
ये मन की भड़ास नहीं बल्कि सच्चाई है ... सटीक लेख ...
राजीव भाई!
शीर्षक पढकर तो एक दम चॊक गया.विश्वास ही नहीं हो रहा था-कि राजीव तनेजा,अविनाश वाचस्पति,समीर भाई व कई ऎसे समर्पित ब्लागर साथी हॆं,जिनके बारे में स्वपन में भी नहीं सोचा जा सकता कि वे ब्लागिंग छोड देगें.सच कहूं!यह भी एक नशा हॆ जिसके हम आदि हो चुके हॆं.अब यह बात अलग हॆ कि कोई हर रोज ब्लागिंग की कई कई बोतल गटक जाता हॆ-तब उसे कुछ नशा होता हॆ.कुछ हमारे जॆसे ट्टपूजियें भी हॆं जो,हफ्ते दो हफ्तें में ब्लागिंग का एक ढक्कन ही सूंघ लें-तो महीने तक टुल्ल हुए रहते हॆं.गालिब चचा ने एक शेर पियक्कडों के लिए लिखा था,मुझे लगता हॆ कि हम ब्लागरों पर भी वह फिट बॆठता हॆ.जरा गॊर से सुनिये-
’लाश ही जायेगी एक रोज साखी
हम तो क्या जायेंगें,उठकर तेरे मयखाने से’
बहुते बढ़िया लिखे हैं...।
ब्लॉगिंग कभी अभी तो नहिंये छूटेगी आपसे..
एक स्थापित और सशक्त ब्लॉगर ब्लॉगिंग छोड़ दे ऐसा हो नही सकता है|
बाकी सारी बार सारे प्रायोजन की विधिवत चर्चा कीं वो आपने खूब किया हमें अच्छा लगा..हम उस समय भी उपस्थित रहना चाहते है जब आप राखी सावंत से पुरस्कार ग्रहण करेंगे.
बढ़िया भड़ास रही अब निकल गई ..बस ठीक है...और ब्लॉगिंग छोड़ने की बात मत कीजिएगा....
काहे भईया काहे ब्लागिंग छोड़ियेगा। अरे ई वो कीड़ा है कि जिसको काट खाता है ना वो छोड़ते छोड़ते भी नही छोड़ पाता है।
काहे भईया काहे ब्लागिंग छोड़ियेगा। अरे ई वो कीड़ा है कि जिसको काट खाता है ना वो छोड़ते छोड़ते भी नही छोड़ पाता है।
राजीव भाई,
अब तो एक ही इलाज रह गया है, बांह पर लिखवा लिया जाए...हम ब्लॉगिंगछोड़ हैं...
बेहतरीन लिखा है...
लेकिन एक बात समझ नहीं आई....कार्यक्रम तो तीस अप्रैल को हुआ था, आप को सदमा एक महीना पहले ही कैसे यानि तीस मार्च को ही कैसे लग गया...
जय हिंद...
राजीव भाई, राजी तो कर दिया। अब पुण्यात्माओं को जीने भी तो दो। इतनी पोल खोल दी है कि पता लग रहा है कि सब जगह हवा ही हवा भरी थी। अब कोई नहीं शूंट रहा है। सब संट हुए बैठे हैं, आप संटियां मत मारना, सीटियां मार सकते हो। इस भड़ास में भी आस ही छिपी है।
bahut khoob rajiv ji bahut khoob likhte hain ..kabile tareef...salamat rahe
सर आपको मैंने पहली बार पढ़ा है कुछ महीने पहले ही ब्लोगिंग फिर से शुरू करी थी और इन कुछ महीनो मे जितना आपका नाम सुना था उससे इस शीर्षक को देख कर मै भी चौंक गया था. मै आया तो था ये सोच कर की आप से लडूंगा, कहूँगा ऐसे कैसे छोड़ कर जाने की बात कर रहे हैं आप लेकिन जब यहाँ सभी पुराने ज़माने के ब्लोगर्स को देखा तो मै यही समझा की मै तो जबरन ही सोच रहा था, यहाँ कई ऐसे पहले ही है जो आपको कही जाने ही नहीं देंगे फिर मै क्यों चिंता करूँ :)
आपके लिखे की धार तो उन सबकी गर्दन काट ही चुकी होगी अब तक जो मुगालतो मे जी रहे हैं :)
@अजय भैया आप जैसे लोग हिंदी ब्लोगिंग के साथ है तो फिर ब्लॉग कम कैसे होंगे :)
jo man me ho bilkul bol dena cahiye, gazab k tewar hai, banaye rakhiye, yahi to hai citizen journalism ya blogging........
yaha JOB (just obey your boss) nahi chalta hai....
sach to sach hai......
राजीव जी आयोजन तो होते रहेंगे...आलोचना,प्रत्यालोचना भी होती रहेगी ....लेकिन लोग दिल से शुक्रिया भी आयोजकों को करते रहेंगे....क्योकि आयोजन करना कोई खेल नहीं..ब्लोगिंग पर आयोजन होगा तो आलोचना भी उतना ही बिना सेंसर वाला ब्लोगिंग के तेवर वाला ही होगा ....आयोजकों को इनसबके लिए पहले से तैयार रहना चाहिए....अंत में जय ब्लोगिंग और ब्लोगर..
मस्त लिखा है राजीव भाई, धोबी पछाड़ में ब्लॉगरई को अच्छा कूटा है।
हमेशा-हमेशा के लिए ..... मत जईयो ब्लागरिया छोड़ के गाने वाली कोई रहे तभी ऐसा लिखो राजीव भाई :) :)
ek baar humse bhi yahi galti hui thi,tab humse bhi samose ka hisab-kitab puchh liya gaya tha.hahahahaha ghabrane ka nahi ye sab chalta rahta hai,apne ghar ke manglik karykram me bhi kuchh pake hue aam sarak jate hain to kachhe bhi baura jate hain,bura manane ka nahi,maaf karne ka kyunki we nahi jante ki we kya kar rahe hain.sab karne ka blogging chhodne ka nai,samjhe ki nai?
aapki is bhadaas ne mujhe bhi ek baansuri de di... chain se bajane ke liye - shukriyaa.
आदरणीय राजीव जी
नमस्कार !
बेहतरीन लिखा है...
ब्लॉगिंग छोड़ने की बात मत कीजिएगा....
इतनी "बोल्ड" लेटर्स की बातें किसने, कब और कहाँ कही… एकाध लिंक देते तो ज्ञान-चक्षु खुल जाते… :) :)
हम तो इस कार्यक्रम में शामिल हो नहीं सके। बधाईयाँ अवश्य भेजी हैं होनहारों, लोकप्रियों और दिग्गजों को…
वैसे!…आपको क्या लगता है कि मैं ब्लोगिंग छोडूंगा या नहीं? :-)
ना ना :)प्लीज ना जाना......
तनेजा साब, सबसे पहले नमस्कार. फिर शुक्रिया, मेरे ब्लॉग को फॉलो करने का.
और बधाई.... इतनी शानदार पोस्ट की. इतनी बड़ी पोस्ट देखकर मेरी सांस फूलने लगती है, लेकिन ये पोस्ट तो जैसे मैं एक ही सांस में पढ़ गया.
बहुत सही और सटीक जवाब दिया आपने उन लोगों को, जो गलत करने की सोच रहे थे. जिस किसी को भी परेशानी हो वो आपकी ये पोस्ट पढे.
बिना मतलब का हो हल्ला किया था.
आपके लिखने की शैली बहुत जबर्दस्त है.
सच मानिए, आप आज नहीं तो कल एक बहुत बड़े लेखक होने वाले हैं. और मेरी परख कभी गलत नहीं होती.
नमक मिर्च के घोल वाली लिक्विड थेरेपी से तो अच्छे अच्छे सुधर जाएं :-)
बिटविन द लाइन्स बहुत कुछ कह गए हैं आप
और ऊपर से कह रहे कि हंसते रहो?
ये जुल्म क्यों भई!
हमेशा की तरह तीखे कटाक्ष भरी रचना
यही टेम्पो बनाए रखिये
.अँदाज़े बयाँ मस्त है, बकिया कॅन्ट्रोवर्सी पर कुछ न कहूँगा ।
खसम किया - बुरा किया, करके छोड़ दिया - उससे ज़्यादा बुरा किया, छोड़ कर दुबारा पकड़ लिया - हाय रे तूने ये क्या किया ...... ऎसी नौबत ही क्यों आये, ब्लॉगिंग क्यों छोड़े भला !
राजीव जी ऐसा काम मत करना, ये दुनिया है, हर समय कुछ नया व अजीब होता ही रहता है।
आपने सच्चाई बताई है, नेक काम किया है।
डॉ अमर कुमार से साभार :-)
"अँदाज़े बयाँ मस्त है, बकिया कॅन्ट्रोवर्सी पर कुछ न कहूँगा ।
खसम किया - बुरा किया, करके छोड़ दिया - उससे ज़्यादा बुरा किया, छोड़ कर दुबारा पकड़ लिया - हाय रे तूने ये क्या किया ...... ऎसी नौबत ही क्यों आये, ब्लॉगिंग क्यों छोड़े भला !"
शाहनवाज़ भाई से साभार ...
हिम्मत है तो ब्लोगिंग छोड़ कर दिखाओ ....
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अब मेरी और से ...साभार आपकी और से कह लेता हूँ ....
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आप ब्लॉगिंग छोड़ देना चाहते हैं किन लोगों के लिए ?
राजीव जी,
कोई सबसे छोटे ब्लागर (उम्र में) का पुरूस्कार हो तो बताइएगा
अभी तो मैं 14 का ही हूं
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