प्रिय पुत्र अनामदास,
कैसे हो?…मैं यहाँ अपने घर में…अपने बलबूते पर एकदम से सही-सलामत हूँ और उम्मीद करता हूँ कि तुम भी अपने घर में…अपने ही दम पर सुख एवं शान्ति के साथ जीवन व्यतीत कर रहे होगे….’शान्ति’ कैसी है?….बहुत दिन हो गए उससे मिले हुए…मेरा सलाम कहना उसे|ये सब पढकर तुम सोच रहे होगे कि बुड्ढा सठिया गया है लेकिन सच पूछो तो यार….इस उम्र में भी बड़ी याद आती है उसकी…दिन-रात उसका और तुम्हारा चेहरा ही अक्स बन मेरे दिल औ दिमाग पर छाया रहता है…उससे कहना कि अपने किए पे मैं बहुत शर्मिंदा हूँ…अफ़सोस बस अब इस बात का है कि…मैं अब तक क्यों जिंदा हूँ?…अफसोस इसलिए नहीं कि मैंने कोई गलत काम या गुनाह किया…मेरी नज़रों में लीक से हटकर…ज़माने तथा लोक-लाज की परवाह ना करते हुए तुम्हारी माँ के साथ नैन-मटक्का करते हुए इश्क लड़ाना कोई पाप नहीं था…कोई गुनाह नहीं था… सच पूछो तो ये हँसी-खेल भी नहीं था| एक्चुअली!…वो मुझे पहले दिन से…याने के जबसे मैंने उसे देखा था..मतलब…शुरू से ही पसंद थी| याद है अब भी मुझे उसका वो मधुबाला जैसे शोखी भरे अंदाज़ से हौले से मुस्कुराते हुए माथे पे लटकी बालों की..नागिन जैसी बल खाती लट को एक झटके से फूंक मार परे हटाना…उफ़्फ़!…क्या अदा थी तुम्हारी माँ की?…बस..क़यामत…बस…क़यामत…बस…क़यामत और कुछ नहीं| कसम से!…गुज़रा ज़माना याद आ गया..
खैर!…तुम बताओ…कैसे हो?…अभी अखबारों तथा इलेक्ट्रानिक मीडिया में छाई तहकीकात भरी खबरों के जरिये पता चला कि तुम वो सब करने की सोच रहे हो जैसा करने की कभी किसी ने इस देश में जुर्रत भी नहीं की| मैं मानता हूँ कि तुम गलत नहीं हो…अपनी जगह सही हो लेकिन…लेकिन…लेकिन…सच्छाई तो यही है मेरे बेटे कि…अपने देश में इंसानियत का नहीं बल्कि लट्ठ का राज चलता है…लट्ठ का| नावाकिफ नहीं हूँ मैं तुमसे और तुम्हारी दिन पर दिन नपुंसक होती विचारधारा से…इसीलिए समझा रहा हूँ कि…भलाई इसी में है कि वक्त रहते ही चेत जाओ और बेख्याली में बहकते अपने नादान कदमों को यहीं…इसी जगह…इसी वक्त…इसी क्षण थाम लो…कहीं ऐसा ना हो कि चिड़िया के खेद चुग जाने के बाद तुम्हें व्यर्थ में पछताना पड़े| स्कूल-कालेज से लेकर अब तक…बापू का कई मर्तबा पढ़ा है मैंने…इसीलिए जानता हूँ कि अहिंसा में बड़ा बल है…भक्ति में ही शक्ति है लेकिन इस सब ढाव-ढकोसले की यहाँ…इस ज़माने में दाल नहीं गलने वाली…यकीन मानों…तुम्हारा ये बेवाकूफी भरा फैंसला तुम पर बहुत भारी पड़ने वाला है| आने वाले कल का काला मंज़र अभी से मेरी आँखों में स्पष्ट घूम रहा है इसलिए हे!…पुत्र,बाद में पछताने से पहले…बढ़िया है कि अभी…वक्त रहते ही चेत जाओ…कल किसने देखा है?…पता नहीं ऊँट किस करवट बैठे?…बैठे ना बैठे…
संभल कर रहने में ही समझदारी है…थोड़ा सब्र से काम लो और मेरी बात को मानते हुए इस फितूर को अपने दिल औ दिमाग से तुरंत ही बिना किसी देरी के निकाल दो कि तुम किला फतह कर लोगे….ये इण्डिया है मेरी जान…यहाँ जीत उसी की होती है जिसका पलडा भारी होता है..और ये तुम अच्छी तरह जानते हो कि किसके गुर्दे में कितना दम है? ना!…मैं ये नहीं कहता कि तुम ऊंचे ख़्वाब मत देखो…ज़रूर देखो…लेकिन उतने ही ऊंचे देखो जो प्रयास किए जाने पर पूरे किए जा सकें…याद रखो कि बिल्ली के भाग्य से छींके टूट कर नहीं गिरा करते… और आसमान पे थूकने वाले …आसमान का नहीं बल्कि खुद का ही चौखटा बिगाडा करते हैं…
ये भी तुमने सुन ही रखा होगा मेरे बेटे कि खोखला चना ही हमेशा ज्यादा बजा करता है…इसलिए मानों तो ठीक और ना मानों तो भी ठीक ….मेरी राय तो यही है अपनी पूरी जिंदगी(?)में कुछ भी बन जाओ लेकिन चना?…वो भी अकेला?…कभी मत बनना…हमेशा याद रखना कि .अकेला चना कभी भी अपने बलबूते पर भाड़ को फोड़ तो क्या?…बेंध तक नहीं पाया है…
पहलेपहल जब टी.वी पर तुम्हारा करतब करता रुआंसा चेहरा दिखा तो मुझे ऐसा लगा जैसे तुम अपने बाल हठ के चलते हँसी-ठिठोली के मूड में आ कोई गंभीर मजाक कर रहे हो लेकिन जब क्रोध के अतिरेक से तमतमाए तुम्हारे चेहरे को गौर से देखा तो जाना कि आज तो फर्स्ट अप्रैल नहीं है…और तुम वाकयी में सीरियस हो| ऐसी बाली उम्र में इतना संवेदनशील होना ठीक नहीं मेरे बेटे…सेहत पर बुरा असर पड़ा है इस सब का| अभी तो तुम्हारे खेलने-कूदने और ऐश करने के दिन हैं| अपना आराम से जा के किसी बढ़िया से हालीडे रिसोर्ट में ऐश करो| खर्चे-पानी के लिए रूपए-धेले और पैसे की चिंता बिलकुल भी ना करो..उसके लिए तो मैं हूँ ना?…मेरे होते हुए भी अगर तुम्हें पैसे…ऐश औ आराम के लिए तरसना पड़े तो…थू है मेरे मुँह पर….आक!…थू…
वैसे!…थूक तो तुम चुके ही हो मेरे मुँह पर…
कुछ भी कहो लेकिन एक बात की दाद तो मैं तुम्हें ज़रूर दूंगा बेटे…एक अकेले जवाँ मर्द तुम ही निकले इस पूरे नामर्दों से भरे देश में वर्ना मुझसे कोई ऊची आवाज़ में दो बात भी कर जाए…ऐसी किसी में हिम्मत नहीं| ऊंचा उड़ना या फिर उड़ने की कोशिश करना तो बहुत दूर की बात है बेटे…मेरे राज में तो पालने में ही पर कतरवा दिए जाते हैं अबोध पंछियों के| शुक्र करो कि मैंने तुम्हें बक्श दिया…बक्श दिया…इसीलिए तुम ज़िंदा हो| ये चाँद…ये सूरज देख पा रहे हो ना?…सब मेरी वजह से|हाँ!…मेरा ही अंश…मेरा ही खून हो तुम…मेरे ही पेशाब ने तुम्हें जन्म दिया है| सच कहूँ…तो अब पछतावा हो रहा है मुझे…पछतावा इस बात का नहीं कि मैं भावनाओं के अतिरेक में क्यों बह गया?…बल्कि इसलिए कि जब मुझे अच्छी तरह से अंजाम ए गुलिस्ताँ के बारे में पता था तो फिर मैंने एहतिहात क्यों नहीं बरती?…इसे कहते हैं विनाश काले…विपरीत बुद्धि| जी तो मेरा कर रहा है कि अभी के अभी जूता निकालूँ और मार-मार के खुद अपना ही सर गंजा कर दूँ|
आखिर!…क्या मिल जाएगा तुम्हें मेरा नाम मिल जाने से?…गाड़ी-बंगला?…ढेर सारी दौलत और नौकर-चाकर?…
वो सब तो मैं तुम्हें ऐसे ही…तयशुदा शर्तों के आधार पर देने को तैयार हूँ मेरे बेटे…तुम बस…हाँ तो करो| मैं जानता हूँ कि तुम में अभी बचपना है…अपने दिमाग से नहीं चल रहे हो तुम|मेरे राजनैतिक विरोधियों ने मेरे खिलाफ भडकाया है तुम्हें लेकिन तुममें भी तो अपनी खुद की निजी समझ होनी चाहिए| ये क्या कि जिसने जिस रस्ते लगाया…उसी रस्ते हो लिए? ये तो सोचा होता कम से कम कि जब वो खुद अपने बलबूते पे मेरा कुछ नहीं बिगाड़ पाए तो ये सोचकर तुम्हें आगे कर दिया कि तुम तो मेरे अपने हो| याद रखो कि महाभारत में अर्जुन ने अपनों का ही वध किया था और मैं अर्जुन तो नहीं लेकिन गोपियों के मामले में श्री कृष्ण से कम भी नहीं| आखिर उखाड ही क्या लेंगे वो तुम्हारे भरोसे?..जो असल चीज़ है…जो असल मुद्दा है…उसके तो मैं तुम्हें पास भी नहीं फटकने दूंगा…और कुछ भी कर लेना…कुछ भी कह लेना लेकिन ना तो उसे उखाड़ने की बात करना और ना ही ऐसा कोई घृणित प्रयास करना…तुम्हें मेरी कसम लगेगी… इसी एकमात्र इकलौती चीज़ के दम पर ही तो मैंने बहुतों के दिल पे एकछत्र राज किया है… इसी एकमात्र चीज़ का तो मुझे गर्व है और इसी के दम पे हर दिन मेरे लिए पर्व है|
खुद को मेरा बेटा कह कर या कहलवा कर आखिर क्या पा लोगे तुम?…क्या ज़रूरत पड़ गई थी इस सबका ढिंढोरा पीटने की?…क्या ज़रूरत पड़ गई थी तुम्हें मीडिया में सबके सामने मेरी पगड़ी…ऊप्स!…सॉरी…टोपी उछालने की? … चाँद-तारों को भला कोई पा सका है जो तुम पा लोगे? हर जगह मेरी इतनी भद्द पीटने के बाद अब किस मुँह से चाहते हो कि मैं तुम्हें अपना नाम दूँ?…इसीलिए…अपना नाम दूँ तुम्हें कि तुम जगह-जगह मेरा गोरा मुँह काला करता फिरो?… और चलो…कैसे ना कैसे कर के…किसी ना किसी मजबूरीवश दे भी दूँ तो क्या करोगे उसका?….अचार डालोगे?…रहोगे तो वही पहले जैसे हाड़-माँस के चलते-फिरते(?) इनसान ही ना जिसने एक ना एक दिन मिट जाना है?…सबकी अपनी-अपनी किस्मत है…कोई हँसी-खुशी से खेलते-खिलखिलाते हुए अपनी पूरी उम्र आराम से जी लेता है तो कोई अपनी बदकरनी के चलते…वक्त से पहले ही किसी ट्रक या बस के नीचे आ…बेमौत मारा जाता है|
हैरानी होती है मुझे कभी-कभी तुम्हारी इस दकियानूसी सोच पे कि…ऐसे जोर-ज़बरदस्ती या सीनाजोरी से तुम मुझे अपना बना लोगे| आखिर!…क्या सोच के तुमने अपनी इस बेहूदी सोच को जन्म दिया कि मैं इतनी आसानी से मान जाऊँगा…कुछ ना करूँगा….हाथ पे हाथ धरे बैठा रहूँगा? याद रखो कि अण्डा बेशक जितना बड़ा मर्जी हो जाए..रहता हमेशा मुर्गी के नीचे ही है और मुर्गी…हमेशा मुर्गे के नीचे| आखिर!…तुम होते कौन हो मुझसे….मेरा ब्लड सैम्पल मांगने वाले?…क्यों दूँ मैं तुम्हें या किसी भी ऐरे-गैरे …नत्थू-खैरे को डी.एन.ए टैस्ट की परमिशन?..क्या महज़ इसलिए कि मैंने तुम्हें अपने-खून पसीने से बने पदार्थ से जना है?…
क्यों?…पीला क्यों पड़ गया तुम्हारा चेहरा?…रुआंसे क्यों हो उठे तुम?…
- अच्छा!…जाओ…पहले उस आदमी का ब्लड सैम्पल ले के आओ जिसने पहली बार नाजायज़ औलाद पैदा की…
- जाओ!…पहले उस आदमी का ब्लड सैम्पल ले के आओ जिसने पहली बार एय्याशी की…
- जाओ!…पहले उस आदमी का ब्लड सैम्पल ले के आओ जिसने पहली बार एहतिहात नहीं बरती
उसके बाद मेरे बेटे…ना मैं तुम्हें ब्लड सैम्पल के लिए मना करूँगा और ना ही डी.एन.ए. टैस्ट के लिए
ला सकोगे तुम ऐसा इनसान खोजबीन कर?…नहीं ना?…
तो फिर जाओ…वडो….ढट्ठे खू विच्च…अते ओत्थे जा के ही अपना ते अपनी माँ दा सिर सड़ाओ
बाद में पता नहीं कभी मौक़ा मिले ना मिले… इसलिए अन्त में ऊपरवाले से मिलकर इस पत्र के जरिये मैं तुम्हें बस…यही बददुआ दे सकता हूँ कि उसकी दया-दृष्टि…ऊप्स!……सॉरी…कुदृष्टि तुम पर भी उतनी ही बरसे जितनी कि मुझ पर इस समय बिन बादल…बरसात बन बरस रही है…अगर मैं सुखी नहीं हूँ तो तुम भी कभी ना रह पाओ…आमीन…
तुम्हारा अघोषित एवं एय्याश पिता…
नोट:इस खबर से जुड़ा विडियो देखने के लिए नीचे दी गयी फोटो को क्लिक करें |
21 comments:
राजीव जी .......धन्य है आप ...जो ऐसे सोच सोच कर लिखते है
व्यंग व्यंग में क्या बता जाते है ...बहुत खूब
अरे ये तो हमारे राजनीतिक गुरू हैं!
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सबको अपनी पर्सनल लाइफ गुजारने का हक है!
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जो जैसा करेगा वैसा ही भरेगा!
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हमें तो उनके गुण देखने हैं, अवगुण नहीं!
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वैसे नेता ही क्या हमाम में तो सभी नंगें हैं!
किसी भी अनीति का मुखर विरोध होना चाहिए इस लिए आपका व्यंग्य स्वीकार है... परन्तु पोस्ट कुछ व्यक्तिगत लगी... नेता जी की दृष्टि से नहीं बल्कि उस नौजवान की दृष्टि से जो अपने हक की लड़ाई लड़ रहा है... आग्रह है पोस्ट में किसी की माँ पर इस तरह के कटाक्ष न किये जाएँ तो बेहतर होगा...
आदरणीय RSS जी जब इस पोस्ट को मैं लिख रहा था तो मेरे मन में ये बात घूम रही थी कि नेताजी के दिल पर इस सारे वाकये को लेकर क्या कुछ घूम रहा होगा?...और अपनी सोच के मुताबिक़ उन्हीं के नज़रिए से मैंने इसे लिखा है| वैसे!...अगर इस पोस्ट में से फोटो को हटा दिया जाए तो ये आम या खास... किसी के लिए भी हो सकती है...
आजकल साइड में जूतों का काम कर लिया है क्या राजीव भाई ... ;-)
खूब दिया हिया भीगो भीगो के ... जय हो महाराज !
अद्भुत!
सही कहा फोटो हटा लेने से तो कुछ लिंक ही नहीं कर पाते।
बेहतर व्यंग्य।
धार दार व्यंग ..
गज़ब भई गज़ब..इतना तीखा और सटीक....वाह!!! आनन्द आ गया.
बात तो बेहद कडवी है, किसी के लिये, आपने इतने शानदार तरीके से लिखा है कि मजा आ रहा है, पढने में
kash NDT iss lekh ko ek baar padh le...:)
to pata chale uss bete pe kya gujarti hogi...!!
vah........ maja aa gaya...............sunder satayar
नारायण नारायण
:)
भई इतना तो बोल देते --- नथिंग पर्सनल ।
वैसे मामला तो पर्सनल ही है ।
माया मरी न मन मरा,मर मर गए शरीर।
आशा तृष्णा न मरी, कह गए दास कबीर॥
माँ और पिता में सबसे बड़ा अंतर क्या हैं ??
माँ कभी ये नहीं कह कर अपने बच्चे को नकारती की ये उसकी कोख से नहीं उत्त्पन्न हुआ
पिता अपना डी अन ऐ भी नहीं करवाता हैं क्युकी कोख से जो नहीं उत्पन्न किया
अनामदास जैसे बच्चे अपने हक़ की लड़ाई लडते रहे और पिता को मजबूर कर दे की वो माने की उसके ही वीर्य से ये संतान उपजी हैं
राजीव जी ऐसे लेखो और व्यंग्य की देश को जरूरत है पोल खोलते रहें
बडा ही ज़बरदस्त व्यंग्य लिखा है सारी पोल खोल कर रख दी………शानदार और करारा तमाचा है।
बहुत ज़रूरी विषय पर बहुत अच्छी तरह से लिखा है | आज व्यंग्य पर हँसी कम आई खून अधिक खौला और ये भी तुम्हारी लेखनी की जीत है|
वाह इसे कहते हैं कलाकारी और शब्दों की बाजीगरी । आप यकीनन काबिल हैं , किसी भी बात को अपने अनोखे अंदाज़ में कह सकते हैं । बहुत खूब ये तेवर यूं ही बना रहे । हमारी शुभकामनाएं
अपनी बात कहने के लिए
बेहतरीन शैली और शब्दों के चुनाव
से बना आलेख
बढ़िया
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