“हाँ!…तो पप्पू जी…मेरे ख्याल से काफी आराम हो गया है….अब आगे की कहानी शुरू करें?”…
“जी!…ज़रूर"…
“तो फिर बताइये…क्या टैंशन है”…
नोट: दोस्तों मेरी पिछली कहानी ‘भोगी को क्या भोगना…भोगी मांगे दाम' ज़रूरत से ज्यादा बड़ी हो रही थी…इसलिए मैंने उस कहानी को दो भागों में विभक्त कर दिया था| लीजिए अब आपके समक्ष पेश है उस कहानी का दूसरा और अंतिम भाग |
“मैं बताऊँ?”…
“जी!…
“टैंशन आपको है और मैं बताऊँ?”…
“नहीं!…अपनी टैंशन तो मैं खुद बयाँ कर दूंगा…आप अपनी बताइए"…
“आपको भी टैंशन है?”..
“क्यों?…मैं क्या इनसान नहीं हूँ?”…
“नहीं!..इनसान तो आप हैं लेकिन….
“लेकिन क्या?…दिखता नहीं?”…
“नहीं!…दिखते तो हैं लेकिन….
“लेकिन लगता नहीं?”…
“नहीं!…
“क्क्या?”मैं उछलने को हुआ…
“न्न्...नहीं!…
“नहीं?”मेरा हैरानी भरा स्वर…
“म्म..मेरा मतलब तो ये था कि….
“मतलब था?…याने के अब नहीं है?”मेरी आवाज़ में संशय था…
“न्न्…नहीं…है तो अब भी लेकिन व्व..वो नहीं….जो पहले था"…
“पहले क्या था?”मैं प्रश्नवाचक मुद्रा अपनाता हुआ बोला…
“पहले आप लगते तो थे लेकिन….
“दिखता नहीं था?”…
“जी!….
“और अब?”…
“अब दिखते तो हैं लेकिन….
“लेकिन लगता नहीं?”मेरा नाराजगी भरा स्वर…
“नहीं!…लगते भी हैं लेकिन…
“लेकिन?”…
“लेकिन फिर आपने ये टैंशन गुरु का दफ्तर क्यों खोल रखा है?”पप्पू का असमंजस भरा स्वर…
“क्यों खोल के रखा है?…से मतलब?”…
“यही कि….क्यों खोल के रखा है?”…
“ये दिल्ली है मेरी जान"…
“तो?”…
“यहाँ ज़्यादातर बन्द घरों के ही ताले टूटते हैं"…
“टूटते हैं या तोड़ दिए जाते हैं?”…
“एक ही बात है"….
“अरे!…वाह…एक ही बात कैसे है?…टूटना…टूटना होता है और तोडना…तोडना होता है"…
“कैसे?”…
“जैसे कोई चीज़ अपने आप टूट कर गिरती है तो उसे टूटना कहा जाता है”…
“जैसे बुढापे की वजह से आपका ये दाँत?”…
“हाँ!…
“और अगर दूसरे वाले को मैं मुक्का मार के ज़बरदस्ती तोड़ दूँ तो उसे तोडना कहा जाएगा?”…
“जी!…बिलकुल"…
“तोड़ के देखूं?”…
“अपना?”…
“नहीं!…आपका"…
“कोई ज़रूरत नहीं है"…
“एज यू विश…जैसी आपकी मर्जी"…
“ओ.के"…
“इसीलिए ना चाहते हुए भी कई बार मुझे खोल के रखना पड़ता है"…
“दफ्तर?”…
“नहीं!…मुँह”…
“अपना?”…
“नहीं!…आपका"…
“आप डेंटिस्ट हैं?”…
“नहीं!…कारपेंटर"…
“मैं कुछ समझा नहीं"…
“अरे!…जब मैं अपनी बात कर रहा हूँ तो अपना ही मुँह खोलूँगा ना?”……
“लेकिन क्यों?”…
“छींक मारने के लिए"…
“आप मुँह खोल के छींक मारते हैं?”…
“नहीं!…नाक बन्द करके"…
“मैं कुछ समझा नहीं"…
“अरे!…बेवाकूफ मुँह खोल के क्या किया जाता है?”..
“साँस लिया जाता है"…
“और नाक खोल के?”….
“सिड़का जाता है?”…
“किसे?”…
“उसे"……
“हट्ट!…जब भी करोगे…गन्दी बात ही करोगे"…
“जी!…बिलकुल…आपकी आज्ञा सर माथे पर"…
“कौन सी?”…
“यही कि मैं जब भी करूँ…गन्दी बात ही करूँ"…
“क्यों?”…
“डाक्टर ने कहा है”…
“दिल के?"…
“नहीं!…दिमाग के"…
“दिमाग खराब है तुम्हारा?”…
“नहीं!…आपका"…
“तुम्हें कैसे पता?”…
“दिमाग खराब है आपका तभी तो ऐसी बेहूदी राय दे रहे हैं"…
“कौन सी?”…
“यही कि…मैं जब भी बात करूँ…गन्दी बात ही करूँ"…
“ऐसा मैंने कहा?”…
“जी!…
“कब?”…
“अभी थोड़ी देर पहले"…
“ओह!…सॉरी…ऐसे ही गलती से निकल गया होगा"…
“जी!…
“हम कहाँ थे?”…
“आपके दफ्तर में"…
“और अब कहाँ हैं?”…
“अब भी आप ही के दफ्तर में"..
“नहीं!…मेरा मतलब था कि हम क्या बात कर रहे थे?”..
“यही कि आप मुँह खोल के…
“ओह!…अच्छा….हाँ…तो बताओ…मुँह खोल के और क्या किया जाता है?”…
“खाना खाया जाता है”..
“और?”…
“उबासी ली जाती है"…
“और?”…
“चुम्मी ली जाती है"…
“माशूका की?”…
“नहीं!…पम्मी की"…
“पम्मी कौन?”…
“मेरी मम्मी"…
“तुम मुँह खोल के चुम्मी लेते हो?”…
“नहीं!…बन्द कर के"…
“बन्द कर के?”…
“प्प…पता नहीं"पप्पू के चेहरे पे असमंजस था…
“पता नहीं?”मेरा हैरानी भरा स्वर…
“जी!…
“लेकिन क्यों?”…
“पता नहीं"…
“ओ.के….मुँह खोल के और क्या किया जाता है?”…
“चिल्लाया जाता है"…
“बेवाकूफ"…
“मैं?”..
“हाँ!…तुम"…
“लेकिन क्यों?”..
“ये बात पहले नहीं बोल सकते थे?”…
“आप चिल्लाने के लिए मुँह खोलते हैं?”..
“हाँ!…
“लेकिन क्यों?”…
“कीड़ा सटट जो मारता है” …
“आपको?”…
“नहीं!…तुमको"…
“मुझको?”…
“नहीं!…मुझको"…
“लेकिन क्यों?”….
“जोर-जोर से चिल्लाने के लिए कहता है"…
“आपसे?”…
“नहीं!…चौकीदार से?”…
“क्या?”…
“यही कि….‘जागते रहोSssss…जागते रहोSssss’"…
“रात में?”…
“नहीं!…दिन में"..
“दिन में?”…
“हाँ!…दिन में"…
“लेकिन क्यों?”…
“मुझे सोने की आदत जो है"…
“दिन में?”…
“नहीं!…रात में"…
“रात में सोने की आदत है इसलिए दिन में मुँह खोल के चिल्लाते हैं…जागते रहो…जागते रहो?”पप्पू के स्वर में हैरानी का पुट था…
“हाँ!…
“लेकिन क्यों?”…
“चौकीदार को आदत जो है….
"सोने की?"…
“नहीं!…रोने की"…
“वो रोता है?”…
“बहुत"….
“रात में?”…
“नहीं!…दिन में”….
“रात में क्यों नहीं?”…
“रात में तो कुत्ता रोता है"…
“और ये दिन में रोता है?”..
“हाँ!…
“लेकिन क्यों?”….
“रात में सोता जो है"…
“ओह!….रात में सोता है…इसलिए दिन में रोता है?”…
“जी!…
“लेकिन क्यों?”…
“कामचोर है स्साला"…
“साला कामचोर होता है?”…
“नहीं!…
“लेकिन ये दिन में क्यों रोता है?”….
“अभी बताया तो"…
“क्या?”..
“यही कि स्साला…..
“कामचोर है?”…
“नहीं!…डबल ड्यूटी करने से घबराता है"…
“आपकी?”…
“नहीं!…बीवी की"…
“आपकी बीवी उससे डबल ड्यूटी करवाती है?"…
“मेरी बीवी भला उससे डबल ड्यूटी क्यों करवाएगी?…वो तो मुझसे करवाती है"…
“डबल ड्यूटी?”…
“जी!…
“आप खुशी-खुशी कर देते हैं?”…
“आपको मेरे सिर पे सींग लगे दिखाई दे रहे हैं?”…
“नहीं तो?”..
“तो क्या फिर किसी एंगल या कोण से मैं आपको लादेन या फिर ‘टाईगर वुड्स’ दिखाई दे रहा हूँ?”..
“नहीं!…तो"…
“फिर ये आपने कैसे सोच लिया कि मुझे डबल या फिर ट्रिपल ड्यूटी करने में मज़ा आता होगा?”…
“ओह!…तो इसका मतलब फिर चौकीदार को मज़ा आता होगा"….
“डबल ड्यूटी करने में?”..
“जी!…
“आप पागल हो?”…
“श्श….शायद”पप्पू का असमंजस भरा स्वर….
“शायद?”…
“नन् नहीं पक्का”….
“पक्का?….
“जी!…थोड़ी-बहुत कसर है..आपकी कृपा रही तो वो भी जल्दी ही हो जाऊँगा?”…
“मतलब अभी हुए नहीं हो?”मेरा नाराजगी भरा स्वर
“नहीं!….(पप्पू का दृढ स्वर)
“लेकिन क्यों?”…
“क्यों क्या?…स्टेमिना बहुत है”…
“ताकत का?”…
“नहीं!…पकाने का"…
“आप में?”…
“नहीं!…
“मुझ में?”..
“नहीं!…
“तो फिर किसमें?….चौकीदार में?”….
“नहीं!….बीवी में"…
“मेरी वाली में?”…
“नहीं!…मेरी वाली में"…
“तो?”…
“मैं उसको बड़े आराम से झेल गया तो आप किस खेत की मूली हो?”…
“मैं मूली हूँ?”…
“नहीं!…आप तो ‘जूली’ हो"पप्पू मेरे गाल पे चिकोटी काटता हुआ बोला…
“थैंक्स!…
“फॉर व्हाट?”…
“इस काम्प्लीमैंट के लिए"…
“मूली वाले?”…
“नहीं!… ‘जूली’ वाले"…
“वो कैसे?”…
“मुझे ‘जूली’ नाम बहुत पसंद है"…
“लेकिन वो तो मेरी…..
“बीवी का नाम है?”…
“नहीं!…
“बेटी का नाम है?”…
“नहीं!…
“तो फिर किसका नाम है ‘जूली'?”….“मेरी कुतिया का”……
“क्क…क्या?”…
“जी!…
“ओह!…अच्छा….नाईस नेम ना?"…
“जी!…बिलकुल लेकिन मैं उसे प्यार से ‘मूली' कह के बुलाता हूँ"…
“कोई खास वजह?”…
“उसे मूली के परांठे बहुत पसंद हैं"..
“कुतिया को?”…
“नहीं!… ‘जूली’ को"…
“जूली तो कुतिया का नाम है ना?”…
“जी!…लेकिन…
“लेकिन?”…
“संयोग से वो मेरी…..
“सहेली का नाम है?”…
“नहीं!…सासू माँ का"…
“सासू माँ का?”…
“जी!…
“अरे!…वाह…क्या अजब संयोग है?….आम के आम और गुठलियों के दाम…सासू और कुतिया…दोनों का एक ही नाम ‘जूली’…भय्यी वाह….मज़ा आ गया"…
“जी!…एक्चुअली स्पीकिंग ‘जूली' नाम तो मेरी सास का ही है लेकिन मैं अपनी कुतिया को ….
“प्यार से ‘जूली’ कह के बूलाते हैं?”…
“नहीं!…खुन्दक से?”…
“खुन्दक से??”…
“जी!…
“लेकिन क्यों?”…
“क्यों?…क्या?…वो है ही इतनी खडूस कि….बात-बात पे काट खाने को दौडती है"…
“आपकी कुतिया?”…
“नहीं!…सास"…
“ओह!…अच्छा"…
“अच्छा…नहीं…कच्छा"…
“मैं कुछ समझा नहीं"…
“एक बार तो फाड़ के ही खा गयी थी"…
“आपको?”…
“नहीं!…कच्छे को"…
“आपकी सास?”…
“नहीं!…कुतिया…कुतिया फाड़ के खा गयी थी कच्छे को"…
“आपके?”…
“नहीं!…अपने"…
“आपकी कुतिया कच्छा पहनती है?”…
“नहीं!…सास"…
“तो?”..
“तो क्या?…पागल की बच्ची कहती है कि इसे ही पहने रखो दिन-रात"…
“वो अपना कच्छा आपको पहनाना चाहती है?”…
“जी!…
“फटा वाला?”…
“जी!…
“लेकिन क्यों?”…
“क्यों?…क्या?…कहती है कि तुम्हारे लिए ही इसे स्पेशल खरीदा था…अब तुम ही इसे पहन-पहन के घिसाओ…रगड़-रगड़ के हन्डाओ"…
“ओह!…
“इसी लिए तो मैं आपके पास आया हूँ"…
“कच्छा घिसवाने के लिए?”…
“नहीं!…
“फटा कच्छा सिलवाने के लिए?”…
“नहीं!…छुटकारा पाने के लिए"…
“कच्छे से?”…
“नहीं!…सास से"..
“इसमें क्या दिक्कत है?…दिखाओ तीली और लगा दो आग"…
“सास को?”…
“नहीं!…कच्छे को"…
“तो?….इससे क्या होगा?”…
“मुँह फुला लेगी"…
“तीली?”…
“नहीं!…सास”……
“तो?…उससे क्या होगा?”…
“तुम्हारी समस्या का हल"…
“वो कैसे?”…
“सास को बहुत प्यार है?”…
“मुझसे?”…
“नहीं!…कच्छे से"…
“जी!..बहुत"……
“तो फिर समझो…तुम्हारा काम हो गया"…
“वो कैसे?”..
“जैसे ही तुम कच्छे को आग लगाओगे…वो गुस्से के मारे फूल जाएगी"…
“तीली?”…
“नहीं!…तुम्हारी सास"…
“तो?”…
“वो गुस्से के मारे तुम्हें टोकना बन्द कर देगी…तुमसे बात करना बन्द कर देगी"…
“ये तो कोई हल ना हुआ"…
“वोही तो"…
“मैं कुछ समझा नहीं"…
“इस सास रूपी समस्या या टैंशन का कोई हल नहीं है बर्खुरदार"…
“ओह!…
“इस क्या?…किसी भी टैंशन का कोई हल नहीं है….इनसान जब पैदा होता है…तभी उसे टैंशन जकड लेती है…
“दोनों तरफ से?”…
“नहीं!…हर तरफ से"…
“ओह!…लेकिन…
“आज के ज़माने में टैंशन किसे नहीं है?…ये बताओ तो ज़रा….बच्चों को पढाई की टैंशन…बड़ों को लड़ाई की टैंशन…..नेताओं को कुर्सी से लेकर स्टिंग आपरेशनों की टैंशन…रिश्वतखोरों को पोल खुलने की टैंशन…सरकार को बाबाओं के अनशन तुडवाने और बाबाओं को अनशन जुडवाने की टैंशन…हर तरफ टैंशन ही टैंशन…घोर टैंशन"….
“जी!…लेकिन…
“और सच पूछो तो इस टैंशन भरे जीवन को जीने का अपना ही मज़ा है”…
“जी!…सो तो है लेकिन इस टैंशन का कोई हल भी तो होगा?”…
“हाँ!…है ना…है क्यों नहीं?”…
“वो क्या?”…
“चुपचाप अपने दड़बे में दुबक के बैठे रहो"…
“मैं कुछ समझा नहीं"…
“जैसे हो…जहाँ हो…जिस हाल में हों…चुपचाप संतोष करके बैठे रहो"…
“ये तो कोई हल ना हुआ"…
“तो फिर ये ले तमंचा और गोली मार भेजे में"…
“आपके?”…
“नहीं!…अपने"…
“मुश्किल है"…
“डर लगता है?”…
“जी!…बहुत"…
“खून-खराबे से?”…
“नहीं!…शोर-शराबे से"…
“ओ.के…तो फिर एक और हल है मेरे दिमाग में"…
“वो क्या?”…
“वो सामने खम्बा दिखाई दे रहा है?”…
“टेलीफोन का?”…
“नहीं!…बिजली का"…
“आपको?”…
“नहीं!…तुमको"…
“अच्छी तरह से"…
“तो ठीक है…फ़ौरन उसके पास जाओ"…
“टांग उठा के?”…
“हाँ!…टांग उठा के"…
“सुसु करने के लिए?”…
“नहीं!…
“तो फिर?”…
“ले के प्रभु का नाम…चढ जा बेटा सूली पे"…
“ये वहाँ जा के बोलना है?”…
“नहीं!…अमल में लाना है"…
“उससे क्या होगा?”……
“मरने के बाद सभी चिंताओं से मुक्त हो जाओगे"…
“ओ.के बाय"…
“क्या हुआ?”…
“जा रहा हूँ"…
“मरने?”…
“नहीं!…फटा कच्छा पहनने"…
***राजीव तनेजा***
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16 comments:
बहुत बढ़िया व्यंग...सुन्दर .आपकी कथा वस्तु अदभुद होती है...
आप मजेदार संवादों में पूरी कहानी कह जाते हैं।
बहुत अच्छा हास्य और व्यंग्य का समावेश , बधाई हो , अब तो पहला वाला भी पढ़ना पड़ेगा
यार तुम मानोगे नहीं
हा हा हा डबल ड्युटी :)
चौकीदारी में ही मजे हैं,
जागते रहो।
@इस सास रूपी समस्या या टैंशन का कोई हल नहीं है बर्खुरदार।
अभी तक तो नहीं मिला।
मिलते ही बताता हूँ।
@सच पूछो तो इस टैंशन भरे जीवन को जीने का अपना ही मज़ा है।
फ़ुल टेंशन।
ह ह ह ह
बेहद ही रोचक प्रस्तुति। श्रम साध्य भी ।
the best
bahut hi sunder anokhe bhav se likhi hasya rase main doobi satic byang karati hui rachanaa.badhaai sweekaren.
please visit my blog.thanks.
ha ha ha it was quite dip dip hasee full story ,specially when you were describing constantly tension problem . the story vocabulary reminds me paresh rawal in judai movie. its really been tension free story . good luck rajiv , for up coming story.
सच पूछो तो इस टैंशन भरे जीवन को जीने का अपना ही मज़ा है
सो तो है :-)
पप्पू का नाम गप्पू रख देते तो ..
बेहद ही रोचक प्रस्तुति।
हा हा हा हा ......आपके व्यंग के साथ साथ ओर भी बहुत कुछ पढने को मिलता है
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