“हद हो गई बेशर्मी की ये तो …कोई भरोसा नहीं इन कंबख्तमारी औरतों का….किसी की सगी नहीं होती हैं ये"…
“आखिर!…हुआ क्या तनेजा जी?….क्यों इस कदर बडबड़ाए चले जा रहे हैं?”…
“बडबड़ाऊँ नहीं तो और क्या करूँ गुप्ता जी?….और छोड़ा ही किस लायक है उस कंबख्तमारी ने मुझे?"…
“जी!…सो तो है"मेरी दयनीय हालत देख गुप्ता जी का स्वर भी उदास होने को हुआ…
“जी!…
“यही बात तो मुझे बिलकुल पसंद नहीं आती इन कंबख्तमारी औरतों की…पहले तो बात-बात पे बिना बात खुद ही तू-तड़ाक करेंगी और फिर अपना बस ना चलता देख खुद ही बिना किसी बात के झुल्ली-बिस्तरा उठा फट से चल देंगी मायके मानो मायका…मायका ना हो गया…पीर बाबा की दरगाह हो गया कि हर वीरवार को बिना किसी नानुकर के मत्था टेकना ही टेकना है"…
“जी!….वडेवें जो मिलते हैं उन्हें वहाँ"…
“वोही तो….आप क्या चिकन-शिकन या फिर दारू-शारू का कोई शौक रखते हैं?”गुप्ता जी किसी नतीजे पे पहुँचने की कोशिश करते हुए बोले……
“सिर्फ पूछ रहे हैं या फिर खिलाने-पिलाने की भी सोच रहे हैं?”मेरी आँखें चमकने को हुई…
“अभी फिलहाल तो सिर्फ पूछ ही रहा हूँ"गुप्ता जी का संयत स्वर…
“ओह!….फिर तो मैं इन चीज़ों से कोसों दूर रहता हूँ"मैं संभलता हुआ बोला..
“दैट्स नाईस"…
“जी!…
“पान-तम्बाखू या फिर खैनी-गुटखे का किसी प्रकार का कोई वैध-अवैध सेवन?”गुप्ता जी ऊपर से लेकर नीचे तक मुझे गौर से देखते हुए बोले……
“बिलकुल नहीं"…
“पक्का?”गुप्ता जी के स्वर में संशय था..…
“जी!….बिलकुल पक्का"…
“रंडीबाज़ी से लेकर मालिश-वालिश तक का कोई रईसों वाला…पठानी टाईप का शौक?”…
“न्योता दे रहे हैं या फिर ऐसे ही खामख्वाह..मूड बना रहे हैं?”मैं संदेह भरी दृष्टि से उन्हें देखता हुआ बोला...
“मैंने तो बस…ऐसे ही…..मूड में आया तो….
“तो दूसरे का मूड खराब कर डाला?”मैं नाराज़ होता हुआ बोला..
“जी!….
“जी?”….
“न्न्…नहीं…..
“नहीं?”…
“म्म…मैंने तो बस…ऐसे ही…मन में आया तो पूछ लिया…जस्ट फॉर नालेज"…
“जस्ट फॉर नालेज?”..
“जी!….
“फिर तो ऐसा घटिया शौक नहीं पाला है मैंने"…
“पक्का?”…
“बिलकुल पक्का"…
“तो फिर ऐसे…अचानक भाभी जी को कौन सी बीमारी लग गई जो वो एक ही झटके में सबकुछ छोड़छाड़ चलती बनी?”…
“वो बीमार थी?”मैं प्रश्नवाचक मुद्रा अपनाता हुआ बोला..…
“मुझे क्या पता?”…
“तो फिर किसे पता है?"…
“ये तो आपको पता होना चाहिए"…
“मुझे भला क्यों पता होना चाहिए?….ये तो आपको पता होना चाहिए"…
“भय्यी वाह!…बहुत बढ़िया…बीवी आपकी…और पता मुझे होना चाहिए कि उसे कोई बीमारी थी या नहीं"…
“बीवी मेरी है?”…
“नहीं!…मेरी है"गुप्ता जी का तैश भरा स्वर…….
“वोही तो”…
(गुप्ता जी का मुझे घूर कर संशय भरी नज़र से देखना)
“ओSsss….हैलो!….मैं अपनी बीवी की बात नहीं कर रहा हूँ"बात समझ में आने पर मेरा उन्हें सकपकाते हुए सफाई देना….
“तो फिर किसकी बीवी की बात कर रहे हैं?”…
“व्व…..वो शादीशुदा है?”मैं चौंकता हुआ बोला…
“मुझे क्या पता?”..
“तो फिर किसे पता होगा?”…
“आपको"..
“मुझे क्यों?”..
“अभी आप ही ने तो कहा"..
“क्या?”…
“यही कि वो सब कुछ छोड़-छाड़ के चलती बनी"…
“ऐसा मैंने कहा?”…
“हाँ!..
“कब?”..
“अभी…जस्ट थोड़ी देर ही पहले"…
“लैट मी रिमैम्बर"…
“जी!….
“ओSsss….हैलो!….ऐसा मैंने नहीं बल्कि आपने कहा था"…
“मैंने?”…
“जी!…
“ओह!…तो फिर आप किसकी बात कर रहे थे?”….
“उसी पागल की बच्ची की जो सुबह-सुबह…
“आपको किस करती है?”…
“नहीं!…
“मिस करती है?”…
“नहीं!…
“कॉल करती है?”…
“नहीं!…
“मिस कॉल करती है?”…
“नहीं!…
“ओह!…तो इसका मतलब सारा पंगा ही इसी बात का है कि वो पागल की बच्ची ना तो आपको कॉल करती है और ना ही मिस कॉल करती है?"…
“जी!…कॉल करती….ना मिस कॉल करती”……
“तो आपको भी किसी पागल से या फिर उसकी बच्ची से कॉल या मिस कॉल करवा के क्या लड्डू लेने हैं?”…
“आपको कैसे पता?”…
“क्या?”…
“यही कि उसके बाप की लड्डूयों की दुकान है?"…
“बूंदी के?”…
“नहीं!…मोतीचूर के"…
“ओह!…अच्छा….आई लव लड्डूज ऑफ मोतीचूर”….
“वो तो मुझे भी बहुत पसंद हैं”….
“जी!….तो फिर बताइए ना"…
“क्या?”…
“यही कि वो सुबह-सुबह क्या करती है?”…
“ओ.के…लैट मी स्टार्ट अगेन"…
“एक मिनट…..मैं बताऊँ?”गुप्ता जी उछल कर हर्ष से अतिरेक हो प्रफुल्लित स्वर में बोले…
“क्या?”…
“यही कि वो सुबह-सुबह क्या करती है?”…
“बताओ"…
“वो पक्का संडास जाती होगी"…
“किसके साथ?”…
“तेरी माँ के साथ"…
“मेरी माँ के साथ?”…
“संडास किसके साथ जाते हैं?”…
“किसी के साथ नहीं"…
“तो फिर?”…
“क्या…तो फिर?”…
“तो फिर वो किसके साथ जाती होगी?”…
“किसी के साथ नहीं"…
“वोही तो"…
“नहीं!…
“नहीं?”…
“नहीं!…वो संडास नहीं जाती होगी"कुछ सोच मैं निष्कर्ष पर पहुंचता हुआ बोला…
“क्यों?”…
“रस्ता बंद है"…
“संडास का?”…
“नहीं!…तुम्हारी सोच का"…
“कैसे?”…
“और नहीं तो क्या?…ये भी क्या बात हुई कि वो संडास नहीं जाती होगी?…क्यों नहीं जाती होगी भला?”…
“मैं बताऊँ?”…
“हाँ!…बताओ"….
“पेट खराब रहता होगा उसका”…
“परमानैंटली?”…
“जी!…
“पता नहीं”…
“पता क्या नहीं?…बिलकुल पक्की बात है"…
“कौन सी?”…
“यही कि पेट खराब रहता होगा उसका"…
“आपको कैसे पता?”…
“बस!…ऐसे ही एक छोटा सा गैस्स"….
“हाँ!…यार…गैस तो वो भी बहुत करती है और बार-बार करती है"….
“मना करने के बावजूद भी?”…
“जी!…मेरे लाख मना करने के बावजूद भी"…
“ओह!…
“समझो तकिया खराब है उसका"….
“तकिया खराब है उसका?”…
“नहीं!…तकिया कलाम है उसका"…
“तकिया कलाम है या फिर आदत है?"…
“एक ही बात है"…
“एक ही बात कैसे है?…तकिया कलाम…तकिया कलाम होता है और आदत…आदत होती है"…
“जी!…ये बात तो है"…
“वोही तो”…..
“बेशक कुछ आता हो या ना आता हो लेकिन ‘पहले मैं'…पहले मैं' करके ये मोहतरमा गैस ज़रूर करेंगी"…
“ओह!…यहाँ भी इन कम्बख्मारियों को प्रायरिटी चाहिए"…
“जी!…उनकी इसी आदत पे तो मैं फ़िदा हो गया था"…
“प्रायरिटी वाली?”…
“नहीं!…
“पहले मैं…पहले मैं' वाली?”…
“नहीं!….गैस करने वाली"….
“ओह!….
“एक बार तो उन्होंने हद ही मुका दी थी….
“गैस कर-कर के"…
“जी!…
“कब?”…
“जब मैंने उन्हें पहली बार….
“डकार मारते हुए देखा था?”…
“आपको कैसे पता?”…
“क्या?”…
“यही कि उसे छोले-भठूरे बहुत पसंद हैं?”..
“नत्थू हलवाई के?”…
“जी!…लेकिन आपको कैसे पता?”….
“बस!…ऐसे ही एक छोटा सा गैस्स"…
“ओह!…एक दिन तो मैं भी बड़ा परेशान हो गया था"….
“गैस कर-कर के?”…
“नहीं!…सूंघ-सूंघ के”..
“सूंघ-सूंघ के?”……
“हाँ!…खुशबू ही इतनी अच्छी थी कि…..
“खुशबू?”….
“जी!…
“लेकिन अभी तो आपने कहा कि आप सूंघ-सूंघ के परेशान हो गए थे"…
“तो?…कोई भी चीज़ भले ही कितनी भी अच्छी या स्वादिष्ट क्यों ना हो?…आप उसे ज्यादा से ज्यादा कितनी देर तक सूंघ सकते हैं?”…
“स्वादिष्ट?”…
“जी!…
“ओह!….
“तो फिर बताइए ना"…
“क्या?”…
“यही कि कोई भी चीज़ भले ही कितनी भी अच्छी या स्वादिष्ट क्यों ना हो?…आप उसे ज्यादा से ज्यादा कितनी देर तक सूंघ सकते हैं?”…
“यही कोई पांच या दस मिनट"…
“और मैं पागल उसे लगातार आधे घंटे से सूंघे चला जा रहा था"…
“ओह!…आप परे क्यों नहीं हट गए?”…
“कैसे हटता?….वो है ही इतनी प्यारी कि….
“ओह!….
“बार-बार परफ्यूम छिडकना पड़ रहा था"…
“नाक के आगे?”…
“नहीं!…. *&^%$! के आगे"…
“ओह!….
“तुम पागल हो?”…
“नहीं तो…क्यों?…क्या हुआ?”…
“परफ्यूम कहाँ छिड़का जाता है?”…
“नाक के आगे"…“तो?”…
“तो?”गुप्ता जी के स्वर में असमंजस था…
“क्या…तो?”मेरा गुस्से से भरा स्वर…
“ओह!…फिर तो आपका बहुत खर्चा हो गया होगा?”गुप्ता जी बात को संभालते हुए बोले……
“और नहीं तो क्या?…पूरी की पूरी बोतल ही स्वाहा हो गई"…
“कैसे?”…
“वो पागल की बच्ची बार-बार गैस जो कर रही थी"…
“और आप बार-बार परफ्यूम छिड़क रहे थे?”…
“जी!…छिडकता नहीं तो और क्या करता?….वो बार-बार….
“गैस जो कर रही थी?"…
“जी!….
“आपने उसे मना कर देना था"…
“गैस करने से?”…
“जी!….
“कैसे कर देता?…रोजाना की क्लाईंट है"…
“क्लाईंट है?”….
“जी!…
“यू मीन ग्राहक?”…
“जी!…
“लेकिन आपका तो दरवाज़े-खिड़कियों का बिजनस है ना?”…
“जी!…
“तो वो आपकी क्लाईंट कैसे हो गयी?”…
“ओह!…आपको मैं शायद पहले बताना भूल गया था"…
“क्या?”…
“यही कि इससे पहले मेरा डिपार्टमेंटल स्टोर था"…
“तो?”…
“वहीँ पर तो वो बार-बार सूंघ के गैस कर रही थी कि ये!…ये वाला परफ्यूम है और ये…ये वाला"…
“यू मीन गैस्स?…अन्दाजा लगा रही थी वो?”…
“जी!…
“ओह!…
“वैसे आपका ये डिपार्टमेंटल स्टोर है कहाँ?”…
“है नहीं…था"…
“कहाँ?”…
“रोहिणी में"…
“फिर तो मज़ा बहुत आता होगा?”…
“जी!…बहुत"…
“फिर आपने उसे क्यों छोड़ दिया?”..
“लड़की को?”…
“नहीं!…काम को"…
“चला नहीं"…
“लेकिन अभी आपने कहा कि मज़ा बहुत आया"…
“जी!…
“तो फिर काम छोड़ क्यों दिया?”…
“मज़ा मुझे नहीं…मेरे ग्राहकों को आया था…मुझे तो नुकसान झेलना पड़ा था"…
“कब की बात है ये?”…
“यही कोई सात-आठ साल पहले की"…
“तब की बात आप अब मुझे बता रहे हैं?”..
“जी!…
“लेकिन क्यों?”…
“क्यों?…क्या?…दोस्त हैं आप मेरे"…
“तो?”…
“तो आपके आगे अपना दुखडा नहीं रोऊंगा तो किसके आगे रोऊंगा?”…
“सालों पुराने दुखड़े को सुनाने की आज आपको याद आई?”..
“जी!…
“लेकिन क्यों?”..
“उसने मुझे डिच जो कर दिया है"…
“इतने सालों बाद?”…
“जी!…
“वाह!…बहुत बढ़िया…..हद हो गयी ये तो बेशर्मी की..इतने सालों तक #$%^&^%$# की ऐसी तैसी कराते रहो और उसके बाद एक झटके से तू कौन…मैं खामख्वाह"…
“गुप्ता जी…मैंने आपको भला कब किस चीज़ के लिए मना किया है जो इस तरह ताने दे रहे हैं?”मैं रुआंसा होने को हुआ…
“ओSsss….हैलो…मैं तुम्हारी बात नहीं कर रहा हूँ…मैं तो उस कंबख्तमारी की बात कर रहा हूँ जो इतने सालों तक तुम्हारे साथ अपनी ऐसी-तैसी कराने के बाद अब आँखें दिखा रही है"…
“उफ्फ!…किसकी याद दिला दी गुप्ता जी आपने भी?….कंबख्तमारी की आँखें हैं ही इतनी कातिल कि कोई भी मर मिटे”…
“जी!….
“एण्ड फॉर यूअर काईंड इन्फार्मेशन रोहिणी से अपना काम बंद करने के बाद वो बीच के इन सालों में मुझे कभी नहीं मिली"…
“कभी नहीं मिली?”…
“जी!…
“तो फिर उसने तुम्हें डिच कैसे कर दिया?”गुप्ता जी का असमंजस भरा स्वर……
“इतनी देर से यही तो समझा रहा हूँ गुप्ता जी लेकिन आप हैं कि बात को कहाँ से कहाँ घुमा के ले चले जाते हैं?”…
“मैं घुमा के ले जाता हूँ या आप घुमा के ले चले जाते हैं?”…
“एक ही बात है…आप में और मुझमें भला क्या फर्क है?”…
“जी!…सो तो है"…
“जी!….
“अब मुझे ढंग से बताओ कि आखिर…हुआ क्या?”…
“होना क्या है गुप्ता जी?…अभी पिछले हफ्ते ही वो मुझे बाज़ार में नज़र आई…एज यूजयुअल”…
“गैस करते हुए?”…
“जी!…गैस करते हुए”…
“उसने पहचान लिया तुम्हें?”…
“जी!…एक बार देख के मुस्कुराई तो थी…शायद….
“शायद?”…
“जी!….मैंने अपना चश्मा उतारा हुआ था उस समय…इसलिए ठीक से दिखाई नहीं दिया"…
“हद हो गई ये तो लापरवाही की…चश्मा उतारा हुआ था…फिर क्या ख़ाक पहचाना होगा उसने तुम्हें?”…
“आँखें काम नहीं कर रही थी गुप्ता जी तो क्या हुआ?…मेरे ये लम्बे-लम्बे कान तो खड़े थे"…
“कुत्ते के माफिक"…
“जी!…बिलकुल…एक्चुअली!…सब मुझे बचपन में ‘कन्न खड़ी कुत्ती’ कह के बुलाते थे"…
“कन्न खड़ी कुत्ती?”…
“जी!…“कन्न खड़ी कुत्ती?”…पागलों को ये भी नहीं पता था कि मैं कुत्ती नहीं बल्कि…..
“कुत्ता हूँ?”…
“जी!…कुत्ता….और वो भी कोई ऐसा-वैसा नहीं बल्कि…
“अल्सेशियन?”…
“नहीं!…डग”….
“ओह!..तो फिर मेरी “कन्न खड़ी कुत्ती” जी…आपने अपने इन लम्बे-लम्बे कानों से क्या सुना?”…
“उसका फोन नंबर"…
“तुम्हें बता रही थी?”…
“नहीं!…जमादार को?”……
“और तुमने उसे चुपके से नोट कर लिया?”…
“नहीं!…याद कर लिया"…
“वैरी कलेवर"…
“जी!…शुक्रिया"…
“फिर तो बात बड़े आराम से बन गई होगी?”…
“बन गई होती तो क्या मैं यहाँ आपके आगे अपनी $%$#%^& *&^&* #$ #%^%$ होता? ..
“लेकिन जब फोन नंबर मिल ही गया था तो क्या दिक्कत थी?…अपना आराम से फोन पे डाईरैक्ट बात कर के अपने प्यार का इज़हार कर देना था"…
“और बदले में पड़ने वाले जूतों को आपने हज़म कर लेना था?”…
“हद हो यार तुम भी…प्यार भी करते हो और डरते भी हो?”…
“डरना पड़ता है गुप्ता जी…डरना पड़ता है…..उम्र के इस पड़ाव पे पहुँचने के बाद डरना पड़ता है”…
“तो फिर ‘एस.एम्.एस' भेज के ही देख लेते…शायद बात बन जाती"…
“भेजे तो…एक नहीं अनेक भेजे और बार-बार…बारम्बार भेजे"…
“तो?”…
“अब क्या बताऊँ गुप्ता जी….कि कैसे उस बावली को S.M.S कर कर के मेरी उँगलियाँ टूट गई लेकिन मेरे बजाए वो पट्ठी मेरे दोस्त के साथ सैट हो गई"…
“क्क…क्या?”…..
“जी!…सब पैसों के पीर हैं गुप्ता जी…सब पैसों के पीर हैं"…
“मैं कुछ समझा नहीं"…
“मेरे फोन में बैलैंस क्या खत्म हुआ?…आँखें ही फेर ली उस पागल की बच्ची ने"….
“कैसे?”…
“ऐसे…(मैं अपनी आँखें भैंगी कर उन्हें इधर-उधर घुमाता हुआ बोला)…
“म्म…मेरा मतलब ये नहीं था बल्कि मैं तो ये पूछना चाह रहा था कि….
“कुछ मत पूछिए गुप्ता जी…कुछ मत पूछिए”…
“ओ.के…अगर आप नहीं बताना चाहते हैं तो जैसी आपकी मर्जी"……
“कमाल है?…मैं नहीं बताना चाहता?….हद हो गई गुप्ता जी ये तो आपकी नासमझी की….मैं नहीं बताना चाहता?….वाह…बहुत बढ़िया"मेरा हडबडा कर सकपकाते हुए तैश भरा स्वर…
“अ…अ..अभी आप ही ने तो कहा कि कुछ मत पूछिए गुप्ता जी….
“तो इसका मतलब आप कुछ पूछेंगे ही नहीं?”….
“न्न्….नहीं..ऐसी बात नहीं है..पूछूँगा…ज़रूर पूछूँगा…क्यों नहीं पूछूँगा?”…
“तो फिर पूछिए ना"….
“अ…अभी?”…
“नहीं!…पहले किसी पण्डित से कोई अच्छा सा शुभ मुहूर्त निकलवा लीजिए"…
“ओ.के"गुप्ता जी वापिस मुड़ने की मुद्रा अपनाते हुए बोले…
“कहाँ चल दिए"…
“पण्डित जी के पास"…
“काहे को?”….
“मुहूर्त निकलवाने"…
“पगला गए हैं क्या?…
“मैं भला क्यों पगलाने लगा?…अभी आपने खुद ही तो कहा कि….
“मैं अगर कहूँगा कि आप अभी बीच बाज़ार मेरी चुम्मी लीजिए तो आप ले लेंगे?”…
“बिलकुल ले लूँगा”…
“फ़ौरन ले लेंगे?"…
“जी!…बिलकुल….फ़ौरन ले लूँगा"…
“एक सैकेण्ड में ले लेंगे?”…
“बिलकुल…एक सैकेण्ड में ले लूँगा"…
“अभी?…इसी वक्त ले लेंगे?”…
“स्टाम्प पेपर पे लिख के दूँ क्या?”…
“नहीं!…इसकी ज़रूरत नहीं है"…
“ओ.के"…
“मुझसे बेहतर कोई और मिल गया तो मुकर तो नहीं जाएंगे ना?”…
“कतई नहीं"…
“पक्का?”…
“बिलकुल पक्का…मुकरना मेरी फितरत नहीं…जब मर्जी आज़मा के देख लें"गुप्ता जी मेरे गाल पे चिकोटी काटते हुए बोले..
“आपको लाज ना आएगी?”…
“मुझे भला क्यों आएगी?…वो तो आपको आनी चाहिए"…
“लेकिन ऐसे….बिना नहाए-धोए….कैसे?”मेरे स्वर में असमंजस था…
“सिर्फ चुम्मी ही लेनी है ना?”गुप्ता जी का आशंकित स्वर..
“नहीं!…कीर्तन भी करवाना है"मेरा तैश भरा स्वर…
“अभी?…दिन में?”गुप्ता जी के स्वर में जिज्ञासा थी..
“हाँ!…अभी…दिन में"…
“ओ.के"….
“कहाँ चल दिए"…
“नहाने"…
“दिमाग खराब हो गया है आपका …पागल हो गए हैं आप"मेरा गुस्से से भरा स्वर…
“मेरा भला क्यों पागल होने लगा?…वो तो आपने खुद ही कहा तो मैं….
“मैं कहूँगा कि कुएँ में कूद जाओ तो कूद जाएंगे कुएँ में?”…
“अभी इतना पागल भी नहीं हुआ हूँ कि….
“अगर पागल नहीं हुए हैं तो फिर मेरे कहने पर आप पहले पण्डित जी को खोजने और फिर उसके बाद नहाने के लिए क्यों चल दिए?”….
“ओफ्फो!…अजीब मुसीबत है…बात मानो…तो भी मुश्किल और ना मानो…तो और भी मुश्किल"…
“मुश्किल तो मेरी आन पड़ी है गुप्ता जी….आपकी क्या आन पडी है?”…
“क्या मुश्किल आन पडी है?…अच्छे-भले तो दिख रहे हो"…
“दिखने पे मत जाइए गुप्ता जी…दिखने पे मत जाइए…दिखने में तो ये कपिल सिब्बल भी कितना भोला और सीधा दिखता है लेकिन बाबा जी को दगा दे के इसने काम कितना घिनौना काम किया है?”…
“जी!…सो तो है”…
“ऐसा ही घिनौना काम तो मेरे दोस्त ने मेरे साथ किया है गुप्ता जी”….
“आखिर!…हुआ क्या?”…
“होना क्या था गुप्ता जी?….उस बावली को मैसेज पे मैसेज कर-करके मेरी उंगलियां टूट गयी लेकिन वो पागल की बच्ची मुझे डिच करके मेरे दोस्त के साथ सैट हो गई"…
“लेकिन कैसे?”..
“अब क्या बताऊँ गुप्ता जी कि…कैसे मेरे फोन में बैलेंस नहीं था और कैसे मैं उसे अपने दोस्त के फोन से बार-बार…बारम्बार ‘लव यू'…’आई लव यू’ के मैसेज पे मैसेज करता रहा"…
“तो?”…
“मेरे उन्हीं प्यार भरे मैसेजिस से दिल पसीज गया पट्ठी का और दिल दे बैठी"…
“दैट्स नाईस"…
“काहे का नाईस?…मैसेज भेज-भेज के उंगलियाँ मेरी टूट गई और जब दिल के लेने-देने की बारी आई तो वो दोस्त स्साला…बीच में ही फोन झपट के ले उड़ा कि…. “सॉरी!…मुझे अर्जैन्टली कहीं जाना है”…
“तो जाने देते…आपका काम तो वैसे भी हो ही चुका था”….
“अजी!…काहे का हो चुका था?…मैंने उसे ये तो बताया ही नहीं था तब तक कि ये मेरा नहीं बल्कि मेरे दोस्त का फोन है"…
“क्क…क्या?”….
"जी!…
“अब समझा"…
“क्या?”…
“यही कि वो तुम्हें क्यों नहीं कॉल करती या मिस कॉल करती"…
***राजीव तनेजा***
rajivtaneja2004gmail.com
+919810821361
+91921766753
+919136159706
नोट: दोस्तों ये कहानी लिखने के बाद खुद मुझे भी पसंद नहीं आई तो आप सबको भला कहाँ आई होगी? …इसे लिखने में मैं अपने कई घंटे गँवा चुका था इसलिए मजबूरन मुझे इसे मरता…क्या ना करता की तर्ज़ पर पोस्ट करना पड़ा…शुक्रिया आप सबका इन तकलीफदेह पलों से गुजरने के लिए… |
16 comments:
100 me se 10000000000000 no.
hahahahahahahahahahahahahahahahahah
hahahahahahahahahahahahahahahahahaha
HAHAHAHAHAHAHAHAHAHAHAHAHAHAHAHAHAHA
jai ho !
:)
मिस काल आया क्या?
धैर्य रखिये मिस काल आयेगा
HAHAHAHAHAHAHAHAHAHAHAHAHAHAHAHAHAHAHAHAHAHAHAHAHAHAHAHAHAHAHAHAHAHAHAHAHAHAHAHAHAHAHAHAHAHAHAHAHAHAHAHAHAHAHAHAHAHAHAHAHAHAHAHAHAHAHAHAHAHAHAHAHAHAHAHAHAHAHAHAHAHAHAHAHAHAHAHAHAHAHAHAHAHAHAHAHAHAHAHAHAHAHAHAHAHAHAHA........।
हंसी रोकने की टेबलेट लेकर फ़िर आता हूँ। कहीं जाइएगा नहीं.......।
jay ho............
जितना लम्बा लेख, उतना ही मजा आया पढने में।
“आखिर!…हुआ क्या तनेजा जी?….क्यों इस कदर बडबड़ाए चले जा रहे हैं?”
--
भाई सब मिस और काल का कमाल ही है!
बहुत बढ़िया व्यंग्य!
काश कि आपका अंत में बॉक्स में दिया हुआ चेतावनी पहले पढ़ लेता ...
कहानी तो यहीं खत्म हो गई थी
(गुप्ता जी का मुझे घूर कर संशय भरी नज़र से देखना)
कोई किसी को समझाए कि भूतनी के शादी मत करिओ तो मुंह फुला कर दुश्मन समझ बैठता है. बाद में सारी उमर सॉरी-सॉरी करता गुजार देता है
ओह ! हमने तो अंत में दी गई चेतावनी पहले पढ़ ली । अब क्या करें ?
चलिए फुर्सत में फिर पढ़ते हैं ।
hahahahahhaahhahaahahhaahha
bahut bolte ho kya ghar par bhi rajiv ji ...
1 bar phir se padh kar maza aa gaya
राजीव भाई सच कहूं तो अभी पूरा नहीं पढ़ा है ... पर पढूंगा जरुर यह वादा रहा ... आजकल यहाँ बत्ती बहुत दुखी किये हुए है ... लगता है एक आन्दोलन यहाँ भी शुरू करना ही होगा बत्ती के लिए !
सच बहुत तकलीफ़् दी इसकी तो माफ़ी नही मिलेगी……………अब तो सिर्फ़ मिस काल वाली मिलेगी…………हा हा हा।
jab aapne likha to padhna hi parega.........waise maja aa gaya:D
ha ha ha ha ha haaaaaaaaaa
bahut hi achchha tha ..........
maja aa gaya.......... ji.........
पहली हंसी:
पहले मैं…पहले मैं करके ये मोहतरमा गैस ज़रूर करेंगी… उनकी इसी आदत पे तो मैं फ़िदा हो गया...बार-बार परफ्यूम छिडकना पड़ रहा था……*&^%$! के आगे
दूसरी हंसी:
मायका…मायका ना हो गया…पीर बाबा की दरगाह हो गया कि हर वीरवार को बिना किसी नानुकर के मत्था टेकना ही टेकना है
फिर तीसरी, चौथी, पांचवी... ... ... ...
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