"ओहो!...शर्मा जी आप... लीजिये... लीजिये... मोतीचूर के लड्डू लीजिये"....
"क्यों भय्यी?....किस खुशी में लड्डू बांटे जा रहे हैं?"...
"खुशी तो ऐसी है शर्मा जी की आप भी सुनेंगे तो खुशी के मारे उछल पड़ेंगे"...
"ओह!...तो इसका मतलब ये कि घर में चौथा मेहमान आ गया है या फिर आने वाला है?"....
"अब तो शर्मा जी चौथा क्या और पाँचवाँ क्या?...जितने भी मर्ज़ी मेहमान आ जाएँ बेशक ...कोई दिक्कत नहीं...कोई वांदा नहीं...अपना आराम से सबके सब एक ही कमरे में एडजस्ट हो जाएंगे"...
"नया घर ले लिया है क्या?"...
"नहीं!...दीवारें तोड़...कमरा चौड़ा कर दिया है"...
"ओह!...लेकिन अगर बुरा ना मानें तो एक बात कहूँ तनेजा जी?"...
"जी!.... ज़रूर..शर्मा जी... आप तो मेरे दोस्त हैं...बीवी नहीं इसलिए... आपकी बात का भला क्या बुरा मानना?"....
"जी!...शुक्रिया...
"बीवी को एक-दो बार टोक दो या फिर ठोक दो तो वो सुधर जाती है लेकिन ये दोस्त कमबख्त मारे ऐसे होते हैं जैसे....
"कुत्ते की पूंछ?"...
"जी!...बिलकुल... कितना भी समझा के देख लो... अपनी हरकतों से बाज़ नहीं आते हैं"....
"जी!....सो तो है लेकिन एक बात तो आप भी मानेगे कि दोस्त हमेशा काम की बातें करते हैं और बीवियाँ हमेशा…..
“कायदे की बात करती हैं?"...
"नहीं!... अपने फायदे की बात करती हैं"...
"जी!.... सो तो है”….
“लेकिन मैं तो यही कहूँगा की तीन-तीन जवान होते बच्चों के बाद अब और बच्चे पैदा करना ठीक नहीं"...
"जी!....लेकिन इसमें हम-आप भला क्या कर सकते हैं?...ये तो उसे खुद समझना चाहिए कि बहुत हो गया...बस...अब और नहीं"...
"तो फिर आप उसे समझाते क्यों नहीं?"...
"इसमें मैं या आप भला क्या कर सकते हैं?...ये तो उनके बीच... आपस का मामला है...अपने आप सोचेंगे कि क्या करना है और क्या नहीं करना है"...
"ओह!...तो क्या इसका मतलब आप इस सबके लिए जिम्मेदार नहीं?"...
"मैं भला क्यों जिम्मेदार होने लगा इस सबका?...हम तो भय्यी दूर बैठ के तमाशा देखने वालों में से हैं...कभी आराम से सोफ़े पे बैठ के देख लिया तो कभी कोने से उचक-उचक के देख लिया"....
"कोने से उचक-उचक के देख लिया?"...
"जी!...
"लेकिन क्यों?"...
"ये सब तो तुम जुम्मन मियां से जा के पूछो कि उन्हें इस बुढ़ापे में बार-बार पलंग की पोजीशन चेंज करने में क्या मज़ा आता है?"...
"मज़ा उन्हें आता है?"...
"उनका तो पता नहीं लेकिन मुझे ज़रूर आता है"...
"ओह!...फिर तो बड़े बेगैरत हैं आप"...
"अब आप कुछ भी कह लें लेकिन हमें तो भय्यी... ऐसे ही.....
"घर फूँक के तमाशा देखने में मज़ा आता है?"...
"जी!...बिलकुल"...
"लेकिन क्या महज़ चंद लम्हों के मज़े के लिए आप अपने घर की इज्ज़त यूं सस्ते में दाव पे लगा देंगे?"...
"इस बात की शिकायत तो मुझे भी है जुम्मन मियां से कि हर बार उनका बजट पहले के मुक़ाबले कम होता जा रहा है"...
"ओह!... लेकिन अगर ऐसी ही बात है तो फिर आपने अपनी बीवी को जुम्मन मियां के घर भेजा ही क्यों?"...
"अरे!...भय्यी....ईद का दिन था.... तो खुशी के मारे...
"तो खुशी के मारे बतौर तोहफा आपने अपनी बीवी को ही भेज दिया?"...
"मैं भला क्यों भेजने लगा?... वो अपनी मर्ज़ी से खुशी-खुशी गई थी"...
"ओह!...
"बेचारी को बड़ा शौक है ना इस सबका"...
"और आपको?"...
"अब शौक तो मुझे भी बहुत है शर्मा जी लेकिन हम ठहरे महा आलसी टाईप के आदमी..अपना आराम से सोफ़े पे बैठ के पूरा तमाशा एंजाय करते हैं"...
"आपकी तो खैर...मैं रग-रग से वाकिफ हूँ लेकिन भाभी जी को इस सब का शौक कैसे चढ़ा?"...
"अब क्या बताऊँ शर्मा जी... यूं समझिए कि जब से होश संभाला है...
“तब से ही बदचलन हो गई?"...
"एग्जैक्टली!...
"ओह!....
"हद होती है हर चीज़ की...अपना एक-आध पार एज़ ए चेंज...आज़मा लिया लेकिन ये भी क्या बात हुई कि इसे हर बार की आदत बना.... कटोरा ले...भिखमंगों की तरह पड़ोसियों के यहाँ पहुँच जाओ कि... जुम्मन मियां...ईदी दे दो...ईदी दे दो"...
"ईदी दे दो?"...
"और नहीं तो क्या बीड़ी दे दो?"...
"और वो तमाशा?...उसका क्या?"...
"वो तो होता है ना हर साल उनके घर में ईद के मौके पर...तो इस बार भी हुआ... कमाल की कारीगरी है उनके हाथों में...कठपुतलियों को तो ऐसे नचाते हैं...ऐसे नचाते है अपनी उँगलियों के इशारों पर कि बस...पूछो मत"...
"ओह!...लेकिन वो पलंग की पोजीशन.....
"वोही तो... कई बार तो इतनी भीड़ इकट्ठी हो जाती है उनके यहाँ कि पैर रखने भर की जगह भी नहीं मिलती है"....
"तो?"...
"तो क्या?...सबको एडजस्ट करने के चक्कर में पलंग को कभी इधर तो कभी उधर खिसकाना पड़ जाता है"...
"ओह!...और वो आपका उचक-उचक के देखना.....
"वो तो जिस दिन थोड़ी देर हो जाए पहुँचने में तो......
"ओह!...अच्छा....समझ गया"...
"जी!....
"तो इसका मतलब ये जुम्मन मियां के घर से आए मुफ्त के लड्डू हैं जिन्हें बाँट कर आप अपनी हवा बना रहे हैं?"...
"दिमाग खराब हो गया है क्या आपका?...य...ये आपको चार दिन पुराने बासी लड्डू दिखाई दे रहे हैं?...आँखें खराब हो गई हैं क्या आपकी?"...
"व्व....वो तो मैं...दरअसल....
"आँखें खराब हो गई हों बेशक...कोई वांदा नय्यी लेकिन नाक तो सही सलामत होगी ना आपकी?....सूंघ के ही देख लो कि ये लड्डू बासे हैं या फिर एकदम ताज़े"...
"त्... ताज़े हैं...."...
"तो?...आपने ऐसे कैसे कह दिया कि मैं ईद के बचे हुए लड्डू बाँट रहा हूँ?"....
"सोर्री!... यार...मैंने सोचा कि...
"हुंह!....सोर्री यार...मैंने सोचा कि..... क्या सोचा?"...
"म्म....मैंने तो दरअसल....
"अरे!...बेवाकूफ... अभी ताज़े आर्डर दे कर बनवाए हैं छुन्नामल हलवाई से...विश्वास नहीं है तो बेशक ये लो उसका नंबर और खुद ही पूछ के तसल्ली कर लो"...
"कमाल कर रहे हैं तनेजा जी आप भी.....जब आप खुद अपने मुंह से कह रहे हैं तो सच ही कह रहे होंगे...झूठ थोड़े ही कह रहे होंगे"...
"वोही तो"...
"लेकिन ये तो आपने बताया ही नहीं की लड्डू बांटे किस खुशी में जा रहे हैं?"...
"अमा यार!... आप चुपचाप आम खाओ ना...गुठलियाँ गिनने के फेर में क्यों पड़ते हो?"...
"बात तो यार तुम्हारी एकदम सही है... गुठलियों से भला मेरा क्या लेना-देना?"...
"वोही तो"....
"लेकिन यार... इस खुशी का कोई ओर-छोर.... कोई पता-ठिकाना तो मालूम हो कम से कम"...
"बस!... यूँ समझ लो कि लाटरी लग गई है"....
"तुम्हारी?"...
"नहीं!... पूरे दिल्ली शहर की"...
"प्प...पूरे दिल्ली शहर की?"....
"हाँ!...पूरे दिल्ली शहर की"...
"कितने की लगी है?"...
"कितने की क्या?...बस...यूँ समझ लो कि अब इस शहर में न कोई भूखा और ना ही कोई नंगा रहेगा"....
"तो क्या सब के सब मार दिये जाएंगे?"शर्मा जी की आवाज़ में व्यंग्य का पुट था....
"हुश्श!....पागल हो गया है क्या?.....भला मार क्यों दिये जाएंगे?"....
"तो क्या ज़िंदा ज़मीन में गाड़ दिये जाएंगे?"...
"नहीं!....रे बाबा"....
"ओह!...अच्छा...समझ गया... दीवार में ज़िंदा......
"हुश्श!...पागल हो गया है क्या?...यूँ समझ लो कि अब पूरी दिल्ली भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारियों से मुक्त हो जाएगी"...
"क्या सच?"...
"हाँ!...बिलकुल"...
- कोई कर्मचारी अब रिश्वत नहीं लेगा...सभी काम समय पर पूरे होंगे...
- सड़कें हर साल टूटने के बजाय सालों साल चलेंगी...
- ट्रैफिक हवादार अब बेवजह लोगों को तंग नहीं करेंगे...
- राशनकार्ड...पासपोर्ट वगैरा सब तय समय सीमा के अन्दर बिना रिश्वत दिये बन जाएंगे...
"क्यों जागते हुए को सपने दिखा रहे हो तनेजा जी?...आप बेशक कुछ भी कह लें लेकिन मुझे विश्वास नहीं हो रहा"....
"अरे!...हाथ कंगन को आरसी क्या और पढे लिखे को फारसी क्या?...खुद ही देख लेना अपनी आँखों से दिल्ली का कायापलट होते हुए"...
"ओह!...अच्छा...अब समझा"...
"क्या?"...
"कहीं ये अण्णा इफैक्ट तो नहीं कि ...मैं भी अण्णा...तू भी अण्णा"...
"हुश्श!....पागल हो गया है क्या?....इसमें अण्णा कहाँ से आ गया?....ये कमाल तो अपनी मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने कर दिखाया है"...
"ओह!...अच्छा...वो कैसे?"...
"दिल्ली विधानसभा के सभी विधायकों का वेतन दुगना करके उन्होने हमें ये खुशी मनाने का मौका दे दिया है"...
"वो कैसे?"...
"कैसे क्या?... अभी बताया तो कि पहले के मुक़ाबले उनकी तनख्वाह दुगनी करके"...
"तो?...उससे क्या होगा?"...
"भ्रष्टाचार खत्म हो जाएगा"...
"खत्म हो जाएगा या और अधिक बढ़ जाएगा?"...
"बढ़ भला क्यों जाएगा?....वो तो पूरी तरह से खत्म हो जाएगा"...
"वो कैसे?"...
"ऐसे...(मैं चुटकी बजा उसे इशारा करता हुआ बोला) ..
"मैं कुछ समझा नहीं"शर्मा जी के चेहरे पे असमंजस का भाव था...
"उफ़्फ़!...क्या मोटा दिमाग पाया है मेरे यार ने"...
"म्म...मोटा?"...
"अरे!...बेवाकूफ... ये रिश्वत लेना वगैरा कोई पेट से नहीं सीख के आता है...मजबूरी कराती है ये सब...अगर सीधी उंगली से घी निकलने लग जाए तो ये लोग अपनी उंगली टेढ़ी करें ही क्यों?"...
"हम्म!....
"महंगाई ही इतनी ज़्यादा है आज के जमाने में कि कोई करे भी तो आखिर क्या करे?"...
"जी!...सो तो है....बेईमानी ना करो...तो भूखों मरो"...
"चिंता ना करो....अब कोई भूखा नहीं मरेगा..... दुख भरे दिन बीते रे भइय्या ...अब सुख आयो रे"...
?....?...?...?...
"अच्छा!...ये बताओ कि हमारे देश में सबसे बड़े चोर कौन?"...
"हमारे नेता....और कौन?"...
"गुड!... अब जब सीधे तरीके से उन्हीं के मुँह पर नोटों का जूता मार.... उनका पेट भर दिया जाएगा तो फिर घूस खाने की गुंजाईश ही कहाँ बचेगी उनमें?"...
"हुश्श!...पागल हो गए हो क्या तुम?.... अब तो उनके मुँह और खुल जाएंगे...पहले से डबल-ट्रिपल रिश्वत की मांग करेंगे कि....
"इतने के लिए हम अपने देश से ....अपनी जनता से गद्दारी थोड़े ही करेंगे?...इससे से ज़्यादा तो हमें अब तनख्वाह ही मिल जाती है... काम करवाना है तो नज़राना हमारी मर्ज़ी का...काम तुम्हारी मर्ज़ी का"...
"क्क....क्या?"...
"हाँ!...भूल जाओ हमेशा-हमेशा के लिए इस गीत को कि 'दुख भरे दिन बीते रे भइय्या ...अब सुख आयो रे' और मय सुर ताल के अपनी माँ-बहन एक करते हुए गाओ कि ....
'सुख भरे दिन बीते रे भइय्या ...अब दुख आयो रे"...
***राजीव तनेजा***
+919810821361
+919213766753
8 comments:
Ha Ha Ha ...... Sharma ji ki to wat laga di.... bhrashtrachar khatm karne ka badhiya tarika hai...
पक्का तरीका ही यही है भ्रष्टाचार को जड़ से मिटाने का :)
हा हा हा हा हा हा ....बेचारे .शर्मा जी ...कहाँ फंस गए .....पर एक बात है ...अगर आपके लेख के मुताबिक हो जाये तो ....ये सारा हिन्दुस्तान ही सुधर जाये ....पर ऐसा होगा ...लगता तो नहीं है ......
एक अखबार ने नेता को चोर लिख दिया...
अखबार पर मानहानि का नोटिस आ गया...
अखबार के संपादक ने नोटिस देखा तो गश खाकर गिर पड़ा...
नोटिस चोर ने भेजा था...
जय हिंद...
aapka likha hua bahut hi prasangik hain , kitni barri vidambnaa hain ki netao ka vetan dugna hone par bhi corruption se koi nijaat nahi milegee. aapne bahut hi achha sandesh diya hai ki sawaal yahan netao ke pet ka nahi unki niyat ka hai.
हा हा हा ! जूता जितना बड़ा हो , पौलिस भी उतनी ज्यादा लगती है ।
रंजित के नोवल्स का एक घिसा पिटा डायलोग था ।
"कहीं ये अण्णा इफैक्ट तो नहीं कि ...मैं भी अण्णा...तू भी अण्णा"...
wahh!!!!!!! kya bat hai ! aap to hasa2 ke lot-pot kar dete hain.thanks.
:) :) :)m
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