विचार इटली के...कहानी भारत की और ज़ुबान यू.पी की |
"हद हो गई यार ये तो बदइंतजामी से भरी भारी भरकम लापरवाही की...मैं क्या आप सबकी जर खरीदी हुई गुलाम हूँ? या फिर छुट्टी से लौट आई कोई नाबालिग बँधुआ मजदूर हूँ?... ...
- क्या मैं अपनी मर्ज़ी से कहीं देर-सबेर आ-जा भी नहीं सकती?....
- क्या मेरे अपने कुछ निजी सपने एवं स्वार्थ भरे अरमान नहीं हो सकते?....
मेरी अपने...अपने बच्चों के प्रति भी कुछ जिम्मेदारियाँ...कुछ कर्तव्य हैं... आप चाहते हैं कि मैं इन सबको तिलांजलि दे बस...आप सबकी सेवा-श्रुषा में ही अपना पूरा जीवन बिता दूँ और भूले से भी कभी उफ़्फ़ तक ना करूँ?" ...
"न्न...नहीं तो"....
"तो फिर मैं चार दिनों के लिए चाँदनी चौक जा... बीमार क्या पड़ गई...एक देश नहीं संभाला गया तुम लोगों से?”….
“व्व...वो दरअसल मैडम.....
"क्या व्व...वो दरअसल मैडम?..... शर्म आनी चाहिए तुम लोगों को....वो सरेआम तुम लोगों के आगे....मीडिया के आगे उछलते...कूदते और फाँदते रहे और तुम लोग हाथ पे हाथ धर के ऐसे बैठे रहे मानों अनशन पे वो लोग नहीं बल्कि तुम लोग बैठे थे"....
"व्व...वो दरअसल मैडम...माहौल ही कुछ ऐसा बन गया था हमारे खिलाफ कि....
"बन गया था या फिर बना दिया गया था?"....
"ज्ज...जी!...बना दिया गया था"...
"तो फिर क्या किया तुम लोगों ने अपने बचाव के लिए?"...
"जी!....धारा 144 तो फर्स्ट एड के तौर पे तुरत-फुरत में लगा दी थी हमने लेकिन…
“लेकिन फायदा क्या हुआ इस सबसे?...छोटा सा ये घाव तो अब नासूर बन चला है"...
"जी!...मैडम...वोही तो"....
"वहीँ के वहीँ...रालेगन सिद्धि में क्यों नहीं दबोच लिया उस कबूतर के बच्चे को?”…
"ज्ज...जी!...मैडम....सोचा तो हमने भी यही था कि वहीं के वहीं टेंटुआ दबा...पर कतर देंगे पट्ठे के लेकिन....
"हुंह!...सोचा तो हमने भी यही था....बस...सोचते ही रहा करो...काम कुछ मत किया करो"मैडम ताना मारते हुए बोली....
"जी!...मैडम"...
"टपका क्यों नहीं दिया स्साले को वहीं के वहीं... कह देते कि... ‘पुलिस की आँख फोड़ने के चक्कर में था.... काउंटर अटैक में मारा गया"...
"ज्ज...जी!....मैडम लेकिन.....
"लेकिन तुम लोग तो बन्ना और उसकी टीम की मांगों के आगे...उनकी बेतुकी डिमांडों के आगे झुक खुशी-खुशी उनके साथ 'टोफ़्फ़ी विद चरण' खेलते रहे?... ..
"नो मैडम"....
"अच्छा?... उन्होने कहा... 'अनशन करना है' और तुमने कहा... 'घर की ही बात है... कर लो'...भय्यी!...वाह....बहुत बढ़िया...ये 'टोफ़्फ़ी विद चरण' नहीं तो और क्या है?"...
"यैस्स मैडम"...
"कल को कहेंगे ...'सर पे चढ़ कर मूतना है'...तो भी राज़ी-राज़ी खुशी से कह देना कि... 'मूत लो बड़े आराम से....दिमाग तो है नहीं.... सारी जगह खाली है' ....
"ल्ल...लेकिन मैडम....उन्हें कैसे पता कि....
"कैसे...क्या?....साफ दिख रहा है दूर से ही... अगर दिमाग होता तो कुछ सोचते.... दूरदृष्टि अपनाते"....
"ज्ज...जी!...मैडम....लेकिन कैसे?"....
"कैसे...क्या?.... आमदेव की तरह इसे भी विश्वास में ले कोरे कागजों पे साईन करवाते और बाद में बड़े आराम से...मज़े-मज़े में तेल पिले डंडे से मार-मार सीधे पवेलियन तक घुर्र-घुर्र कर धकियाते....सिम्पल"...
"जी!...कोशिश तो सच्ची... हमने बहुत की थी कसम से...बाय गॉड लेकिन जब किस्मत अपनी शुरू से ही झण्ड हो...पास अपने बचा ओनली श्रीखण्ड हो तो कोई कर भी क्या सकता है?"...
"चुल्लू भर पानी में डूब के तो मर सकता है?"...
"जी!...बात तो सचमुच डूब के मरने वाली ही हो रही थी हमारे साथ"....
"अच्छा?"मैडम के स्वर में व्यंग्यात्मक पुट था....
"जी!...कभी ऐन मौके पे हमारे छिब्बल ब्राण्ड जैल पैन की इंक खत्म हुए जा रही थी….
तो कभी...'भिग्गी' ब्राण्ड बॉल प्वाइंट बिना किसी पूर्व चेतावनी के लीक होना शुरू कर देता"...
"तो 'लिदम्बरम' ब्राण्ड कलाम-दवात ले.... हुल्ले-हुल्लारे करते हुए उनके चरणों में चरण कमल बन बिछ जाते"... ...
"जी!... वोही तो.... लेकिन इस 'लिदम्बरम' ब्राण्ड दवात की हर पल स्याह होती स्याही भी तो पूरी एकदम जमा(पक्का) ताखी सावंत निकली"....
"मैं कुछ समझी नहीं"....
"कमबख्तमारी हर पल...प्रति पल बिना किसी वजह के कभी मलखान बुर्शीद की तरफ तो कभी कनीष बिमारी की तरफ लुढ़क कर खुद बा खुद ढुलके जा रही थी"...
"हुंह!...खुद बा खुद ढुलके जा रही थी....काम कुछ होता नहीं है तुम लोगों से और बहाने बेशक लाख बनवा लो"...
"जी!...मैडम"....
"मैडम के बच्चे.... जबरन अँगूठा नहीं लगवा सकते थे उस बन्ना के बच्चे से"...
"देखिये!... मैडम....बस... बहुत हो गया...लिमिट में सिमट के बात करें आप"....
"हाँ!... अब और इन्सल्ट नहीं.... लोग जो देख-देख के हँस रहे हैं"...
"तो देखने दो.... पता तो चले सबको कि मेरे पीछे से क्या-क्या गुल खिलाए हैं मेरे महारथियों ने?"...
"गुल तो मैडम जी...आपके सपूत ने खिलाए हैं उन प्रदर्शनकारियों में समोसे और कोल्ड ड्रिंक बँटवा कर"...
"तो?...उन्हीं से लूटा माल...उन्हीं को खिला दिया तो क्या गुनाह किया?"...
"नहीं!...बहुत बढ़िया काम किया...घर का भेदी ही जब सरेआम लंका ढ़हाने पे तुला हो तो हम क्या कर सकते हैं?"...
"हुंह!...हम क्या कर सकते हैं?.... वो तो अभी बच्चा है...नासमझ है...राजनैतिक दूध के चुलबुले दाँत नहीं टूटे हैं उसके"....
"फॉर यूअर काईंड इन्फोर्मेशन मैडम जी..... लूटा हुआ माल खैरात में नहीं बांटा जाता"....
"अरे!...बेवाकूफ़ों....कुछ तो डरो ऊपरवाले के कहर से... शक्ल अच्छी नहीं दी है भगवान ने तो कम से कम बातें तो अच्छी करो"...
?...?...?...?....
"उफ़्फ़!...तौबा...पता नहीं कहाँ से पकड़ के ले आई मैं इन लंगूर छाप नमूनों को?... इतना भी नहीं जानते कि आने वाले चुनावों की अभी से तैयारी कर रहा है मेरा लाड़ला"....
"ओह!...अच्छा....समझ गए मैडम"....
"अब क्या सोचा है?"...
"हे...हे...हे....सोचने का काम तो मैडम जी...आपका है...हम इसमें बेवजह क्यों दखलंदाज़ी करें?"...
"फिर भी...कुछ निचोड़ तो सोचा होगा इस सबका?"...
"जी!...सोचा है ना"....
"क्या?"...
"यही कि...जितना हो सके लटकाए रखते हैं इस सारे मामले को.....यादाश्त बहुत कमजोर है हमारे देश की जनता की...कुछ दिनों बाद अपने आप सब भूल जाएंगे"...
"वो सब तो चलो.... भूल जाएंगे...लेकिन क्या तुम लोग भूल सकोगे मेरे-अपने अपमान को?...हम सबके घेराव को?"...
"जी!...है तो बड़ा ही मुश्किल लेकिन किया ही क्या जा सकता है?"...
"ये भी मैं ही बताऊँ?"मैडम आँखें तरेरती हुई बोली....
?….?…?…?…?….
“हम्म!…तुम लोगों के बस का तो कुछ है नहीं…. मुझे ही अपना हाथ…जगन्नाथ बन कुछ करना पड़ेगा"…
“जी!…
"तीन!...तीन साल बचे हैं ना अभी इलैक्शन में?"...
"जी!... मैडम"....
"एक-एक की अक्ल ठिकाने लगा दो”...
“जड़ से?"...
"नहीं!...दूध से"...
"दूध से?"...
"हाँ!....दूध से... दूध...दूध पी के ताकत आती हैं ना इन स्साले मध्यम वर्गीय लोगों में अनशन करने की?"...
"जी!... मैडम"...
"तो दूध-घी...फल-सब्जियाँ.... सब कुछ इतना महँगा कर दो की इनकी रूह तक उसे पीने के...खाने के नाम से काँप उठे"....
"जी!... मैडम"...
"सूंघने...सूंघने को तरसे ये इस सबको"...
"जी!....मैडम"...
"बाईक-कार चलाने का बड़ा शौक है ना इन्हें?".....
"यैस्स मैडम"....
"तो पैट्रोल भी महँगा कर दो"....
"जी!...मैडम"....
"इसके बाद धीरे-धीरे...कपड़े-लत्ते...होम लोन....बैंक लोन....गैस सिलिंडर सब का सब....
"जी!...समझ गए मैडम…हो जाएगा ये सब आराम से... घर की ही बात है”…..
“हम्म!….कोई मुश्किल तो नहीं आएगी ना?”…
“अजी!…काहे की मुश्किल….हमारे साथ…’अपना हाथ…जगन्नाथ’ जो है”….
हा…हा…हा….सबका एकसाथ खिलखिलाता हुआ समवेत स्वर...
"तख़लिया"...
(और फिर सबके प्रस्थान के साथ पर्दा गिरता है)
नोट: आप चाहें तो इसे काल्पनिक कहानी समझ सकते हैं.. :-) |
***राजीव तनेजा***
+919810821361
+919213766753
7 comments:
जी हम तो इसको बिलकुल ही काल्पनिक समझ रहे है ...
काल्पनिक समझने से क्या होगा ..है तो सच्चाई ..
सच को कैसे काल्पनिक मान लें बहुत ही बेबाकी से सच कहा है………बहुत खूब्।
मान गए गुरु जी, खूब खबर ली है. हा हा हा हा
raajiv bhai,
कुछ ऐसे ब्लॉग हैं जिन्हें बहुत से लोग पसंद करते हैं और हम भी अपवाद नहीं हैं, जैसे ही हमें यह सुखद समाचार मिला कि जन सुनवाई से जुड़े लेखकों व प्राप्त आपबीतियों का संकलन छापने के लिए एक प्रकाशन गृह सहर्ष सहमत है,
हमने कुछ सम्मानित लेखकों को सादर आमंत्रित किया कि वे अपनी किसी एक रचना को, चाहे वह किसी भी विषय पर हो पर रचनाकार स्वयं उसे विशिष्ट एवं प्रकाशन योग्य मानते हों jansunwai@in.com पर भेजें, ताकि उनकी सर्वश्रेष्ठ रचना इस नये प्रकाशन में स्थान पा सके, हालांकि हम स्वीकार करते हैं कि किसी भी लेखक के लिए अपनी सर्वश्रेष्ठ कृति का चुनाव हमेशा मुश्किल होता है.
आगामी प्रकाशन के बारे में यदि आप हमें कोई अमूल्य सलाह या सुझाव देना चाहते हैं जिस से कोई नया आयाम इस से जुड़ सके तो आपका स्वागत है.
मित्रों, शुभचिंतकों व सुधि पाठकों के आशीर्वाद की अभिलाषा में,
जनसुनवाई
bahut bahut hi achha vayang hain , isme prarmb se hi aapne pakarr bana ke rakhi, bahut hi zannatedaar hassi se otprot yeh vayng hain , sach kahu to aapka abb tak ka sarvshreshth vayang. behad prasangik.
बहुत बढ़िया व्यंग .....लिखने के लिए समय और दिमाग की जरुरत है ....समय आप निकाल ही लेते हो ...और दिमाग की आपके पास कोई कमी नहीं ....जो लिखा १०० टके सच के साथ व्यंग ...बहुत बढ़िया
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