अजब ये फेसबुक और अजब इसके रिश्ते
कभी कच्ची धूप से खिलते
कभी घुप्प अँधेरे में सिमटते
तुरत फुरत इस पल बनते
झटपट उस पल बिगड़ते
अजब ये फेसबुक और अजब इसके रिश्ते
बेगानों संग प्रीत जताते
अनजानों संग पेंच लड़ाते
कभी हँसते तो कभी रोते
सपने पर नित नए संजोते
अजब ये फेसबुक और अजब इसके रिश्ते
कभी किले हवा में हवाई बनाते
कभी रेतीली ज़मीं पर
कदम अपने ठोस टिकाते
कभी वीराने में मरुद्यान ढूंढते
कभी छिछली रेत में
समंदर उजला तलाशते
अजब ये फेसबुक और अजब इसके रिश्ते
अपनों को खुडढल लाइन लगा
बेगानों में खुशी सच्ची तलाशते
बिन मतलब इधर बढते उधर भटकते
निजता खोते संभाले न सँभलते
अजब ये फेसबुक और अजब इसके रिश्ते
यहीं पर खाते यहीं पर पीते
यहीं पर नहाते यहीं पर धोते
दामन अपना हमेशा पाक साफ़ बताते
अपने किए पे कभी खुद खेद जताते
तो कभी लांछन दूजे पे सौ सौ लगाते
अजब ये फेसबुक और अजब इसके रिश्ते
कभी बेगानी शादी में
अब्दुल्ला बन दीवानों सा नाचते
कभी अपनों से ही हर पल कतराते
कभी बिन चाबी का ताला खोजते
कभी पैसों में हर चीज़ को तोलते
अजब ये फेसबुक और अजब इसके रिश्ते
कभी खुद को पाते कभी खुद को खोते
बेवजह इनमें पिसते एडियों को घिसते
पागल बन बिन मौसम बरसात माँगते
आवारा बन सच्चा जीवन साथ चाहते
अजब ये फेसबुक और अजब इसके रिश्ते
इक पल में लाखों अरमां जवां कर डालते
पल अगले ही सबकुछ तबाह कर डालते
पल अगले ही सबकुछ तबाह कर डालते
अजब ये फेसबुक और अजब इसके रिश्ते
***राजीव तनेजा***
rajivtaneja2004@gmail.com
http://hansteraho.com
+919810821361
+919213766753
कभी कच्ची धूप से खिलते
कभी घुप्प अँधेरे में सिमटते
तुरत फुरत इस पल बनते
झटपट उस पल बिगड़ते
अजब ये फेसबुक और अजब इसके रिश्ते
बेगानों संग प्रीत जताते
अनजानों संग पेंच लड़ाते
कभी हँसते तो कभी रोते
सपने पर नित नए संजोते
अजब ये फेसबुक और अजब इसके रिश्ते
कभी किले हवा में हवाई बनाते
कभी रेतीली ज़मीं पर
कदम अपने ठोस टिकाते
कभी वीराने में मरुद्यान ढूंढते
कभी छिछली रेत में
समंदर उजला तलाशते
अजब ये फेसबुक और अजब इसके रिश्ते
अपनों को खुडढल लाइन लगा
बेगानों में खुशी सच्ची तलाशते
बिन मतलब इधर बढते उधर भटकते
निजता खोते संभाले न सँभलते
अजब ये फेसबुक और अजब इसके रिश्ते
यहीं पर खाते यहीं पर पीते
यहीं पर नहाते यहीं पर धोते
दामन अपना हमेशा पाक साफ़ बताते
अपने किए पे कभी खुद खेद जताते
तो कभी लांछन दूजे पे सौ सौ लगाते
अजब ये फेसबुक और अजब इसके रिश्ते
कभी बेगानी शादी में
अब्दुल्ला बन दीवानों सा नाचते
कभी अपनों से ही हर पल कतराते
कभी बिन चाबी का ताला खोजते
कभी पैसों में हर चीज़ को तोलते
अजब ये फेसबुक और अजब इसके रिश्ते
कभी खुद को पाते कभी खुद को खोते
बेवजह इनमें पिसते एडियों को घिसते
पागल बन बिन मौसम बरसात माँगते
आवारा बन सच्चा जीवन साथ चाहते
अजब ये फेसबुक और अजब इसके रिश्ते
इक पल में लाखों अरमां जवां कर डालते
पल अगले ही सबकुछ तबाह कर डालते
पल अगले ही सबकुछ तबाह कर डालते
अजब ये फेसबुक और अजब इसके रिश्ते
***राजीव तनेजा***
rajivtaneja2004@gmail.com
http://hansteraho.com
+919810821361
+919213766753
14 comments:
:)
इस साल जनवरी में,मैथिली-भोजपुरी कवि सम्मेलन में परिचय दास जी ने ठीक ही कहाः
झूठ-मूठ के दोस्त बनवलस
फेसबुकिया कि ट्विट्टर होई....
फेसबुक , ट्विटर यहाँ तक कि ब्लॉग रिश्ते भी सभी आभासी ही होते हैं ।
सही आंकलन किया है ।
BAHUT SAHI
bahut badhiyaaaaaaaaaaaaaa
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच पर की गई है।
चर्चा में शामिल होकर इसमें शामिल पोस्ट पर नजर डालें और इस मंच को समृद्ध बनाएं....
आपकी एक टिप्पणी मंच में शामिल पोस्ट्स को आकर्षण प्रदान करेगी......
उम्दा .. बधाई
सच्ची कही...
सादर.
hmmm...ajab ye rishte
पागल बन बिन मौसम बरसात माँगते
आवारा बन सच्चा जीवन साथ चाहते ....
bahut sahi likha hai ...badhai apko
सचमुच अजब गज़ब है ये रिश्ते !
sahi baat hai g....
sahi baat hai g....
:D kya khoob kaha hai :D
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