बिसात इश्क की आज फिर.......................मैंने बिछा दी
भाइयों ने उसके रोली चन्दन के साथ अर्थी मेरी सजा दी
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मर के नाम रौशन किया.....तो क्या किया
जिन्दगी भर तरसते रहे..बुढ़ापे में घी पिया
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सत्ता पे काबिज.........आज मैं हो तो लूँ
रुको...पहले हाथ..मुँह..पैर सब धो तो लूँ
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हिल गई सत्ता........सत्ता के गलियारों की
पौ बारह फिर बन आई निपट घसियारों की
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जश्न ए चराग....पहले तुम रौशन तो करो
फिर ईमानदारी से बिल भरो या..चोरी करो
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बदलना खुद को था लेकिन.....उम्मीदें उससे पाले था
दिमाग मेरा खराब लेकिन ढूँढता उसके यहाँ जाले था
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अजीब रिश्ता है मेरा आजकल...............तेरी माँ से
कभी प्यार आता..कभी डर लगता उसकी काँ काँ से
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ना मुझे साहित्य का ज्ञान..ना मैं साहित्य रच रहा हूँ
शायद..लिख तो कुछ रहा हूँ पर..कहने से बच रहा हूँ
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अजीब रिश्ता है मेरा आजकल ...............भूख से
कभी मिल जाती है..कभी काम चलाता हूँ थूक से
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भूख से मरुँ मैं या अपनी नीतियों से सरकार मारे
कोई तो आ के..एहसान करे...............मुझको तारे
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8 comments:
acchi tukbandi.
हलके -फुल्के ढंग से लिखते- लिखते कभी बहुत तीखी भी हुई है कलम ....जॉइंट वेंचर अच्छा प्रयोग है ..जब संजीदा होता है तो और बेहतर हो जाता है .
तुकबंदियों मेन काही गहन बातें ...
वाह गजब, बिल्कुल सटीक बात कह गये जी.
रामराम.
वापसी तो ठीक...
लेकिन मास्टर, पतलून सॉरी पोस्ट एक बिलांग छोटी
क्यों...
जय हिंद...
vaah vaah...
जय हो ... ऐसे ही महफिल जमाये रहिए !!
वो जो स्वयं विलुप्तता मे चला गया - ब्लॉग बुलेटिन नेता जी सुभाष चन्द्र बोस को समर्पित आज की ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
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