“ओह!…शिट..पहुँच जाना चाहिए था अब तक तो उसे….पता भी है कि मुझे फिल्म की स्टार्टिंग मिस करना बिलकुल भी पसंद नहीं”…
“कहीं ट्रैफिक की वजह से तो नहीं…इस वक्त ट्रैफिक भी तो सड़कों पे बहुत होता है लेकिन अगर ऐसी ही बात थी तो घर से जल्दी निकलना चाहिए था उसे"सड़क पे भारी जाम देख बडबडाते हुए मेरे चेहरे पे चिन्तायुक्त झल्लाहट के भाव थे…
“चलो!…माना कि किसी वजह से घर से ही देर से निकला होगा और फिर ट्रैफिक में भी फँस गया होगा मगर फोन तो उठाए कम से कम मेरा”माथे पे चुह आए पसीने को पोंछते हुए मैं इधर उधर टहलता हुआ बडबडा रहा था…
“कहीं किसी एक्सीडैंट में मर खप्प ना गया हो पट्ठा?”..सोचते सोचते अचानक मैं हडबडा कर रुक गया
“न्न…नहीं…ऐसा नहीं हो सकता है…शुभ शुभ बोल…बेटे…शुभ शुभ बोल”छाती पे क्रास बना..मैं हिन्दू होने के बावजूद क्रिश्चियन तरीके से प्रार्थना करता हुआ बोला….
“ट्रैफिक में ही कहीं फँस गया होगा..बेचारा”..
“हुंह!…बेचारा…इस बार तो इसको बोल के गलती कर दी मगर अगली बार नहीं"मैं खुद ही अपनी सोची हुई बात को काट रहा था
“एक्सक्यूज़ मी…क्या आप किसी की वेट कर रहे हैं?”अचानक एक महिला स्वर से मेरी तंद्रा टूटी
“ज्ज…जी…(पलट के देखो तो एक लगभग मेरी ही हमउम्र की खूबसूरत लड़की मुझसे मुखातिब हो पूछ रही थी
“अपने फ्रैंड की वेट कर रहा हूँ…फिल्म शुरू होने वाली है और वो कमबख्त है कि अभी तक आया ही नहीं"..
“ओह!..सेम हियर….मैं भी अपने फ्रैंड की वेट कर रही हूँ"….
“जी…एक बार फिर से ट्राई कर के देखता हूँ…शायद…"मैं जेब से मोबाईल निकाल कीपैड पे उँगलियाँ चलाता हुआ बोला…
“मैं भी"लड़की अपनी काजलयुक्त बड़ी बड़ी आँखें फोन में गड़ा..उसी में मग्न हो गयी…
“दरअसल….ये लडकियाँ होती ही हैं इस टाईप की..एकदम लापरवाह….दूसरों की तो चिंता होती ही नहीं है इन्हें बिलकुल भी”मैं फोन छोड़…लड़की की तरफ देखता हुआ बोला…
“हम्म!…अपना मेकअप शेकअप में बिज़ी होगी”लड़की का ध्यान उसके फोन में ही था…
“हाँ!..यही हुआ होगा”…
“हम्म!…
“गलत…बहुत गलत बात है ये तो..कम से कम सोचना चाहिए कि उसकी फ्रैंड यहाँ धूप में खड़ी इंतज़ार कर रही है उसका और वो है कि अपना मेकअप शेकअप”सहज आकर्षण के चलते..बातों बातों में मेरी ये बात बढाने की कोशिश थी
“एक्सक्यूज़ मी…क्या आप मेरे बारे में बात कर रहे हैं?”…
“जी!…और नहीं तो क्या अपने फ्रैंड के बारे में बात कर रहा हूँ?”मैंने हँसते हुए उससे खुलने का प्रयास किया
“फॉर यूअर काईंड इन्फोर्मेशन मैं यहाँ किसी लड़की का नहीं बल्कि अपने बॉय फ्रैंड की वेट कर रही हूँ”..
“ओह!…सेम पिंच…मैं भी यहाँ किसी लड़की का नहीं बल्कि लड़के का वेट कर रहा हूँ"जाने मुझे क्या सूझा और ये कहते हुए मैंने झट से आगे बढ़ उसकी नंगी बाहं पे चिकौटी काट ली
“हाउ डेयर यू टू टच मी लाईक दिस?….तुम्हारी इतनी हिम्मत कैसे हो गयी मुझे…मुझे छूने की?”लड़की हांफती हुई चिल्लाई…
इसके साथ ही तड़ाक तड़ाक की आवाज़ के साथ मेरे बाएँ गाल पर पाँचों उंगलियाँ छप चुकी थी..
“स्स…सॉरी…..सॉरी…मैडम…म्म…मेरा ऐसा कोई गलत इरादा नहीं था लेकिन…प्प..पता नहीं कैसे….
“सब समझती हूँ मैं तुम जैसे सड़कछाप मजनुओं की चालबाज़ीयाँ…ज़रा सी लिफ्ट दी नहीं किसी लडकी ने कि सीधे उसके साथ बिना घर बसाए तूँ तड़ाक करने की सोचने लगते हैं…तुमसे दो मिनट बात क्या कर ली….छूने छुआने तक पहुँच गए…बुलाऊँ क्या मैं अभी पुलिस को?…
“म्म….मैं तो बस…ऐसे ही….लेकिन आपने भी तो…
“हुंह!…ऐसे ही…अब अगर मैं भी यही कहूँ कि मैंने भी ऐसे ही थप्पड़ मार दिया था…तो?”लड़की का तिलमिलाना जारी था…
“म्म्म..मैडम जी…प्प…प्लीज़ मानिए मेरी बात को….म्म…मैं ऐसा लड़का नहीं हूँ”मैं विनीत स्वर में लगभग मिमियाता हुआ सा बोला…
“लड़की तो यार…मैं भी ऐसी नहीं हूँ….तुमने ही गुस्सा दिला दिया मुझे….मैं क्या करूँ?”लड़की का स्वर नरम पड़ चुका था…
“इट्स…ओ.के…कोई बात नहीं…गलती मेरी ही है..मुझे ही ध्यान रखना चाहिए था"मैं अपना गाल सहलाता हुआ आहिस्ता से बोला…
“ज्यादा जोर से लगी?”…
“न्न…नहीं तो…कुछ ख़ास नहीं"…
“झूठे!…सच सच बताओ ना…बहुत जोर से लगा था ना?”लड़की पास आ…मेरा गाल को हौले से सहलाते हुए बोली…
“य्य्य…ये क्या कर रही हैं आप?…दद…दूर हटिए…कोई देख लेगा"…
“तो?…देख लेगा तो देख लेगा…ये सब तो आम चलता है यार आजकल"…
“लेकिन मैं इस टाईप का नहीं हूँ"….
“तो फिर किस टाईप के हो?”लड़की फिर नज़दीक आ..मुझसे सटने का प्रयास करने लगी……
“कोई फायदा नहीं….मैं तो ‘गे' हूँ"मैं उसे लगभग चिढाता हुआ बोला…
“कक्क..क्या?”…
“जी!…
“हम्म!…लेकिन लगते तो नहीं किसी भी एंगल से"लड़की मुस्कुराते हुए मेरा ऊपर से नीचे तक सघन रूप से मुयायना करते हुए बीच में रुक गयी…
“इसमें लगने जैसी क्या बात है?…गे भी तो आम लड़कों जैसे ही होते हैं”मैं सफाई देता हुआ बोला…
“हाँ!..उनके कोई अलग से सींग थोड़े ही उगे होते हैं?”…
“जी!…
“लेकिन यार…एक बात बताओ…अच्छे भले हैंडसम हो…ये गे वे के चक्कर में कैसे पड़ गए?”…
“अब क्या बताऊँ?…कोई ढंग का साथी नहीं मिला तो…
“तो जो मिला..उसी को अपना लिया?”…
“हम्म!..उसी के साथ ही तो फिल्म…
“ट्रिंग…ट्रिंग…
“ओह!…एक मिनट…उसी का फोन है…
“हाँ…हैलो…
“क्या?..
“अभी कहाँ पर है?….बस दो मिनट में ही चालू होने वाली है….तू बता तो सही…हैं कहाँ पर?”…
“क्या?…अभी तक वहीँ पर है?….तो स्साले…ठीक क्यों नहीं करवा के रखता है?”..
“अब मर खप्प वहीँ…मैं भी जा रहा हूँ”….
“ना…बिलकुल नहीं…मेरे बस का नहीं है अकेले फिल्म देखना…मैं भी वापिस जा रहा हूँ”…
“गलती हो गयी जो तेरे साथ फिल्म देखने का प्रोग्राम बनाया…भाड़ में जा तू और भाड़ में जाए तेरी कार”कहते हुए मैंने गुस्से में टिकटें फाड़ दी ..
“शिट्ट…शिट…शिट…शिट
“क्या हुआ?”…
“कुछ नहीं यार…सारा मूड ऑफ हो गया…इतने दिनों बाद पिक्चर का प्रोग्राम बनाया और वो भी कैंसिल”…
“ओह!…
“सारे मूड की ऐसी तैसी हो गयी”….
“लेकिन टिकट तो कम से कम…
ट्रिंग ट्रिंग….
“शश्श…उसी का फोन है….एक मिनट"लड़की मुझे चुप रहने का इशारा करती हुई बोली..
“हाँ….हैलो….कहाँ हो तुम?”….
“पता है कितनी देर से तुम्हारा इंतज़ार कर रहीं हूँ और तुम हो कि….पता है ना तुम्हें कि मुझे धूप में एलर्जी हो जाती है”…
“अच्छा…और कितनी देर लगेगी?…जल्दी से आ जाओ ना जान”…
“लव यू”…
“व्हाट?….तुम्हारा मतलब टिकट भी अभी लेनी है?….इतने दिन पहले से क्या तुम झक्क मार रहे थे?…अगर पहले ही मुझे कह देते तो अब तक मैं ले चुकी होती….तुम्हारे साथ तो ना…कोई प्रोग्राम बनाना ही फ़िज़ूल है”…
“अच्छा…अच्छा..अब ड्रामा ना करो…मैं ले रही हूँ टिकट…तुम बस..फ़टाफ़ट आ जाओ”
“क्या हुआ?”…
“कुछ नहीं…पागल का बच्चा..मुझे कह रहा है टिकट लेने के लिए….शर्म भी नहीं आती"…
“वैसे अगर आप बुरा ना मानें तो एक बात कहूँ?”…
“हाँ-हाँ…बिलकुल"…
“ये आजकल के लड़के बड़े ही चालू होते हैं"…
“चालू मतलब?’….
“मतलब..चालाक बहुत होते हैं…अपने पल्ले से एक पैसा खर्च नहीं करना चाहते…सोचते हैं कि सारे पैसे….
“अरे!…नय्यी यार…मेरा रौनी बिलकुल भी ऐसा नहीं है…वो तो बाय चाँस….
“पर्स आज घर पे भूल आया?”…
“अरे!…तुम तो जीनियस हो यार…तुम्हें कैसे पता कि….
“बस!…ऐसे ही तुक्का मारा और वो फिट हो गया"…
“फिट नहीं…हिट हो गया"…
हा….हा…हा…(हम दोनों की हँसी का समवेत स्वर)
“अब क्या इरादा क्या है जनाब का?”…
“इरादा क्या होना है?…घर जा के वही फेसबुक..ट्विटर…
“छोड़ ना….ट्विटर शविटर..चल!…तू भी हमारे साथ फिल्म देख”…
“लेकिन वो..तुम्हारा बॉय फ्रैंड?”…
“उसको भला क्या पता चलेगा?”…
“मैं कुछ समझा नहीं"…
“तुम मर्दों में…ऊप्स सॉरी..गेओं में यही तो कमी होती है कि काम की बात कुछ समझते नहीं"…
?…?…?…?
“एक काम करो…तुम पहले जा के सीट पे बैठ जाना…उसने वैसे भी अन्दर ही मिलना है..उसे आने में थोड़ा देर हो जाएगी"…
“देख लो…तुम्हें कोई दिक्कत ना हो जाए मेरी वजह से"…
“अरे!..कोई दिक्कत नहीं होगी…तुम चिंता ना करो"…
“जब तुम्हें कोई दिक्कत नहीं तो भला मुझे क्या दिक्कत हो सकती है?”….
“ओ.के…तुम यहीं रुको…मैं टिकट लेकर…
“पागल हो क्या?…मेरे होते हुए तुम भला क्यों टिकट खरीदोगी?”…
“लेकिन यार…ये कुछ ठीक नहीं लग रहा है मुझे”…
“क्या?”…
“यही कि मैंने ही तुम्हें साथ में फिल्म देखने के लिए इनवाईट किया और मैं तुमसे ही पैसे खर्च करवा रही हूँ"…
“अरे!..छोड़ो ना..इस बार मैं खर्च कर देता हूँ..अगली बार तुम खर्च कर देना"…
“वैरी गुड…तो आज के बाद भी जनाब का मेरे साथ फिल्म देखने का इरादा है?”…
“हाँ-हाँ..क्यों नहीं…लेकिन वो कबाब में….
“यू मीन…रौनी?”…
“एगजैकटली”..
“यू नॉटी बॉय"वो मेरा गाल खींचते हुए बोली…
“शश्श…यहाँ नहीं…हॉल में…कहीं रौनी ने देख लिया तो"मैं उसे इशारा कर समझाता हुआ बोला..
“हम्म!…कलेवर बॉय”वो सावधानी से इधर उधर देख मुस्कुराते हुए बोली…
“अच्छा अब देर ना करो…और फटाफट टिकट ले आओ…और हाँ…कार्नर सीट की टिकटें बिलकुल भी मत लाना”…
“क्यों?…क्या हुआ?…
“अरे!…तुम्हें नहीं पता..ये रोंनी का बच्चा कितना नॉटी है"…
“मुझसे भी ज्यादा?”मैं एक आँख दबा मुस्कुराता हुआ बोला…
“अब मुझे क्या पता…ये तो आज़माने पर ही पता चलेगा”उसके चेहरे पे शरारत तैर रही थी..
“अच्छा?…अभी बताऊँ?”मैं आगे बढ़ता हुआ बोला…
”न्न…यहाँ नहीं…अन्दर हाल में"…
“उसके होते हुए भला कहाँ मौका मिलेगा यार?”मैं उदास होने का उपक्रम करता हुआ बोला…
“अरे!..चिंता क्यों करते हो?…मैं हूँ ना…मौका लगते ही….
“प्रामिस?”…
“पक्का प्रामिस"…
“वाऊ"मेरे चेहरे पे ख़ुशी छलके जा रही थी..
“अब ये वाऊ शाऊ छोड़ो और जा के फ़टाफ़ट टिकट ले आओ…”..
“हाँ..बस…मैं यूँ गया और यूँ आया”..
“यूँ जाओ तो सही लेकिन आना नहीं”…
“मैं कुछ समझा नहीं"…
“अरे बाबा..वहीँ से एक टिकट लेकर अन्दर चले जाना और बाकी के दो टिकट गेटकीपर के पास ही छोड़ देना कि मधु नाम की एक लड़की आएगी..उसी को दोनों टिकट दे देना
“अरे!…वाह..ये तो कमाल हो गया"…
“क्या?”…
“मैं तो तुम्हारा नाम ही पूछना भूल गया"…
“तो अब कौन सा गाडी निकल गयी है…अब पूछ लो"…
“तुम्हारा नाम क्या है मधु?”…
“मधु"….
“वाऊ..बड़ा प्यारा नाम है…मधु"…
“थैंक्स"…
“अब जा के फ़टाफ़ट टिकट ले आओ"…
“आओ?…अभी तो तुम कह रही थी कि वापिस आना नहीं"…
“हाँ-हाँ वही….अब जाओ भी"मधु मुझे प्यार से धक्का देती हुई बोली…
“कमाल है…कभी कहती हो…आओ भी…अब कह रही हो जाओ भी"…मैं हँसता हुआ टिकट खिड़की की तरफ बढ़ गया
छुट्टी का दिन होने की वजह से सिनेमा हॉल में काफी भीड़ थी…होनी ही थी…टॉप का बैनर…बढ़िया म्युज़िक…दमदार पटकथा…सबसे खूबसूरत हिरोइन और ऊपर से सुपर स्टार ‘xxx खान’…और भला क्या चाहिए जनता को?……
खैर…मर मरा के जैसे तैसे बीच की रो(Row) में कार्नर से पांचवी..छटी और सातवीं सीट मिली…दो टिकट गेटकीपर को थमा..मैं हाल के अन्दर जा अपनी सीट संभाल के बैठ गया….
फिल्म शुरू हो चुकी थी…यही कोई दो चार मिनट बाद मधु भी हाथ में पॉपकार्न का बड़ा वाला डिब्बा ले मेरे साथ वाली सीट पे आ कर बैठ गयी…और फुसफुसाते हुए बोली “मैंने सीट नंबर रौनी को व्हाट्सएप कर दिया है”…
“ओ.के"…
“तुम बस…थोड़ा ध्यान रखना..उसके सामने मुझसे कोई बात नहीं करना"…
“ओ.के जान…”कहते हुए मैंने हौले से उसके हाथ पे किस कर दिया…
उसकी तरफ से कोई विरोध ना पा कर मेरा हौंसला बढ़ने ही वाला था कि वो फुसफुसाई"…रौनी आ गया"…
“ओह!..शिट”मैं मन ही मन बुदबुदाया और स्क्रीन पर चल रही फिल्म की तरफ अपना ध्यान केन्द्रित करने का प्रयास करने लगा…लेकिन भला अब फिल्म में मन लगता भी तो लगता कैसे?…सीन दिमाग के ऊपर से निकलते जा रहे थे…कुछ समझ नहीं आ रहा था…सब दृश्य आपस में गडमड हो रहे थे…बीच में मौका निकाल कई बार मधु पॉपकार्न का डिब्बा मेरी तरफ बढ़ा देती…पॉपकार्न लेने के बहाने मैं जानबूझ कर उसकी नरम कोमल उँगलियों को छूने के सौभाग्य को अपने से दूर नहीं कर पा रहा था…लेकिन बीच बीच में जब मुझे मधु की रौनी के साथ बात करते हुए अचानक खिलखिलाने की आवाज़ सुनाई देती…मेरी छाती पे ढेरों साँप से लोटने लगते
इस बीच इंटरवेल होने पर जब हॉल की बत्तियां जल उठी…मैंने अनजान बनते हुए रौनी का चेहरा देखने के लिए उसकी तरफ मुंह किया तो हाल में एक साथ तीन चीखें सुनाई दी…एक चीख मेरी…दूसरी रौनी की और तीसरी हम दोनों की चीखें सुनंने के बाद मधु की चीख थी…
मैं जोर जोर से चिल्ला रहा था…”स्साले!…तू ‘रौनक’ से ‘रौनी’ कब हो गया?”…
और वो मेरा गला पकड़ा मुझ पर चिल्ला रहा था… “तूने तो स्साले…मेरे सामने ही टिकट फाड़ दी थी…फिर हाल में कैसे आ गया?”…
कुछ देर बाद…फटी कमीजों और चेहरे पे खरोंचों के निशानों के साथ हम दोनों चिल्ला रहे थे…
”अरे!..भाई…कोई डॉक्टर को बुलाओ…मैडम बेहोश हो गयी है"…
***राजीव तनेजा***
+919810821361
+919213766753
26 comments:
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शुक्रवार (04-07-2014) को "स्वप्न सिमट जाते हैं" {चर्चामंच - 1664} पर भी होगी।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत बढ़िया कहानी..... खोदा पहाड़... निकला डायनासोर...... वाह
jab teeno hee chalo hon to aisa hona bahut sambhav hai.
हा हा हा हा, मै सोच रहा था कि कहानी थोड़ी और लम्बी जाएगी पर …… दरवाजा खुलते ही कमरा खत्म हो गया। वैसे बहुत अच्छा लगा मुझे आज एक अरसे के अजीज प्रिय लेखक की कहानी पढ़ रहा हूँ। स्वागत है मित्र :)
rajiv bhayi ,
kya kahne , maza aa gaya . aajkal kee duniya ka sahi rang aapne apni kahani me daal diya hia . aapki purani kahaniya taazi ho gayi hia .
shukriya is padhwaane ka !
vijay
मैडम जब होश में आई होगी तो आप दोनों के बचे खुचे कपडे भी नोच डाले होंगे :)
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Rajeshwar Rai :
सुबह उठ कर पहले आपकी कहानी पढ़ा ।बहुत परफेक्ट है ।इसकी टाइपिंग और प्रूफ रीडिंग इसे उम्दा बनाती है ।अहसास आपमें ज़बरदस्त हैं,लगातार लिखो तो कमाल कर दोगे ।भावनायें उकेरना अच्छे अच्छों के बस की बात नहीं होती ,आपने वो बखूबी किया है ।
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Ramshyam Hasin:
मैंने कहानी पड़ी ..बहुत बढ़िया ....अच्छी आजकल के परिधान की कहानी है .
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Sonam Gill:
Waah jor I story hai par itni chalu ladki thoda atpta sa laga padh kr hasy k hisab se theek par ladki ka role agli baar toda acha likhe bahyt sari shubhkamnao k sath
mazedaar kahani..bolti hui bhasha shelly....kahani ke beech related pictures ise jeevant banati hain...
Rajiv ji...badhai aapko
क्लाईमैक्स कहानी की जान है ……… मज़ा आ गया ……… आज की जीवन शैली में गिरते मूल्यों को भी बखूबी उकेर दिया और हास्य में शानदार व्यंग्य भी पिरो दिया जिसमें आपको महारत हासिल है …… बधाई इसी तरह लिखते रहें और आगे बढते रहें ।
kahaani badhiya thi....
likhte rahiye.....
यही है आजकल का प्रेम।प्यार के नाम पर एक-दूसरे को बेवकूफ बनाओ। आज की यथार्थपरक कहानी। शुभकामनाएं।
बहुत अच्छा लिखा है राजीव जी... संबंधों के वर्तमान हालात पर व्यंग्य करती हुई प्रवाहमान कहानी। यह आपकी पहली कहानी है जो मैंने पढ़ी है। आपमें कहानी लेखन की संभावनाएँ हैं... बधाई व शुभकामनाएँ... :)
बहुत खूब ! बहुत खूब !! क्या बात है --हा हा हा हा क्या दोस्त है और क्या उनकी दोस्ती । आजकी जनरेशन पर आपका तीखा व्यंग पसंद आया --ये तो वही बात हुई --
" तू नहीं तो और सही ,और नहीं तो और सही --- "
हा हा!! ये क्या हुआ!!!
मजा आ गया ...बहुत दिनों बाद कहानी आई मगर मजेदार!!
वैसे मैडम को फिर होश कब आया?? :)
कहानी की भाषा शैली अच्छी हैं पर्स्तुती कारन भी मजबूत हैं आरंभ से अंत तक बंधने की कल्ला हैं आपकी लेखनी में नहीं पसंद आया कुछ अकहानी में तो उसकी पटकथा वास्तविकता से दूर हैं ,
कितना भी कोई लडकियों को कुछ कह ले किन्तु कभी ऐसा हो नहीं सकता की कोई लकड़ी एक बार मिलने पे किसी के साथ फिल्म देखने चली जय वहां पर पाने बॉय फ्रेंड को भी बुलाये पटकथा अच्छी चुनिए तो अच्छे लेखाक हैं मेरे हिसाब से
पटकथा स्तरीय होनी चहिये जरुर उससे ही लेखक की मानसिकता अंदाज़ा मिलता हैं ,
आपकी कहानी बहुत ही अच्छा विषय लिये हुये है. आजकल का फटाफट इश्क तो ऐसा ही होता है बस शारीरिक. औरी भाषा शैली तो कमाल की है. एकदम किसी फिल्म की तरह पूर समय बाँध रखती है. एक भी फालतू सम्वाद नहीं है इसमें. एक सम्पूर्ण रोचक कहानी. पढ़कर मजा आ गया. इसे ब्लॉग के अलावा भी कहीं प्रकाशित कराया है या नहीं राजीव जी ?
बहुत सुन्दर प्रस्तुति.....एक रोचक कहानी. पढ़कर मजा आ गया.
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Lokesh Menaria
हा हा हा हा
मज़ा आ गया सर, आजकल का इश्क ऐसा ही है। कहानी का क्लाइमेक्स सुपर अकल्पनीय था, दूसरा पहलु यह भी की कहानी ज्यादा बड़ी भी नहीं है जिससे यह पाठक को बोर भी नहीं करती। उम्दा लेखन
Wish you all the Best sir.
वाह,बहुत मजेदार कहानी।
ये इश्क़ नहीं आसां इतना तो समझ लीजे
और
यूँ ही लिखते रहिये...
ha ha ha bahut achhi kahani aaj kl log aise hi chalu hote hai
ha ha ha bahut achhi kahani aaj kl log aise hi chalu hote hai
हा हा हा हा हा ....कमाल हो गया
welcome back राजीव भाई
पढ कर मैं तो हंसते हंसते लोटपोट हुई जा रही हूँ।..क्या जबरदस्त।
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