"घुसपैठ"- लघुकथा
आज मुझे किसी बुज़ुर्ग रिश्तेदार की श्रद्धांजलि सभा में जाना पड़ा। हँसते खिलखिलाते जब हम वहाँ पर पहुँचे तो औरों की तरह हमारे चेहरे पर भी मुर्दनी छा चुकी थी। सब कुछ सही तरीके से विधिनुसार ठीकठाक चल रहा था, बढ़िया खाना पीना...शोकसंतप्त परिवार, हँसते-खिलखिलाते या फिर रो-रो कर भैढे़ मुँह बनाते इधर-इधर से टपकते रिश्तेदार, खामख्वाह टाइप के मिलने जुलने वालों का तो मानों तांता सा लगा था, सुरमयी आवाज़ में हारमोनियम एवं ढोलक की थाप के साथ प्रवचन इत्यादि... रिहर्सलानुसार सब का सब एकदम सधे एवं सही तरीके से विधिवत चल रहा था।
मधुर प्रवचन के बाद पंडित जी ने जब विराम लिया तो शोकसंतप्त परिवार की बेटी और दामाद ने शोक संदेश पढ़ने के लिए माइक संभाला। परमेश्वर का नाम ले शुरू हुए उनके संदेश में जीवन, मृत्यु, ईश्वर समेत सब अच्छाईयों एवं बुराइयों के जिक्र के बाद उनके द्वारा मधुर स्वर में गीतमयी धुन लिए प्रार्थना प्रारंभ हुई।
सब के सब मौन साधे चुपचाप श्रद्धा भाव से प्रार्थना सुन रहे थे। प्रार्थना में पंडित जी की टल्ली(घँटी) के साथ बहुतों की आवाज़ें भी समवेत स्वरों का रूप लेते हुए लयबद्ध तरीके से उनका साथ देने लगी। बिना किसी पूर्वानुमान अथवा अंदेशे के इस तरह सनातन धर्म में ईसाई धर्म की पूर्णतः सफल तरीके से घुसपैठ हो चुकी थी।
***राजीव तनेजा***
6 comments:
गजब घुमा घुमा कर मारा है आपने तो लघु कथा के बहाने अपने तो सारा सच ही सामने रख दिया
शुक्रिया
सुंदर सत्य ।
👍 हंसते रहो मुस्कुराते रहो
संक्षिप्त करारे तंज के साथ । बधाई राजीव जी ।
ऐसे ही घुसपैठ करवाने के हम आदि होते जा रहे हैं.
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