पाप

"अररर..अरे!..ये क्या कर रहा है बेवकूफ़? मत उठा..पाप लगेगा..टोना है।" बीच सड़क कुछ फूल, मिठाई और छुटकर पड़े पैसों को उठाने के लिए लपकते हुए मेरे हाथों को वो जबरन खींच कर रोकता हुआ बोला।

"हुंह!...मुझे भला क्यूँ पाप लगेगा? पाप तो उस ऊपर बैठे ऊपरवाले को लगेगा जो हमें कई दिनों से भूखा मार रहा है।" मैं फिर झटके से अपना हाथ छुड़ा..नीचे झुकता हुआ बोला।

3 comments:

अजय कुमार झा said...

बहुत कम शब्दों में बहुत गहरी बात कह रहे हैं आप राजीव भाई

राजा कुमारेन्द्र सिंह सेंगर = RAJA Kumarendra Singh Sengar said...

भूख

रेखा श्रीवास्तव said...

भूख कुछ नहीं देखती ।

 
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