"नॉस्टेल्जिया"
बताओ ना...
पुन: क्यूँ रचें...लिखें...पढ़ें..
या फिर स्मरण करें..
एक दूसरे को ध्यान में रख कर लिखी गयी
उन सब तमाम..
बासी..रंगहीन..रसहीन प्रेम कविताओं को
बताओ ना...
क्यूँ स्मरण करें हम...
अपने उस रूमानी..खुशनुमा दौर को
क्या मिलेगा या फिर मिलने वाला है..
आखिर!..इस सबसे अब हमें..
सिवाए ज़िल्लत...परेशानी और दुःख के अलावा
अब जब हम जानते हैं..
अच्छी तरह से कि...
अब इन सब बातों का..
कोई असितत्व..कोई औचित्य नहीं...
तुम भी खुले मन और अपने अंत:करण से...
किसी और को स्वीकार कर चुकी हो...
और मैंने भी अब किसी और को
अब अपने मन मस्तिष्क में..
राज़ी ख़ुशी..ख़ुशी से बसा लिया है
बताओ ना..
पुन: क्यूँ रचें...लिखें...पढ़ें..
या फिर स्मरण करें..
एक दूसरे को ध्यान में रख कर लिखी गयी
उन सब तमाम..
बासी..रंगहीन..रसहीन प्रेम कविताओं को
सिवाए इसके कि यही नोस्टैल्जिया ही अब..
उम्र भर हमें जीने का संबल देता रहेगा
राजीव तनेजा
4 comments:
बहुत सुन्दर. अतीत की प्रेम की बातें ही तो जीवन को रसपूर्ण बनाएगी.
शुक्रिया
बहुत खूब ... ये नोस्टेलजिया ही है ...
पर अच्छा भी यही लगता है ... ण चाहते हुए भी ...
लाजवाब रचना ...
लाजवाब
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