अगर किसी कहानी या उपन्यास को पढ़ते वक्त आपको ऐसा लगने लगे कि..ऐसा तो सच में आपके साथ या आपके किसी जानने वाले के साथ हो चुका है। तो कुदरती तौर पर आप उस कहानी से एक जुड़ाव..एक लगाव..एक अपनापन महसूस करने लगते हैं। ऐसा ही कुछ मुझे इस बार महसूस हुआ जब मुझे मधु चतुर्वेदी जी का प्रथम कहानी संग्रह 'मन अदहन' पढ़ने का मौका मिला। यूँ तो इस किताब को मैं कुछ महीने पहले ही मँगवा चुका था लेकिन जाने क्यों हर बार अन्य किताबों को पहले पढ़ने के चक्कर में एक मुस्कुराहट के साथ इस किताब का नम्बर आते आते रह जाता था कि इसे तो मैं आराम से..तसल्ली से पढ़ूँगा।
अब इस लॉक डाउनीय तसल्ली में क़िताब को पढ़ने के बाद बिना किसी लाग लपेट के एक ही बात ज़हन में आयी कि..हमें अगर जानना हो कि रोज़मर्रा के जीवन में घटने वाली छोटी छोटी बातों..घटनाओं और किस्सों को बारीकी भरी नज़र से कितना विस्तृत..रोचक एवं दिलचस्प बनाते हुए लिखा जा सकता है? तो इसके लिए हमें 'मन अदहन' पढ़ना होगा।
इस संकलन की 'बड़ी आँखों वाली' कहानी में अगर कही स्कूल कॉलेज की शरारतें एवं हूटिंग भरी चुहलवाज़ियाँ नज़र आती हैं तो कहीं इसमें संजीदगी..सम्मान और स्नेह भरी बातें भी मज़बूती से अपनी पकड़ बनाती दिखाई देती हैं। तो वहीं अगली कहानी 'हमारी शादी' हमें नॉस्टेल्जिया में जा..वही समय फिर से जीने को मजबूर कर देती है। जिसमें पति के नाम पत्नी के पत्र के ज़रिए विवाह हेतु लड़की देखने/दिखाने ले कर शादी..बच्चे..सुख दुख..उतार चढ़ाव..नोक झोंक..मान मनौव्वल इत्यादि सहज मानवीय अभिव्यक्तियों को फिर से जिया गया है।
इस संकलन की 'पतंगबाज़ी' कहानी में खुद भी बच्चे बन, पतंगों से जुड़ी, बचपन की उन सुनहरी यादों को फिर से याद किया गया है जिनमें पेंचे लड़ाने से ले कर चरखी पकड़ने..ढील देने..मांझा बनाने..पतंग काटने/लूटने तक की हर छोटी बड़ी प्रक्रिया का सरल..सहज चित्रण मौजूद है।
'मेरी झिल्ली' कहानी जहाँ एक तरफ़ पानी की कमी एवं अन्य समस्याओं के चलते, कर्ज़ में डूबे गरीब किसानों की बात करती है जिन्हें रोज़गार की तलाश में गांवों से शहरों की तरफ पलायन करने को मजबूर होना पड़ा। तो वहॉं दूसरी तरह कहीं यह कहानी उड़ीसा..छत्तीसगढ़ के गरीब किसानों की बेबसी..त्रासदी भरे जीवन और छोटी छोटी इच्छाओं..खुशियों की बात करते करते शहरी हवा लगने से उनके रंग और औकात बदलने की बात करती है। कहीं यह कहानी तमाम विश्वास..स्नेह एवं लाड़ प्यार के बावजूद विश्वास की कसौटी पर किसी के छले जाने की बात करती है।
'गाँव की ओर' कहानी में जहाँ एक तरफ़ अनौपचारिक वातावरण में अपनत्व से रह रहे, अजीबोगरीब नामों वाले, उन ग्रामीणों की बात है जो सहज हास्य एवं मिलनसारिता के बल पर हर किसी को अपना बना लेते हैं। तो वहीं दूसरी तरफ़ इस कहानी में गाँव गुरबे की औरतों में शहर की औरतों के पहनावे..खानपान और खुलेपन के प्रति विस्मय एवं कौतूहल झलकता है।
'बेबी दीदी की शादी' नामक कहानी में यह संकलन बड़े ही हास्यास्पद तरीके से किसी को, संकोचवश, शुरू से आखिर तक, किसी और के ब्याह की सीडी, उसका मन ना होने के बावजूद..मन मार, देखने को मजबूर करता है।
इस संकलन की अंतिम कहानी 'अम्मा की खाट' दादी/नानी के बच्चों के प्रति लगाव और उन्हें सुनाई जाने वाली कहानियों से ले कर पुराने..बुज़ुर्ग लोगों के बीच खाट की ज़रूरत..महत्त्व और उससे उनके लगाव के बीच उन पर सूखने के लिए डलते पापड़ एवं बड़ियों की बात करती है।
रोचक शैली में लिखी गयी इस संकलन की कहानियाँ बीच बीच में मुस्कुराने के कई मौके देती है। उनकी रचनाओं में, माहौल के हिसाब से पात्रों की हर छोटी बड़ी हरकत एवं भाव पर बारीक नज़र रखने और उनसे पाठकों को जस का तस रूबरू करवाने के लिए लेखिका को बहुत बहुत बधाई। हालांकि पाठकीय नज़रिए से यह रचनाएँ मुझे कहानियाँ कम और संस्मरण ज़्यादा लगे।
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