अपने अपने मेघदूत- पूनम अहमद

किसी भी कहानी या उपन्यास के लेखन का मकसद अगर  ज़्यादा से ज़्यादा पाठकों तक उसकी पहुँच.. उसकी पकड़ को बनाना हो तो ये लाज़मी हो जाता है कि उसकी भाषा..शैली एवं ट्रीटमेंट आम आदमी की समझ के हिसाब से यानी के सहज एवं सरल हो। ऐसे में ये ज़रूरी हो जाता है कि उन कहानियों की विषय वस्तु भी ऐसी हो कि आम पाठक उससे आसानी से खुद को कनैक्ट कर सके..जोड़ सके।

दोस्तों..आज मैं लेखिका पूनम अहमद द्वारा लिखे गए एक ऐसे ही कहानी संकलन की बात करने जा रहा हूँ जिसमें हमारे समाज एवं आसपास के माहौल में घट रही घटनाओं का कहानियों की ज़रूरत के हिसाब से समावेश किया गया है। पिछले 15 वर्षों से लेखन के क्षेत्र में सक्रिय पूनम अहमद का नाम आज किसी परिचय का मोहताज नहीं है।  अब तक कई प्रतिष्ठित पत्रिकाओं जैसे गृहशोभा, सरिता, मुक्ता, मेरी सहेली, वूमेंस एरा, फेमिना इत्यादि में छपने के अतिरिक्त अनेक  समाचार पत्रों में उनकी लगभग साढ़े पांच सौ कहानियां और दो सौ के आसपास लेख प्रकाशित हो चुके हैं। इनके अब तक 4 कहानी संग्रह आ चुके हैं एवं दो प्रकाशनाधीन हैं।

  इसी संकलन की एक कहानी में पार्क के बैंच के माध्यम से पैंतीस वर्षीया उस वल्लरी की बात कही गयी है जिसे खामख्वाह पार्क में बैठ अपने एकांतपन से जूझ रही बूढ़ी औरतों से बतियाना पसन्द नहीं। मगर क्या यही स्थिति तब भी बनी रह पाएगी जब वल्लरी स्वयं उनकी उम्र तक पहुँचेगी?

इसी संकलन की एक अन्य कहानी में विवाहित बेटी, कविता के घर बीस दिनों के लिए रहने आयी राधिका, उसका,  उसकी बेटियों के साथ स्नेह देख कर स्वयं अपराधबोध से ग्रसित हो जाती है कि उसने कभी अपनी बेटियों को ऐसा लाड़ प्यार नहीं दिया।

इसी संकलन की एक अन्य कहानी में अपने अपने घरवालों के विरोध के बावजूद सुहास और नितिन एक साथ रहने का फ़ैसला करते हैं और एक अनाथ बच्चे अंश को गोद ले उस पर अपना सारा प्यार लुटाते तो हैं मगर उन्हें डर है कि अंश के जीवन में आने वाली लड़की उनके साथ क्या सहजता से रह पाएगी? 

इसी संकलन की एक कहानी में जहाँ बच्चों के बड़े हो..विदेश में सैटल हो जाने के बाद अकेलेपन से जूझ रही मेघ उस समय खिल उठती है जब उसे पता चलता है कि अगले महीने दोस्तों के साथ होने वाली किट्टी पार्टी उसके घर में होने वाली है। तो वहीं एक कहानी में अपने बेरोज़गार पति आलोक की कैंसर से मृत्यु हो जाने के बाद जब सुनंदा से पति का आवारा दोस्त और पड़ोसी आत्मीयता बढ़ाने का प्रयास करते हैं तो सुनंदा उन्हें कठोरता से झिड़क तो देती है मगर...

इसी संकलन की एक अन्य कहानी जहाँ एक तरफ़  नयी पुरानी विचारधारा के बीच टकराव की बातें करते हुए अंततः एक बीच का रास्ता सुझाती नज़र आती है। तो वहीं दूसरी तरफ़ एक अन्य कहानी बढ़ती उम्र के साथ पति पत्नी के जोड़े में से किसी एक के चले जाने के बाद बचे दूसरे साथी के अकेलेपन की बात करती नज़र आती है कि उसे किस कदर अकेला रह कर वियोग में तड़पना पड़ता है। 

इसी संकलन की एक अन्य कहानी के ज़रिए लेखिका जहाँ कांक्रीट के जंगल बनते जा रहे महानगरों के आवासीय अपार्टमेंट्स में कम धूप आने की समस्या की तरफ़ अपने पाठकों का ध्यान आकर्षित करती नज़र आती हैं। तो वहीं एक अन्य कहानी इस बात की तस्दीक करती दिखाई देती है कि ज़रूरी नहीं कि सभी कॉन्टैक्ट्स किसी काम या धंधे के दौरान ही बनते दिखाई दें।

एक दो जगहों पर वर्तनी की त्रुटियों के अतिरिक्त कुछ एक स्थानों पर प्रूफरीडिंग के स्तर पर भी कुछ कमियाँ दिखाई दीं। 

यूँ तो धाराप्रवाह लेखनशैली से सजा यह कहानी संग्रह मुझे लेखिका की तरफ़ से उपहारस्वरूप मिला मगर अपने पाठकों की जानकारी के लिए मैं बताना चाहूँगा कि 120 पृष्ठीय इस कहानी संकलन के पेपरबैक संस्करण को छापा है इंडिया नेटबुक्स प्राइवेट लिमिटेड ने और इसका मूल्य रखा गया है 225/- रुपए। आने वाले उज्ज्वल भविष्य के लिए लेखिका एवं प्रकाशक को बहुत बहुत शुभकामनाएं।

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