एक ज़माना था जब चिट्ठियों की आवाजाही या आदान प्रदान हरकारों या फ़िर कबूतरों के ज़रिए होता था। बदलते समय के साथ इनकी जगह डाकघरों ने डाकियों के ज़रिए ले ली। समय और आगे बढ़ा तो ईमेल और व्हाट्सएप जैसे दर्जनों साधनों के सुगमता से उपलब्ध हो जाने की वजह से ज़रूरत ना समझे जाने पर सड़कों के किनारे बने लाल रंग के तथाकथित लेटरबॉक्स यानी कि लाल डिब्बे भी सरकार द्वारा लोप कर दिए गए।
इन सब आड़े-तिरछे साधनों-संसाधनों के बीच गुटरगूं करते प्रेमी जोड़ों की रूमानियत भरी चिट्ठियों की बात तो होने से रह ही गई। जी हाँ... मैं बात कर रहा हूँ उन इत्र की भीनी-भीनी खुशबू में डूबी गिले-शिकवों और मनुहार-दुलार से भरी मीठी-मीठी चिट्ठियों की जिन्हें प्रेम पत्र या लव लैटर कहा जाता है।
दोस्तों...आज प्रेम में डूबे इन प्रेम पत्रों की बात इसलिए कि आज मैं जिस कहानी संग्रह की यहाँ बात करने जा रहा हूँ उसे 'पच्चीसवां प्रेम पत्र' के नाम से लिखा है प्रसिद्ध लेखिका आभा श्रीवास्तव ने।
इसी संकलन की एक कहानी में जहाँ एक तरफ़ बरसों बाद मिलीं तीन सहेलियाँ एक साथ घूमने निकलती हैं तो उनके साथ कुछ ऐसा घटता है जिससे पुराने रहस्य एक के बाद एक कर के खुलने लगते हैं तो वहीं दूसरी तरफ़ एक अन्य कहानी में अपनी पत्नी को खो चुके नरेन की मुलाकात अपनी बच्ची की टीचर, अलका से होती है जो कभी स्वयं उसकी चाहत रह चुकी है और अब अपने माता-पिता के गुज़र जाने के बाद अकेले ही जीवन व्यतीत कर रही है।
इसी संकलन की एक अन्य कहानी में जहाँ अपनी बहन के देवर, विवेक द्वारा रिश्ते के लिए नकार दिए जाने के बरसों बाद तनुजा की मुलाक़ात एक बार फ़िर उस से होती है मगर तब तक..
तो वहीं एक अन्य कहानी में शादी के 6 महीनों बाद वंशिका के पति को दो दिनों के लिए शहर से बाहर जाना पड़ता है। तो ऐसे में वंशिका इन दो दिनों को अपनी मर्ज़ी से जीने का प्लान बना एक बुक कैफ़े में घूमने के लिए जाती है तो है मगर..
इसी संकलन की एक अन्य कहानी में मोहित ये सोच कर परेशान है कि उसकी लन्दन से आई प्रेमिका, सिल्विया को उसकी कट्टर हिन्दू माँ स्वीकार करेगी भी या नहीं। अब देखना ये है कि क्या मोहित अपनी माँ से इस बारे में बात कर भी पाता है या नहीं। एक अन्य कहानी में मधुर स्वर की स्वामिनी चैताली को उसके गहरे सांवले रंग और अनाकर्षक चेहरे मोहरे की वजह से उसका प्रेमी सुबोध उसे भोगने के बाद ठुकरा देता है।
एक अन्य कहानी में जहाँ एक तरफ़ अपने काले रंग की वजह से कई बार विवाह के लिए नकारी जा चुकी श्यामली की मुलाकात अपने से कम उम्र के रॉबिन से होती है जो विदेशी माँ और भारतीय पिता की संतान है। कुछ मुलाकातों के बाद रॉबिन, श्यामली के समक्ष विवाह का प्रस्ताव रखता है जिससे वह इनकार नहीं कर पाती मगर किसी को क्या पता था कि उसकी किस्मत में क्या लिखा है। तो वहीं दूसरी तरफ़ एक अन्य कहानी में घर वालों के विरोध के चलते कहानी की नायिका का विवाह उसके प्रेमी दिव्यांश के साथ नहीं बल्कि स्वप्निल के साथ कर, दिव्यांश के लिखे सभी प्रेम पत्रों को उसकी माँ द्वारा जला तो दिया जाता है मगर..
एक अन्य कहानी में कहानी की मुख्य किरदारा को अचानक बरसों बाद एक अनजान नम्बर से कॉल आता है तो उसकी उस 'कोयल दी' को ले कर यादें ताज़ा हो जाती हैं जिन्हें वह अपनी बहन और उसके प्रेमी, वासु को बड़ा भाई तो कहती थी मगर..
इसी संकलन की एक अन्य कहानी में जहाँ प्रेम विवाह के बावजूद भी जब उसके पति अनीश की ज़िन्दगी में सेजल आ जाती है तो टूट कर बिखर चुकी तारा अपनी सहेली कनिका की सलाह पर वह अपना शहर छोड़ देती है। नए शहर में उसकी मुलाक़ात इंडियन आर्मी में मेजर सुशांत से होती है कि तभी..
तो वहीं एक अन्य कहानी में पैंतीस वर्षों के सफ़ल वैवाहिक जीवन में बाद अब वैधव्य झेल रही कामाक्षी की बेटी मेनका, जिसका अपने पति से तलाक हो चुका है, अपनी माँ को बताती है कि वह उस तलाकशुदा राघव से विवाह करना चाहती है जिसका पहले भी दो बार विवाह हो चुका है और उसकी एक बेटी भी है। सहमत ना होने के बावजूद भी वह मेनका के साथ राघव से मिलने उसके घर जाती है। जहाँ उसकी मुलाक़ात..
इसी संकलन की एक अन्य कहानी में पढ़ाई और नौकरी के चक्कर में घर से अलग मुम्बई में सुदीप के साथ लिवइन में रहते हुए दिव्या को एक दिन उसकी बेवफाई का पता चलता है तो वो टूट जाती है। इस बीच बहन के देहांत के बाद विधुर हो चुके जीजा रितुकांत के साथ उसका ब्याह तय कर दिया जाता है मगर क्या इस विवाह से दिव्या के मन की इच्छाएँ या खुशियाँ पूरी हो पाएँगी?
इसी संकलन की एक अन्य कहानी में एक तरफ़ से खूबसूरत चेहरे और दूसरी तरफ़ से जले चेहरे वाली प्रसिद्ध लेखिका संध्या चौधरी की मुलाकात एक कार्यक्रम के दौरान अपनी एक प्रशंसिका ईवा से होती है जो वहाँ अपने पति दिवाकर के साथ आई हुई है। वहाँ संध्या उन्हें एक मनघड़ंत कहानी सुना कुटिल मुद्रा में उनसे विदा लेती है मगर तब तक..
एक अन्य कहानी में जहाँ इंडियन म्यूज़िक में मास्टर्स की डिग्री वाली साधारण चेहरे-मोहरे की जवा की शादी ऊँची डिग्री और बढ़िया नौकरी वाले श्यामल से हो तो जाती है मगर क्या वह कभी जवा की छोटी-छोटी इच्छाओं को समझ पाया? तो वहीं एक अन्य कहानी में कहानी का मुख्य किरदार नेहा को उस दीपिका के बारे में बताता है जिससे उसकी मुलाक़ात रेडियो स्टेशन पर रिकार्डिंग के दौरान हुई थी। लगातार तीन सालों तक कई मुलाक़ातों के बाद अचानक नेहा उससे मिलने बंद कर अपना मोबाइल भी स्विच ऑफ कर देती है। उसके बाद नौकरी इत्यादि के चक्कर में वह भी शहर छोड़ देता है। उसी का हालचाल पता करने के लिए वे दोनों वापिस उसके शहर जाते हैं मगर तब तक कहानी कुछ और ही रूप ले चुकी होती है।
एक अन्य कहानी में दिखावे से दूर रहने वाली 27 वर्षीय पार्वती के सीए की डिग्री हासिल करने के बाद उसकी माँ को बेटी की शादी की चिंता सताती है। जिसके बाद मेट्रीमोनियल साइट्स को खंगाला जाना शुरू होता है। वहीं पर पार्वती की मुलाक़ात रुद्र से होती है मगर वह चाहती है कि रुद्र उसे बिना मेकअप के जस का तस स्वीकार करे। तो वहीं एक अन्य कहानी में अपने घर से दूर महानगर में अकेले रह कर नौकरी कर रही मधुरा की मुलाक़ात उसी की बिल्डिंग के एक अन्य ऑफिस में नौकरी कर रहे शिव से उस वक्त होती है जब हल्की-हल्की बारिश हो रही होती है। शिव, मधुरा को भीगने से बचने के लिए अपना छाता ऑफर करता है। जिसके बाद चाय के दौरान दोनों में दोस्ती हो जाती है। फ़िर मिलने का वादा लॅ जब वह विदा लेकर बस में बैठती है तो उसके बैग में पड़े सूखे छाते को देख वह मुस्कुरा उठती है।
इसी संकलन की एक अन्य कहानी में नैनीताल में घूमते वक्त कहानी के मुख्य किरदार की मुलाक़ात टीवी चैनल में पत्रकार बन चुकी उस केतकी से होती है जिससे सगाई के बाद उसने प्रिया के चक्कर में रिश्ता तोड़ दिया। अब देखना ये है कि प्रिया से भी रिश्ता टूट जाने के बाद केतकी का उसके जीवन में आगमन क्या रंग लाता है। एक अन्य कहानी में फेशियल पक्षाघात की मार झेल रहे कहानी के मुख्य किरदार, जो कि अधेड़ उम्र का है, की ट्रेन के सफ़र के दौरान मुलाक़ात उस गौरी से होती है जिसके पिता के पैसे के बल पर वह मेडिकल की पढ़ाई कर रहा था और उसने उसे भोगने के बाद उसके उसके साधारण रंग रूप की वजह से ठुकरा दिया था।
इस संकलन को पढ़ते वक्त मुझे इसमें कुछ तथ्यात्मक ग़लतियाँ भी दिखाई दीं। उदाहरण के तौर पर पेज नम्बर 92 में लिखा दिखाई दिया कि..
'लेकिन फ़िर मेघना की जोड़ी कैसे टूट गई? पता नहीं मेनका का दूसरा विवाह हो सकेगा या नहीं'
यहाँ ध्यान देने वाली बात है कि कहानी के हिसाब से लड़की का नाम 'मेघना' नहीं बल्कि 'मेनका' है।
पेज नंबर 111 की अंतिम पंक्ति में और पेज नंबर 112 की शुरुआती पंक्ति में दिखा दिखाई दिया कि..
'तुम मुझे किसके लिए लेने आए हो श्यामल? माँ के लिए, घर की पुताई के लिए या फिर अपने लिए? जवा का स्वर कड़वा और कड़ा था'
' तब सुन लो कि नील और मेरे बारे में तुमने जो कुछ भी सुना है वो बिल्कुल सच है। ऐसा क्यों हुआ, शायद तुम जैसा पत्थरदिल समझ ही ना सके लेकिन मैं बताऊँगी। मेरा पहला प्यार, पहला समर्पण और पहला सम्भोग, सब कुछ तो तुम थे श्यामल लेकिन तुमने मुझे बस भोग्या समझा।'
यहाँ ध्यान देने वाली बात ये है कि कहानी में बिना श्यामल के कोई आरोप लगाए जवा का उसे, उसके और नील के रिश्ते के बारे में सफ़ाई देने का कोई कारण नहीं बनता था। अगर यही आरोप कुछ और बहस भरे संवादों के बाद शयामल द्वारा लगाया जाता तो बेहतर होता।
पेज नंबर 113 में लिखा दिखाई दिया कि..
'"जानती हो दीपिका, आज मुझे नेहा की याद आ गई। उससे अलग हुए भी तीन बरस बीत गए," कहानी भूलकर मैं नेहा को याद करने लगा।"
" क्या तुम उससे प्रेम करते थे?" दीपिका पूछ बैठी।'
यहाँ कहानी का मुख्य किरदार दीपिका को नेहा के बारे में बताता है जबकि कुछ व्यक्तियों के बाद नेहा कहती दिख रही है कि..
'मुझे कुछ बताओ उसके बारे में। आज पहली बार तुम्हारे मुँह से ये नाम सुन रही हूँ। उसने आग्रह किया।'
ऐसा कैसे संभव हो सकता है?
इस संकलन को पढ़ते वक्त ज़रूरी जगहों पर भी नुक्तों का प्रयोग ना किया जाना थोड़ा खला। इसके अतिरिक्त कुछ एक जगहों पर प्रूफरीडिंग की कमियों के साथ-साथ वर्तनी की त्रुटियाँ भी दिखाई दीं। जिन्हें दूर किया जाना चाहिए। उदाहरण के तौर पर पेज नंबर 14 की पहली पंक्ति में दिखा दिखाई दिया कि..
'रोकते रोकते भी दबे स्वर में हम दोनों सखियाँ खिलखिला उठे'
यहाँ 'खिलखिला उठे' की जगह पर 'खिलखिला उठीं' आएगा।
पेज नंबर 36 में लिखा दिखाई दिया कि..
'तुम्हारी अमानत लौटने जो भूलवश मेरे पास रह गई थी'
यहाँ 'तुम्हारी अमानत लौटने' की जगह पर 'तुम्हारी अमानत लौटाने' आएगा।
पेज नंबर 50 में लिखा दिखाई दिया कि..
'किनारे के काउच पर कुछ आराम से बैठ कर पढ़ने लगी'
यहाँ 'काउच पर कुछ आराम से बैठ कर पढ़ने लगी' की जगह 'काउच पर बैठ कर पढ़ने लगी' आए तो बेहतर।
पेज नंबर 56 में लिखा दिखाई दिया कि..
'कोई बहुत प्यारी चीज छिन जाती है तब आप शिद्दत से महसूस करते है'
यहाँ 'चीज' की जगह 'चीज़' और 'है' की जगह पर 'हैं' आएगा।
पेज नंबर 67 में लिखा दिखाई दिया कि..
'रॉबिन के फोन यदा कदा आते उसके पास रहते थे'
यहाँ 'यदा कदा आते उसके पास रहते थे' की जगह 'यदा कदा उसके पास आते रहते थे'
पेज नंबर 69 में लिखा दिखाई दिया कि..
' छोटा सा हमारा घर... जिसे मैंने बड़े जतन से रख रखा है'
यह वाक्य सही नहीं बना। सही वाक्य इस प्रकार होना चाहिए कि..
'छोटा सा हमारा घर.. जिसे मैंने बड़े जतन से सजाया संवारा है'
इसी पेज पर और आगे लिखा दिखाई दिया कि..
' मैं अपना सम्पूर्ण श्रृंगार किया है'
यहाँ ' मैं अपना सम्पूर्ण श्रृंगार किया है' की जगह पर ' मैंने अपना सम्पूर्ण श्रृंगार किया है' आएगा।
पेज नंबर 71 में लिखा दिखाई दिया कि..
'एक लगातार अपराधबोध से मन दुखने लगा था'
इस वाक्य में 'एक' शब्द की जरूरत नहीं है।
पेज नंबर 72 की अंतिम पंक्ति में लिखा दिखाई दिया कि..
'हम दोनों के घर पास ही पास थे'
यहाँ 'पास ही पास' की जगह अगर 'पास-पास थे' आए तो बेहतर।
पेज नंबर 79 के अंतिम पैराग्राफ में लिखा दिखाई दिया कि..
'बीच वाली मंजिल के किराएदार थे हम लोग और सबसे ऊपर वाली मंजिल था बस एक कमरा और छत'
यहाँ 'ऊपर वाली मंजिल था बस एक कमरा और छत' की जगह पर 'ऊपर वाली मंज़िल पर था बस एक कमरा और छत' आएगा।
पेज नंबर 93 की अंतिम पंक्ति में लिखा दिखाई दिया कि..
'कामाक्षी रोने रोने को हो आई'
यहाँ 'रोने रोने को हो आई' की जगह पर 'रोने को हो आई' आएगा।
पेज नंबर 101 में लिखा दिखाई दिया कि..
'संध्या की कहानियाँ काफी कुछ यथार्थ से जुड़ी होती थीं'
यहाँ 'संध्या की कहानियाँ काफी कुछ यथार्थ से जुड़ी होती थीं' की जगह पर अगर 'संध्या की कहानियाँ काफी हद तक यथार्थ से जुड़ी होती थीं' आए तो बेहतर।
पेज नंबर 106 में लिखा दिखाई दिया कि..
'सोचता हूँ वापस घर लौट लें कुछ दिनों के लिए'
यहाँ 'लौट लें कुछ दिनों के लिए' की जगह अगर 'लौट चलें कुछ दिनों के लिए' आए तो बेहतर।
पेज नंबर 116 में लिखा दिखाई दिया कि..
'सिर्फ मैं अकेला उसे बेन्च पर पर बैठ गया'
इस वाक्य में ग़लती से 'पर' शब्द दो बार छप गया है।
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यूँ तो यह कहानी संग्रह मुझे उपहार स्वरूप मिला मगर अपने पाठकों की जानकारी के लिए मैं बताना चाहूँगा कि इस 138 पृष्ठीय कहानी संग्रह के पेपरबैक संस्करण को छापा है न्यू वर्ल्ड पब्लिकेशन ने और इसका मूल्य रखा गया है 250/- रुपए। आने वाले उज्ज्वल भविष्य के लिए लेखिका एवं प्रकाशक को बहुत-बहुत शुभकामनाएं।
4 comments:
सुन्दर अभिव्यक्ति
लाजवाब
विस्तृत विश्लेषण । किताब का पूरा खाका सामने आ गया । धन्यवाद।
उम्मीद है पुस्तक का अगला संस्करण त्रुटि रहित होगा
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