***राजीव तनेजा***
"अरे...तनेजा जी!...ये सब चोट-चाट कैसे लग गई?"....
"अब होनी को कौन टाल सकता है....शर्मा जी?"....
"फिर भी...पता तो चले कि आखिर हुआ क्या?"....
"सब भुट्टा खाने का नतीजा है"...
"भुट्टा खाने का?.....मैँ समझा नहीं....ज़रा खुल के बताएँ"....
"यार!..मेरी किस्मत ही फूटी थी जो मैँ उस राम प्यारी की बच्ची के पास भुट्टा खाने चला गया".....
"तो क्या उसकी बिटिया इतनी बड़ी और स्यानी हो गई कि खुद अपने बूते पे काम-धन्धा सँभाल सके?"...
"कमाल करते हो शर्मा जी आप भी...अभी तो उसके खेलने-कूदने के दिन हैँ और आप हो कि उसे काम-धन्धे में झोंकने की सोच रहे हो"...
"तो फिर ये सब किसका किया-धरा है?"शर्मा जी मुझे ऊपर से नीचे तक गौर से निहारते हुए बोले...
"उसी कम्बख्तमारी 'राम प्यारी' का...और भला पूरे मोहल्ले में कौन है जो मुझ पर ऊँगली भी उठा सके?"मैँ सीना फुला आहिस्ता से कराहते हुए बोला...
"तुमने ज़रूर उससे पंगा लिया होगा"...
"अजी कहाँ?...पंगा लिया होता तो इतना दुखी थोड़े ही होता"....
"तो फिर आखिर हुआ क्या?"...
"होना क्या था?...रोज़ाना की तरह कल भी मैँ मुँह में गुटका दबाए आराम से...हौले-हौले सड़क से गुज़र रहा था कि......
"भुट्टे भूनती राम प्यारी दिख गई?"...
"जी!...सही पहचाना"...
"अच्छा फिर?"...
"फिर क्या मैँने उससे इशारों-इशारों में पूछ लिया कि ये लम्बे वाला...भुट्टा कितने का है?"...
"फिर तो जूते पड़ने ही पड़ने थे"...
"वो भला क्यों?"...
"क्यों?...तुम्हारे मुँह में ज़बान नहीं थी जो लगे इशारे करने"...
"अरे!...अभी बताया ना कि मैँ गुटका चबा रहा था"....
"तो फिर फैंक देते"...
"अरे वाह!...ऐसे कैसे फैंक देता?"...
"पूरे गिन के दो रुपए खर्च किए थे..उन्हें क्या व्यर्थ में व्यर्थ हो जाने देता?"...
"ओह!....
"अच्छा फिर?"...
"फिर क्या?...मैँने उसे पहले एक ऊँगली दिखाई....
"अब ऐसे भद्दे इशारे करोगे तो फिर पिटोगे ही"...
"शर्मा जी!...आप गलत सोच रहे हैँ...मैँने उस वे में ऊँगली नहीं दिखाई थी"...
"तो फिर किस वे में ऊँगली दिखाई थी?"
"जी!...मेरा मतलब तो बड़ा ही सीधा...सरल और सिम्पल था कि एक रुपया दूँगा और गिन के दो भुट्टे लूँगा"...
"हम्म!....फिर क्या हुआ?"...
"भुट्टा इतना बढिया और मीठा था कि एक में ही तबियत खुश हो गई"...
"फिर?"...
"फिर क्या?...मैँने बटुए में से अठन्नी निकाल उसकी हथेली पे धर दी कि...ले हो गया फुल एण्ड फाईनल"...
"फिर क्या हुआ?"....
"अठन्नी देखते ही पागल की बच्ची का दिमाग फिर गया...चिल्लाते हुए कहने लगी कि...
"बाबू!...ऐसे कैसे हो गया फुल एण्ड फाईनल?"....
"सीधे-सीधे निकालो दो का नोट"...
"तो फिर दे देते"...
"अरे वाह!...ऐसे-कैसे दे देता"....
"अच्छा फिर?"...
"फिर क्या?.....मैँ भी चौड़ा हो गया कि......
"एक ही तो भुट्टा खाया है....ऐसे कैसे दे दूँ...दो का नोट?"....
"फिर क्या हुआ?"...
"शायद मेरा भरा बटुआ देख बेईमानी आ गई उल्लू की पट्ठी के दिमाग में...
"ओह!...
"भीड़ इकट्ठी कर ली"....
"ओह!....माई गॉड"....
"सबके सामने चिल्ला-चिल्ला के कहने लगी कि...."पहले तुमने एक ऊग़ली दिखाई?"...
"अच्छा फिर?"...
"मैँ कौन सा डरने वाला था?....बोला....
"हाँ!...बिलकुल दिखाई....कोई शक?"....
"गुड.....उसके बाद क्या हुआ?"....
"मेरे हामी भरते ही बावली में जोश भर गया...दूने उत्साह से कमर पे हाथ रख सीधे ही तूँ-तड़ाक करते हुए बोली.....
"उसके बाद तूने दो ऊँगली दिखाई?"...
"हाँ!...दिखाई.....आगे बोल"...
"तूने पहले एक ऊग़ली दिखाई कि एक भुट्टा लूँगा और बाद में दो ऊँगली दिखाई कि दो रुपया दूँगा"...
"अरे वाह!...बाप का माल समझ रखा है क्या?"...
"ऐसे कैसे दो रुपए दूँगा?...
"बस मेरा इतना कहना था कि आस-पास मजमा लगाई भीड़ में से कोई चिल्लाया...
"मारो!...स्साले को ...लेडीज़ के साथ बेईमानी करता है"...
"ओह!....फिर क्या हुआ?"...
"फिर क्या?...भीड़ ने मेरा फुल एण्ड फाईनल कर डाला"
***राजीव तनेजा***
Rajiv Taneja
Delhi(India)
http://hansteraho.blogspot.com
+919810821361
+919213766753
9 comments:
to full and final ho hi gaya
कथा का उपदेश-
मुंह में ज़ुबान हो तो गूंगों की तरह बात नहीं करनी चाहिए.
:-)
बिल्कुल ठीक हुआ.
बेहतरीन रचना.. वाहवा...
आगे से स्लेट लेकर चला करो
उस पर लिखकर बात करा करो
संदेह शक की कोई गुंजायश ही नहीं रहेगी
सारी दुनिया गूंगा बहरा स्वयं ही समझ लेगी।
देखिये उ भुट्टा वाली इशारा ठीक समझी थी इशारा गलत आप कर रहे थे, उ नहीं समझेगी २४ घंटा यही समझने का काम करती है, आइन्दा इशारा कीजिये तो टरेनिंग ले लीजिये, कम से कम हाथ-गोड़ तो ठीक रहेगा न...बाकि कथा आप बहुत बढियां बांचे है, कुछ लोग तो इ भी कह दिए की जो हुआ आपके साथ ठीके हुआ.... लेकिन हम जो कहे है याद रखियगा टरेनिंगवा ले लीजियेगा..
Rahiv Bhai Bade Saste Bhutte Khate hein. Mere yahaan to 5 Rs ka ek
Milta hai. Agali bar 2 Bhtte mere liye bhi lijiyega begair Ishara kiye.
Aur Ha Gutkha Chabana Swasthya ke liye hanikarak hai. Statutory Warning nahi padhate hein Kya.
वाक़इ। ख़ुब हँसाया आपने।
तनेजाजी का कहना ही क्या ?
हंसाते -हंसाते बहुत ही अच्छा सन्देश दे जाते है.
दुनिया इशारें जानती है मगर उनका फायदा भी उठाती है .
इफ साइलेंस इज सिल्वर ,थेन स्पिकिंग इज गोल्ड
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