हँगामा है क्यूँ बरपा?...इक पोस्ट ही तो लिखी थी

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***राजीव तनेजा***

आज गाँधी जयंति के अवसर पर छुट्टी थी तो बस ऐसे ही खाली बैठे-बैठे मैँ अपनी पुरानी पोस्टों पर पड़ी धूल को फांक रहा था..ऊप्स!...सॉरी...उन पर पड़ी धूल को हटा रहा था तो अचानक एक पुरानी पोस्ट पर नज़र पड़ते ही मैँ चौंक कर उछल पड़ा।24 अक्टूबर 2008 को अपने ब्लॉग हँसते रहो पर इस पोस्ट को मैँने एक कविता  "निबटने की तुझसे कितनी हम में खाज है" के रूप में पोस्ट किया था।जिसमें मैँने उत्तर भारतीयों के साथ मुम्बई में हो रहे सलूक को लेकर चिंतित हो अपनी व्यथा और भड़ास को जाहिर किया था।उसको लेकर ऐसा हँगामा मच जाएगा...मैँने कभी सोचा भी नहीं था।लोग आपस में लड़ने-भिड़ने से लेकर गाली-गलोच तक पे उतारू हो जाएँगे...इसकी मुझे कतई उम्मीद न थी।

दरअसल!...हुआ क्या है कि एक किन्हीं कुक्कू नाम की मोहतरमा का दिल उस पोस्ट पर आ गया और उन्होंने उसका लिंक ब्ळोग भारती नामक साईट पर "ऐन ओपन चैलेंज टू राज ठाकरे" के नाम से दे दिया।बस फिर क्या था जनाब...कुल 58 कमैंट प्रतिक्रियाएँ आ चुकी हैँ उस मुद्दे के पक्ष और विपक्ष में।उनमें से कुछ में ऐसी भाषा का प्रयोग किया गया है जिसका उल्लेख करना सभ्य ब्लॉगजगत में उचित नहीं।

अब इसे अपनी लेखनी की सफलता समझूँ या फिर विफलता?...कृप्या अपनी राय से अवश्य अवगत कराएँ


"निबटने की तुझसे कितनी हम में खाज है"

माना कि...
अपनों के बीच... अपने शहर में
चलती तेरी बड़ी ही धाक है
सही में...
विरोधियों के राज में भी तू. ..
गुंडो का सबसे बडा सरताज है ...
हाँ सच!...
तू तो अपने ठाकरे का ही 'राज' है...
सुना है!...
समूची मुम्बई पे चलता तेरा ही राज है
अरे!...
अपनी गली में तो कुता भी शेर होता है...
आ के देख मैदान ए जंग में...
देखें कौन. ..कहाँ... कैसे ढेर होता है
सुन!...
सही है...सलामत है...चूँकि मुम्बई में है...
आ यहाँ दिल्ली में...
बताएँ तुझे ...
निबटने की तुझसे कितनी हम में खाज है
हाँ! ...
निबटने की तुझसे कितनी हम में खाज है

***राजीव तनेजा***

 

8 comments:

Anil Pusadkar said...

ओल्ड इज़ गोल्ड,सदाबहार रचना है गुरू।

Khushdeep Sehgal said...

राजीव भाई, पोस्ट री-ठेल में ज़रूर है लेकिन आज की तारीख में है बड़ी प्रासंगिक...राज ने आज ही करन जौहर से इतनी बात पर नाक रगड़वा ली क्योंकि करन की नई फिल्म...वेक अप सिड...में मुंबई की जगह बॉम्बे शब्द का इस्तेमाल हुआ है...अब ये बात अलग है कि राज का बेटा खुद बॉम्बे स्कॉटिश स्कूल में पड़ता है...वहां राज को नाम पर कोई ऐतराज नहीं...राज ने अपने बेटे को मराठी की जगह डच (जर्मन) भाषा दिला रखी है...जानते हैं क्यों...क्योंकि राज अपने को हिटलर का प्रशंसक मानते हैं...यही है 'राज' नीति...

Vishal Mishra said...

Behtareen post ha apki.... aap ki post purn roop se safal hai..
aur khushdeep ki is jaankari ke liye dhanyawaad...

Udan Tashtari said...

१ के बाद कित्ते शून्य है...गिन नहीं पा रहे हैं..बताना फिर तय करेंगे. :)

Khushdeep Sehgal said...

समीर गुरुदेव, ये शून्य का जो आंकड़ा आपने पूछा है, वो तो राजीव जी ही बता सकते हैं, हां मैं इतना बता सकता हूं कि अपने राजीव भाई को थोड़ी भूलने की आदत है, वो बस पहले 1 के बाद ही जो दशमलव (.) आना था, उसे लगाना ही भूल गए...इसके बाद आप जितने मर्जी शून्य लगाते जाओ...

राजीव तनेजा said...

ई-मेल पर प्राप्त टिप्पणी:


from:mohan bhaya

mohanbhaya@gmail.com
Re: हँगामा है क्यूँ बरपा?...इक पोस्ट ही तो लिखी थी


प्रिय राजीव तनेजा जी ,
आपकी पोस्ट तो अच्छी है पर दुःख तो इस बात का है कि छेत्रियेवाद कि भावना से पता नहीं हम कब मुक्ति पाएंगे और राष्ट्रीय भावना को प्रदर्शित करते हुए अपने कार्य करेंगे ?
"करेंगे जब हम अपने हर काम ,
देशभक्ति की भावना से परिपूर्ण हो कर -
तब शायद हम भी उन देशों की कतार में ,
हो पाएंगे खड़े ,
जिनके विकास की दुनिया उधाहरण देती है ."
इसलिए आइये हम अपने आप को इस भावना से मुक्त करतें हैं जिस से प्रदेश वाद की बदबू आती हो ? इस कारण ही तो हमारे देश में कोई व्यवस्था सही नहीं है और न ही सच्चाई , ईमानदारी की कहीं हवा ही बहती है . और हम हैं कि इस से मुक्त ही नहीं होना चाहतें हैं शायद हमे एय्से वातावरण में रहने कि आदत सी हो गई है न ...क्या करें 'सरकार , प्रशासन , नेता ही जब कुछ नहीं करते तो हम क्यों करें ? भला हम ही क्यों करें? हमे क्या करना है? हम क्यों इन सबमे अपना दिमाग खपायें ? चलने दो जैसा चलता है ? है न आज इस तरह ही हवा , वातावरण जिसमे हम रहा रहें हैं ? मुक्त नहीं होना चाहते हैं हैं हम ?
शेष फिर
आपका ही
मोहन भया

राजीव तनेजा said...

चैटिंग के दौरान प्राप्ट टिप्पणी:


shefaliii: मोहतरमा का दिल आया , वह भी कविता पे ... राजीव जी ...101% सफलता समझिये...आपकी कविता बहुत कुछ कह जाती है ...

Murari Pareek said...

खतरनाक खुजली है ये तो ठाकरे से मिटायेंगे !!

 
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