***राजीव तनेजा***
नोट:इस कहानी का विषय और विषयवस्तु कुछ वयस्क टाइप की है...अत: बाद में ये ना कहना कि पहले चेताया नहीं था |
"क्या हो गया ताऊ जी?"...
"इस सुसरी...हराम की जणी नै ना जीण जोगा छोड़ेया ओर ना ही मरण जोगा राख्या"...
"क्या बात ताऊ जी?...ये सुबह-सुबह किस पर अपना गुस्सा निकाल रहे हो?"..
"तेरी फूफी पे"...
"क्या मतलब?"...
"वोई तो मैँ बी पूछूँ हूँ"...
"क्या?"...
"तू के 'डी.सी' लाग रेहा सै?...
"क्या मतलब?"...
"छोरी &ं%$#$% के ...वोई तो मैँ बी पूछूँ सूँ के तैन्ने के मतबल्ल?...मैँ किसी पे बी अपना गुस्सा काढूँ"...
"मुझे!...मुझे भला क्या मतलब होना है?....ये तो आप ज़ोर-ज़ोर से छाती पीट-पीट के रो रहे थे तो मैँने सोचा कि....
"छाती किसकी थी?"..
"आपकी"...
"उसे पीटण कोण लाग रेहा था?"...
"आप खुद"...
"तो फेर तैन्ने के ऐतराज?"...
"मुझे भला क्या ऐतराज़ होना है?...ऐतराज़ होगा तो आपको होगा या फिर आपके घरवालों को होगा"..
"यार!...यो तो ठीक्के कहे सै तू...ऐतराज तो मन्ने बी ज्यादा कोणी पर म्हारी बीरबानी ने घणा ऐतराज सै"ताऊ का मायूस स्वर...
"किस बात का?"...
"इसै बात का?"...
"ये रोने-पीटने की बात का?"...
"ना!...मेरे रोवण-पीटण का उसणे क्यों ऐतराज होण लागा?...इसका ऐतराज होवेगा तो सौ परसैंट मन्ने होवेगा.. उसणे भला क्यों होवेगा?"...
"ओह!...तो फिर उन्हें किस बात का ऐतराज़ है?"...
"मन्ने के बेरा?"...
"क्या मतलब?...आपको नहीं पता कि उन्हें किस बात पे ऐतराज़ है?"..
"छोरी...ं%$&# &^%$% के..अगर मन्ने बेरा होवे तो मैँ उसणे राजी ना कर ल्यूँ?"...
"लेकिन फिर भी ...कोई बात तो हुई होगी"....
"बात के होणी है?..तैन्ने तो बेरा सै कि मैँ पूरे दो साल बाद फौज तै छुट्टी ले के घरां आया सूँ"...
"जी!...आप तो 'आसाम राईफल्ज़' में थे ना?"..
"थे से के मतबल्ल?...ईब्ब बी सूँ...इब्बे कौण सा मैँ रिटायर हो ग्या सूँ?"....
"ओह!...ये तो बहुत ही बढिया बात है"...
"ओर नय्यी ते के?"....
"अभी कितने साल बचे हैँ आपकी नौकरी में?"..
"पूरे चार साल बाकी सैँ इब्बे तो म्हारे रिटायर होण में अगर गलती से रिटायर्ड हर्ट ना हो ग्या तो"...
"अजी!..आप क्यों भला रिटायर्ड हर्ट होने लगे...रिटायर्ड हर्ट होंगे तो आपके दुश्मन होंगे...आपके पड़ौसी होंगे...आपके रिश्तेदार होंगे"...
"यो बात तो तू ठीक्के कवै सै...मैँ भला इतणी जल्दी क्यों रिटायर होणा लागा? लेकिन मेरी बीरबानी का कोई भरोसा कोणी ...कब डल्ला मार के सर फोड़ दे”...
"क्या मतलब?"..
"तू मन्ने एक बात बता"...
"जी"...
"मैँ तन्ने कीस्सा लागूँ सूँ?"ताऊ जी कुछ-कुछ शरमाते हुए से बोले...
"क्या मतलब?"...
"तू बता ना के मैँ तन्ने कीस्सा लागूँ सू?"..
"आप तो...आप तो बहुत बढिया...इनसान हैँ"...
"यो नय्यी!..तू....तू मन्ने ये बता के तैन्ने मेरी 'बॉडी' कीस्सी लागे सै?"...
"क्क्क्या?...क्या मतलब?"मैं झेंपता हुआ बोला..
"तू ये बता के मेरी 'बॉडी' कीस्सी सै"...
"कैसी है से क्या मतलब?"..जैसी सबकी होती है..वैसी ही है"मैं कुछ शरमाता हुआ सा बोला ..
"अरे यार!...तू नय्यी समझा.....तू ये बता के मेरे ये भीमसैनी 'डौल्ले' कीस्से सैं?"ताऊ बाजू फैला अपने डौले दिखाता हुआ बोला ...
"ओह!...डौल्ले"मैं सकपकाता हुआ बोला ...
"ओर तू के समझेया था?"...
"मैँ तो..मैँ तो...
"ये मैँ...मैँ कर के मिमियाणा छोड़ ओर सूधी तरियाँ ये बता के मैँ तैन्ने एकदम फिट दीक्खूँ सूँ के नय्यी?...
"आप तो एकदम तन्दुरस्त...बिलकुल परफैक्ट...फिटटम फिट हैँ"मैं मस्का लगाता हुआ बोला ...
"फेर म्हारी बीरबानी मन्ने..."दम कोणी...दम कोणी" कह के रोज ताना क्यूँकर मारै सै?"...
"क्या मतलब?...आप...आप तो बहुत दमदार इंसान हैं"...
"ओर नय्यी तो के?...पूरी बटालियन में आज बी मेरे नाम का डंका बाजे सै"ताऊ गर्व से फूल कर कुप्पा होता हुआ बोला ...
"लेकिन फिर ये आपकी घरवाली ऐसे क्यों कहती है कि .....
"समझ तो मेरे बी कोणा आती उसकी बात...सुसरी कब्बी कैवे सै कि... "आओ जी!...किरकट खेलें"...कब्बी कैवे सै कि ... "आओ जी!..रम्मी खेंलें"...
"तो इसमें क्या दिक्कत है?...आप खेल लिया करें 'रम्मी"...
"तू खेल के दिखा दे रोज-रोज एके खेल"...
"सुसरी...कबी कहवे सै कि.. "आज आप 'बैटिंग' करो...मैँ 'फील्डिंग' करूँगी"...
"तो उसमें क्या दिक्कत है?...अगर उन्हें 'फीलडिंग' का शौक है तो आप कर लिया करें 'बैटिंग'"...
"तू कर के दिखा दे ना रोज-रोज बैटिंग"ताऊ ताव में आता हुआ बोला ...
"कमाल है!...एक तो आपको 'फील्डिंग' के बजाय 'बैटिंग' का मौका मिलता है तो भी आप इनकार कर देते हैँ"मेरे स्वर में हैरानी थी ...
"चल!...आज मेरी जगह तू ही बैटिंग कर के दिखा दे"...
"चल!...अब चल बी"..ताऊ तैश में आ मेरा हाथ पकड़ मुझे लगभग घसीटता हुआ बोला...
"लेकिन कहाँ?"मैं अपना हाथ वापिस खींचता हुआ बोला...
"म्हारे घर...ओर कहाँ?"..
"क्क्या...क्या मतलब?...आपके घर में कौन सी 'पिच' या 'ग्राउंड' है?"मैं सकपका कर बोल उठा ...
"योही तो मैँ बी कहूँ सूँ उस तै कि...."अरी भागवान!...इस कुल जमा डेढ सौ गज के मकान में कोई क्रिकेट खेले तो कैसे खेले?"...
"जी!...
"लेकिण सुसरी माने तब ना"...
"क्यों?..क्या कहती हैँ वो?"...
"बावली पूँच कवै सै कि... "पलँग पे खेलेंगे"...
"क्रिकेट?...पलँग पे?"...
"हाँ"...
"लेकिन कैसे?"..
"मन्ने के बेरा?"...
"क्या मतलब?...आपको पूछना तो चाहिए था कि..."कैसे?"...
"मैँ तैन्ने सोलह दूनी आठ नज़र आऊँ सूँ?"...
"क्या मतलब?"...
"मैँने कई बार बूझ लिया सुसरी तै कि.."भागवान!...ये तो बता कि इत्ती छोटी जगह पे तू खेलेगी कैसे?"...
"ओह!..फिर क्या जवाब दिया उन्होंने?"...
"हर बार दीद्दे फाड़ के हँसते हुए कहती थी कि.. "आप चालो तो सही...मैँ आप ही खेल लियूँगी"...
"फिर क्या हुआ?"...
"होणा के था..मैँ कोई बावला तो सूँ नहीं कि उसकी बातां में आ जाता...साफ नॉट गया कि..."म्हारे बस का नहीं है यो किरकट-फिरकट खेलना"...
"ठीक किया आपने...पलँग पे कोई क्रिकेट खेला जाता है?...वहाँ पर तो...
"रम्मी खेली जावे है"...
"रम्मी?"...
"ओर नहीं तो के मम्मी?"...
"क्या मतलब?"...
"जब मैँ उस तै साफ नॉट ग्या कि अपणे बस का नहीं सै यो किरकट-फिरकट खेलना तो जिद पे अड़ के खड़े हो ग्यी कि .. "चलो!...फेर 'रम्मी-रम्मी' खेलें"...
"रम्मी तो आपको खेल लेनी चाहिए थी"...
"तो मैँ कोण सा नॉट रेहा था लेकिण पलंग पे बैठते ही सुसरी आँख मारती बोली.. "लेट ज्याओ"....
"लेट जाओ?"...
"हाँ!...लेट जाओ"...
"क्क्या मतलब?"...
"योही...इस्से तरियाँ मेरा माथा बी ठनकेया था जीब्ब वो बोली कि... "लेट ज्याओ"...
"ओह!...फिर क्या हुआ?"...
"होणा के था..मैँणे सोची कि क्या पता?..मेरे ड्यूटी पे जाए पाच्छे शायद कोई नया तरीका इजाद होया हो रम्मी खेलण का...तो मैँ आँख मूंद के लेट ग्या"..
"लेकिन आँख मूंद के क्यों?...आँखे खोल के क्यों नहीं?"..
"मैन्ने सोची कि बेचारी ओरत जात है...इसणे पत्ते सैट कर लेण देता हूँ...राजी हो ज्यागी"...
"गुड!...ये आपने ठीक किया"..
"के ठीक किया?...सुसरी तो बत्ती बन्द कर के म्हारे धोरे आ ली"..
"क्या मतलब?"..
"योही तो मैँने बी उस तै बूझेया कि..."यो इस तरियाँ अचाणक बत्ती बुझाण का के मतबल्ल?"...
"तो फिर क्या कहा उसने?"...
"कहणा के था?...मुँह फुला के...बाहर म्हारी माँ के धोरे जा के पड़ ग्यी"...
"ओह!...फिर क्या हुआ?"...
"होणा के था..म्हारी माँ कौण सा कम थी?...उसणे उसे धार काढन के काम पै लगा दिया फौरन"...
"किसकी धार काढ़न के काम पे?"...
"मेरी माँ की"...
"म्म...माँ की?...क्या मतलब?"..
"छोरी ^%$##$%^&&*& के ...धार किसकी काढ़ी जाए सै?"...
"ग्ग...गाय-भैंस की"....
"तो फेर?"..
?...?...?...?...
"मेरी माँ ने उस्तै म्हारी मैँस का दूध काढन तायीं काम पै लगा दिया"...
"ओह!...फिर क्या हुआ?"...
"होणा के था?..गुस्से में पैर पटकती हुई बाल्टी ने ठा के सूदधा डांगरा धोरे ज्या ली"...
"ओह!...
"लेकिन किस्मत खराब थी बेचारी की...
"क्यों?...क्या हुआ?"...
"मैँस तो दूध देण तै साफ नॉट ग्यी"...
"ओह!..तो फिर उन्हें अपनी सास याने के आपकी माता जी को सारी बात बता देनी चाहिए थी"...
"बताया ना"...
"फिर क्या हुआ?"मेरा उत्सुक स्वर...
"मेरी माँ कोण सा कम थी...उसी बखत उसणे उसे 'नथ्थूराम' धोरे भेज दिया?"...
"नत्थू राम के पास?...
"हाँ"...
"लेकिन किसलिए?"...
"किसलिए क्या?...उस धोरे झोट्टा सै"...
"तो?"...
"उसै के पास अपणी मैँस ने हरी कराण खातर भेद दिया"...
"ओह!...
"लेकिन वो पट्ठा बी इतणा जिद्दी के...साफ नॉट ग्या?"...
"कौन?...नत्थूराम?"...
"नत्थूराम भला क्यों नाटण लागा?..यो तो उसका काम सै"..
"भैंसों को हरी करने का?"...
"हाँ"...
"क्या बात कर रहे हैँ आप?...एक मर्द हो के...एक जानवर के साथ...छी...
"छी-छी!...कोई ऐसी बात सोच भी कैसे सकता है?"...
"इंसान तो बेट्टे इतणा कमीण सै के यो कुछ बी सोच सके सै लेकिन तू एक बात बता"...
"जी"...
"कहीं तैन्ने आज भांग तो ना चढा रक्खी सै?"ताऊ मेरा मुँह सूँघता हुआ बोला ...
"मैँने?"...
"ओर नहीं तो के मैँन्ने?"...
"क्क्या मतलब?"...
"छै सौ किलो के तन्दुरस्त झोट्टे के होये पाच्छे वो भला आप क्यों मैँसाँ ने हरी करण लागा?"...
"तो फिर किसने इनकार कर दिया था?"...
"झोट्टे ने..ओर किसणे?"...
"झोट्टे ने?...उसको क्या प्राबलम थी?"...
"मन्ने के बेरा?"...
"ओह!...फिर क्या हुआ?"...
"फेर वो 'रामदित्ते' के बिगड़ैल झोट्टे के धोरे बी गय्यी लेकिन उस सुसरे ने बी मौत पड़े थी"...
"क्या मतलब?"...
"उड़े बी वोही हाल"...
"ओह!...क्या वो भी मना कर गया?"मेरा स्वर उत्सुकता से भर चुका था...
"ओर नय्यी तो के?"...
"ओह!...फिर क्या हुआ?"...
"होणा के था?....म्हारी बीरबानी बुड़बुड़ करती उलटे पाँव वापस आ ली"...
"उलटे पाँव वापिस आ गई?...लेकिन क्यों?"...
"ओर नय्यी तो के उड़े बैठ के धूप-बत्ती करती?"...
"झोट्टे की?"...
"ओर नय्यी तो के उसके जुगाड़ की?"...
"ओह!...फिर क्या हुआ?"...
"होना के था...मेरे धोरे आ के ज़ोर-ज़ोर से रोण लागी"...
"छाती-पीट-पीट के?"..
"ओर नय्यी तो के मुँह नोच-नोच के?"मेरी तरफ गुस्से से देखता हुआ ताऊ बोला ...
"ओह!...गुस्से में क्या कह रही थीं वो?"...
"म्हारी तो समझ में कतिए कोणी आवै थी उसकी बकवास के..."गजब का टैम आ ग्या ईब्ब तो...गजब का"..
"ईब्ब मैं के करूँ?...कित्त जाऊँ?"...
"गाम के सारे झोट्टे 'आसाम रैफल' में भरती होग्ये"...
"गाम के सारे झोट्टे 'आसाम रैफल' में भरती होग्ये"...
***राजीव तनेजा***
Rajiv Taneja
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18 comments:
अरे वाह...!
इतनी छोटी पोस्ट!
मजा आ गया!
राजीव भाई हमन्ने तो ये लागे से के आसाम राईफ़ल्स के सब जवानन के ताइ रीफ़्रेशर कोर्स कर्वा दे और फ़ायदा होतो दीखे तो और सबन्कू भी आजमा ले. कभी बैक मैनेजर लोगन को कोर्स करो तो हमन्ने भी बुलवा लीजो. कई बार हमारी लुगाई की बात हमारे भी समझ मे नही आवे.
भाई गज़ब कर दिया तमने...इस पे तो एक एकांकी खेला जा सकता है...लोग हंस हंस के बावले हो जायेंगे...सच्ची..
नीरज
he he he
asam rifle..
ho hoho
haah haa jhaa hahah
raajiv ji maja aagaya has has ke bura haal hai
saadar
praveen pathik
9971969084
rajiv ji , ab is par ek drama likh hi dijiye ... par hindi me ho ji ...
abhar
vijay
रा्जीव भाई ,
यो के जुलम कर रिए हो इब मन्ने तो सारा पढ लिया ओर हंसते हंसते पागल हो रिया हूं , यो हरियाणवी एपिसोड भी कमाल का रेया
राजीव जी कमाल कर दिया
हे राम,
ये क्रिकेट, ये रम्मी...
कॉमनवेल्थ गेम्स में शामिल करा दो राजीव भाई, सारे गोल्ड मेडल "गाम के सारे झोट्टे" ले उड़ेंगे...
जय हिंद...
राजीव की माइक्रो पोस्ट
कुछ जगह चित्रों ने घेर राखी सै
बाकी शब्दों ने
विचारों ने
कुछ ताऊ ने
बालकों के लिये तो
है ही नहीं
वैसे हरे पीले नीले
रंग बालकों को
करते हैं आकर्षित
चेतावनी न देते
तो बालक न पढ़ते
इब्ब जरूर पढ़ेंगे।
waah bhaai waah !
jhota to gazab ka sai
birbaani bhi kam nahin
bas taau ki rifle tel maang rahi sai
ha ha ha
zordaar ..masaledaar......badhai !
Mazedar :D
badhai Rajeevjee
wah taneja bhai chha gaye ..chhupe rustam hain aap ...sunder rchna...
बहुत अच्छी और ..... सुंदर पोस्ट....
नोट: लखनऊ से बाहर होने की वजह से .... काफी दिनों तक नहीं आ पाया ....माफ़ी चाहता हूँ....
vaah...ye bhi ek shailee hi hai. badhai..
bhai taneja ji mai pahli baar aapki post par aaya hun ... gazab hi dha diya aapne to ... agar tau ko gharwali ki baat ka pata hi hota to aasaam raaifal me kyun bahrtee hota ... bahut hi mazedar ... ek saans me padh gaya mai to ...ha ha ha
वाह भाई राजीव जी आपका भी जवाब नहीं..
चाला पाड़ रख्या है भाई ....... कती ना पता था थारी इस कुवालिटी का...... मान ग्या
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