ये क्या?…गाँव अभी बसा नहीं कि….जगह-जगह से फोन आने भी शुरू हो गए… “अरे!…अरे…क्या करते हो?…पहले सम्मलेन को तो ठीकठाक से हो जाने दो…उसके बाद करते रहना आराम से नुक्ते की चिंदी-चिंदी लेकिन नहीं…बिना टोके चैन कहाँ पड़ता है हम हिंदुस्तानियों को?”…
“भईय्या!…ये कमी रह गई तो क्या होगा?”……
“भईय्या!…वो कमी रह गई तो क्या होगा?”…
“टट्टू होगा…वो भी अरबी नसल का…तुमसे मतलब?"…
अब अपने इन चौधरी साहब को ही लो…क्या ज़रूरत पड़ गई थी इन जैसे हैवीवेट…स्वयंभू छाप पोल्ट्री के तकनीशियन को कि अपनी हरियाणे की अच्छी-भली…चली-चलाई…जमी-जमाई…सिंकी-सिंकाई मुर्गी संग मुर्गों की उछलकूद भरी फार्मिंग को छोड़ हम जैसे हिन्दी के तुच्छ ब्लोगरों के फटे में अपनी बिना रोओं वाली क्लीन शेव्ड जाँघ घुसाने की?…लेकिन नहीं…चैन कहाँ पड़ता है इन्हें किसी को अच्छे-भले ढंग से खाता-कमाता और महफ़िल जमाता देख के…कर दिया जींद से मित्राऊ जिले ताबडतोड फोन कि… “कित्त का छोरा सै रे तू?”…
मैंने तपाक से जवाब दिया “अपणे गाम का”…
तो पता है…क्या कहने लगे?…
कहने लगे कि… “अपणे गाम को तो मैं बी सूं लेकिन कुदरत की मार देख…ईब्ब!…छोरा रहेया कोणी'…
मैं मन ही मन हास पड़या के ताऊ जी इस्स उम्र में आ के म्हारे संग हू…तू तू खेलणा चाहवें सै”…
खैर!…उनकी बात को तो मैंने किसी ना किसी तरीके से आई-गई कर दिया लेकिन इस ससुरे… बिना मूँछ के सरदार का मैं क्या करूँ?…फोन उठाते ही तुरंत राशन-पानी ले के चढ गया कि…
“ओ!…तुस्सी ते छा गए गुरु…साड्डे दिल नूं भा गए गुरु"…
“जैसे कबूतर की दबदबी चीख से कौवा बिदक जाता है”…
“जैसे…लंगूर को मस्ती में आता देख बंदरिया से बन्दर चिपक जाता है”….
“जैसे…लाकअप में मुजरिम को देख पुलिस का तेल पिला बम्बू चमक के सरक जाता है”….
“ठीक!..वैसे ही…समीरलाल को आता देख अनूप शुक्ल ठिठक जाता है”…
“ठोको…ताली”….
मैंने मन ही मन सोचा कि… “यार!…ये सरदार तो वाकयी में असरदार है"…
अभी मैं अपनी इस सोच से उबरा भी नहीं था कि उन्होंने फोन पे ही एक जुगणी सुनानी शुरू कर दी…
“ओSsss….जुगणी जा वड़ी जलन्धर…
ओहदे मुँह विच्च वड़ गया बन्दर…
के अद्धा बाहर….के अद्धा अन्दर”…
“ठोको!….ताली”….
मैं चुप्प…
“ओए!…ठोक वी हुण ताली…हत्थां नूँ तेरे क्यों जाम लग गया?…ओहना दी ग्रीस खतम हो गई क्या?”…
“म्म…मेरे हह…हाथ में दर्द है"…
“ड्रामा छोड़ और ठोक ताली…नहीं ते सुण मेरे से तू माँ-प्यो ते भैण की गाली”….
मैंने तो डर के मारे फोन ही रख दिया जनाब…कि कौन इनके पंगे में पड़ता फिरे?…क्या पता कल को ताली बजाने का ऐसा शौक सर-माथे पे चढ के ऐसा बोलने लगे कि बाकी की सारी जिंदगी गली-गली में ताली बजाते हुए ही गुज़रे"…
“क्यों?…सही किया ना मैंने?”…
“अजी!…क्या ख़ाक सही किया?…फोन अभी क्रेडिल पे रखा ही था कि जमनापार से मच्छर सिंह पहलवान का मिमियाता हुआ फोन आ गया कि…
“क्यों…मियाँ?…सुना है कि आजकल बड़े छाए हुए हो हिन्दी ब्लॉगजगत में”….
“जी!…ऐसे तो कुछ खास नहीं"…
“सुना है कि बांग्लादेश की पावन मिट्टी से ‘पवन’ संग चन्दन-तिलक करने जा रहे हो?”…
“जी!…विचार तो कुछ ऐसा ही है"…
“अकेले जा रहे हो या जोड़े से?”…
“यहाँ घर से तो हम मियाँ-बीवी का जोड़ा ही जाएगा… बाकियों को तो चौड़े रस्ते से ही…
“तोड़े से जाना हो तो मुझे भी साथ ले चलो"…
“तोड़े से?…मैं कुछ समझा नहीं"..
“किसी के हाथ-पाँव तुडवाने हों तो मुझे भी साथ ले चलो"…
“अजी!..उसके लिए आप क्यों तकलीफ देते हैं?…इस काम में तो हम हिन्दी के ब्लोगर्ज़ आपस में ही काफी हैं"…
“ओह!…तो इसका मतलब जल्द ही मुझे अपना ये धंधा समेटना पड़ेगा"…
“अब….ऐसे…इस बारे में मैं…इस वक्त क्या कह सकता हूँ जी?…जैसा आपका अपना मन करे..वैसा ही करें"…
“ठीक है”…कह कर उन्होंने फोन रख दिया"…
अभी फोन रखा ही था कि…अमेरिका से किसी लिपस्टिक पुते मिलेट्री जनरल का आदेशनुमा फोन आ गया कि…
“बांगलादेश जा तो रहे हो अपनी मर्जी से…वापिस आ नहीं पाओगे बिना हमारी मर्जी के"…
“वो किसलिए?”मैंने पूछा…
”पता भी है कि उल्फा वालों के कितने हार्ड कोर कैम्प लगे हुए हैं वहाँ?”…
“जी!..ऐसे तो कुछ खास पता नहीं है लेकिन…काफी होंगे"मैंने तुक्का भिडाने की कोशिश की…
“हाँ!…बहुत हैं…और उन्हें हिन्दी लिखने वाले ब्लोगरों की बड़ी ही सरगर्मी से तलाश है"…
“वो किसलिए?”…
“अपने विध्वंसक आलेखों को जन-जन तक…कण-कण तक पहुंचाने के लिए"…
“ओह!…तो फिर क्या किया जाए?”…
“चिंता ना करो…FBI के जांबाज़ जासूस चौबीसों घंटे तुम लोगों की सुरक्षा के लिए तुम्हारे इर्द-गिर्द ही रहेंगे"..
“ओह!…ओ.के…मैं आपका कैसे धन्यवाद करूँ?”…
“धन्यवाद की ज़रूरत नहीं है…बस!..ऐसे ही…एक छोटी सी कविता लिखी है…
“आपने?”…
“जी!…उस पर आपकी टिप्पणी मिल जाती तो….
“ओह!…तो क्या आप भी ब्लोगर हैं?”…
“जी!…बिलकुल"….
“दरअसल!..मैं अंग्रेज़ी में थोड़ा पैदल हूँ”…
“तो?…उससे क्या होता है?”…
“तो…मैं…कैसे?…उस पर टिपण्णी?”…
“अरे!…भाई…मेरा ब्लॉग हिन्दी में”…
“ओह!…अच्छा… लेकिन..ऐसे…कैसे?”…
“कैसे…क्या?…अपनी वन्दना गुप्ता जी ने सब सिखा दिया"…
“ओह!…
“दरअसल!…क्या है कि सभी जानते हैं कि विश्व का सबसे बड़ा बाज़ार भारत है"…
“जी!…वो तो है"…
“तो यहाँ पर अपने पाँव जमाने के लिए हम सभी अंग्रेज़ी छोड़ हिन्दी सीख रहे हैं"…
“गुड!…गुड…वैरी गुड"…
“गुड!…नहीं…अच्छा…बहुत अच्छा बोलिए"…
“जी!…जी…बिलकुल"..
“ओ.के…मैं ज़रा बाकी के ब्लोगरों से भी इस बारे में बात कर लूँ"…
“जी!..ज़रुर…वैसे…अगर आप चाहें तो सिर्फ अविनाश वाचस्पति जी को ही फोन कर लें…बाकी सब तक वो आपकी बात पहुंचा देंगे…इस काम में वो बड़े माहिर है"…
“ओह!…थैंक्स फॉर दा सपोर्ट"…
“थैंक्स फॉर दा सपोर्ट नहीं …मदद के लिए शुक्रिया कहिये"…
“जी!…जी…ज़रूर…मदद के लिए शुक्रिया"…
“शुक्रिया कैसा?"…ये तो मेरा फ़र्ज़ था"…
“कभी मुझे भी यही मर्ज़ था….ओ.के…बाय"…
“बाय" कहकर मैंने भी फोन रख दिया …
उसके बाद तो जनाब क्या बताऊँ मैं आपको कि किसका फोन आया और किसका नहीं….कभी भाखड़ा-नंगल के नीले-नीले आसमान से घुर्र-घुर्र कर कलाबाजियां खाते हुए सुपरमैन का दुलार भरा फोन…..
तो कभी डाईरैक्ट हालीवुड से ‘एंजलीना जोली’ और ‘ब्रिटनी स्पीयर्स’ का दिमाग घुमाने में सक्षम आग्रह भर फोन…
कभी…एक ही लंगोटे से बंधे हमारे देसी मॉडलज का फोन कि… “बढ़िया कर रहे हो…लगे रहो"..…
.
यूँ समझिए कि एक से एक बड़े सेलिब्रिटी ने फोन कर कर के नाक में दम कर दिया…कि… “भईय्या मेरे…ये क्या गज़ब कर रहा है?…हमें साथ लिए बिना ही वैतरणी पार कर रहा है?"….
माँ कसम… ‘भईय्या’ शब्द सुनते ही मानों मेरे तन-बदन में आग लग गयी…..मैंने तो साफ़ साफ़ कह दिया उन फिरंगी मेमों से कि… “तू होगी भईय्या…तेरी माँ होगी भईय्या…तेरा प्यो होगा भईया"…
“क्यों?…ठीक किया ना मैंने?”..
हद हो गई यार ये तो सरासर कि…मान ना मान…मैं तेरा मेहमान….एक तो पहले ही कोई मिलती नहीं है ढंग की…ऊपर से ये सेलिब्रिटी भी…भईय्या…छी”…
हुंह!…बड़ी आई भईय्या कहने वाली….इसीलिए फूंकते हैं क्या हम अपनी मेहनत की कमाई का पैसा इन फिरंगी सैलिब्रिटियों की फिल्में देखने के लिए कि वक्त-ज़रूरत और मौका पड़ने पर ये हमें?…अपने नारियल रुपी रियल फैन्ज़ को भईय्या कहती फिरें?…
“क्यों?…भाई लोग…क्या कहते हैं आप?”…
***राजीव तनेजा***
rajivtaneja2004@gmail.com
http://hansteraho.com
+919810821361
+919213766753
+919136159706
नोट: निर्मल हास्य…बुरा ना मानों होली है
“भईय्या!…ये कमी रह गई तो क्या होगा?”……
“भईय्या!…वो कमी रह गई तो क्या होगा?”…
“टट्टू होगा…वो भी अरबी नसल का…तुमसे मतलब?"…
अब अपने इन चौधरी साहब को ही लो…क्या ज़रूरत पड़ गई थी इन जैसे हैवीवेट…स्वयंभू छाप पोल्ट्री के तकनीशियन को कि अपनी हरियाणे की अच्छी-भली…चली-चलाई…जमी-जमाई…सिंकी-सिंकाई मुर्गी संग मुर्गों की उछलकूद भरी फार्मिंग को छोड़ हम जैसे हिन्दी के तुच्छ ब्लोगरों के फटे में अपनी बिना रोओं वाली क्लीन शेव्ड जाँघ घुसाने की?…लेकिन नहीं…चैन कहाँ पड़ता है इन्हें किसी को अच्छे-भले ढंग से खाता-कमाता और महफ़िल जमाता देख के…कर दिया जींद से मित्राऊ जिले ताबडतोड फोन कि… “कित्त का छोरा सै रे तू?”…
मैंने तपाक से जवाब दिया “अपणे गाम का”…
तो पता है…क्या कहने लगे?…
कहने लगे कि… “अपणे गाम को तो मैं बी सूं लेकिन कुदरत की मार देख…ईब्ब!…छोरा रहेया कोणी'…
मैं मन ही मन हास पड़या के ताऊ जी इस्स उम्र में आ के म्हारे संग हू…तू तू खेलणा चाहवें सै”…
खैर!…उनकी बात को तो मैंने किसी ना किसी तरीके से आई-गई कर दिया लेकिन इस ससुरे… बिना मूँछ के सरदार का मैं क्या करूँ?…फोन उठाते ही तुरंत राशन-पानी ले के चढ गया कि…
“ओ!…तुस्सी ते छा गए गुरु…साड्डे दिल नूं भा गए गुरु"…
“जैसे कबूतर की दबदबी चीख से कौवा बिदक जाता है”…
“जैसे…लंगूर को मस्ती में आता देख बंदरिया से बन्दर चिपक जाता है”….
“जैसे…लाकअप में मुजरिम को देख पुलिस का तेल पिला बम्बू चमक के सरक जाता है”….
“ठीक!..वैसे ही…समीरलाल को आता देख अनूप शुक्ल ठिठक जाता है”…
“ठोको…ताली”….
मैंने मन ही मन सोचा कि… “यार!…ये सरदार तो वाकयी में असरदार है"…
अभी मैं अपनी इस सोच से उबरा भी नहीं था कि उन्होंने फोन पे ही एक जुगणी सुनानी शुरू कर दी…
“ओSsss….जुगणी जा वड़ी जलन्धर…
ओहदे मुँह विच्च वड़ गया बन्दर…
के अद्धा बाहर….के अद्धा अन्दर”…
“ठोको!….ताली”….
मैं चुप्प…
“ओए!…ठोक वी हुण ताली…हत्थां नूँ तेरे क्यों जाम लग गया?…ओहना दी ग्रीस खतम हो गई क्या?”…
“म्म…मेरे हह…हाथ में दर्द है"…
“ड्रामा छोड़ और ठोक ताली…नहीं ते सुण मेरे से तू माँ-प्यो ते भैण की गाली”….
मैंने तो डर के मारे फोन ही रख दिया जनाब…कि कौन इनके पंगे में पड़ता फिरे?…क्या पता कल को ताली बजाने का ऐसा शौक सर-माथे पे चढ के ऐसा बोलने लगे कि बाकी की सारी जिंदगी गली-गली में ताली बजाते हुए ही गुज़रे"…
“क्यों?…सही किया ना मैंने?”…
“अजी!…क्या ख़ाक सही किया?…फोन अभी क्रेडिल पे रखा ही था कि जमनापार से मच्छर सिंह पहलवान का मिमियाता हुआ फोन आ गया कि…
“क्यों…मियाँ?…सुना है कि आजकल बड़े छाए हुए हो हिन्दी ब्लॉगजगत में”….
“जी!…ऐसे तो कुछ खास नहीं"…
“सुना है कि बांग्लादेश की पावन मिट्टी से ‘पवन’ संग चन्दन-तिलक करने जा रहे हो?”…
“जी!…विचार तो कुछ ऐसा ही है"…
“अकेले जा रहे हो या जोड़े से?”…
“यहाँ घर से तो हम मियाँ-बीवी का जोड़ा ही जाएगा… बाकियों को तो चौड़े रस्ते से ही…
“तोड़े से जाना हो तो मुझे भी साथ ले चलो"…
“तोड़े से?…मैं कुछ समझा नहीं"..
“किसी के हाथ-पाँव तुडवाने हों तो मुझे भी साथ ले चलो"…
“अजी!..उसके लिए आप क्यों तकलीफ देते हैं?…इस काम में तो हम हिन्दी के ब्लोगर्ज़ आपस में ही काफी हैं"…
“ओह!…तो इसका मतलब जल्द ही मुझे अपना ये धंधा समेटना पड़ेगा"…
“अब….ऐसे…इस बारे में मैं…इस वक्त क्या कह सकता हूँ जी?…जैसा आपका अपना मन करे..वैसा ही करें"…
“ठीक है”…कह कर उन्होंने फोन रख दिया"…
अभी फोन रखा ही था कि…अमेरिका से किसी लिपस्टिक पुते मिलेट्री जनरल का आदेशनुमा फोन आ गया कि…
“बांगलादेश जा तो रहे हो अपनी मर्जी से…वापिस आ नहीं पाओगे बिना हमारी मर्जी के"…
“वो किसलिए?”मैंने पूछा…
”पता भी है कि उल्फा वालों के कितने हार्ड कोर कैम्प लगे हुए हैं वहाँ?”…
“जी!..ऐसे तो कुछ खास पता नहीं है लेकिन…काफी होंगे"मैंने तुक्का भिडाने की कोशिश की…
“हाँ!…बहुत हैं…और उन्हें हिन्दी लिखने वाले ब्लोगरों की बड़ी ही सरगर्मी से तलाश है"…
“वो किसलिए?”…
“अपने विध्वंसक आलेखों को जन-जन तक…कण-कण तक पहुंचाने के लिए"…
“ओह!…तो फिर क्या किया जाए?”…
“चिंता ना करो…FBI के जांबाज़ जासूस चौबीसों घंटे तुम लोगों की सुरक्षा के लिए तुम्हारे इर्द-गिर्द ही रहेंगे"..
“ओह!…ओ.के…मैं आपका कैसे धन्यवाद करूँ?”…
“धन्यवाद की ज़रूरत नहीं है…बस!..ऐसे ही…एक छोटी सी कविता लिखी है…
“आपने?”…
“जी!…उस पर आपकी टिप्पणी मिल जाती तो….
“ओह!…तो क्या आप भी ब्लोगर हैं?”…
“जी!…बिलकुल"….
“दरअसल!..मैं अंग्रेज़ी में थोड़ा पैदल हूँ”…
“तो?…उससे क्या होता है?”…
“तो…मैं…कैसे?…उस पर टिपण्णी?”…
“अरे!…भाई…मेरा ब्लॉग हिन्दी में”…
“ओह!…अच्छा… लेकिन..ऐसे…कैसे?”…
“कैसे…क्या?…अपनी वन्दना गुप्ता जी ने सब सिखा दिया"…
“ओह!…
“दरअसल!…क्या है कि सभी जानते हैं कि विश्व का सबसे बड़ा बाज़ार भारत है"…
“जी!…वो तो है"…
“तो यहाँ पर अपने पाँव जमाने के लिए हम सभी अंग्रेज़ी छोड़ हिन्दी सीख रहे हैं"…
“गुड!…गुड…वैरी गुड"…
“गुड!…नहीं…अच्छा…बहुत अच्छा बोलिए"…
“जी!…जी…बिलकुल"..
“ओ.के…मैं ज़रा बाकी के ब्लोगरों से भी इस बारे में बात कर लूँ"…
“जी!..ज़रुर…वैसे…अगर आप चाहें तो सिर्फ अविनाश वाचस्पति जी को ही फोन कर लें…बाकी सब तक वो आपकी बात पहुंचा देंगे…इस काम में वो बड़े माहिर है"…
“ओह!…थैंक्स फॉर दा सपोर्ट"…
“थैंक्स फॉर दा सपोर्ट नहीं …मदद के लिए शुक्रिया कहिये"…
“जी!…जी…ज़रूर…मदद के लिए शुक्रिया"…
“शुक्रिया कैसा?"…ये तो मेरा फ़र्ज़ था"…
“कभी मुझे भी यही मर्ज़ था….ओ.के…बाय"…
“बाय" कहकर मैंने भी फोन रख दिया …
उसके बाद तो जनाब क्या बताऊँ मैं आपको कि किसका फोन आया और किसका नहीं….कभी भाखड़ा-नंगल के नीले-नीले आसमान से घुर्र-घुर्र कर कलाबाजियां खाते हुए सुपरमैन का दुलार भरा फोन…..
तो कभी डाईरैक्ट हालीवुड से ‘एंजलीना जोली’ और ‘ब्रिटनी स्पीयर्स’ का दिमाग घुमाने में सक्षम आग्रह भर फोन…
कभी…एक ही लंगोटे से बंधे हमारे देसी मॉडलज का फोन कि… “बढ़िया कर रहे हो…लगे रहो"..…
.
यूँ समझिए कि एक से एक बड़े सेलिब्रिटी ने फोन कर कर के नाक में दम कर दिया…कि… “भईय्या मेरे…ये क्या गज़ब कर रहा है?…हमें साथ लिए बिना ही वैतरणी पार कर रहा है?"….
माँ कसम… ‘भईय्या’ शब्द सुनते ही मानों मेरे तन-बदन में आग लग गयी…..मैंने तो साफ़ साफ़ कह दिया उन फिरंगी मेमों से कि… “तू होगी भईय्या…तेरी माँ होगी भईय्या…तेरा प्यो होगा भईया"…
“क्यों?…ठीक किया ना मैंने?”..
हद हो गई यार ये तो सरासर कि…मान ना मान…मैं तेरा मेहमान….एक तो पहले ही कोई मिलती नहीं है ढंग की…ऊपर से ये सेलिब्रिटी भी…भईय्या…छी”…
हुंह!…बड़ी आई भईय्या कहने वाली….इसीलिए फूंकते हैं क्या हम अपनी मेहनत की कमाई का पैसा इन फिरंगी सैलिब्रिटियों की फिल्में देखने के लिए कि वक्त-ज़रूरत और मौका पड़ने पर ये हमें?…अपने नारियल रुपी रियल फैन्ज़ को भईय्या कहती फिरें?…
“क्यों?…भाई लोग…क्या कहते हैं आप?”…
***राजीव तनेजा***
rajivtaneja2004@gmail.com
http://hansteraho.com
+919810821361
+919213766753
+919136159706
नोट: निर्मल हास्य…बुरा ना मानों होली है
22 comments:
Bap re
abhee se gazab dada
वाह वाह क्या बात है जबरदस्त...
Vah vah abhi aate hain aur ek bar fir padhte hain. Bheje me ghusa hi nahi.:)
sahi hai sarkar. ham soche ki hamara bhi photo hai .
अरे तेरिको... यह तो कमाल ही कर दिया आपने...
... हँसते रहो भय्या, हँसते रहो!!!!
abhi-abhi aayaa aur payaa ki aap bhang ki lagi mey hai. badhai..ab mazaa aayegaa holi ka. mood bnaa rahe hai aap. sub ka stree-karan kar diyaa. jai ho...
बुरा लगने की बात ही है ... अरे हम लोगो ने कोई ठेका थोड़े ही लिया है ... जिसे देखो भईया भईया करता आ जाता है ! साला अपनी तो कोई इज्ज़त ही नहीं रही ... कम से कम हमारी भावनाओ को तो समझो ... लगे रहो जी हम आपके साथ है !
matlab ye ki dhurandharo ko lapet liya hai ab dhanurdharo kee baaree hai.
yar is tanejaapane pe kitna dimaag kharch karte ho. aap koi dhang ka kaam kar karte ho.
अरे ये किस किस को छाप दिया भाई ।
हमें तो सरदार जी सबसे ज्यादा भाये ।
:)
भाई बिना मुंछ का तो सरदार होता ही नहीं, चाहे किसी ते भी पुछ ले, क्युं बाळको को फ़ालतु बहकावै है। ये तो लादेन है।
समीर भाई तो पुरेमंगला डाकू लगते हे, बस घोडे की कमी रग गई, ओर सरदार जी की मुछे शायद दाडी मे लग गई:) बहुत सुंदर
हा हा हा .... सरदार जी का यह वर्जन पहली बार देखा है... फिदाईन टच लिए हुए :)
अविनाशी बाबा की सेहत रिपेयरिंग मांग रही है... वर्चुवल जगत से इस जगत के बीच दौड़ ज़्यादा हो रही है जाकल :)
हद हो गई...खुद से शरमाये जाते हैं हम!!! :)
इस सुपर मैन की ये मज़ाल कि मुझ से पूछे बिना भाखदा नंगल से आपको फोन करे? अरे हम तो एक्मात्र हिन्दी के ब्लागर हैं नंगल के[ अभी तक] जरूर वो दढी मूँछ वाला ही होगा वर्ना बिना मूँछ वाले सरदार इतनी हिम्मत नही दिखाते। ये समीरा रेडी काहे शर्माये जा रही हैं? मस्त पोस्ट्\ सतश्रीअकाल
Are waah yahan to abhi se holi ke rang bikhre huye hain vo bhi ek naye andaaj me.. Maja aa gaya sabhi ko dheron badhiyan............ha ha ha.....
अब तो बिना मूंछ वाले सरदार को भैया ही कहेंगे…………हा हा हा…………होली के रंग भर भर पिचकारी मारे जा रहे हैं…………लगे रहो मुन्ना भैया।
uff...kaise kaise ajeeb chehre bana diye. waise bina moochhon ka sardar to muslim lagta hai.
गज़ब है भई!
waa waa bhai vaa kya bat h lagta nahi ki aap business man h aap to jaspal bhati h aapto surendra sharma h ,wah taneja gi wah g sa
Bahut khoob, dekha blog ka traffic kitna increase ho Gaya , ndtv ka bhi kar liya istemal, ve bhi kya. Bhool sakenge?
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