उफ्फ़!…तौबा…ये बच्चे भी ना…आफत हैं आफत….जैसे ही पता चला इनको कि हिन्दी ब्लोगरों का महा सम्मलेन होने जा रहा है बांग्लादेश में तो पड़ गए तुरंत मेरे पीछे कि “हम भी चलेंगे…हम भी चलेंगे” ….
लाख समझाने की कोशिश की कि… “भईय्या मेरे…वहाँ पर हिन्दी ब्लोगिंग का परचम फहराने जा रहे हैं हम लोग कोई ट्वेंटी-ट्वेंटी के फिक्स्ड मैच खेलने नहीं कि तुम्हें भी अपने साथ ले चलें और फिर चलो खुदा ना खास्ता कैसे ना कैसे कर के ले भी गए तो वहाँ पर तुम्हारे पोतड़े कौन धोता और संभालता फिरेगा…अपने बस का तो है नहीं ये सब"…
“वो सब तो हम खुद ही कर लेंगे….डायपर मिलते हैं बाज़ार में"…
“मुश्किल है…मुश्किल क्या?…नामुमकिन है…मैं नहीं ले जा सकता तुम्हें वहाँ"..
इस पर पता है वो क्या कहें लगे?…कहने लगे कि
“तुम तो ठहरे परदेसी….साथ क्या निभाओगे…चार दिन की ब्लोगिंग के बाद टंकी पे चढ़े नज़र आओगे"…
बात में उनकी दम तो था लेकिन ऐसे कैसे मैं इतनी आसानी से हार मान जाता?…प्यार से…मान-मनौव्वल से…चापलूसी से…चाटुकारिता से…हर तरह से उन्हें समझाने की कोशिश की लेकिन बदले में पता है उन्होंने मेरे साथ क्या किया?….
अब खुद अपने मुँह से अपनी हालत कैसे बयाँ करे ये राजीव?…आप खुद ही देख लीजिए…
इसलिए ना चाहते हुए भी मुझे उन्हें बल प्रयोग द्वारा जबरन खदेड़ देने की धमकी देनी पड़ी….
क्यों?…सही किया ना मैंने?
17 comments:
कुची कुची अले ले ले
सब बच्चे चलो बकरी दिखाएं.
होली पे मज़ा आयेगा
वाह राजीव जी आपका भी जवाब नहीं....
बहुत सही ...बच्चे दिल के सच्चे :)
दिल तो बच्चा है जी...
जय हिंद...
:)
इन बच्चों को तो लेकर ही चलना पडेगा :)
प्रणाम
हा हा!!! :)
हा हा हा... ज़बरदस्त भय्या ज़बरदस्त!!!!!
जय हो महाराज !!
गजब के बच्चे हैं। जय हो!
very creative.
हद कर दी आपने,
सब लगे है कांपने,
बूढ़े बच्चे हो गए,
कितने अच्छे हो गए.
होली में सब चलता है.
लेकिन दिल ये जलता है.
क्या दिमाग तनेजाजी
पाया सुन्दर भेजाजी.
आलस भी बुरी चीज है, 4 दिनों बाद कमेंट की है। कोई कितना इंतजार करेगा। हा हा हा हा
ha ha ha haaaaaaaaaaaaa
ha ha ha haaaaaaaaaaaaa
निर्मला कपिला जी को भी ....
अमां किसी को तो बख्शा करो :-)
nice
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