मल्लिका- मनीषा कुलश्रेष्ठ

कुछ किताबें पहले से पढ़ी होने के बावजूद भी आपकी स्मृति से विलुप्त नहीं हो पाती। वे कहीं ना कहीं आपके अंतर्मन में अपनी पैठ..अपना वजूद बनाए रखती हैं। आज एक ऐसे ही उपन्यास का जिक्र जिसे मैंने वैसे तो कुछ साल पहले पढ़ा था लेकिन मन करता है कि इसका जिक्र बार बार होता रहे। दोस्तों..आज मैं बात कर रहा हूँ मनीषा कुलश्रेष्ठ जी के उपन्यास 'मल्लिका' की। हिंदी कथा क्षेत्र में इनका नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं है। यह उपन्यास पाठक को एक अलग ही दुनिया में.. एक अलग ही माहौल में अपने साथ.. अपनी ही रौ में बहाए लिए चलता है।

इस उपन्यास की कहानी में उन्होंने हिंदी सेवी भारतेन्दु हरिचंद जी तथा उनकी प्रेयसी मल्लिका की प्रेम कहानी को आधार बना तथ्यों तथा कल्पना के संगम से भरपूर एक विश्वसनीय गल्प रचा है। सारगर्भित शैली में लिखे गए  इस उपन्यास में कहीं-कहीं ऐसा भी भान होता है कि उन्होंने 'देवदास' और 'परिणीता' जैसी बड़े कैनवास की बंगाली कलेवर वाली फिल्मों के माफिक ही कहानी को अपने हुनर एवं परिश्रम से रच दिया है।

हमेशा की तरह इस बार भी उनकी लेखनी आपको विस्मृत कर अपने सम्मोहन के जाल में शनै शनै लपेट लेती है और आप उसी के होते हुए एक तरह से छटपटाते रहते है जब तक कि आप उपन्यास को पूरा पढ़ कर समाप्त नहीं कर देते। 

पश्चिम बंगाल और काशी के माहौल में रचे बसे इस उपन्यास में मल्लिका तथा भारतेंदु हरिचन्द के प्रेम तथा साहित्यिक सफर की यात्रा को बहुत ही प्रभावी ढंग से अपने पाठकों के समक्ष रखा है। इस बात में को शक नहीं कि उनकी लिखी एक एक बात में, एक एक विवरण में तथा बांग्ला उच्चारण के पीछे इस हद तक उनका शोध किया गया है कि आने वाली पीढ़ियाँ इसे ही संपूर्ण सच समझ बैठें, कोई आश्चर्य नहीं।

राजपाल एंड संस द्वारा प्रकाशित इस 160 पेज के उपन्यास के पेपरबैक संस्करण का मूल्य ₹235/-  है जो कि कंटैंट और क्वालिटी के बढ़िया होने की वजह से थोड़ा महँगा होते हुए भी अखरता नहीं है।

0 comments:

 
Copyright © 2009. हँसते रहो All Rights Reserved. | Post RSS | Comments RSS | Design maintain by: Shah Nawaz