सबसे बड़ी मर्डर मिस्ट्री- वेद प्रकाश शर्मा

लुगदी साहित्य याने के पल्प फिक्शन का अगर आपको एक बार चस्का लग जाए तो फिर इसकी गिरफ्त से निकलना नामुमकिन तो नहीं लेकिन बड़ा मुश्किल है। आजकल की तरह हर जगह आसानी से उपलब्ध मनोरंजन के तमाम साधनों से पहले एक समय ऐसा भी था जब खाना पीना सब भूल, हम लोग लगभग एक ही सिटिंग में, आड़े तिरछे या फिर पोज़ बदल बदल कर बैठते हुए, पूरे के पूरे उपन्यास को एक तरह से चाट जाया करते थे। 

अब समयानुसार अपनी व्यस्तताओं और समय के बदलाव की वजह से बेशक़ कुछ समय के लिए इन्हें बिसरा भले ही दिया गया हो लेकिन अंतस में कहीं ना कहीं इनकी याद अब भी बनी रहती है। और ऐसे ही किसी उपन्यास के अचानक सामने आ जाने पर फिर से ज़िंदा हो..प्रस्फुटित हो जाया करती है। 

दोस्तों..आज मैं बात कर रहा हूँ थ्रिलर उपन्यासों के बेताज बादशाह दिवंगत श्री वेदप्रकाश शर्मा जी के 2014 में आए "सबसे बड़ी मर्डर मिस्ट्री" नामक थ्रिलर उपन्यास की। इस उपन्यास में कहानी है उस राजन सरकार दंपत्ति की, जिन्हें पुलिस द्वारा गढ़ी गयी एक पुख्ता कहानी सरकमस्टेन्शियल एविडेन्स के आधार पर अदालत, उन्हीं के इकलौते बेटे और नौकरानी के कत्ल में, मुजरिम करार दे चुकी है। जबकि वे दोनों खुद को निर्दोष बता रहे हैं। 

तमाम सबूतों के उनके ख़िलाफ़ होने के बावजूद जब वे खुद को बेगुनाह कहते हैं। तो उनके बार बार आग्रह एवं अपने पिता की सिफारिश के बाद प्राइवेट जासूस विजय इस मामले की रीइंवेस्टिगेशन के लिए राज़ी हो जाता है। विजय-विकास सीरीज़ से अनजान पाठकों के लिए यहाँ यह बताना जरूरी है कि प्राइवेट जासूस विजय, दरअसल भारतीय सुरक्षा एजेंसी का चीफ़ है।

अपने भांजे, विकास और धनुषटंकार के साथ मिल कर जब विजय तफ़्तीश में जुटता है तो मामले की तहें खुलने के बजाय तब और अधिक उलझती जाती हैं जब एक के बाद एक कत्ल होने शुरू हो जाते हैं। रहस्य..रोमांच और उत्सुकता से लबरेज़ इस उपन्यास में कहीं आप गहरी साज़िश से तो कहीं धोखे से रूबरू होते हैं। कहीं इसमें कोई साजिशन हुए जानलेवा हमले से त्रस्त नज़र आता है तो कहीं कोई अमानत में ख़यानत का मंसूबा अपने मन में पाले बैठा है।

रौंगटे खड़े कर देने वाला उपन्यास शुरू से आखिर तक अपनी पकड़ बनाए रखता है और क्लाइमेक्स तक पहुँचते पहुँचते आप आश्चर्यमिश्रित चेहरे के साथ भौंचके रह जाते हैं। अगर आप थ्रिलर उपन्यासों के शौकीन हैं तो यह उपन्यास आपको कतई निराश नहीं करेगा। एक के बाद एक ट्विस्ट्स एण्ड टर्न्स से भरे इस मज़ेदार उपन्यास में विजय-विकास और धनुषटंकार की तिकड़ी क्या क्या गुल खिलाती है, यह सब तो आपको इस मज़ेदार उपन्यास को पढ़ कर ही पता चलेगा।

आमतौर पर थ्रिलर फिल्में या उपन्यास अपनी तेज़ रफ़्तार में आपको सोचने..समझने का मौका दिए बिना अपने साथ..अपनी रौ में बहाए लिए चलते हैं। मगर सुखद आश्चर्य के रूप में यह उपन्यास अपने लॉजिक..अपने तर्कों के साथ आपको दिमाग़ी कसरत करने एवं ज़हनी घोड़े दौड़ाने के अनेकों मौके देता है। 

पहली बार विजय-विकास सीरीज़ के उपन्यास को पढ़ने वाले पाठकों को शुरुआती पृष्ठों में मुख्य किरदार विजय का मज़ाकिया लहज़ा थोड़ी उकताहट पैदा कर सकता है लेकिन हर बढ़ते पेज के साथ थोड़ी ही देर में इस शैली के साथ आसानी से अपना सामंजस्य बिठा..इसे एन्जॉय किया जा सकता है। मेरे हिसाब से शीर्षक को सार्थक करते इस उपन्यास को यकीनन सबसे बड़ी मर्डर मिस्ट्री कहलाने का पूरा पूरा हक है। 

धाराप्रवाह शैली के इस तेज़ रफ़्तार उपन्यास की बाइंडिंग कुछ जगहों पर उखड़ती हुई दिखी। प्रकाशक को चाहिए कि इस तरह की कमी को यथाशीघ्र दूर करने का प्रयास करे। संग्रहणीय क्वालिटी के 350 पृष्ठीय उम्दा उपन्यास के पेपरबैक संस्करण को छापा है राजा पॉकेट बुक्स ने और इस पैसा वसूल उपन्यास का मूल्य रखा गया है 150/- रूपए जो कि क्वालिटी एवं कंटैंट को देखते हुए बहुत ही जायज़ है। आने वाले उज्जवल भविष्य के लिए प्रकाशक को अनेकों अनेक शुभकामनाएं।

1 comments:

yashoda Agrawal said...

आपकी लिखी रचना  ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 15 जून 2022 को साझा की गयी है....
पाँच लिंकों का आनन्द पर
आप भी आइएगा....धन्यवाद!

 
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