बर्फ़खोर हवाएँ - हरप्रीत सेखा - अनुवाद (सुभाष नीरव)


साहित्य को किसी देश या भाषा के बंधनों में बाँधने के बजाय जब एक भाषा में अभिव्यक्त विचारों को किसी दूसरी भाषा में जस का तस प्रस्तुत किया जाता है तो वह अनुवाद कहलाता है। ऐसे में किसी एक भाषा में रचे गए साहित्य से रु-ब-रू हो उसका संपूर्ण आनंद लेने के ज़रूरी है कि उसका सही..सरल एवं सधे शब्दों में किए गए अनुवाद को ज़्यादा से ज़्यादा लोगों तक पहुँचाया जाए। 

अब रचना प्रक्रिया से जुड़ी बात कि आमतौर पर यथार्थ से जुड़ी रचनाओं के सृजन के लिए हम लेखक जो कुछ भी अपने आसपास घटते देखते..सुनते या महसूस करते हैं, उसे ही अपनी रचनाओं का आधार बना कर कल्पना के ज़रिए कुछ नया रचने या गढ़ने का प्रयास करते हैं। क्षेत्र, स्थानीयता.. परिवेश एवं भाषा का असर स्वतः ही हमारी रचनाओं में परिलक्षित होता दिखाई देता है। 

दोस्तों आज अनुवाद और रचना प्रक्रिया से जुड़ी बातें इसलिए कि आज मैं कनाडा की पृष्ठभूमि पर..वहीं के मुद्दों को ले कर रची गयी कहानियों के एक ऐसे संकलन की बात करने जा रहा हूँ जिसे मूल रूप से लिखा है पंजाबी लेखक हरप्रीत सेखा ने और 'बर्फ़खोर हवाएँ" के नाम से इसका हिंदी अनुवाद किया है प्रसिद्ध लेखक एवं अनुवादक सुभाष नीरव जी ने।  

इस संकलन की एक कहानी इस बात पर सवाल खड़ा करती नज़र आती है कि विवाह के बाद महिला के लिए पति का सरनेम ही ज़रूरी क्यों?
तो वहीं एक अन्य कहानी उस दुःखी पिता की व्यथा व्यक्त करती नज़र आती है जिसका, अपने साढ़ू की बेटी का विवाह की तैयारी करवाने के लिए भारत आया जवान बेटा, अपनी पत्नी और छोटे बच्चों को अकेला छोड़ रोड एक्सीडेंट में मारा जा चुका है मगर विडंबना ये कि एक्सीडेंट के कुछ दिनों के भीतर ही विवाह का होना तय हुआ है जिसमें उन सभी को शामिल होना है। 

इसी संकलन की एक अन्य कहानी जहाँ एक तरफ़ झूठी शान के चक्कर में फँसे ऐसे व्यक्ति की बात कहती नज़र आती है जो विदेश में अपनी लगी-लगाई नौकरी महज़ इस वजह से छोड़ कर घर बैठ जाता है कि उसकी सुपरवाइज़र से जिस हरिजन युवक से शादी की है, उसका पिता कभी उनके खेतों में काम किया करता था। तो वहीं एक अन्य कहानी कहानी जॉर्ज और वांडा के पड़ोस में बसने आए उद्दण्ड पड़ोसी के हश्र से इस बात की तस्दीक करती दिखाई देती है कि सेर को भी सवा सेर कभी ना कभी..कहीं ना कहीं  ज़रूर मिलता है। 

इसी संकलन की अन्य कहानी जहाँ घर से हफ़्तों दूर रहने वाले बिज़ी ट्रक ड्राइवर की पत्नी, रूप के एकाकीपन की बात करती है जो खुद को मसरूफ़ रखने के लिए लेखन के ज़रिए फेसबुक में सहारा ढूँढती है। उसकी देखादेखी पति भी अपना फेसबुक एकाउंट बना तो लेता है मगर..
तो वहीं एक अन्य कहानी में कैंसर की वजह से मृत्यु प्राप्त कर चुकी पत्नी, जगजीत के वियोग में तड़पता सुखचैन सिंह अंततः अपनी पत्नी की खुशियों में ही अपनी खुशी ढूँढ़ लेता दिखाई देता है। 

एक अन्य कहानी में जहाँ एक तरफ़ सीमा के साथ हमेशा मारपीट करने वाले शक्की पति को जब एक्सीडेंट के बाद अस्पताल में भर्ती होना पड़ता है तो ना चाहते हुए भी सीमा का झुकाव अस्पताल में अपनी बीमार माँ की देखभाल के लिए रुके एक अन्य युवक नवदीप की तरफ़ होने तो लगता है मगर ..
तो वहीं दूसरी तरफ़ एक अन्य कहानी एक ऐसे सैक्स एडिक्ट की बात करती दिखाई देती है जिसकी पत्नी, उसकी बुरी आदतों की वजह से उसे छोड़ कर चुकी है और इस सबसे बाहर निकलने की अपनी तमाम कोशिशों के बावजूद भी उसका भटकाव जारी है। 

 इसी संकलन की एक अन्य कहानी में कंजूस प्रवृति के जग्गा को ना चाहते हुए भी मन मार कर अपनी बेटी, रूबी का विवाह पूरी शानोशौकत के साथ करना तो पड़ जाता है मगर विवाह के कुछ दिनों बाद ही बेटी अपने मायके से फ़ोन कर के यह कह देती है कि वो अपनी हुक्म चलाने वाली सास के साथ ससुराल में नहीं रह सकती। तो वहीं एक अन्य कहानी खेलों के प्रति लोगों के जोश और उन्माद को ज़ाहिर करती नज़र आती है कि किस तरह अपनी चहेती टीम के हारने पर उनके फैन उन्मादी हो जहाँ-तहाँ उत्पात मचाने लगते हैं। 
 
इसी संकलन की एक अन्य कहानी खोखले आदर्शों के साये तले जी रहे लोगों के दोगले रवैये पर चोट करती नज़र आती है। तो वहीं एक अन्य कहानी संकीर्ण सोच के उन लोगों की बात करती नज़र आती है जो वक्त एवं ज़रूरत के हिसाब से बदलने के बजाय अब भी पुराने संस्कारों और झूठी शान से जुड़े रहना चाहते हैं। 

धाराप्रवाह शैली में लिखे इस दमदार कहानी संकलन में कुछ एक जगहों पर मुझे प्रूफरीडिंग की छोटी-छोटी कमियाँ दिखाई दीं। 

संग्रहणीय क्वालिटी के इस 176 पृष्ठीय उम्दा कहानी संकलन के हार्ड बाउंड संस्करण को छापा है राही प्रकाशन, दिल्ली ने और इसका मूल्य रखा गया है 350/- रुपए। पाठकों पर ज़्यादा से ज़्यादा पकड़ बनाने के लिए ज़रूरी है कि इस प्रभावी कहानी संकलन के पेपरबैक संस्करण को जल्द से जल्द उपलब्ध कराया जाए। आने वाले उज्ज्वल भविष्य के लिए लेखक, अनुवादक एवं प्रकाशक को बहुत-बहुत शुभकामनाएं।

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