"हर फिक्र को धुएँ में उडाता चला गया"

"हर फिक्र को धुएँ में उडाता चला गया"

***राजीव तनेजा***

'गान्धी जी'भी नहीं रहे....

'सुभाष जी'भी चल बसे...

'जवाहरलाल जी'भी कब के ऊपर पहुँच गए...


"मेरी भी तबियत कुछ ठीक नहीं रहती...

"ना जाने कब लुढक जाऊँ"

"पता नहीं इस देश का क्या होगा?"


"अब रोज़-रोज़ बिना रुके लगातार'सूटटे'मारुंगा तो तबियत तो बिगडनी ही है लेकिन...

क्या करूँ ये साला!...दिल है के मानता नहीं"


"बहुत कोशिश कर ली...लेकिन ये मुय्यी ...ऐसी लत लगी है कि इसको सहा भी नहीं जाता और ...

इसके बिना रहा भी नहीं जाता"...


"अब तो आँखों के आगे अन्धेरा सा भी छाने लगा है"....


"पता है!...पता है बाबा...

'सिग्रेट'और'गुटखे'से कैंसर होता है"...लेकिन...

"क्या करूँ?"...

"कैसे समझाऊँ इस दिल-ए-नादां को?"

"काबू में ही नहीं रहता"


"कब और कैसे इस सब की लत लगी मुझे?"


"बताता हूँ"...

"बात कुछ ही साल पुरानी तो है...अपना एक फटीचर दोस्त था"...

"ना कोई काम...ना कोई धाम"...

"हर वक़्त बस...खाली का खाली"...

"जब देखो...किसी ना किसी का फुद्दू खींचने की फिराक में ही लगा रहता"

"एक दिन,अचनक उसी का फोन आ गया कि...

"बस!..आधे घंटे में ही पहुँच रहा हूँ...जुगाड-पानी तैयार रखना"


"मेरे कुछ कहने से पहले ही फोन कट गया"

"मैँ घबरा उठा कि कहीं कुछ...माँग ही ना बैठे"

"ऐसे लोगों का कुछ पता नहीं"..

"पता नहीं कितना खर्चा करवा डाले"...

"इसलिए...चुपचाप'कलटी'होना ही बेहतर लगा मुझे"


"फटाफट सारा का सारा कीमती सामान इधर-उधर छुपाया कि कहीं हाथ ही साफ ना कर डाले"...


"कोई भरोसा नहीं"


"घर को ताला लगा मैँ खिसकने ही वाला था कि...एक लम्बी गाडी दनदनाती हुई मेरे सामने आ रुकी"


"मैँ चौका कि ..कौन कम्भखत टपक पडा?"


"अभी सोच ही रहा था कि....इतने में गाडी में से एक लम्बा चौडा ...हट्टा-कट्ता आदमी निकला"...

'महँगा सूट'...

'गले में सोने की पट्टेदार चेन(कुत्ते के गले में डालने वाले पट्टे जैसी मोटी)"

'रंग रूप जैसे...'तवे का पुट्ठा पासा'...

'मुँह में सोने के दाँत चमकते हुए'...

'इम्पोर्टेड जूते'...वगैरा...वगैरा...


"वाह!...

क्या ठाठ थे बन्दे के...वाह!..."

"ध्यान से देखा तो वही पुराना अपना लँगोटिया यार'मुस्सदी लाल'निकला"

"अब यार!...उसके ठाठ देखने के बाद उसे लँगोटिया ना कहूँ तो फिर क्या कहूँ?"


"मैँ हैरान-परेशान कि इसके डर से तो मैँ अपने घर की मामुली से मामुली चीज़ें इधर-उधर कर रहा था और...

ये चाहे तो बेशक मुझे अभी का अभी..खडे-खडे ही मुँह मागे दाम पर खरीद ले"

"बाप रे!...क्या किस्मत पाई है पट्ठे ने"...


"मैँ गश खा के गिरने ही वाला था कि वो बोला"घर को ताला लगा कहाँ खिसक रहे थे?"


"जी!...कुछ आपके लिए ही मिठाई वगैरा ही लेने जा रहा था"मैँ खिसियाता हुआ बोला


"छड्ड यार!...ये मिठाई वगैरा भी कोई खाने की चीज़ होती है?"...


"अपुन को तो बस यही एक शौक है"...वो'टिंड बीयर'का सील तूदता हुआ बोला


"शौक क्या?....अब तो आदत सी हो गयी है इन सब की...

रहा नहीं जाता इनके बिना"वो सिग्रेट के पैकेट की तरफ इशारा करता हुआ बोला


"और रहा भी क्यों जाए भला?"...

"आम के आम और गुठलियों के दाम जो हैँ"


मैँ चौंका..."आम के आम और गुठलियों के दाम?"

"ना तो मुझे वहाँ कोई आम दिख रहा था और ना ही कोई गुठली"


"मेरा अचरज भरा चौखटा देख के वो ज़ोर से हँसा...

"बेवाकूफ!...मुहावरा है ये"....

"तुम तो यार अभी भी हिन्दी में पैदल ही हो"..

"क्या होता जा रहा है इस देश के लोगों को?"...


"राष्ट्र भाषा है हमारी ...कुछ तो कद्र करो"..

"पता नही कब अक्ल आएगी?"


"ऊपर से कहते हैँ कि हमारा देश तरक्की नहीं करता"

"अरे!...खाक तरक्की करेगा?"

"जब अपने ही बे-कद्री पर उतर आए तो बाहर वालों से उम्मीद रखना भी बेकार है"


"साले!...अँग्रेज़ अपनी विरासत छोड चले गये कि...

"लो बच्चो...अब इसे ही गाओ-बजाओ"...

"अपनी मिट्टी की सौंधी खुश्बू भूल बाहर की सुगन्ध चाट रहे हैँ"


"अरे बेवाकूफो...ये तो सोचो कम से कम कि...जिस भी देश ने तरक्की की है...

वो की है अपनी ही भाषा के इस्तेमाल से"...


"क्या कभी किसी'चीनी'...

'जपानी'...या फिर..

'फ्राँस'के राष्ट्र्पति या प्रधान मंत्री को'अंग्रेज़ी'में भाषण देते सुना है?


"नहीं ना!...."..


"फिर अपने आप समझ लो"...

"हम'हिन्दी'बोलते हैँ...'हिन्दी'में सोचते हैँ...

फिर बेकार में ही'अँग्रेज़ी'में तर्ज़ुमा कर अपने साथ-साथ दूसरे को भी बावला बनाते है"



"ये बेमतलब की बातें मेरे सर के ऊपर से निकले जा रही थी...

बीच में ही टोकता हुआ बोल पडा"तुम तो बात कर रहे थे'आम'और'गुठली'की"


"अरे बाबा!...थोडा सब्र तो रख...सब बताता हूँ"वो एक साथ तीन गुटखे मुँह में उडेलता हुआ "


"लेकिन अब सब्र किस कम्भख्त को था?"

"सो!..बार-बार पूछता चला गया मैँ"


तो वो सिग्रेट के लम्बे-लम्बे कश मारता हुआ बोला...."यार अपनी तो सारी की सारी कमाई इसी की बदोलत है"

"कहते हुए उसने अपना अटैची खोल के मुझे दिखाया"


"देखते ही दंग रह गया...दिमाग मानों सुन्न सा हुए जा रहा था"...

"अन्दर'नोट'ही'नोट'भरे पडे थे बेशूमार"


"अरे यार!...ये तो कुछ भी नहीं"

असली माल तो अपन अंडर ग्राउन्ड कर चुका है"


"लेकिन ये सब हुआ कैसे?"


"कुछ खास नहीं बस ऐसे ही मोहल्ले के कुछ डाक्टरों को जैसे ही पता चला कि मैँ'चेन स्मोकर'हूँ...

बस समझो!...अपनी तो निकल पडी"...

वो मेरे पास आए और बोले"अगर ये सूट्टे तुम खुलेआम भीडभाड वाली जगहों पर मारो तो तुम्हारा'गान्धी'का'नोट'पक्का"


"गान्धी तो आजकल हर'नोट'पे दिखाई दे रहा है"...

"खुल के बताओ कितने दोगे?"और...क्यूँ दोगे?"


"पाँच सौ का'नोट'पक्का और रही बात'क्यों'कि...

तो अमाँ यार'आम'खाओ...'गुठलियाँ'क्यों गिनते हो?"


"फिर भी"...

"पता तो चले कि इतनी मेहरबानी किस खुशी में हो रही है?"


"वो बात दर असल ये है कि..आप जैसों की वजह से हमारा ठंडा पडा धन्धा चल निकला है"


"मतलब?"

"आजकल'टीवी',...

'रेडियो'और'अखबार'वगैरा पर तो...

'सिग्रेट'और'गुट्खे'की'एड'आ नही सकती है ना खुलेआम"


"और...चोर दरवाज़े से'एंट्री'में कुछ दम शम नहीं दिखा'कम्पनी'वालों को"...

"तो उन्होने'मैनुअल एड'करने की सोची ....


"मैनुयल एड...माने?"


"अरे बेवाकूफ!...'मैनुयल एड'माने...'चलता फिरता विज्ञापन'"


"तुम उनके'रोल माडल'में फिट बैठ रहे हो"....

"अगर सही तरीके से'कैम्पेनिंग'करते रहे तो बहुत ऊपर जाओगे"


"किसी ना किसी'कम्पनी'के'ब्रांड अम्बैस्डर'भी बना दिए जाओगे जल्द ही"


"बिना'एड-वैड'के हमारे धन्धे पे मन्दे का काला साया मंडराने लगा था"...

"धीरे-धीरे मरीज़ कम होने लगे थे हमारे"...



"तुम तो जानते ही होगे कि बन्दा हर'ज़ुल्म-ओ-सितम'बर्दाश्त कर लेता है लेकिन...

जब उसकी रोज़ी-रोटी पे आ बनती है तो वो हाथ-पाँव ज़रूर मारता है"


"पापी पेट का सवाल जो है भैय्या"....


"सो...'सिग्रेट'और'गुटखे'की कम्पनी के साथ साथ हम भी जुड गए इस'धन्धा बचाओ'अभियान में"...

"अब तुम्हें ढूढ निकाला है...धीरे-धीरे और साथी भी जुडते चले जाएंगे"....

"साथी हाथ बढाना...साथी रे..."


"इंशा अल्लाह!...हम होंगे कामयाब एक दिन"...

"हो!...हो!..मन में है विश्वास ...पूरा है विश्वास"...


"आप जैसे लोगों का साथ मिल जाए तो यकीनन कामयाबी हमारे कदम चूमेगी"...


"आप जैसो की बदोलत हमारा धन्धा दिन दूनी रात चौगुनी तेज़ी के साथ प्रगति के पथ पर आगे बढेगा..

ऐसा हमारे एक्सपर्टस का मानना है"


"मेरे चेहरे पर असमंजस का भाव था"....


"अरे यार!...वैरी'सिम्पल'...आपको तो बस धुयाँ भर ही छोडना है" ...

"बाकि का सब काम तो खुद-बा-खुद होता चला जाएगा"


"धुयाँ छोडने से लोग बिमार पडेंगे...तो अपुन की ही शरण में आएंगे ना"

"और कहाँ जाएंगे बेचारे?"....

"ही!..ही!..ही!.."डाक्टर खिसियानी हँसी हँसता हुआ बोला


"ये सब सुन मन डोल गया मेरा"....

"पाँच सौ से ज़्यादा की'दारू'तो मै अकेला ही पी जाता हूँ,'गुटखे'और'सिग्रेट'के पैसे अलग से"


"एक मिनट...तुम भी क्या याद करोगे कि किसी दिलदार से पाला पडा है"

"कह कर उसने एक दो फोन घुमाए"...

"थोडी'गिट्टर-पिट्टर'की ...

"कुछ ही देर में एक'सिग्रेट'कम्पनी का'एम.डी'अपने साथ...

'कैमिस्ट ऐसोसियेशन'के प्रधान और...

'लैबोटरी टैस्ट'वालों को साथ में लिए हाज़िर था"


"पीछे-पीछे कुछ ही देर में'गुटखे'वाले भी आ धमके"...

उन सब ने आपस में कुछ सैटिंग की और मेरी तरफ मुखातिब होते हुए हाथ मिला बोले....

"आज से हमारी'कम्पनी'की'सिग्रेट'पिओ और इनका'गुटखा'चबाओ और फिर तमाशा देखो"....

"मालामाल कर देंगे"

"नाच मेरी बुलबुल के पैसा मिलेगा....कहाँ कद्र्दान ऐसा मिलेगा"


"हर महीने आपका हिस्सा आपको पहुँच जाएगा बिन माँगे ही"




"और हाँ!...एक बात का खास ख्याल रखना है कि'सिगरेट'या'गुटखा'जो भी इस्तेमाल करो...

उसकी खाली'पैकिंग'कूडेदान में तो बिलकुल नही फैंकनी है"


"मतलब?"


बेवाकूफ!...उसे ऐसे ही खुलेआम सडक पर ही फैंक देना"...

"हमने जमादारों के प्रधान को भी अंटी में लिया हुआ है कि सफाई का तो नामोंनिशा भी नहीं होना चाहिए पूरे इलाके में"


मै बोला"कुछ गडबड है...बात हज़म नही हो रही है"

"इस सब से आपको क्या फायदा?"


"जब सारी'कुतिया'अगर'काशी'चली जाएंगी तो यहाँ भौंकेगा कौन?"एक कैमिस्ट बुदबुदाता हुआ बोला

"अरे यार!...सीधी-सीधी ही तो बात है...

"द होल थिंग इज़ दैट के भईय्या....सबसे बडा रुपईय्या"


"जितनी ज़्यादा गन्दगी उतनी ज़्यादा कमाई"...

"सिम्पल सा फण्डा है अपुन भाईयों का"


"जगह-जगह हमारे नाम का कचरा पडा होगा तो अपना ही नाम होगा ना?"

"गर बदनाम हुए तो क्या नाम न होगा?"


"हमारी कम्पनी का माल पिओगे और चबाओगे तो हमारी कमाई बढेगी" ....

"साथ ही साथ ज़्यादा लोग बिमार पडेंगे"...

"जिस से इन'डाक्टर'भाईयों की कमाई में इज़ाफा होगा"...

'दवाइयाँ ज़्यादा बिकेंगी तो'कैमिस्टों'के वारे-न्यारे"

"और जो'टैस्ट'लिखे जाएँगे करवाने के लिए उसमें तो ये सब साझीदार हैँ ही". ...

'सिग्रेट कम्पनी'वाला बाकी सब की तरफ इशारा करता हुआ बोला


"इस कलयुग के ज़माने में कहीं देखा है ऐसा प्यार भरा माहौल?"


"हूँ!...इसका मतलब इस हमाम में सभी नंगे हैँ"


"बस यही समझ लो"डाक्टर आँखों में शैतानी चमक लिए हुए बोला


"फिर?"....


"बस यार!...तब से उनके कहे पे अमल करता जा रहा हूँ और...

ज़िन्दगी के मज़े लूट रहा हूँ"दोस्त ज़ोर से खाँसता हुआ बोला


"उसको यूँ खाँसता देख माथे पे एक हल्की सी शिकन तो उभरी ज़रूर लेकिन...

उसके ठाठ देख अगले ही पल वो भी गायब हो चुकी थी दूर कहीं "


"यार!..कुछ मेरा भी जुगाड-पानी हो सकता है क्या?"मैँ धीमे से बोला


"इसीलिए तो तेरे पास आया हूँ"वो मुस्कुराता हुआ बोला

"दर असल बात ये है कि मुझे एक दूसरी'कम्पनी'वाले बुला रहे हैँ अपने खेमे में"

"पट्ठे तगडा दाना डाल रहे हैँ"...


"फिर?"....


"लेकिन अफसोस!...पुराने ग्रुप को कैसे छोड दूँ?"

"कैसे गद्दारी करूँ अपने'गाड फादर'के साथ?"

"सालों!...ने पक्का'एग्रीमैंट'जो कर रखा है मेरे साथ"

"वरना सगा तो मै अपने बाप का भी नहीं हूँ"


"इसलिए फायदा इसी में है कि तुम नई'कम्पनी'का काम सम्भाल लो"


"मुझे कुछ नहीं चाहिए"...

"बस मेरी'बीस टका'....'कमीशन'मुझे अपने आप मिल जानी चाहिए"...


"टोकना ना पडे कभी बीच-बाज़ार"


"उसकी तो तुम बिलकुल ही फिक्र ना करो"

"इधर महीना पूरा हुआ और उधर तुम्हारा हिस्सा तुम्हारे पास"


"हूँ!...फिर ठीक है"


"मेरी बाँछे खिल उठी थी"

"लग गया उसके बताए हुए रास्ते पर और...


"हर फिक्र को..धुँए में उडाता चला गया"...


"लग गया'दिन-दूनी'...'रात-चौगुनी'तेज़ी से माल बटोरने "

"दे दनादन...सूट्टे पे सूट्टा"


"और अब तो दोस्त सचमुच बहुत ऊपर पहुँच चुका है"...

"बहुत ऊपर!....

सीधा'अल्लाह'के पास"...


"वो कैसे?"...


"कैंसर जो हुआ था उसे"


"पैसा खूब बहाया कि ठीक हो जाए किसी तरह लेकिन....कोई फायदा नहीं"


"सभी'कम्पनी'वाले भी मुँह फेर चुके थे उस से"...

"काम का जो नहीं रहा था वो अब उनके"...

"साले!...मतलबी इनसान"...


"नई भर्ती कर रहे है धडाधड और पुरानों की कोई खोज खबर भी नहीं"

"लेकिन!..इस सब से मैँ कहाँ रुकने वाला था भला?"...

"पैसे के आगे कुछ दिखाई नहीं दे रहा था"...

"माया ही कुछ ऐसी है इसकी"...

"बडे-बडे अन्धे हो हो घूमते है इसके आगे-पीछे"..

"तो मेरी भला क्या बिसात?"


"कुछ दिन बाद पता चला कि मेरा नम्बर भी बस ...अब आया...तब आया"

"अब तो बडे'डाक्टर'ने भी साफ-साफ कह दिया है कि...

"जो बचे-खुचे दिन बचे हैँ...पूजा-पाठ में ध्यान लगाओ"..

"जितना मर्ज़ी पैसा खर्चा कर लो...कोई फायदा नहीं"

"कोई इलाज नहीं है'कैंसर'का"


"बस अब और ज़्यादा क्या कहूँ?"...

"आप खुद ही इतने समझदार इंसान हैँ"...


"कम कहे को ही ज़्यादा समझना और जितना हो सके इस लानत से दूर रहना"


"इसका साया भी अपने तथा अपने आस-पास वालों पर ना पडने देना"


"मेरा तो पता नहीं लेकिन आप इस देश का नाम ज़रूर रौशन करना"..

"और हाँ!..याद रखना कि'हिन्दी'हमारी राष्ट्र भाषा है...

इसको साथ लिए बिना हम उन्नति के पथ पर आगे नहीं बढ सकते"


"हिन्दी हैँ हम...वतन है हिन्दोस्ताँ हमारा"


"जय हिन्द"





***राजीव तनेजा***

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