"शाही पनीर या फिर दाल मक्खनी"
***राजीव तनेजा***
"बहुत दिनों बाद एक दोस्त मिला...
आँखे सूजी हुई....
चेहरा पीला पडा हुआ....
थकान के मारे बुरा हाल...
नींद के नशे में ऐसे चूर...मानों कई बोतल एक साथ चढा रखी हों"
"मैँ चकराया कि ये बन्दा तो ऊपरवाले ने बडा ही नेक बनाया था"...
"इसे क्या हो गया?"
"खैर!..आराम से बिठाया अपने पास"...
"फिर एक 'डबल डोज़'वाली कडक'कॉफी'बना के पेश की तो थोडी देर में आँखे खुलने लायक हुई"
मैने पूछ डाला"ये क्या हाल बना रखा है?"...
"कुछ लेते क्यूँ नहीं?"
वो चौंक के बोला"कैसा हाल बना रखा है?"...
"और..मैँ कुछ लूँ भी तो क्यूँ लूँ?"
"अगर कुछ लेना भी है तो...लें मेरे दुशमन"
"मैँ भला कुछ क्यूँ लेने लगा?"
अब मेरा दिमाग घूमा,बोला"अरे वाह!...
लडखडा रहे तुम,..
झूम रहे तुम,...
नशे में तुम,...
बावले हुए जा रहे तुम...और अगर कुछ लेना है तो...
वो मैँ लूँ?"
"वाह!...भाई वाह"
"अब उसके हँसने की बारी थी"....
ज़ोर से हँसता हुआ बोला"अरे...कुछ नहीं यार...
"अपुन का तो ये रोज़ का टंटा है"
"सुबह आँख बाद में खुलती है और....'कम्प्यूटर' पहले चालू होता है"
"कभी इस लडकी से 'चैट'करो तो कभी उस लडकी से"...
"किसी को अपना कुछ नाम बताओ तो किसी को कुछ"...
"किसी को कोई 'प्रोफैशन' बताओ तो किसी को कोई"
"बस इसी चक्कर में कब सुबह से दोपहर और...
दोपहर से शाम होते हुए रात हो जाती है पता ही नहीं चलता"
"जब चारों तरफ तितलियाँ ही तितलियाँ मंडरा रही हों तो....
नींद किस कम्भखत को आ सकती है भला?"मैँ बोल पडा
"बिलकुल सही बात"दोस्त हाँ में हाँ मिलता हुआ बोला
"किसी का नाम तो बताओ"मेरी उत्सुकता बढती ही जा रही थी
"बस यार!...क्या बताऊ?"..
"इन कम्भखत मारियों के नाम याद करते-करते और.....
इन्हें अपने अलग-अलग नाम बताते बताते लगता है कि...
कहीं किसी दिन मैँ अपना असल नाम ही ना भूल बैठूँ"...
"किसी को कोई शहर बताओ तो किसी को कोई"
"भले ही कभी अपुन ने कभी अपना मोहल्ला तक न लांघा हो लेकिन कहना तो यही पडता है कि...
"आई एम फ्रॉम कैलीफोर्निया"
"या फ्रॉम फलाना....या फ्रॉम ढीमका"
"किसी को 'अनमैरिड'तो किसी को 'मैरिड'...
"किसी के साथ'विज़िबल'तो किसी के साथ'अनविज़िबल'...
"किसी को'नो किडज़'तो किसी को..सौ 'किडज़'
"सौ किडज़?"...
"ये ध्रितराष्ट्र कब से बन गए तुम?"
"ऊप्स!...सॉरी...'टू किडज़'
"सच क्यों नहीं बता दिया करते?"मेरे चेहरे पे असमंजस का भाव था
"अब यार!...अपुन के तो ऊपरवाले की मर्ज़ी से पूरे के पूरे आठ हैँ"....
"तो क्या सब का सब सच-सच बता कर अपना बनता काम बिगाड दूँ?"
"भाग नहीं खडी होंगी क्या?"
"अब इतना भी बावला नहीं हूँ मैँ कि खुद ही अपना बेडागर्क कर डालूँ"
"पता नहीं इन लडकियों को ये शायरी का शौक क्यूँ चढा फिरता है आजकल?"
"जिसे देखो..सब काम-धन्धा छोड शायरी में मशगूल"
"जब से ये मुय्या घरों में 'फुल टाईम मेड'रखने का फैशन चल निकला है"..
"कोई काम-धाम ही नहीं रह गया है इन लडकियों के लिए"
"ये नहीं कि बैठ के झाडू पोंछ करें आराम से"....
"डायटिंग की डायटिंग...और ...काम का काम"
"झाडने चाहिए इन्हें दरवाज़े और खिडकियाँ...उल्टे झाडने लगती हैँ शायरी हरदम"
"सुना है कि कुछ को तो दिन-रात शायरी के ही सपने आते रहते हैँ"मैने कहा
"यहाँ साला!...अपुन के पूरे खानदान में कोई शायर तो क्या उसका दूर का रिश्तेदार तक पैदा नहीं हुआ और....
ऊपर से इन बावलियों को गोली देते फिरो कि...
"हमारी 'फेवरेट हॉबी'शायरी है"
"दिल बेशक करे न करे...फिर भी इनकी खातिर इधर-उधर से शायरी इकट्ठी करते फिरो जैसे...
ये छोटे-छोटे बच्चे गली-गली दिन-रात कचरा बीनते नज़र आते हैँ"...
"कुछ यहाँ से उठा और...कुछ वहाँ से मार"
"सच पूछो तो यार!..बडा ही कोफ्त भरा काम होता है ये"
"कई बार तो उन कचरा बीनने वालों में और इन 'चैट' करने वालों में कोई फर्क़ ही महसूस नहीं होता"
"लगता है जैसे वो और ये एक ही थैली के चट्ते-बट्टे हों"
"मानों कभी कुम्भ के मेले में बिछुड गये थे कभी ..सोलह साल पहले"
"यार!...क्या बात कर रहे हो?"..
"कहाँ वो छोटे-छोटे बच्चे और कहाँ ये मुस्सटंडे?"
"अब मुझे क्या पता?कि कैसे वो तो छोटे के छोटे रह गए और..
ये साले!...ऊपरवाले की मर्ज़ी से पूरे के पूरे लुच्चे बन गए"दोस्त झेंपता हुआ बोला
"अब यार ये चैट भी बडा थकाने वाला काम है"
"ऊपर से नीचे तक निचोड डालता है बन्दे को"
"वो कैसे?"
"यार!..जब कोई ऑनलाईन नहीं मिले तो नए शिकार की तलाश में एक के बाद एक....
'चैट रूम' खंगालते फिरो कि शायद कहीं कोई बात बन जाए"
"शिकार?"...
"कैसा शिकार?"...
"किसका शिकार?"मैने एक साथ कई सवाल दाग दिए
"अब ये तो पता नहीं कि कौन किसका शिकार करता है"
"हम उनका...या फिर वो हमारा?"
"जैसे ही 'चैट रूम'में कोई लडकी या उसकी परछाई दिखे भर सही...
दुनिया भर के कम्प्यूटरों पर बैठे हम मुसटण्डे....
बावले सांडो की तरह 'मैसेज' पे 'मैसेज' दागते हुए उस बेचारी का जीना हराम कर डालते हैँ"
"कई बार हमारी इन्ही हरकतों की वजह से दुम दबाते हुए'चैट रूम'छोडने पे मजबूर हो जाती हैँ बेचारी लडकियाँ"
"इसका मतलब पाँचो उंगलियाँ घी में हैँ आजकल?"
"बस सर के कढाई में जाने की कसर है"दोस्त कुछ बुझे-बुझे से स्वर में बोला
मेरे चेहरे पे सवालिया निशान देख दोस्त बोला
"अरे!...कई बार तो बडा ही बुरा हश्र होता है अपुन लोगों का जब...
पूरे आठ दिनों तक घंटो चैट करने करने के बाद पता चलता है कि...
"हम समझे कुछ और..वो निकले कुछ"
"मतलब?"
"अरे यार!...सीधी सी बाता है...इधर भी और उधर भी 'सेम टू सेम'...
समझ गए ना?"
मैने अपनी हँसी दबाते हुए धीमे से मुण्डी हिला दी
"अब पता नहीं इन नाकाबिल लडकों को जब कुछ बोलने का नहीं सूझेगा तो पूछ बैठेंगे कि...
"आज क्या बनाया है?"
"अरे!...तुम्हें टट्टू लेना है?"
"उसकी मर्ज़ी जो मर्ज़ी खाए पकाए "
"तुम्हें राशन डलवाना है तो बताओ"
"फिर उधर से क्या जवाब मिलता है?"
"उधर से जवाब में कम से कम 'शाही पनीर' या फिर'दाल मक्खनी'ही निकलता है"
"भले ही पिछले तीन दिनों से वही 'मूंग धुली'दाल...वो भी बिना तडके वाली"
"समझ गए ना?"
"या फिर दो दिन की बची हुई सूखी 'ब्रैड'खा रही होंगी तो यही कहेंगी कि...
"आई लाईक डामिनो पिज़्ज़ा"
"बस फोन घुमाओ और हाज़िर"
"बस यार!..बहुत हो गया"...
"अब चोंच बन्द"
"ज़्यादा बोलुंगा तो सभी नाराज़ हो जाएंगी"
"लेकिन सच तो सच ही रहेगा ना?"
मैँने हाँ में हाँ मिला दी
"एक ज़रूरी बात बताना तो मैँ भूल ही गया कि...
हर बन्दा या बन्दी कम से कम सात या फिर आठ 'आई डी'ज़रूर बनाता है अपनी"
"सात या आठ?"मैँ हैरान होता हुआ बोला
"हाँ भाई!..सात या आठ...कोई कोई तो पूरी दर्जन भर ही बना डालता है"
"वो किसलिए?"
"यार!...सिम्पल सी बात है...
"एक'मेन'वाली 'आई डी'तो रिश्तेदारों के लिए"...
"एक-दो आल्तू-फाल्तू लोगों के लिए"...
"दो-तीन 'टाईम पास'...
"अब यार!..इतनी 'आई डी'तो बनानी ही पडती है कि अगर कोई कभी-कभार बिदक भी जाए तो उसे...
नए नाम,...
नए शहर,...
नए प्रोफैशन और...
कम उम्र के जरिए फिर से लपका जा सके"
"सही फण्डा है ये तो"
"और हाँ!..जो जितना कमीना और लुच्चा होगा,वो अपनी 'आई डी' उतनी ही प्यारी बनाएगा मानों..
खुद को किसी नकाब या फिर 'मास्क' के पीछे छुपाने की कोशिश कर रहा हो"
"मतलब कि..जो जितना 'अनडीसेंट' होगा वो...
अपनी'आई डी'के आगे-पीछे ...
ऊपर-नीचे कहीं न कहीं 'डीसेंट'शब्द का इस्तेमाल ज़रूर करेगा ?"मैँ पूछ बैठा
"बिलकुल...अब सही पकड में आई तुम्हारे बात"
"और तो और...जिसे देख गली-मोहल्ले के बच्चे तक डरते हों....
वो अपनी'आई डी'के साथ 'क्यूट'या फिर'हैंडसम'शब्द लगाना कभी नहीं भूलता"..
"अपने आप ही समझ जाओ कि वो कितना 'क्यूट' और 'हैंडसम'होगा"
"अब अपने मुँह से कैसे कहूँ कि...ऐसा होगा या फिर वैसा होगा"
ये सब सुन मैंने कहा"मैँ तो चला"
"मेरे चेहरे पे शरारती मुस्कान थी"
उसने पूछा"कहाँ?"
"मैंने जवाब दिया"कम्प्यूटर खरीदने..और कहाँ"
"अब यार!कम्प्यूटर तो लेना ही पडेगा अब...
तुमने जो अपने साथ-साथ मेरे भी दिमाग का बंटाधार कर डाला है"
"अभी चलता हूँ ...
लौट के फिर पता नहीं कब मिलता हूँ"मैँ हँसता हुआ बोला
"बहुत काम करने हैँ"....
"कंप्यूटर खरीदना है"...
"नैट चालू करके 'मैसैंजर'डाउनलोड करना है"
"सात-आठ....नहीं-नहीं ...सात-आठ से मेरा क्या होगा?"
"पूरी एक दर्जन 'आई डी'बनाउंगा"यही बुदबुदाता हुआ मैँ अपने रस्ते हो लिया
"अब कुछ करो तो जी खोल के करो..
वैसे भी इसमें भला कौन सा'टैक्स'लग रहा है?"
"बस 'याहू'और 'गूगल'भाईयों का हाथ अपने सर पे रहना चाहिए"..
"देखें कौन किसका शिकार करता है?"
"समझा करो यार...चाहे खरबूजा छुरी पे गिरे या फिर छुरी खरबूजे पे...
कटना तो खरबूजे को ही पडता है"
यहाँ तो चित्त भी मेरी और पट्ट भी मेरी"
***राजीव तनेजा***
3 comments:
वैसे मेरा एक दोस्त है जिससे बात करेंगे तो समझ ही नहीं आएगा कि बोल क्या रहा है, पर शादी की है लड़की से कंप्यूटर पर गपशप के बाद।
वह तो ठीक है, पर ऊपर से आलम यह है कि अभी भी महाराज दफ़्तर में अपनी छः सात याहू आईडियों के जरिए अपनी पुरानी सहेलियों से गपियाते रहते हैं। सभी को अलग अलग टाइम दिया हुआ है।
आलोक
जोर का झटका ..मगर बहुत प्यार से ....सही कहा राजीवजी ,सोलह आने सच !
Dahnye h itni id banane wale log be gjab
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