बस नहीं चलता मेरा इन स्साले…ट्रैफिक हवलदारों पर...
"मेरा?...मेरा चालान काट मारा?...लाख समझाया कि कुछ ले दे के यहीं मामला निबटा ले लेकिन नहीं…पट्ठे को ईमानदारी के कीड़े ने डंक जो मारा था|सो!..कैसे छोड देता?…कोर्ट का चालान किए बिना नहीं माना| आखिर!…जुर्म ही क्या था मेरा?...बस…ज़रा सी लाल बत्ती ही तो जम्प की थी मैँने और क्या किया था?….और फिर इस दुनिया में ऐसा कौन है जिसने जानबूझ कर या फिर कभी गलती से गाहे-बगाहे ऐसा ना किया हो?”..
"ठीक है!..माना कि मैँ ज़रा जल्दी में था और आजकल जल्दी किसे नहीं है?…ज़रा बताओ तो"...
"क्लर्क को अफसर बनने की जल्दी ..बच्चों को बड़े होने की जल्दी…गरीब को अमीर बनने की जल्दी... काउंसलर को M.L.A और फिर M.L.A से सांसद या मुख्यमंत्री बनने की जल्दी...जल्दी यहाँ हर एक को है…बस…सब्र ही नहीं है किसी को"…
"अब!...ऐसे में अगर मैंने भी थोड़ी-बहुत जल्दी कर ली तो क्या गुनाह किया?...और अगर वाकयी में ये गुनाह है भी तो भी मैं इसे नहीं करता तो क्या करता?...माशूका का फोन जो बार-बार आए जा रहा था कि..."कहाँ मर गए?...फिल्लम तो कब की शुरू हो चुकी"..
अब!...ऐसे में जल्दी करने के अलावा और चारा भी क्या था मेरे पास?..मोबाईल पे उसी से बतियाते बतियाते ध्यान ही नहीं रहा कि कब लाल बत्ती जम्प हो गई?...
"अब!..हो गई तो हो गई..कौन सा तूफान टूट पड़ा?...एक को बक्श देता तो क्या घिस जाता? ...पूरी दिहाडी गुल्ल हो गई इस मुय्ये चालान को भुगतते...भुगतते|हुंह!..कभी इस कोर्ट जाओ तो कभी उस कोर्ट जाओ...कभी इस कमरे में जाओ तो कभी उस कमरे में...कभी इसके तरले करो तो कभी उसके...और तो जैसे मुझे कोई काम ही नहीं है?"...
"वेल्ला समझ रखा है क्या?"...
इसी भागदौड़ में कब सुबह से दोपहर हो गई...पता भी नहीं चला|काफी थक हारने के बाद में आखिर बात तब जा के बनी जब मैं सही अफसर तक जा पहुंचा लेकिन हाय...री मेरी किस्मत...लंच टाईम को भी उसी वक्त होना था| उसका टिफिन खोलना मानो इसी बात का इंतज़ार कर रहा था कि मेरे चरण कमल...पादुकाओं समेत उसके कमरे में पड़ें |इधर मैंने कमरे में एंटर किया और उधर उसके डिब्बे का ढक्कन खुला|
देखते ही मेरा माथा ठनका कि ..."लो!...एक घंटा तो और गया इसी नाम का"...लाख मान मनौवल की पट्ठे से कि..."दो मिनट का काम है...प्लीज़!..कर दो"..लेकिन साला..ज़िद्दी इतना कि...नहीं माना
"कसम से!...बहुत रिक्वैस्ट की...कर के देख ली ...एक दो जानकारों के नाम भी लिए लेकिन स्साला... यमदूत की औलाद...साफ मना कर गया कि...
"मैँ तो नहीं जानता इनमें से किसी एक को भी"..
फिर पता नहीं पट्ठे की दिमाग में क्या आया कि मेरा मायूस चेहरा देख एहसान सा जताता हुआ बोल उठा... "अच्छा!...जा किसी ऐसे बन्दे को ले आ जिसे मैँ भी जानता हूँ और उसे तू भी जानता हो...तेरा काम कर दूंगा"...
"हुंह!...काम कर दूंगा....अब यहाँ...स्साली...इस अनजानी जगह पे मैं किसे ढूँढता फिरूँ?...और फिर अगर गलती से कोई कोई मिल-मिला भी गया तो वो भला मेरी बात क्यों मानने लगा?"..
काम होने की कोई उम्मीद ना देख...मैं निराश हो...मुँह लटकाए चुपचाप कमरे से बाहर निकल आया...इसके अलावा और मैं कर भी क्या सकता था?...अंत में थक हार के जब कुछ और ना सूझा तो पता नहीं क्या सोच मैँ वापिस बाबू के कमरे में लौट आया और सीधा जेब में हाथ डाल..पाँच सौ का करारा नोट निकालते हुए उससे बोला...
"देख ले इसे ध्यान से...गाँधी है...इसे तू भी जानता है और इसे मैँ भी जानता हूँ"...
बाबू हौले से मुस्काया और नोट के असली-नकली होने के फर्क को जल्दबाजी में चैक करने के बाद उसे अपनी जेब के हवाले करता हुआ बोला...
"बड़ी देर के दी मेहरबां आते...आते"...
"वव..वो..दरअसल...बात ही कुछ देर से समझ आई"...
"समझ..तेरा काम हो गया" कह मोहर लगा उसने रसीद मेरी हथेली पे धर दी
देर तो पहले ही बहुत हो चुकी थी ...इसलिए बिना किसी प्रकार का वक्त गंवाए मैंने झट से बाईक उठाई और अपनी मंजिल की तरफ चल दिया...
"ट्रिंग...ट्रिंग...
"उफ्फ!..इस स्साले..फोन को भी अभी बजना था"..
"हैलो!...कौन...
"सॉरी!...नाट इंट्रेसटिड"...
"इंट्रेसटिड के बच्चे...मैं चंपा बोल रही हूँ"...
"ओह!...सॉरी डार्लिंग.. म्म..मैं बस...अभी पहुँच ही रहा हूँ...रस्ते में ही हूँ"...
"बस दो मिनट और...हाँ-हाँ!...पता है डार्लिंग की तुम्हें स्टार्टिंग मिस करना बिलकुल भी पसन्द नहीं”..
&^%$#$%^
“बस!…दो मिनट और…यहीं…पास ही में हूँ”कह मोबाईल को वापिस जेब में डाल मैँने बाईक की रफ्तार और बढा दी....
एक तो मैँ पहले से शादीशुदा और ऊपर से तीन अच्छे-खासे जवान होते बच्चे..बड़ी मुश्किल से सैटिंग हुई है...ज़्यादा देर हो गई तो कहीं बिदक ही ना जाए..कुछ पता नहीं आजकल की लड़कियों का
"ओफ्फो!...ये क्या?...फिर लाल बत्ती हो गई?"...
"पता नहीं किस मनहूस का मुँह देखा था सुबह-सुबह...देर पे देर हुए जा रही है…आज तो मैं गया काम से"मैं मन ही मन सोचता हुआ बोला...
"जो भी होगा..देखा जाएगा”...ये सोच मैँने बिना रोके गाड़ी आड़ी-तिरछी चला ...जिग-जैग करते हुए लाल बती जम्प करा दी...
“अब..रोज़ की आदत जो ठहरी...इतनी आसानी से कैसे छूटेगी?"..
"ओह!...शिट...ये क्या?....ये स्साले..ठुल्ले तो यहाँ भी खड़े हैं"...
"पागल का बच्चा...कूद के बीच में आ गया...अभी ऊपर चढ जाती तो?"..
"सब तो यही कहते ना कि बाईक वाले की लापरवाही से कांस्टेबल की टाँग टूट गई?"...
"अब टूट गई तो टूट गई...मैं इसमें क्या करूँ?"...
"क्या कहा?...बदनामी हो जाएगी?"...
"ओह!...
"कल के अखबार में मेरी खबर छपेगी...फोटो के साथ?"...
"ओह!..
"सब मेरी ही गल्ती निकालेंगे?"...
"ओह!...
"कोई ये नहीं छापेगा कि वही पागल…स्साला कांस्टेबल का बच्चा कूद के बीचोंबीच सड़क के आ गया था"...
"ओह!...
इन जैसे सैंकडों सवाल अपने जवाबों के साथ मेरे मन-मस्तिष्क में गूँज उठे..
"स्सालो!...पंद्रह अगस्त तो कब का बीत गया...अब काहे इत्ते मुस्तैद हो के ड्यूटी बजा रहे हो?...अपनी जान की फ़िक्र तो करो कम से कम”...
“इतना भी नहीं जानते कि…जान है तो जहान है?"...
"क्यों बे?...बडी जल्दी में है?...कहीं डाका डाल के निकला है क्या?"..
"वव..वो जी..बस...ऐसे ही....थोड़ा सा लेट हो गया था...इसलिए"...
"इतनी जल्दी होती है तो घर से जल्दी निकला कर"...
"ज्जी!...जी..जनाब"..
"कही दारू तो नहीं पी हुई है स्साले ने" एक मुझे सूंघता हुआ बोला
"पट्ठे ने इंपोर्टेड सैंट लगाया हुआ है जनाब...ज़रूर इश्क-मुश्क का चक्कर होगा"वो बोला...
"हम्म!...(इंस्पेक्टर मुझे ऊपर से नीचे तक गौर से देखता हुआ बोला)
"क्यों..बे साले?...क्या अकेले-अकेले ही सारे मज़े करेगा?"दूसरा बोल उठा
"क्क...क्या मतलब?...मतलब क्या है आपका?"मैंने उखड़ने का प्रयास किया
"अरे!...इसकी छोड़...पुच्च..तू जा”इंस्पेक्टर मुझे पुचकारता हुआ बोला…
“ये तो बस ऐसे ही मजे ले रहा है तेरे साथ...सुबह से कोई मिला नहीं ना"...
हा…हा…हा…
“थैंक्स!…
"अरे!…शुभ काम में जा रहा है...थोड़ी सेवा-पानी तो करता जा"...
"ओह!...सॉरी...मैं तो भूल ही गया था" मैँने सकपकाते हुए...जेब में हाथ डाल एक सौ का नोट उसे पकड़ा दिया
गाँधी का पत्ता निकालते हुए मन ही मन सोच रहा था कि एक तो वो था जो लेने को राज़ी नहीं था और एक ये हैं जो बिना लिए मानने को राजी नहीं हैं...
"वाह!...वाह रे गांधी...वाह...तेरी महिमा अपरम्पार है...तू पहले भी बड़ा काम आया अपने देश के और अब भी बड़ा काम आ रहा है"
"दे दी हमें आज़ादी बिना खड़ग बिना ढाल...साबरमति के सन्त तूने कर दिया कमाल"
"हाँ!..सच...साबरमति के सन्त ...तूने कर दिया कमाल"
***राजीव तनेजा***
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13 comments:
जय हो साबरमति के सन्त की..हर जगह इन्हीं का बोलबोला हैं. यही चलते हैं, बाकी सब तो बैठे हैं. :)
भाई गाँधी का क्या दोष ..
वाकया यहाँ नहीं तो कहीं और होता
वहाँ गाँधी नहीं तो कोई और होता
जय बाबा गाँधी की
साबरमती के संत का जलवा हर जगह कायम है.
उनकी फोटो देखाते ही सारे कारज सिद्ध हो जाते हैं.
संकट मोचन नाम तिहारो...........
एक बार इनकी नज़र में आ गए तो ठुल्लों से बचना बहुत मुश्किल होता है. उसपर तुर्रा ये कि ये कभी भी ग़तल नहीं होते...सारी ग़लती बस ड्राइवर की ही होती है
बढ़िया व्यंग रहा ।
लेकिन मल्टी टास्किंग करने के लिए किसने कहा है ? :)
कल एक रोड़ पर एक टेफिक हवलदार गलत लेन से और बिना हेलमेट के कोका कोला की बोतल ले जा रहा था। और फिर उतरकर चालान काटने लगा अपने साथियों के साथ। अजीब दुनिया है जब खुद गलती करे तो कोई बात नहीं अपना राज है और कोई करे तो चालान। जिस दिन ये मानसिकता बदल जाऐगी। शायद .....
वो हवदार आज आप का पता पुछ रहा है शाली मार बाग मै? जिस की पोल पट्टी आप ने इस ल्रेख मे खोली है:)
maja aa gaya padkar.......khaskar court wale clerk ka scene mast ban pada hei
क्या बात है ... जोरदार.... आभार
कमाल ही कमाल है :-)
एक बेहद उम्दा पोस्ट के लिए आपको बहुत बहुत बधाइयाँ और शुभकामनाएं !
आपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है यहां भी आएं !
... बहुत खूब .... ठोके रहो पुलिसवालों को ... अति हो रही है !!!
सच...साबरमति के सन्त ...तूने कर दिया कमाल"
sahi mei gandhi ji ne kamal kar diya....hahahahahha
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