कहते हैं कि हर तरह की शराब में अलग अलग नशा होता है। किसी को पीते ही एकदम तेज़ नशा सोडे की माफ़िक फटाक से सर चढ़ता है जो उतनी ही तेज़ी से उतर भी जाता है। तो किसी को पीने के बाद इनसान धीरे धीरे सुरूर में आता है और देर तक याने के लंबे समय तक उसी में खोया रहता है। कुछ इसी तरह की बात किताबों को ले कर भी कही जा सकती है। कुछ किताबें शुरुआती दो चार पृष्ठों में ही पाठक को अपने रंग में रंग लेती हैं और किताब के समाप्त होने तक उसके ध्यान..उसकी एकाग्रता..उसकी तवज्जो को उससे दूर नहीं होने देती लेकिन बाद में उस किताब का हमारी स्मृति में कहीं कोई अता पता नहीं होता । वहीं दूसरी तरफ़ कुछ ऐसी भी किताबें होती हैं जो पहली बार में बेशक उतना व्यापक असर नहीं छोड़ पाती लेकिन उन्हें दूसरी या तीसरी बार याने के बार बार पढ़ने का मन करता है और हर बार अलग आनंद..अलग तजुर्बा..अलग नशा उनसे हासिल होता है।
दोस्तों..आज मैं एक ऐसी ही याने के एक टिकाऊ किताब, जो कि एक कहानी संकलन है, 'छाप तिलक सब छीनी' का जिक्र करने जा रहा हूँ जिसे बहुत ही कम अंतराल में मैंने कम से कम दो बार पढ़ा है। इस कहानी संकलन की रचियता सुनीता सिंह हैं।
आइए..अब बात करते हैं इस संकलन की कहानियों की तो इसकी शीर्षक कहानी आजकल के ज़माने में लिव इन के ज़रिए रिश्ता जुड़ने से पहले ही ब्रेकअप की संभावनाएं तलाशने वाली तथाकथित सोच से हट कर, उस समय की बात करती है जब किसी के दुनिया छोड़ कर चले जाने के बाद भी उसकी यादों को और उस रिश्ते की गरिमा को ताउम्र बरकरार रखा जाता था।
इसी संकलन की एक अन्य कहानी जहाँ एक तरफ़ बताती है कि अपने बच्चों के लिए माँ की ममता सदा एक सी ही रहती है चाहे वो माँ, कोई मूक जानवर वो या फिर खुद को सभ्य मानने वाले हम मनुष्यों में से कोई एक। तो वहीं दूसरी तरफ़ किसी अन्य कहानी में कोई अपने जवानी के दिनों में किसी के द्वारा ठुकरा दिया जाता है मगर होनी के गर्भ में क्या छिपा है? यह कोई नहीं जानता।
इसी संकलन की एक अन्य कहानी में दहेज के लिए पैसा ना होने की वजह से एक बेहद खूबसूरत और गुणवती युवती की शादी एक एबी लड़के से कर दी जाती है। जिसकी परिणति अंततः उस युवती की आत्महत्या के साथ होती है। जो इस बात की तस्दीक करती है कि अपनों का अहित होते देख कर भी प्रत्यक्षत: दख़ल देने के बजाय तटस्थ या मूक रह कर भी हम उनका अहित ही करते हैं। तो वहीं एक अन्य कहानी में घर की इकलौती कमाऊ लड़की, घर परिवार के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को समझ, पूरी तरह से उनका निर्वाह कर रही है। इसी वजह से उम्र बीत जाने के बावजूद वह अपना विवाह तक नहीं करती। मगर जब उसे महज़ सोने का अंडा देने वाली मुर्गी समझ लिया जाता है तो अंततः वह विद्रोह कर अपने सपनों को पूरा करने के लिए निकल पड़ती है।
इसी संकलन की एक अन्य कहानी में ब्याह की प्रथम रात्रि ही एक बहु अपने ससुर को किसी अन्य स्त्री के साथ रात के घने अंधेरे में निवस्त्र गुत्थमगुत्था होते हुए देखती है तो उसका मन वितृष्णा से भर उठता है। मगर यह देख कर वह और भी हैरान रह जाती है कि उसकी सास ने यह सब जानते..देखते..समझते और महसूस करते हुए भी मौन साधा रखा है।
इसी संकलन की एक अन्य कहानी जहाँ एक तरफ़ स्त्रियों की उस छठी इंद्री की बात करती है जिसके ज़रिए उन्हें बिना किसी के कहे ही सामने वाले की मंशा..बुरी नज़र का समय से पहले ही भान हो जाता है। तो वहीं दूसरी तरफ़ एक अन्य कहानी में
अपने अजन्मे शिशु और नवब्याहता पत्नी को अकेला छोड़ विदेश जा बसा व्यक्ति वहीं अपना घर बसा लेता है। बरसों तलक बिना किसी संपर्क के रहने के बाद वह व्यक्ति अपनी जवान हो चुकी बेटी की शादी में वापिस लौटता है और अपनी पहली पत्नी के सामने अपने साथ विदेश चल कर साथ रहने का प्रस्ताव रखता है। मगर क्या अब पत्नी सब कुछ भुला उसके साथ चली जाएगी अथवा जाने से इनकार कर देगी?
एक अन्य कहानी जहाँ एक तरफ़ सच का..सही का साथ देने की बात करती है। तो वहीं दूसरी तरफ़ एक अन्य कहानी में तीन तीन प्रतिभाशाली बेटों के होते हुए भी एकाकीपन का दंश झेलते माता पिता में से पिता एक दिन बीमारी से मर जाता है और असाध्य बीमारी से ग्रस्त माँ न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर झेलते हुए बिस्तर पकड़ लेती है।
एक अन्य कहानी जहाँ एक तरफ़ एक साथ दो विरोधी बातों को ले कर चलती है कि कहीं कोई अपने जीवनसाथी के असमय बिछुड़ने से दुखी है तो कोई अपने जीवनसाथी के साथ होने से। तो वहीं दूसरी तरफ़ एक अन्य कहानी एक ऐसे मृदभाषी.. सौम्य.. केयरिंग युवक की कहानी कहती है जो दरअसल में एक सेक्सुअली परवर्ट व्यक्ति है जो अपनी पत्नी पर अमानवीय अत्याचार कर हमेशा उसे प्रताड़ित..अपमानित करता रहता है।
इस संकलन की कुछ कहानियाँ मुझे बढ़िया लगी जिनके नाम इस प्रकार हैं..
*अहा! ज़िन्दगी
*एक प्रेमपत्र
*ब्याहता
*विजया
*वैलेंटाइन्स डे
*साथी! हाथ बढ़ाना
*सवाल
*टयूलिप
*कीड़े
*प्रेम ना बाड़ी उपजै
मनमोहक शैली में लिखी गयी इस संकलन की कहानियों में कहीं कहीं क्षेत्रीय भाषा के शब्दों का इस्तेमाल भी दिखा। कहानी के साथ ही अगर उनका सरल हिंदी अनुवाद भी दिया जाता तो बेहतर था। पहली कहानी कहीं कहीं थोड़ा भाषण सा देती हुई प्रतीत हुई। तो कहीं किसी कहानी में बिना किसी खास कॉनसेप्ट..लिंक..मकसद या हिंट अथवा आवश्यकता के दो छोटी कहानियाँ अपने में विपरीत मुद्दों के समाए होने के बावजूद भी आपस जुड़ी हुई दिखाई दी।
हालांकि यह बढ़िया कहानी संग्रह मुझे प्रकाशक की तरफ़ से उपहारस्वरूप मिला मगर अपने पाठकों की जानकारी के लिए मैं बताना चाहूंगा इस बढ़िया कहानी संग्रह के 123 पृष्ठीय पेपरबैक संस्करण को छापा है साहित्य विमर्श प्रकाशन ने और इसका मूल्य रखा गया है 149/- रुपए जो कि क्वालिटी एवं कंटैंट को देखते हुए बहुत ही जायज़ है। आने वाले उज्ज्वल भविष्य के लिए लेखिका तथा प्रकाशक को अनेकों अनेक शुभकामनाएं।
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