शह और मात- मंजुश्री

जब भी कभी कोई कहानी या किताब आपकी अब तक की पढ़ी गयी सब कहानियों या उपन्यासों की भीड़ में अपने अलग विषय..कंटैंट एवं ट्रीटमैंट की वजह से अपना रास्ता खुद बनाती नज़र आए तो समझो..आपका दिन बन गया। दोस्तों..आज मैं धाराप्रवाह लेखन से सजी एक ऐसी किताब की बात कर रहा हूँ जिसकी पहली कहानी ने ही अपने विषय एवं ट्रीटमैंट की वजह से मुझे ऐसा आकर्षित किया कि मैं पूरी किताब एक दिन में ही पढ़ कर ख़त्म कर गया जबकि अमूमन मैं दो से तीन दिन एक किताब को तसल्लीबख्श ढंग से पढ़ने में लगा देता हूँ। 'शह और मात' नाम के इस कहानी संकलन की रचियता मंजुश्री हैं।

आइए..अब इस संकलन की कहानियों की बात करते हैं। इस संकलन की शीर्षक कहानी मिल मालिकों के अक्खड़ रवैये और लेबर यूनियन की हड़ताल के बीच भूख..गरीबी और संभावित बेरोज़गारी की मार झेल रहे अस्थायी कर्मचारियों के दुःख..अवसाद और हताशा से भरे दिनों की बात करती है। जिसमें शातिर मिल मालिक और यूनियन लीडर, अपने अपने हित में, मिल कर ऐसी चाल चलते हैं कि कर्मचारियों के हाथ सिवाय झुनझुने या बेदख़ली के कुछ नहीं आता।

इसी संकलन की एक अन्य कहानी तीन अलग अलग व्यक्तियों के मन मस्तिष्क में उमड़ रही भावनाओं..विचारों एवं मानसिक उथल पुथल के ज़रिए अपनी पूर्णता तक पहुँचती है। जिसमें पहली सोच एक ऐसी नवब्याहता के ज़रिए कहानी को शुरू करती है जिसने अपनी बढ़ी उम्र में खुद की मर्ज़ी से एक ऐसे विधुर व्यक्ति से ब्याह किया है  जिसका मानसिक अस्थिरता का शिकार एक छोटा बेटा और उससे( युवती से) बेहद नफ़रत करने वाली एक जवान होती बेटी भी है। 

दूसरी सोच पत्नी और बेटी के बीच में सैंडविच जैसे फँसे उस पति की है जो अपने तमाम प्रयासों के बावजूद भी अपनी बेटी को समझा नहीं पाता और गुस्से में एक दिन बेटी घर छोड़ कर अपनी बुआ के घर रहने के लिए चली जाती है। इस सबके लिए खुद को कहीं ना कहीं गुनहगार मानता है। 

तीसरी सोच बेटी की नयी टीचर के माध्यम से कहानी को पूर्ण करती है कि किस तरह वह बेटी को अपना मन बदलने के लिए तैयार कर पाती है। 

इसी संकलन की एक अन्य कहानी में जहाँ
ब्याह की रौनक..रीतिरिवाजों के बीच, अपने ब्याह के बाद से बंदिशों में रही दादी, आशीर्वाद स्वरूप अपनी उस पोती के सामने पुरानी यादों..बातों की गठरी खोल रही है जो अपने ब्याह के बाद विदेश सैटल होने जा रही है। तो वहीं दूसरी तरफ़ एक अन्य कहानी में विदेश जा कर बस चुके परिवार में माँ..बेटे बहु की व्यस्त ज़िन्दगी के साथ अपना तालमेल नहीं बिठा पाती और खुद को उस बड़े से घर..मोहल्ले में अकेला महसूस करने लगती है और एक दिन पाती है कि साथ सटे घर में कोई और भी उस जैसे ही तन्हा हालात में रह रहा है।

इसी संकलन की अन्य कहानी जहाँ एक तरफ़ इस बात की तस्दीक करती है कि सहनशीलता या समझ ना होने पर आपसी दोस्ती एवं भाईचारे को भी धार्मिक कट्टरता कई बार निगल जाती है। तो वहीं दूसरी तरफ़ एक अन्य कहानी कहती है कि किसी अमीर या गरीब युवती की स्थिति में तब कोई फर्क नहीं होता जब अचानक भरी जवानी में उनके किसी कारण विधवा हो जाते पर उनके इर्दगिर्द मानव वेश में लार टपकते गिद्धों का डेरा जमने लगता है। 

इसी संकलन की एक अन्य कहानी जहाँ इस बात को कहती है कि बचपन में खेली गयी पुरानी चीज़ें.. खिलौने..डायरी इत्यादि हमें इस कदर सम्मोहित करती हैं कि मन करता है नॉस्टेल्जिया के ज़रिए फिर से उन्हीं यादों..बातों के गलियारे से गुज़रते हुए वही सब फिर से लौट आए। तो वहीं दूसरी तरफ़ इसी संकलन की एक अन्य कहानी उन लाचार परिवारों..भाई बहनों की मजबूरियों..दिक्कतों..परेशानियों की बात कहती है जिनके घरों के नासमझ बच्चों का किसी ना किसी तय मिशन के अंतर्गत, कट्टरपंथियों द्वारा, ब्रेनवॉश कर उनको अफगानिस्तान.. पाकिस्तान या सीरिया जैसे गृहयुद्ध से त्रस्त देशों में जिहाद करने के लिए तैयार किया जा रहा है।

एक अन्य कहानी इन्सानी फ़ितरत के अनुरूप उनके मौका देख रंग बदलते गिरगिटी चेहरों याने के असली और दिखावटी चेहरों में फ़र्क की बात करती है। तो वहीं एक अन्य कहानी में पति के तमाम विरोध के बावजूद भी पत्नी अपनी मर्ज़ी से एक अस्पताल में मरीज़ों और दुखियों की सेवा के  वॉलेंटियर के तौर पर अपनी सेवाएँ देने का फ़ैसला करती है। इस चक्कर में जब उसका पति उससे दूर होने लगता है तो वह खुद को मरीज़ों..दुखियों के महाकुंभ में घिरा पाती है। मगर क्या वह सच में इस महाकुंभ से बाहर निकलना चाहती है?

इसी संकलन की एक अन्य कहानी उन व्यक्तियों की बात करती है जो बाहर से देखने पर एकदम ठीकठाक..सामान्य प्रतीत होते हैं मगर उनके भीतर कोई ना कोई ऐसी बात या ग्रंथि ज़रूर पल रही होती है जो मानसिक अस्थिरता की वजह से उन्हें असामान्य याने के ट्रामेटाइज़्ड ढंग से बर्ताव करने पर मजबूर कर देती है।

अंतिम कहानी कश्मीर और वहाँ की ख़ूबसूरती के बीच बाहर से कश्मीर आ कर रह रहे एक ऐसे युवक की कहानी कहती है जो वहाँ की एक स्थानीय युवती को देख कर उस पर इस कदर मोहित हो उठता है कि अपना पूरा जीवन उसी के साथ बिताने का मन ही मन सपना संजोने लगता है मगर उस युवती को इस सब की ख़बर ही नहीं है। 

इसी पूरे संकलन में जायज़ जगहों पर भी नुक्तों का इस्तेमाल ना किया जाना थोड़ा खला। साथ ही कुछ कहानियों को पढ़ते वक्त हलका सा मायूस होना पड़ा जब वे अपनी उत्सुकता के चरम पर अचानक ही बिना किसी चेतावनी या अंदेशे के एक झटके से समाप्त होती दिखी। 

संग्रहणीय क्वालिटी के इस 132 पृष्ठीय कहानी संकलन के पेपरबैक संस्करण को छापा है शिवना पेपरबैक्स ने और इसका मूल्य रखा गया है 200/- रुपए। आने वाले उज्ज्वल भविष्य के लिए लेखिका तथा प्रकाशक को अनेकों अनेक शुभकामनाएं।

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