कैलेण्डर पर लटकी तारीखें - दिव्या शर्मा

आमतौर पर किसी भी रचना को पढ़ने पर चाहत यही होती है कि उससे कुछ न कुछ ग्रहण करने को मिले। भले ही उसमें कुछ रुमानियत या फ़िर बचपन की यादों से भरे नॉस्टेल्जिया के ख़ुशनुमा पल हों या फ़िर हास्य से लबरेज़ ठहाके अथवा खुल कर मुस्कुराने के लम्हे उससे प्राप्त हों। अगर ऐसा नहीं हो तो कम से कम कुछ ऐसा मजबूत कंटैंट हो जो हमें सोचने..समझने या फ़िर आत्ममंथन कर स्वयं खुद के गिरेबान में झाँकने को मजबूर कर दे। 
दोस्तों आज मैं आत्ममंथन करने को मजबूर करते एक ऐसे लघुकथा संग्रह की बात करने जा रहा हूँ जिसे 'कैलेण्डर पर लटकी तारीखें' के नाम से लिखा है दिव्या शर्मा ने। 
इस संकलन की रचनाओं में कहीं हिन्दू-मुस्लिम एकता की बात होती दिखाई देती है तो कहीं कुछ अन्य रचनाओं में देह व्यापार से जुड़ी युवतियों की व्यथा व्यक्त कही जाती दिखाई देती है।  कुछ अन्य रचनाओं में लेखिका अपने साहित्यिक संसार से प्रेरित हो रचनाएँ रचती नज़र आती है तो कहीं कुछ अन्य रचनाओं में बिंब एवं प्रतीकों के ज़रिए वे मन के उद्गार व्यक्त करती नज़र आती हैं। साथ ही साथ इस संकलन की कुछ रचनाओं में लेखिका विज्ञान को आधार बना कर अपने मन की बात कहती नज़र आती है। 
इस संकलन की किसी रचना में जहाँ कोई इस बात से परेशान है कि हर बार उसके गर्भवती होंने की उम्मीद जब नाउम्मीदी में बदल जाती है तो उसके श्वसुर का चहकता चेहरा बुझ जाता है। तो वहीं एक अन्य रचना जन्नत की चाह में काफ़िरों का कत्ल-ए-आम कर रही कौम को आईना दिखाती नज़र आती है। एक अन्य रचना में जहाँ एक तरफ़ समाज की बर्बरता के ख़िलाफ़ मानवता के धर्म से मदद माँगने पर वह भी अपनी असमर्थता में अपने हाथ खड़े करता दिखाई देता है। तो वहीं दूसरी तरफ़ एक अन्य रचना, बाप हो या बेटा, दोनों की एक जैसी पुरुषवादी सोच की तरफ़ इशारा करती नज़र आती है। 
एक संकलन की एक अन्य रचना में कोई युवती इस बात के बिल्कुल उलट कि 'सैक्सुअल हैरेसमेंट सिर्फ़ लड़कियों का ही होता है' किसी युवक का शोषण करती नज़र आती है। तो वहीं एक अन्य रचना एक तरफ़ नाबालिग़ द्वारा अपनी मर्ज़ी से बनाए गए सेक्स संबंध तो दूसरी तरफ़ विवाह के बाद जबरन बनाए गए दैहिक संबंधों की बात करती नज़र आती है। एक अन्य रचना जहाँ एक तरफ़ किसी वेश्या की व्यथा व्यक्ति करती दिखाई देती है तो वहीं दूसरी तरफ़ किसी अन्य रचना में एक वेश्या अपने विवाह के प्रस्ताव को ठुकरा कर आत्महत्या कर लेती है कि अपने प्रेमी से विवाह कर वो उसका भविष्य खराब नहीं करना चाहती थी। 
इसी संकलन की एक अन्य रचना में जहाँ चित्रकार के लिए बतौर मॉडल कार्य करने वाली युवती, खुद को दुत्कारे जाने पर चित्रकार को ही आईना दिखाती नज़र आती है। तो वहीं एक अन्य रचना में उस अर्धविक्षिप्त लड़की की बात करती नज़र आती है जो खुद के जैसे ही बलात्कार का शिकार होती बच्ची को अपनी दिलेरी की वजह से बचा लेती है। एक अन्य रचना में एक बलात्कार पीड़िता अदालत में जज के सामने इस बात के लिए सरेंडर करती दिखाई देती है कि उसने देश की कानून व्यवस्था पर विश्वास कर के बहुत बड़ा गुनाह किया । तो वहीं एक अन्य रचना विक्रम बेताल के बहाने हम सब में संवेदनाओं के मर जाने की बात की तस्दीक करती नज़र आती है।
इसी संकलन की एक अन्य रचना नदी में निर्वस्त्र नहाते हुए योगी के उदाहरण के माध्यम से पुरुष मानसिकता का परिचय देती प्रतीत होती है कि पुरुष वस्त्र उतार कर योगी बन जाता है और स्त्री वस्त्र उतारने पर भोग्या। इसी संकलन में कहीं कोई दृढ़ निश्चयी माँ, अपनी सास के दबाव के बावजूद, कम उम्र में अपनी बेटी का ब्याह नहीं करने की के फ़ैसले पर डट के खड़ी दिखाई देती है। तो कहीं किसी अन्य रचना में घर की प्रॉपर्टी में भाई-बहन, दोनों का बराबर का हिस्सा बताया जाता दिखाई देता है। 
इसी संकलन की किसी अन्य रचना में जहाँ एक तरफ़ ऑफिस में कार्यरत किसी युवती का शोषण करने का प्रयास होता दिखाई देता है। तो वहीं दूसरी तरफ़ एक अन्य रचना में जहाँ इंडवा (सर पर रखे पानी भरे मटके को सहारा देने रखा जाने वाला गोल कपड़ा) के बहाने पुराने दिनों को याद किया जाता दिखाई देता है। इसी संकलन की एक अन्य रचना में बूढ़ी सास, अपनी बहू का ध्यान अपनी तरफ़ आकर्षित करने के लिए बीमारी का बहाना करती नज़र आती है। तो कहीं किसी रचना में साड़ी बाँधने के सही तरीके के ज़रिए रिश्तों को संभालने की बात की जाती दिखाई देती है। कहीं किसी रचना में माँ की मृत्यु के बाद घर में सौतेली माँ के आ जाने से नाराज़ हो घर छोड़ चुकी काव्या का मन अपनी नई माँ की व्यथा देख, पिघल जाता है। तो कहीं जीवन की आपाधापी में व्यस्त जोड़ा जब 35 साल बाद, 60 की उम्र में पहली बार पहाड़ों पर घूमने के लिए जाता है। तो बाहर बर्फ़ गिरती देख पत्नी, बरसों पुरानी अपनी ख्वाहिश के पूरा होने से खुश होती नज़र आती है। 
 कहीं किसी लघुकथा में बूढ़े होने पर पिता, बेटे की भूमिका में और बेटा, पिता की भूमिका निभाता नज़र आता है। तो कहीं किसी दूसरी रचना में लिव-इन और विवाह के बीच के फ़र्क को समझाया जाता दिखाई देता है। इसी संकलन की एक अन्य जहाँ एक तरफ़ लघुकथा विधवा विवाह का समर्थन करती नज़र आती है। तो वहीं दूसरी तरफ़ एक अन्य रचना मोहब्बत और इश्क की अलग-अलग परिभाषा पर बात करती नज़र आती है।  कहीं किसी लघुकथा में भारत-पाकिस्तान के बीच बँटवारे के दर्द को घर-परिवार के बीच बँटवारे के दर्द के ज़रिए समझने का प्रयास किया जाता दिखाई देता है। इसी संकलन की एक अन्य रचना हवा-पानी के माध्यम से आपसी भाईचारे का संदेश देती दिखाई देती है कि उन पर किसी एक कौम का हक़ नहीं होता।  तो एक अन्य रचना भगवान राम द्वारा सीता का त्याग किए जाने को नए नज़रिए से सोचने को मजबूर करती दिखाई देती है। 
इसी संकलन की एक अन्य कहानी आरक्षण की साहूलियतों का फ़ायदा उन तक पहुँचने की वकालत करती नज़र आती है, जिन्हें सच में इसकी जरूरत है।  तो वहीं एक अन्य रचना लोगों की कथनी और करनी में फ़र्क की बात करती दिखाई देती है। कहीं किसी रचना में कोई किसान सूखे की आशंका से आने वाली दिक्कतों की बात करता दिखाई देता है। तो कहीं कोई अन्य लघुकथा पुरुषों की बनिस्बत स्त्रियों की केयरिंग नेचर की बात करती दिखाई देती है। कहीं किसी अन्य रचना में शहरों के विकास के साथ-साथ गाँवों के सिकुड़ने की बात की जाती दिखाई देती है तो कहीं किसी अन्य रचना में कोई पुरुष लेखक किसी लेखिका को उसके लेखन की सीमाएँ निर्धारित करने के लिए कहता दिखाई देता है। कहीं किसी अन्य लघुकथा में बाहर साहित्यजगत में औरों को प्रेरित करने वाली मज़बूत इमेज की लेखिका भीतर से बेहद कमज़ोर निकलती नज़र आती है। 
इसी संकलन की एक रचना में पानी को व्यर्थ बहाने वालों पर कटाक्ष किया जाता दिखाई देता है। तो कहीं किस अन्य रचना में आने वाले भयावह समय को ले कर चिंता जताई जाती दिखाई देती है कि लड़कियों को उनके लड़की होने की वजह से पेट में ही मार दिए जाने की वजह से ऐसी स्थिति आ पहुँची है कि लड़कियाँ अब विलुप्तप्राय होती जा रही हैं। 

इस संकलन की कुछ लघुकथाएँ मुझे बेहद प्रभावी लगीं। उनके नाम इस प्रकार हैं : 
1. कैलेण्डर पर लटकी तारीखें
2. आमाल
3. भूखा
4. बेड़ियाँ
5. छिपा हुआ सच
6. रेशमा
7. अर्धविक्षिप्त
8. अंतर
9. रसूलन बी
10. सिसकी
11. वक्त
12. मिलन
13. कुलटा
14. प्यास
15. तिलिस्म
16. इंसानी करामात
17. एक जोड़ी चप्पल
18. विवादित लेखन
19. प्रसिद्धि
20. परदा
21. चमकता आसमान
22. चीख
23. दो बूँद पानी
24. दुर्लभ प्रजाति
हालांकि धाराप्रवाह शैली में लिखा गया यह उम्दा लघुकथा संकलन मुझे लेखिका की तरफ़ से उपहार स्वरूप मिला मगर अपने पाठकों की जानकारी के लिए मैं बताना चाहूँगा बढ़िया लघुकथाओं से सुसज्जित इस किताब के 177 पृष्ठीय पेपरबैक संस्करण को छापा है साहित्य विमर्श ने और इसका मूल्य रखा गया है 199/- रुपए जो कि क्वालिटी एवं कंटैंट की दृष्टि से जायज़ है। आने वाले उज्ज्वल भविष्य के लिए लेखिका एवं प्रकाशक को बहुत बहुत शुभकामनाएं।

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