"घूमती है दुनिया घुमाने वाला चाहिए"
***राजीव तनेजा***
"आय हाय .....
"आज फ़िर् कबाड उठा लाए? बीवी 'वी.सी.डी' भरे लिफ़ाफे को ..
पलंग पे पटकते हुए बोली
"कुछ अकल-वक्ल भी है कि नहीं?
"अभी पिछ्ली वाली तो देखी नहीं गयी ढंग से .....
ऊपर से और उठा लाए "...
"फ्री में बंट रही थी क्या ?"
"हमेशा 'पैसे उजाडने' की ही सोचा करो ....
ये नहीं की कुछ ऐसा काम करो कि ....
'नोटों की बारिश'हो ."
"उल्टे जो थोड़े-बहुत हैं उनका भी ...
'बँटाधार' करने पे तुले हो"
बीवी जो एक बार शुरू हुई तो बिना रुके बोलती चली गयी....
"अरे यार सस्ती मिल रही थी तो मैं ले आया "
"हुँह ...सस्ती मिल रही थी तो पूरी दुकान ही उठा लाए जनाब ?"
"अब तुम भी ना"..
"पता नहीं क़ब् अकल आएगी तुम्हे ?"..
"जो चीज़ देखते हो सस्ती .....
'थोक के भाव'उठा लाते हो"....
"भले ही बाद मैं पडी पडी सड्ती फिरे ....तुम्हारी बला से."
"अब उस दिन आलू क्या दो रुपए किलो मिल गये .....
'पूरी बोरी' ही लाद लाए."
"मैं तो तंग आ चुकी हूँ....
दिन भर् 'आलू'बनाते और खाते".....
"यार बच्चों को पसंद है".....
"तो क्या उन्हें भी अपनी तरह तोन्दुमल बना डालोगे?"
"कुछ तो ख़्याल किया करो अपनी सेहत का"......
"कोई फ़िक्र है ही नहीं ".....
"सब् की सब् टैंशन मेरे ही ज़िम्मे जो सौंप रखी हैं....
"ये नहीं की कोई अच्छा काम करते और ...
नोट कमाने का बढिया सा जुगाड़ ढूढते "
"ये क्या की हर वक़्त बस नोट फूँकने के तरीक़े तलाशते रेहते हो?"....
"अरे पूरी दुनिया लखपति हुए जा रही है और ....
तुम हो कि करोड्पति से लखपति पे आ गये.".....
"अब क्या कंगाल होने का इरादा है?"
मुझसे रहा ना गया और दाँत पीसते हुए बोला...
"बडी अपने को अकलमंद समझती हो तो फ़िर्...
तुम ही कोई आईडिया क्यूं नहीं दे देती खुद ही कि....
कैसे रातों-रात लखपति बना जाए."
"इसमें भला कौन सी बडी बात है ?" बीवी ने तपाक से उत्तर दिया....
"रेडियो',टीवी ना देख के इन मुई फिल्मों के चक्कर मैं रातें काली करते फ़िरोगे तो यही होगा ना ."
"ना दींन-दुनिया की ख़बर ना ही किसी और चीज़ की फ़िक्र."..
"बस खोए रहते हैं इस मुई 'ऐश्वर्या' के चक्कर में."
"अरे बीस-बीस बार एक ही फिल्म देखने से गोद में नहीं आ बैठेगी."
"तुम्हारी किस्मत मैं मैं ही लिखी हूँ बस ".....
"ख़बरदार जो किसी की तरफ़ आँख उठा के भी देखा तो....
"वहीं के वहीं खींच के बेलन मारूंगी कि सर पे पट्टी बांधे डोलते फ़िरोगे इधर उधर"
वो फ़िर् जो शुरू हुई तो रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी कि ....
मुझे मजबूरन बीच मैं टोकना पडा.....
"तुम तो लखपति बनने के 'जुगाड़' बता रही थी....
"क्या हुआ ?"
"कहाँ गया आइडिया?"
"बस निकल गई हवा ?"
"हा !... कहना कितना आसान है ....
बस मुँह खोला और झाड़ दिए दो-चार लेक्चर"...
"इसमें कौन सा टैक्स लग रहा है?"....
बीवी ग़ुस्से से मेरी तरफ़ देखती हुई बोली
"अरे बेवकूफ़ अकल लडा और 'एस.एम.एस'भेज....."
"एस.एम.एस' भेज के अक्ल लडाऊं?"
"ये कौन सा तरीक़ा है लखपति बनने का ?"
"अरे बाबा रोज़ तो आ रहा होता है टीवी पे कि फलाना और ढीमका लिख के .....
फलाने -फलाने नंबर पे 'एस.एम.एस'करो और लाखों के ईनाम पाओ "
"अब कल ही तो आ रहा था कि 'जैकपाट' लिखो और फलाने नंबर पे 'एस.एम.एस' करो ...
"पता नहीं कितने लखपति बन चुके होंगे अभी तक और हम हैं कि बैठे हैँ वहीं के वहीं "
"कुछ का तो नाम भी बार-बार अनाउंस कर रहे थे और एक-दो क फोटू भी छपा देखा था अखबार में"
"पता है कितना खर्चा है एक 'एस.एम.एस' का?मैने 'तिरछी नज़र' से देखते हुए कहा......
"पूरे दस क नोट स्वाहा हो जात है एक ही बार में "
"अरे कुछ नहीं है बस 'फुद्दू' खींच डाल रहे हैं सरासर और ...
पब्लिक है कि मानो जन्म से ही तैयार बैठी हो जैसे कि
"आओ भाईजान... आ जाओ ,तुम ही बताओ कि कहाँ माथा टेकना है ?"
"अरे घूमती है दुनिया घुमाने वाला चाहिए"
"दस-दस करके पता नहीं कितने का गेम बजा डालते है रोज़ के रोज़ " और ....
बाँट डालते हैँ आठ-दस लाख दिखावे की खातिर"....
"इनके बाप का जाता ही क्या है आखिर?"
"बाक़ी सब् का क्या होता है?" बीवी उत्सुकता से मेरी तरफ ताकती हुई बोली
"सब् का सब् डकार जाते हैं साले खुद ही"
"लेकिन पैसा तो मोबाइल कंपनी वालों को मिलता है ....
'रेडियो-टीवी वालों को भला इसमें क्या फ़ायदा?"
"अच्छा ? साले सब के सब एक ही थैली के चट्टे-बट्टे हैँ ".....
"मिलीभगत है सबकी "
"इस हमाम में सभी नंगे हैँ"
"टी वी वाले या फिर कोई और"
"सब मिल-बांट के खाते हैँ"
"सबका हिस्सा होता है "
"हाँ... लेकिन एक बात की तो दाद देनी पडेगी "....
"वो भल्ला क्या?"
"होते साले बडे ही ईमानदार हैँ "
"ईमानदार ?"
"भांग तो नहीं चढ़ा रखी कहीं?.....
'अभी-अभी तो केह रहे थे कि......
सब् साले चोर हैं और अब ये क्या बके चले जा रहे हो ?"
"किसी एक बात पे तो टिका करो "
"अरे तो क्या ईमानदारी का ठेका सिर्फ हमने या फिर तुमने ही लिया हुआ है ?"
"ये किसने कह दिया कि चोर ईमानदार नहीं होते ?"
"पाई-पाई क हिसाब एकदम एकूरेट रखते हैँ साले "
"जिसका जितना बनता है ...
बिना मांगे ही पहुँच जाता है उसके 'खाते' मैं ."
"और लो.....
अब तो इन मुए अखबार वालों को भी चाव चढ चुका है इस कंभखत मारी'एस.एम.एस' नाम की बिमारी का"
"वो भी कूद पडे हैँ इस गोरख-धन्धे में"
"बस कोई बात हो या ना हो 'एस.एम.एस के जरिए सबकी वाट लगाने को तैयार बैठे रहते हैँ हरदम"
"अब तू खुद ही बता कि एक भाई ने दूसरे को गोली मार दी तो इसमें'एस.एम.एस'भला कहाँ से आ गया?"....
"फिर भी ये साले टीवी वाले कहते हैँ कि 'एस.एम.एस' भेजो कि बंदा बचेगा कि नहीं ? "
"अगर बचेगा तो 'Y' टाईप करो और . ..
अगर लुडकेगा तो 'N' टाईप करो "
"अब भले ही वो बचे ना बचे लेकिन इनका तो बचत खाता खुल ही गया मलाई मार के "
"चाहे प्रोग्राम कोई रोने-धोने वाला सास-बहू टाईप हो या कोई हँसाने वाला या फिर कोई ...
खबरों का सबसे 'तेज़ चैनल'ही क्यों ना हो ,.. .
सभी के सभी लूटने में मस्त हैँ"
"इनका बस चले तो निचोड ही डालें आम आदमी को "
"थोडे से ईनाम का झुनझुना दिखा के लार टपका डालते हैँ और फिर जेब का ढीला होना तो लाज़मी ही समझो "
"अब पहले तो किसी एक बंदे को पूरे एक करोड का लालीपाप दिखाओ और बाँध डालो एग्रीमैंट के चक्कर में कि ....
ले बेटा अब तू गा और बजा आराम से पूरे साल,इंडिया का आईडल जो है तू"
"मानो इनसान ना हुआ कोई गाय-भैंस हो गयी कि पूरे एक साल तक जी भर के दुहो "
"बाप का राज़ जो है "
"लेकिन किस्मत तो जाग उठी न उसकी? मेरा भी फेवरेट है वो" बीवी कह उठी ...
"चलो माना कि किस्मत जाग उठी उसकी , लेकिन किनकी जेबों की कीमत पर?"
"हमारी तुम्हारी ही जेबों पर पानी फिरा है ना?"
"पता नहीं कितनो की जेबें ढीली हुई और कितनो ने तिज़ोर्रियाँ भरी"
"इसको बताने वाला कोई नहीं".......
"अगर कुछ बांट भी दिया तो कौन सा उनके बाप का गया?"
"चैनल की 'टी.आर.पी' बडी सो अलग "
"सालों ने अपनी खुद ही किस्मत बना डाली है और पब्लिक है कि ...
ऊपरवाले के भरोसे बैठी है कि वो ही आएगा और उनकी किस्मत संवारेगा एक दिन "
"अरे बेवाकूफो .. कोई नही आने वाला"
"सरेआम लूट है लूट."
"कोई 'रोकने' वाला नहीं"...
"कोई 'टोकने' वाला नहीं"
सब एक-दूसरे का फुद्दू खींच रहे हैँ "
"मैँ तो यही सोच रहा था कि सिर्फ हिन्दोस्तान में ही फुद्दू बसते हैँ लेकिन ...
अब तो ये जग-जाहिर हो गया है कि पूरी दुनिया ही भरी पडी है ऐसे बावलों से "
"वो भला कैसे?" बीवी असमंजस भरी निगाहों से मेरी तरह देखते हुए बोली
"अब तुम खुद ही देखो ना...
"कुछ गिने-चुने बंदो ने दिमाग लडाया और पूरी दुनिया को ही एक झटके में शीशे में उतार डाला....
साले खुली आँखो से ऐसे काजल चुरा ले गये कि जागते हुए भी सोते ही रह गए सब के सब "
"कोई कुछ भी उखाड नही पाया उनका"
"वो भला कैसे?"
"साले कुछ गिने-चुने नमूनो ने 'सात अजूबों' के नाम पे एक वैब साईट बनाई और ...
पूरी दुनिया को चने के झाड पे चढा पे चढा के कहते हैं कि ...
'वोट'करो और साबित करो कि दुनिया के सात अजूबे कौन कौन से हैँ?"
"इन साले नमूनो के चक्कर में 'एस.एम.एस' भेज भेज के पूरी दुनिया खुद ही नमूना बन बैठी"
"पैसे तुम्हारा बाप देगा 'एस.एम.एस' के ?
"और तुम गवर्नर हो जो तुम्हें साबित करें?"
"आखिर तुम होते कौन हो ये सब तय करने के लिये?"
"किसने तुम्हें अधिकार दिया?"
"ना तुम 'यू.एन.ओ' से हो न ही किसी और 'विश्व-व्यापी' संस्था से "
"ये तो माना कि दूसरे की जेब से पैसा निकालना आसान नहीं लेकिन....
इन सालों ने मिल कर ऐसा फूल-प्रूफ जुगाड़ बना डाला है कि....
सब के सब मरीज़ बने बैठे हैँ इस 'एस.एम.एस' रूपी बिमारी के"
"जेब से नोट खिसकते जा रहे हैं लेकिन ....
किसी को कोई फिक्कर-ना-फाका"
"उलटे साले बंदे को ये खुश-फहमी और दे डालते हैँ कि ...
'ये हुआ' तो या फिर 'वो जीता' तो सिर्फ और सिर्फ उसके 'एस.एम.एस' की वजह से
और बंदा बेचारा फूल के कुप्पा हुए जाता है कि चलो एक नेक काम तो किया "
"खाक अच्छा काम किया?"
"सरे बाज़ार कोई कपडे उतार ले गया और साहब को इल्म ही नहीं"
"उलटे खुशी से अगले 'एस.एम.एस' की तैयारी में जुटे दिखाई देते हैँ जनाब"
लगता था कि आज सारा का सार गुस्सा इन चोरों पर ही निकल पडेगा कि अचानक...
कॉल बेल बजी और साले सहब के चहकने की आवाज़ सुनाई दी
मिठाई का डिब्बा हाथ में लिए ख़ुशी के मारे उछल् रहे थे
"लो जीजा जी मुँह मीठा करो"
मिठाई देखते ही मुँह में पानी आ गया....
टूट पडा मिठाई पर
दो-चार टुकडे मुँह में ठूसने के बाद डकार मारता हुआ बोला...
"जनाब किस खुशी में मिटाई बांटी जा रही है?"
इस पर बीवी बोल पडी ...
"इतनी देर से यही तो गा रही हूँ लेकिन तुम्हारे पल्ले बात पडे तब ना "
"ईनाम निकला है मेरे भाई का "
'एस.एम.एस' भेजा था"
"अच्छा..."
"कितने का ईनाम निकला है ?"
"पूरे पचास हज़्ज़र का"
"ओह...ज़रा टीवी तो ओन करना "मैँ मोबाईल संभालता हुआ बोला
"क्यूँ?"...
"क्या इरादा है जनाब का?" बीवी मंद-मंद मुस्काते हुए बोली
"एस.एम.एस' का ही इरादा होना है और भला किसका " मैँ झेंपता हुआ बोला
2 comments:
बधाई स्वीकार करें, बहुत ही बढिया तरीके से आपने इस गोरख्-धन्धे को उजागर किया है .हर कोई जानता है कि उसे सरेआम लूटा जा रहा है लेकिन फिर भी अपने निजी स्वार्थ की खातिर वो लुटने को तैयार हो जाता है
सही । ठगे रहो..बस ।
Post a Comment