"अब तक छ्प्पन"
***राजीव तनेजा***
"ये साला!.....कम्प्यूटर भी गज़ब की चीज़ है ....गज़ब की क्या?......
बिमारी है साला....बिमारी"
"एक बार इसकी लत पड गयी तो समझो कि....बन्दा गया काम से"
"कुछ होश ही नहीं रहता" .....
"ना काम-धन्धे की चिंता" .....
"ना यार-दोस्तों की यारी"
"यहाँ तक की बीवी-बच्चों के लिये भी टाईम नहीं होता" ....
"बस हर वक़्त क्म्प्यूटर ही कम्प्यूटर"
"शुरु में तो खाना-पीना तक छूट गया था"
"ना दिन को चैन और ना ही रात को आराम",....
"हर वक़्त बस काम ही काम"...
"अब अपने मुँह से कैसे कहूँ कि ....
क्या काम करता था मैँ?"
"अरे कुछ खास नहीं,बस वही सब जो आप अपने बुज़ुर्गों से ...
'छुप-छुप के'...
'चोरी से' ......
"समझ गये ना?"
"बीवी बेचारी की तो समझ में ही नहीं आता था कि पूरी-पूरी रात जाग-जाग कर आखिर ये बन्दा करता क्या है ?"
"बेचारी को क्या मालुम कि कमप्यूटर तो मानो जैसे 'अलादीन' का जिन ...
जो मुराद माँगो....
देर-सवेर पूरी हो ही जाती है"
"जब अपुन ने कम्प्यूटर खरीदा तो ख्वाईश थी कि...
किसी भी तरीके से...
कुछ भी उलटा-पुलटा दिख जाये"
"बहुत सुन जो रखा था कि ...
ये भी दिखता है और वो भी दिखता है"
सो आज की तारीख में 'माशा-अल्लाह'पूरी की पूरी'हार्ड-डिस्क'ही भरी पडी है ऐसे जल्वों से"
"लेकिन क्या करें जनाब,ये दिल है कि मानता नहीं"
"रोज़-रोज़ नए-नए जलवों की तलाश रहती है "
"बीवी बेचारी को तो रोज़ कोई ना कोई गोली दे देता कि ...
'प्रोजैक्ट वर्क' है...पूरा करना है"
"उस बावली को क्या पता कि मैँ कौन से प्रोजैक्ट पर काम कर रहा था"
"कुछ दिन बाद सब जलवे बेमानी से लगने लगे"...
"दिल अब कुछ'हाई लैवल'की डिमांड करने लगा था"
"कुछ ना कुछ तो असलियत में भी होना चाहिए"
"है ना?"
"सिर्फ आँखे सेंक-सेंक के कौन कमबख्त गर्म होता फिरे?"
"अब क्या करें?"...
"तसल्ली नहीं होती ना"
"सो मैने अपनी गड्डी का स्टेयरिंग 'सर्फिंग'से चैटिंग की तरफ मोड दिया"
"बस गड्डी का मुडना था कि अपनी तो निकल पडी....
"रोज़ कोई ना कोई टकराने लगी"...
'कभी 'गोरी'तो कभी'काली'...
'कभी कोई'मोटी-ताज़ी'तो कभी एक्दम'दुबली-पतली'....
"कभी-कभार किस्मत कुछ ज़्यादा ही मेहरबान हुई तो एक-आध...
'छम्मक-छ्ल्लो'टाईप भी टकराने लगी"
"अपुन अपनी गड्डी का मीटर फुल स्पीड पर'टाप-ओ-टाप'खींचे जा रहा था कि ...
'ज़ोर का झटका' सचमुच बडी ज़ोर से लगा"
"अब तो दिल बस यही गा रहा था कि...
"हो... मै निकला गड्डी ले के...हर रोज़ कोई 'होर'आया....
हाय!...मैँ 'ओथे'....अपना फोन नम्बर कोयं छोड आया?"
"आखिर गल्ती तो मेरी ही थी ना...
फिर भला किसी और को क्या दोष देना ?"
"क्या ज़रूरत पड गयी थी,उस बावली को अपना फोन नंबर देने की?"
"उस नौटंकी ने भी आव देखा ना ताव....
दे दनादन घंटी पे घंटी खडकाने लगी"
"पता नहीं उसे मेरे चेहरे में ऐसे कौन से 'सुरखाब'के पर लगे दिखाई दिए कि . ...
'फुल-फ्लैज' सैंटी हो उठी"
"ये तो भला हो उन कम्पनी वालों का जो ...
'सैक्सी-सैक्सी' आवाज़ वाली लडकियों से लोगों को बारम्बार..
फोन कर-कर के परेशान करते रहते हैँ....
कभी'लोन'के नाम पे,...
तो कभी 'क्रैडिट-कार्ड' के नाम पर ...
तो कभी'इंशयोरैंस'के नाम पर"...
"कभी कुछ तो कभी कुछ"
"उनकी आड में असलियत को आसानी से छुपा गया मैँ"
"लेकिन मुसीबत कभी अकेले नहीं आती...
आठ-दस को हमेशा अपने साथ लाती है "
"वही हुआ जिसका मुझे डर था ...
"एक दिन सब की सब बावलियों को पता नहीं क्या सूझी कि...
बारी-बारी जो सबकी घंटी खड्कनी शुरु हुई तो रुकने का नाम ही नहीं लिया"
"एक से निबटूँ तो कंभखत दूजी टपक पडे"...
"दूजी से निबटूँ तो तीजी का फोन घनघना उठे"
"बीवी के कान खडे हो गये"....
"अब यार... ये तो ऊपरवाला जाने कि कैसे उसने हमारी बातें सुन ली और...
भडक खडी हुई"
"हाँ-हाँ ले आओ इन्ही को और बिठा दो चौके में"
"मेरे तो करम ही फूट गये थे जो तुमसे ब्याह रचाया"
"लाख मना किया था बाबूजी ने कि ...
लडके का चाल-चलन ठीक नहीं है"...
"ढीले करैक्टर का है"लेकिन मति तो मेरी ही मारी गयी थी जो तुम्हारे इस मरदूद चौखटे पे मर मिटी"
"शशि कपूर जो दिखता था मुझे तुम्हारे इस नास-पीटे चेहरे में"
"अकल पे पत्थर पड गये थे मेरी"
"पता होता कि तुम ऐसे-ऐसे गुल खिलाओगे तो तुमसे शादी करने के बजाए चुल्लू भर पानी में डूब मरती"
"मुझ बेवाकूफ को पता नहीं क्या सूझी और झट से पानी भरा गिलास थमा दिया"
"बस जैसे मानों जलती आग में घी पढ गया हो"
"आगबबूला हो उठी"....
"सम्भालो अपनी पलटन को"....
"मै तो चली मायके"....
"और हाँ...कान खोल के सुन लो ....
लाख मनाओ फिर भी वापिस नहीं आने वाली "
"अब दूसरी वाले को ही बिठा लेना....
देखती हूँ कितने दिन तक पका-पका के खिलाती है ?"
"नानी ना याद आ जाए तो कहना"
"हाँ-हाँ ले आउंगा"....
"एक नहीं सौ लाउंगा"...
"एक से एक 'टाप' की लाउंगा"....
"बीवी ऐसी तडपी कि फिर ना रुकी"...
"छोटे वाले को साथ ले चल दी मायके"
"मैने भी रोकना मुनासिब नहीं समझा"....
"आखिर बरसों बाद जो दिली ख्वाईश जो पूरी हो रही थी"
"खुली हवा में साँस लेने का मौका कैसे गवां देता?"
"उसके जाते ही सब्र कहाँ था मुझे?"
"जा पहुँचा सीधे'पाठक जी'के यहाँ"
"अरे वही 'पाठक जी'जिनके गली-गली ,...
हर मोड हर चौराहे पे पोस्टर लगे नज़र आते है"
"रिश्ते ही रिश्ते"..."मिल तो लें"
"तो हमने भी सोचा कि अब तो मिल ही लें"
"देखें कौन सा तीर मारते हैँ ये"
"उनका नाम तो यहाँ दिल्ली का बच्चा-बच्चा मुँह ज़बानी रटे बैठा है ...
पट्ठे ने कोई जगह भी तो नहीं बक्शी ..
क्या 'गली'....
क्या 'नुक्कड'...
क्या 'बस अड्डा'...
क्या 'रेलवे स्टेशन'...
"हर जगह बस 'रिश्ते ही रिश्ते'का बोर्ड टंगा नज़र आता है"
"जब इतना नाम है तो कोई ना कोई बात तो ज़रूर ही होगी बन्दे में"
"सो मैँ भला कहीं और क्यों जाता?""
"और मज़े की बात तो देखो कि....
साला!....खुद अभी तक कुँवारा बैठा है"...
"किसी जानकार ने बताया था कि कमीशन के लालच में अपनी तरफ तो ध्यान ही नहीं है बस...
दूसरों की वाट लगाता फिरता है हर् दम"
"नाम रजिस्टर करवाया"....
"काम होने की पूरी गारैंटी मिली तो एडवांस भी जमा करवा दिया"
"मेरी उमर और चौखटा देख के हर लडकी दिखाने की फीस अलग से माँगी उन्होने"
"मैने राज़ी-राज़ी हामी भर दी"....
"नाम-पता और फोन नम्बर सब नोट करा के मैँ घर की तरफ चला ही था कि...
बीच रासते में ही फोन आ गया कि....
"लौट आओ'..एक आई है तुम्हारे मतलब की"
"सब्र कहाँ था मुझे?"
"सो फटाफट जा पहुँचा"....
"पहुँचते ही सारा का सारा जोश 'रफूचक्कर' हो गया"
"लडकी क्या वो तो 'अम्मा'थी'अम्मा'"
"हुह!...इससे शादी करूँगा मैँ?"
"इतना बावला नही हुआ हूँ अभी कि किसी को भी गले बाँध डालो"
"अरे कोई टाप की आईटम है तो दिखाओ"....
"खर्च-पानी की चिंता ना करो"...
"बस आईटम ज़बरदस्त होनी चाहिए...एकदम धाँसू"
"बस मैँ जेब ढीली करता गया और वो रोज़ कोई ना कोई लडकी दिखाते चले गये"
"अब तक छ्प्पन देख चुका हूँ लेकिन...
कोई साली!...सैट होने का नाम ही नहीं ले रही"
"यूँ तो जवानी में घाट-घाट का पानी चखा है मैँने...
(अब क्या करूँ यार दिल ही कुछ ऐसा दिया है ऊपरवाले ने कि ...
अपुन से किसी को निराश नहीं देखा जाता")
"क्या पतली?"...
"क्या मोटी?"....
"क्या काली?"...
"क्या गोरी?"...
"क्या जवान?"...
"क्या बुड्ढी?"
"सब बराबर थी मेरे लिये"...
"कोई छोटा-बडा नहीं"...
"सब एक समान"
"किसी को कभी भूल के भी ना नही कहा"
"लेकिन जैसे ही शादी करने की बारी आई...अपुन के नखरे चालू हो गये कि...
'ठिगनी' नहीं होनी चाहिए...
'मोटी'नहीं चलेगी....
'काली'का तो सवाल ही नहीं पैदा होता...
'सरकारी नौकरी' वाली होना तो लाज़मी था ही और...
'उमर' बस यही कोई 'सोलह' और 'सत्रह'के बीच की हो जाए तो बल्ले-बल्ले"
"कई रिश्ते देखे लेकिन किसी में कोई नुक्स तो किसी में कोई"
"किसी का 'रंग' पसन्द आता तो 'चौखटा'नहीं"...
"किसी का 'चौखटा' पसन्द आता तो 'चाल'नहीं"...
"किसी में एक 'खूबी'नज़र आती तो किसी में दूसरी"....
"कहीं एक बात अच्छी लगती तो सौ कमियाँ भी दिखाई दे जाती"
"जहाँ लडकी पसन्द आती वहाँ 'खानदान'नहीं"...
"हर जगह कोई ना कोई पंगा खडा हो ही जाता"
"वक़्त गुज़रता जा रहा था लेकिन शादी का महूर्त ही नहीं निकल रहा था"
"कई बार तो बात बनते-बनते बिगड जाती"
"कभी लेन-देन के नाम पे तो कभी किसी और बात पे "
"और मै था कि शादी के लिये मरा जा रहा था"
"अब रोज़-रोज़...
'जली-कटी'...
'कच्ची-पक्की'....
रोटियाँ बनते और खाते हुए मैँ तंग आ चुका था"
"दुखी हो...यही ठान लिया कि अब की बार कोई नखरा नहीं"
"जैसी भी मिलेगी...जैसे-तैसे निभा ही लूंगा"
"इस बार लगा मानो किस्मत जाग उठी"
"लडकी देखने गया तो वहाँ लडकी 'टाप-ओ-टाप' थी"...
"खास बात ये कि उसकी माँ बडी ही सीधी थी ..
'एकदम गऊ के माफिक'
"कहाँ आजकल की सासू माँ और कहाँ ये एकदम सीधी"
"एकबार तो देख के विश्वास ही नहीं हुआ कि...
ऐसे लोग भी बसते हैँ आज के ज़माने में"
"अपुन ने भी भी ठाना हुआ था कि इस बार कोई गलत कदम नहीं उठाना है...
"सो अपुन ने आईडिया लगाया कि ...
अगर लडकी की माँ को राज़ी कर लूँ तो बात बनी समझो"
"ये सोच मैँ उसकी 'लल्लो-चप्पो' पे उतर आया"
उसने ममता भरी निगाहों से मेरी तरफ देखते हुए कहा"चिंता ना करो,ऊपरवाले ने चाहा तो बात बन जायेगी"
"लडकी भी चोर नज़रों से मेरी तरफ ही ताके जा रही थी"
"लेकिन उसका बाप... साला!...खडूस की औलाद...
पूरा टाईम मुझ पर ही नज़र गडाए बैठा रहा"
"एक सैकैण्ड के लिये भी अलग नहीं हुआ"
"लाईन मारने का कोई चांस ना मिलता देख अपुन ने कलटी होना ही बेहतर समझा"
"जाते-जाते अपने मोबाईल नम्बर की पर्ची वहीं जानबूझ के छोड आया"
"तीर सही निशाने पर जा लगा और अगले ही दिन फोन आ गया"
"मिलने की जगह और वक़्त फिक्स हुआ"
"सही जगह और सही वक़्त पर मैँ हाज़िर था"
"बस वो थोडा लेट हो गयीं आने में...
"फिर क्या हुआ?"
" औरतों का तो जन्म्-सिद्ध अधिकार है लेट आना"
"आस-पास नज़र दौडाई तो पाया कि ...
बहुत सी सुन्दर-सुन्दर तितलियाँ मानो मेरे ही इंतज़ार में आस-पास मँडरा रही थी लेकिन...
मजाल है जो मैने उनकी तरफ ठीक से नज़र उठा के देखा भी हो तो"
"अरे बाबा डर जो था कि मलाई के चक्कर में दूध ही ना गवां बैठूँ हाथ से कहीं"
"सो चुपचाप नज़रें झुकाए खडा-खडा बस इंतज़ार करता रहा"
"देखूँ या ना देखूँ?"
"इसी उधेड्बुन में पता ही नहीं चला कि कितना वक़्त गुज़र गया"
"पता नहीं कब से दोनो माँ-बेटी मुझ पर ही नज़र रखे बैठी थी"
"ऊपरवाले का शुक्र है कि आज अपुन कंट्रोल में था"
"नज़रें मिली तो वो दोनो हिचकिचाते हुए सामने आ गयी"
"इधर-उधर की बातें हुई"
"आखोँ ही आखोँ में माँ-बेटी ने कुछ बातें की"..
"फिर माँ मेरी तरफ मुखातिब होते हुए बोली..."एक-मिनट... साईड में आओ ...ज़रूरी बात करनी है"
"दहेज-वहेज के लिये ही पूछेगी और क्या?"
"अभी तो यही कह दूंगा कि..."बस दो कपडोँ मे ही विदा कर दो"...
"बाद में अपना जलवा दिखाता रहूँगा आराम से"
"क्या जल्दी है?"
"अभी तो बस कैसे भी कर के शादी हो जाए किसी तरह"
"तभी बीवी के मुँह पे तमाचा जो लगेगा तगडा सा"
"हुह.. बडी आई कहने वाली कि "देखती हूँ कौन पका के खिलाता है?"
"अब पता चलेगा बच्चू को"
"यही सब सोचता हुआ 'सासू माँ'के साथ चल दिया"
"मुझे पसन्द तो तुम पहली ही नज़र में आ गये थे ...लेकिन....
"लेकिन?"
"अभी जिस तरह से तुम चुप-चाप सर झुकाए खडे थे"...
"जी"
"मुझे और बेबी को तो शक होने लगा है"...
"शक?"
"हाँ शक"
"कैसा शक"
"कि कहीं तुम मेरी बेटी के लायक हो भी या नहीं?"
"जी मै समझा नहीं..ज़रा खुल के बताएँ"
"अरे यार सीधी सी बात है जब तुम इतनी...
'तितलियोँ के बीच रहकर भी ना पिघले ....
कुछ ना कर सके....
तो मेरी बेटी को क्या खाक राज़ी रखोगे?"
"क्या मतलब?"
"मतलब क्या है आपको?"
"अरे मतलब को मार गोली"....
"सीधे सीधे बता कि कुछ दम-शम भी है या नहीं?"
"लेकिन तुम हो बडे ही 'क्यूट' और 'हैंड्सम"वो शरारती मुसकान चेहरे पे लाती हुई बोली
"काश....तुम कुछ साल पहले पैदा हुए होते "
"खैर कोई बात नही ...अब भी कुछ खास नहीं बिगडा है "
"पहले मै खुद ही 'प्रैक्टली' चैक करूँगी कि तुम मेरी बेटी के लायक हो भी या नहीं"
"क्या बक रही हैँ आप ?"
"बक नहीं रही हूँ...सही कह रही हूँ मैँ"...
"कहीं बाद में मेरी बेटी पछ्ताती फिरे"...
"वैसे भी हमारे यहाँ का तो रिवाज़ है ये" ...
"पहले माँ चैक करती है बाद में बेटी"
"अभी परसों ही तो हम माँ-बेटी ने एक को रिजैक्ट किया है"...
"चौखटे से तो वो भी ठीक-ठाक ही था तुम्हारे जैसा ...पर.....
"मेरे तो प्राण ही सूखे जा रहे थे उन माँ-बेटी की बातें सुन-सुन के" ...
"घोर कलयुंग"
"सो आव देखा ना ताव ...
दुम दबाई और सीधा नौ दो ग्यारह हो लिया"
"जान बच्ची तो लाखों पाए...लौट के बुद्धू घर को आए"
"मैँ तो यही सोचे बैठे था कि मैँ ही 'ढीले करैक्टर' का हूँ लेकिन ....
यहाँ तो माँ-बेटी दोनो का करैक्टर ढीला निकला"
"अक्ल आ चुकी थी कि इध-उधर मुँह मारे से कोई फायदा नहीं"
"आज बीवी बडी याद आ रही थी...
"दिन ढल जाए...हाए रात ना जाए...तू तो ना आए ...तेरी याद सताए"
"थोडा-बहुत डांट्ती थी तो क्या हुआ?"...
"आखिर बीवी है मेरी"...
"इतना हक़ तो बनता ही है उसका"
"मैँ खुद भी तो सही कहाँ था"
"बस अब रुका ना गया...
जा पहुँचा सीधा ससुराल"
"जाते ही हाथ-पाँव जोडे"
"वो मानो मेरा ही इंतज़ार कर रही थी"
"चुप-चाप चल दी मेरे साथ"
***राजीव तनेजा***
4 comments:
क्या बात है, एकदम मजेदार और जीवंत कविता। साथ ही यथार्थपरक और सटीक भी।
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हा हा, मजेदार उपन्यास!! मजा आ गया. :)
बीवीका भी वही हाल था ।
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