लिखना मुझे आता नहीं…
टीवी की झकझक..
रेडियो की बकबक..
मोबाईल में एम.एम.एस..
कुछ मुझे भाता नहीं
भडास दिल की…
कब शब्द बन उबल पडती है
टीस सी दिल में..
कब सुलग पडती है…
कुछ पता नहीं
सोने नहीं देती है ..
दिल के चौखट पे..
ज़मीर की ठक ठक
उथल-पुथल करते..
विचारों के जमघट
जब बेबस हो..तमाशाई हो..
देखता हूँ अन्याय हर कहीं
फेर के सच्चाई से मुँह..
कभी हँस भी लेता हूँ
ज़्यादा हुआ तो..
मूंद के आँखे…
ढाँप के चेहरा…
पलट भाग लेता हूँ कहीं
आफत गले में फँसी
जान पड़ती मुझको
कुछ कर न पाने की बेबसी…
जब विवश कर देती मुझको..
असमंजस के ढेर पे बैठा
मैँ ‘नीरो’ बन बाँसुरी बजाऊँ कैसे
क्या करूँ…कैसे करूँ…
कुछ सूझे न सुझाए मुझको…
बोल मैँ सकता नहीं
विरोध कर मैँ सकता नहीं
आज मेरी हर कमी…
बरबस सताए मुझको
उहापोह त्याग…कुछ सोच ..
लौट मैँ फिर
डर से भागते कदम थाम लेता हूँ …
उठा के कागज़-कलम…
भडास दिल की…
कागज़ पे उतार लेता हूँ
ये सोच..खुश हो
चन्द लम्हे. ..
खुशफहमी के भी कभी
जी लेता हूँ मैँ कि..
होंगे सभी जन आबाद
कोई तो करेगा आगाज़
आएगा इंकलाब यहीं..
हाँ यहीँ…हाँ यहीँ
सच..
लिखना मुझे आता नहीं…
फिर भी कुछ सोच..
भडास दिल की…
कागज़ पे उतार लेता हूँ मैँ”
***राजीव तनेजा***
9 comments:
बहुत भावभीनी रचना... मेरे दिल की बात को आपने शब्दों का जामा पहना दिया.
पढ़ने का नशा ऐसा छाता है कि लिखते वक्त हाथ 'लड़खड़ाने' लगते हैं...
शुभकामनाएँ
क्या बात है .... बहुत बढिया
कविता अच्छी लगी । यूँ ही भड़ास निकालते रहिये ।
घुघूती बासूती
बहुत बढिया शुभकामनाएँ
bahut acche,aap part time me acchi kavitayee kar lete hai.
बहुत बढिया रचना ॥
मुझे लगता नहीं ऐसा
आप लिखते हों पेपर पेपर पर
ऊंगलियों को ही
कभी इस को, कभी उसको
अंगूठे का नंबर तो
हर शब्द के बाद
आता ही है वो
तो वाक्यों का छाता
ही है, मन से डायरेक्ट
स्क्रीन पर असर ज्यादा
करता है, बसर दिमाग में
ज्यादा हो जाए तो विस्मृत
मन से सीधे मॉनीटर
चढ़ जाए मीटर
लिखते रहो, कविता कहानी
को जपते रहो
जप जप के, तप तप के
असर गहरा आएगा
सिर्फ उसमें डूबने वाला
समझ पाएगा उसे
पेपर पर पेपर से मॉनीटर
बुरा नहीं है, मेहनत का
सिला हमेशा मिलता यहीं है।
कमाल हॆ राजीव भाई!
आप कहते हो भडास निकाली
हम कहते हॆं आपने कविता सुनाई
लो हमारी तरफ से भी
नये साल की बंधाई.
वाह! बहुत खूब!
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