"सर पे लटकती ये तलवार है "
***राजीव तनेजा***
'सेंसेक्स' की छाई बहार में
सोमवार से लेकर इतवार में
हर किसी को जब डूबे देखा...
दीन दुनिया से ऊबे देखा
कौतूहल सा भाव जाग उठा
गूढ सवाल का सरल जवाब
क्या है ये दिल माँग उठा
बाज़ार भाव देख रहे पिताजी से
जब उत्सुकतावश पूछा...
क्या होता है उतार ...
क्यूँ चढता है चढाव...
क्या होता है मुनाफा...
क्या होता है लॉस
हारे हुए जुआरिओं को
कैसे बँधाए हम आस
क्या खरीदें कितना खरीदें
कैसे करें हम सही चुनाव
बात मेरी सुन वो मंद-मंद मुस्काए
जिज्ञासा मेरी देख कर
खुशी हर्ष के बादल चेहरे पे छाए
हकीकत ए 'सेंसेक्स' उन्होंने कुछ यूँ ब्याँ कर दी...
मानो ज्ञान रूपी गंगा से झोली मेरी भर दी
'सेंसेक्स' की माया बेटा!..है अजब निराली
कर दे किसी की तिजोरी बिलकुल खाली
तो किसी की छप्पर फाड झोली भर....
ला दे बिन मौसम होली और दिवाली
'कंस्ट्रक्शन' में लगाओ ऊँचा जाएगा
'सिमेंट' में ना फँसा घाटा खाएगा
जैसे जुमले रोज़ सुनने को मिलते है
तगडे मुनाफे के फूल तो बेटा.....
यदा कदा ही खिलते हैँ
साम,दाम, दंड और भेद अपना नाजायज़
जला दिए थे हाथ हमारे उस 'हर्षद' और 'केतन' ने
भूले कैसे याद है सब दर्द सहा है कितना
छाछ को भी हमने अब फूंक फूंक कर है पीना
कोई 'रिलायंस' की 'पावर' के पीछे बडा बावला है
शायद वो पिछले घाटे पूरे करने को उतावला है
वो पिछला 'स्टाक' बेच बेच माल बटोर रहा है
'रिलायंस पावर' खरीद 'स्टॉक' का इरादा कर रहा है
जिसे देखो उसी का हाल बेहाल है...
इसी आपाधापी में सबका हुआ बुरा हाल है
ज़िन्दगी का मज़ा हुआ कब का खत्म...
ना बचा सुर ना ही बची अब ताल है
कोई हाँफ-हाँफ फोन पे हाल अपना बतिया रहा है
तो कोई कम्प्यूटर में आँख गडाए चुपचाप खिसिया रहा है
किसी की नज़र 'फाईनैंशल' अखबारों से नहीं हट रही
तो किसी की दूजे 'चैनलों' पे दो पल नहीं टिक रही...
लग गया है चश्मा बढ गया है नम्बर
उफ!...ये काम भी कितना दुश्वार है
फिर भी सभी को इसी से प्यार है
हाँ!...हरदम इसी से प्यार है
कोई 'ट्रांसफार्मर्स'. ..
तो कोई 'बी जी आर' को पा कर मुस्कुरा रहा है
कोई 'मुन्द्रा पोर्ट बेच मनचाही मुद्रा कमा रहा है
तो कोई 'स्वराज इंजन' के पिछले शेयरों पे इतरा रहा है
जिसे देखो वही सुनहरे मौके को भरपूर भुना रहा है
कूद रहे हैँ मैदान ए जंग में रोज़ाना खिलाडी नए नए
ऑफर उनके लुभावने कोई बेचे सिमेंट तो कोई बेचे पेय
कोई ढेरो मुनाफे के वायदे को पकाए बारम्बार
कोई 'फिक्स डिविडैंड' का झुनझुना थमाए लाखों बार
कोई प्यारा सज्जन बोनस पे बोनस बाँट रहा है
तो कोई रावण हक का 'डिविडैंड' भी खाए जा रहा है
कोई लंपट बरगला औने पौने में 'शेयर' हथिया रहा है
तो कोई 'बोनस' में 'शेयर' दे दे सबको लुभा रहा है
कोई ढेरों मुनाफा पा अपने में खुद मदमस्त है
तो कोई अपने अनचाहे घाटों से ही बेदम त्रस्त है
कोई लाखों कमा शुक्र ऊपरवाले का मना रहा है
तो कोई किस्मत अपनी फूटी का रोना गा गा सुना रहा है
दिन को चैन नहीं रातों को आराम नहीं
बेचैन ना हो इतना दिल को थाम यहीं
रट ले बेटा राजीव ये मूल मंत्र...
नहीं कोई जादू है ना ही कोई तंत्र
माल कमाने का बस यही असल एक है जंत्र...
'आई पी ओ' में लगाओ बहार ही बहार है
'ट्रेडिंग' के पीछे ना भागो सर पे लटकती ये तलवार है
हाँ!...सर पे लटकती ये तलवार है
हाँ!...सर पे लटकती ये तलवार है
***राजीव तनेजा***
नोट:अविनाश वाचस्पति जी को समर्पित
5 comments:
प्रिय राजीव,
आपकी कविताओं के दो गुणों से मैं बहुत प्रभावित हुआ हूँ. एक तो वे सामान्य जीवन से संबंधित होते है. दूसरा, वे समझने में बहुत आसान होते हैं. यह कविता भी इसी प्रकार की है.
पढा, आस्वादन किया, सोचा कि आपको अपनी प्रतिक्रिया से अवगत करवा दूँ.
पुनश्च: यह देख कर अच्छा लगा कि आपने कविता एक साथी चिट्ठाकार को समर्पित किया है.
राजीव जी,शेयर मार्कीट की जानकारी तो ना के बराबर है,लेकिन आप की कविता बहुत अच्छी लगी।
शेयर का बाजार
कभी कभी हंसा
पाता है,रूलाता
है अधिकतर।
इस सच्चाई से
रूबरू कराती है
कविता आपकी
करती है तरबतर
पसीने बिना पानी
याद दिलाए नानी।
आप सफल रहो
अपने अनुभव अब
कविता में कहते
रहो, कामना मेरी।
शेयर बाजार मेँ 15% लोग कमाते हैँ, 85% सिर्फ गँवाते है ।
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