"निबटने की तुझसे कितनी हम में खाज है"

"निबटने की तुझसे कितनी हम में खाज है"

***राजीव तनेजा***





माना कि...
अपनों के बीच... अपने शहर में
चलती तेरी बड़ी ही धाक है

सही में...
विरोधियों के राज में भी तू. ..
गुंडो का सबसे बडा सरताज है ...

हाँ सच!...
तू तो अपने ठाकरे का ही 'राज' है...
सुना है!...
समूची मुम्बई पे चलता तेरा ही राज है


अरे!...
अपनी गली में तो कुता भी शेर होता है...
आ के देख मैदान ए जंग में...
देखें कौन. ..कहाँ... कैसे ढेर होता है

सुन!...
सही है...सलामत है...चूँकि मुम्बई में है...
आ यहाँ दिल्ली में...
बताएँ तुझे ...
निबटने की तुझसे कितनी हम में खाज है

हाँ! ...
निबटने की तुझसे कितनी हम में खाज है

***राजीव तनेजा***



नोट: अविनाश वाचस्पति जी को समर्पित

2 comments:

अविनाश वाचस्पति said...

राज़ को राज़
ही रहने दो
हुश्श ..... श्श
मत करो.

Anonymous said...

बहुत गुँडागीरी है मुँबई मेँ ।

 
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