“गाँधी जी' भी नहीं रहे....'सुभाष जी' भी चल बसे...और 'जवाहर लाल जी' भी कब के ऊपर पहुँच गए...अब तो मेरी भी तबियत कुछ ठीक नहीं रहती...ना जाने कब लुढक जाऊँ?…पता नहीं इस देश का क्या होगा?"
अब रोज़-रोज़ बिना रुके…लगातार 'सूटटे' मारूँगा तो तबियत तो बिगडनी ही है लेकिन मैं भी आखिर करूँ तो क्या करूँ?…ये स्साला!..दिल है कि मानता ही नहीं| बहुत कोशिश कर ली...लेकिन ये मुय्यी ऐसी लत लगी है कि इसको सहा भी नहीं जाता और इसके बिना रहा भी नहीं जाता|अब तो आँखों के आगे अन्धेरा सा भी छाने लगा है |पता है!...पता है बाबा...कि ये सिग्रेट और गुटखा सेहत के लिए अच्छा नहीं….कैन्सर होता है इन सब से लेकिन क्या करूँ?...कैसे समझाऊँ इस दिल-ए-नादां को?…लाख कोशिशों के बावजूद भी काबू में नहीं आता|
दोस्तों!..हो सकता है कि मेरी ये कहानी आपको एकदम बेकार या वाहियात लगे लेकिन इसको लिखने के पीछे मेरा मकसद लोगों को धूम्रपान और गुटखे वगैरा के होने वाले खतरों के बारे में सचेत करना है| अगर एक भी आदमी इस कहानी को पढकर धूम्रपान छोड़ने का या फिर कम करने का निर्णय लेता है तो मैं अपने लेखन को सफल तथा खुद को धन्य समझूंगा |
“क्या कहा?…कब और कैसे लत लगी मुझे सा सब की?”..
“ठीक है!…जब इतनी जिद कर ही रहे हो तो बता देता हूँ…अपने बाप का क्या जाता है?”…
बात कुछ साल पुरानी ही तो है...अपना एक फटीचर दोस्त था...ना कोई काम...ना कोई धाम..हर वक़्त बस...खाली का खाली|जब देखो...किसी ना किसी का फुद्दू खींचने की फिराक में लगा रहता|एक दिन अचानक उसी का फोन आ गया कि...
“बस!..आधे घंटे में ही पहुँच रहा हूँ...जुगाड-पानी तैयार रखना”…
मेरे कुछ कहने से पहले ही फोन कट गया|मैँ घबरा उठा कि कहीं कुछ...माँग ही ना बैठे…ऐसे लोगों का कुछ पता नहीं..पता नहीं कितना खर्चा करवा डाले?…इसलिए...चुपचाप कलटी होना ही बेहतर लगा मुझे| फटाफट से घर का सारा कीमती सामान इधर-उधर छुपाया कि कहीं हाथ ही साफ ना कर डाले…कोई भरोसा नहीं इसका|घर को ताला लगा मैँ खिसकने ही वाला था कि...एक लम्बी गाड़ी दनदनाती हुई मेरे घर के सामने आ रुकी|मैँ चौका कि .. “अब…ऐसे बेवक्त कौन कम्भखत टपक पड़ा?”…
अभी सोच ही रहा था कि....इतने में गाड़ी में से एक लम्बा चौडा ...हट्टा-कट्ता आदमी निकला...बदन पे महँगा सूट...गले में सोने की भारी…पट्टेदार चेन(कुछ-कुछ कुत्ते के गले में डालने वाले पट्टे जैसी मोटी)..रंग रूप ऐसा…जैसे तवे का पुट्ठा पासा...मुँह में सोने के दाँत चमकते हुए...इम्पोर्टेड जूते...वगैरा...वगैरा...
"वाह!...क्या ठाठ थे बन्दे के...वाह”...
ध्यान से देखा तो वही पुराना…अपना लँगोटिया यार 'मुस्सदी लाल' निकला|अब यार!...उसके ठाठ देखने के बाद उसे लँगोटिया ना कहूँ तो फिर क्या कहूँ?…मैँ हैरान-परेशान कि…इसके डर से तो मैँ अपने घर की मामुली से मामुली चीज़ें इधर-उधर छिपा रहा था और ये चाहे तो बेशक अभी के अभी…यहीं खड़े-खड़े ही मुँह मागे दामों पर मुझे खरीद ले|
“बाप रे!...क्या किस्मत पाई है पट्ठे ने"...
मैँ गश खा के गिरने ही वाला था कि वो बोल पड़ा "घर को ताला लगा के कहाँ खिसक रहे थे जनाब?"..
"अरे!…मैंने कहाँ खिसकना है?…मैं तो बस…ऐसे ही आपके लिए कुछ मिठाई वगैरा लेने जा रहा था" मैँ खिसियाता हुआ बोला
"छड्ड यार!...ये मिठाई वगैरा भी कोई खाने की चीज़ होती है?….अपने को तो बस यही एक शौक है"वो जेब से बीयर का टिन निकाल उसकी सील तोड़ता हुआ बोला
“ओह!…
"शौक क्या?....अब तो आदत सी हो गयी है इन सब की...रहा नहीं जाता इन सब के बिना"वो महंगी सिग्रेट के पैकेट की तरफ इशारा करता हुआ बोला
“ओह!…
"और रहा भी क्यों जाए भला?...आम के आम और गुठलियों के भी दाम जो मिल रहे हैं"…
मैँ चौंका..."आम के आम और गुठलियों के दाम?"
ना तो मुझे वहाँ कोई आम का बगीचा ही दिख रहा था और ना ही गुठलियों का कोई ढेर | मेरा अचरज भरा चौखटा देख…वो ज़ोर से हँसते हुए बोला… ”अरे!…बेवाकूफ!...मुहावरा है ये"...
“ओह!…
“तुम तो यार अभी भी हिन्दी में पैदल ही हो"..
“बस!…ऐसे ही…टाईम ही नहीं मिल पाता"मैं कुछ झेंपता हुआ सा बोला
“क्या होता जा रहा है इस देश को और इसके आवाम को?…राष्ट्र भाषा है हमारी...कुछ तो कद्र करो"..
"जी!…
“पता नही कब अक्ल आएगी इस देश के लोगों को?…खुद तो करते कुछ नहीं हैं और ऊपर से सरकार को कोसते हैं कि….हमारा देश तरक्की नहीं करता"…
"अरे!...क्या खाक तरक्की करेगा?…जब अपने ही बे-कद्री पर उतर आए तो बाहर वालों से तो उम्मीद भी रखना बेकार है"…
“ज्जी!…(मेरा झेंपना जायज़ था)
"स्साले!…अँग्रेज़ी के रूप में अपनी विरासत छोड़ चले गये कि... "लो!…बच्चो …अब इसे ही गाओ-बजाओ"...
उसकी ये बेमतलब की बातें मेरे सर के ऊपर से निकले जा रही थी…इसलिए उसे बीच में ही टोकता हुआ बोल पड़ा “तुम तो बात कर रहे थे आम और गुठली की"…
"अरे!…बाबा...थोडा सब्र तो रख...सब बताता हूँ"वो एक साथ मुंह में तीन गुटखे उड़ेलता हुआ बोला
लेकिन!..अब सब्र किस कम्भख्त को था? सो!..बार-बार पूछता चला गया मैँ| वो मेरे तरफ मुस्कुराता हुआ देख सिग्रेट के लम्बे-लम्बे कश मारता हुआ बोला"यार!…अपनी तो निकल पड़ी"…
“क्या मतलब?”..
“अपनी तो सारी की सारी कमाई ही इसी की बदोलत है" कहते हुए उसने अपनी जेब से गुटखों की लड़ी निकाल उसे माला बना गले में डाल लिया
“क्क्या मतलब?”…
“हाँ!…ये देख"कहते हुए उसने अपना अटैची खोल मुझे दिखाया| अन्दर बेशुमार नोटों के ढेर को देख कर मैं दंग रह गया….दिमाग मानों सुन्न हुए जा रहा था|
“अरे!…यार...ये तो कुछ भी नहीं…इससे कहीं ज्यादा तो मेरे घर में दाएं-बाएँ पड़े रहते हैं और मुझे खबर ही नहीं रहती"मुझे हक्का-बक्का देख वो हँसते हुए बोला…
“ओह!…लेकिन ये सब…अचानक हुआ कैसे?…पिछली बार जब तुम..ऊप्स!…सॉरी…आप मिले थे तो….
“अरे!…तब की छोडो …तब तो अपुन के खाने की भी वांदे थे"…
"हाँ!…लेकिन…..तो फिर ये सब अचानक…कैसे?”…
“अरे!…कुछ खास नहीं…बस…एक दिन अचानक ऐसे ही हमारे मोहल्ले के कुछ डाक्टरों को जैसे ही पता चला कि मैँ एक बिगड़ैल किस्म का चेन स्मोकर हूँ और लंबे-लंबे कश ले…धुआं नाक से छोड़…सभी की नाक में दम करता हूँ तो मेरे पास तुरंत दौड़े चले आए”…
“तुम्हारे इलाज के लिए?”…
“नहीं!…
“तो फिर किसलिए?”…
“यही!…बिलकुल यही सवाल मेरे मन में भी बिजली की तरह द्रुत गति से कौंधा था जब मैंने एक साथ उन सबको अपने दरबार में हाजरी लगाते पाया"…
“ओह!…लेकिन उन जैसे पढ़े-लिखे एवं ज़हीन इनसानों को भला तुम्हारे साथ क्या काम हो सकता है?”…
“मैं खुद भी असमंजस में डूबा यही सब सोच रहा था कि उनमें से एक बोल पड़ा कि…
"अगर!…अपने ये अफ्लातूनी सूट्टे तुम यहाँ कमरे में बैठ के मारने के बजाय …खुलेआम…किसी भीड़-भाड़ वाली जगहों पर मारो तो तुम्हारा गाँधी का नोट पक्का"…
“लेकिन किसलिए?”…
“यही!…बिलकुल यही भी मैंने उनसे पूछा था लेकिन कुछ अलग अंदाज़ से"…
“अलग अंदाज़ से?”…
“हाँ!…अलग अंदाज़ से”…
“वो कैसे?”…
“वो ऐसे कि मैंने सीधे-सीधे उनसे पूछ लिया कि गाँधी तो आजकल हर छोटे-बड़े नोट पे दिखाई दे रहा है…साफ़-साफ़ बताओ कि कितने का दोगे?…और क्यों दोगे?”…
“ओह!…तो फिर क्या कहा उन्होंने?”…
“यही कि… “हर रोज पांच सौ का एक हरा-हरा नोट पक्का और रही बात क्यों की तो भैय्या मेरे…तुम आम खाओ ना…गुठलियाँ क्यों गिनते हो?”…
“ओह!…
“लेकिन मैं कौन सा कम था?… बेशर्म हो के बोल दिया कि….”फिर भी…पता तो चले कि आखिर ये बिन मौसम की मेहरबानी भरी बरसात मुझ नाचीज़ पर किस खुशी में हो रही है?".
“तो फिर क्या कहा उन्होंने?”…
यही कि… “अरे!…अपने इस हुनर…अपनी इस काबिलियत के बल पे तुम नाचीज़ रहे कहाँ?…तुम्हारे हाथ में…तुम्हारी नाक में…तुम्हारे मुंह में तो ऐसी शफा है कि तुम पलक झपकते ही हमारी बिगड़ी हुई किस्मत को एक झटके में ही संवार सकते हो"…
“वो कैसे?”…
“यही!…बिलकुल यही सवाल भी मैंने उनसे पूछा था"…
“ओह!…तो फिर क्या जवाब दिया उन्होंने?”….
“उनमें से एक बुझे-बुझे से स्वर चहकता हुआ बोला कि… “वो…बात दरअसल ये है कि..आप जैसों की वजह से हमारा ठंडा पडा धन्धा चल निकला है"…
“क्या मतलब?”..
“मैंने भी उनसे….
“यही सेम तू सेम क्वेस्चन पूछा था?”…
“हाँ!…
“तो फिर क्या कहा उन्होंने?”..
“यही कि…आजकल टी.वी...'रेडियो और अखबार वगैरा पर तो सिग्रेट और गुट्खे की एड आ नहीं सकती है ना खुलेआम और...चोर दरवाज़े से एंट्री में कुछ दम-शम नहीं दिखा कम्पनी वालों को”...
“तो?”…
"तो उन्होने मैनुअल एड करने की सोची”....
"मैनुयल एड...माने?" …
"अरे!..बेवाकूफ...मैनुयल एड माने...चलता फिरता विज्ञापन"…
“ओह!..फिर क्या हुआ?”..
“उन्होंने मुझसे कहा कि मैं उनके रोल माडल में फिट बैठ रहा हूँ"…
“और?”….
“अगर सही तरीके से कैम्पेनिंग करता रहा तो बहुत ऊपर जाऊँगा"…
“बहुत ऊपर?”मैं ऊपर…आसमान की तरफ ताकने का उपक्रम करता हुआ बोला लेकिन कमबख्त सीलिंग फैन बीच में आ गया …
“हाँ!…और किसी ना किसी कंपनी का ब्रैंड अम्बैस्डर भी बना दिया जाऊँगा"…
“ओह!…
"बिना एड-वैड के उनके धंधे पे मंदे का काला साया जो मंडराने लगा था…धीरे-धीरे मरीज़ कम होने लगे थे उनके"…
“ओह!…
"तुम तो जानते ही हो कि बन्दा हर ज़ुल्म-औ-सितम बर्दाश्त कर सकता है लेकिन जब उसकी रोजी-रोटी पे आ बनती है तो हाथ-पाँव ज़रूर मारता है"…
“हाँ!…पापी पेट का सवाल जो ठहरा"…
“बिलकुल"..
“इसलिए सिगरेट और गुटखा कंपनी वालों की देखादेखी ये डाक्टर लोग भी जुड़ गए इस अस्तित्व बचाओ अभियान में"…
“ओह!…
“आज मुझे ढूंढ निकाला है …कल को और साथी भी जुड़ते जाएंगे उनके इस अभियान में"…
"हम्म!…
“साथी हाथ बढाना...साथी रे”...
“फिर क्या हुआ?”…
"इंशा अल्लाह!...हम होंगे कामयाब एक दिन"मैंने भी उनके स्वर में अपना स्वर मिला दिया...
“फिर क्या हुआ?”…
“देखते ही देखते सभी एक स्वर में तन्मय हो कर गाने लगे …
"हो!...हो!..मन में है विश्वास ...पूरा है विश्वास…हम होंगे कामयाब एक दिन"..
“हम्म!… फिर क्या हुआ?”..
"आप जैसे लोगों का साथ मिल जाए तो यकीनन कामयाबी हमारे कदम चूमेगी" एक डाक्टर बोल पड़ा...
मैं अभी सोच ही रहा था कि हाँ करूँ या कि ना करूँ कि इतने में एक दूसरा डाक्टर आगे बढ़…मुझे विश्वास दिलाता हुआ बोला "आप जैसो की बदोलत हमारा धन्धा दिन दूनी रात चौगुनी तेज़ी के साथ प्रगति के पथ पर आगे बढेगा”..
“क्या सच में?”…
“हाँ!…ऐसा हमारे एक्सपर्टस का मानना है"…
“ओह!…
मेरे चेहरे पर असमंजस का भाव देख उनमें से एक फुदकता हुआ बोला.. “अरे!..यार..कुछ मुश्किल नहीं है ये सब…इट्स वैरी सिम्पल..आपको तो बस…धुयाँ भर ही छोड़ना है आराम से …बाकि का सब काम तो खुद-बा-खुद होता चला जाएगा" …
“क्या मतलब?”…
“यही कि…आपके धुयाँ छोड़…सबकी नाक में दम करने से जब लोग बिमार वगैरा पड़ेंगे तो अपुन जैसों की ही शरण में ही तो आएंगे ना?"…"और कहाँ जाएंगे बेचारे?"ही!..ही!..ही!..कर एक अन्य डाक्टर खिसियानी हँसी हँसता हुआ बोला
“ओह!…
“ये सब सुन मन डोल गया मेरा…लालच आ गया मुझे"....
“फिर क्या हुआ?”..
“होना क्या था?…बेशर्म हो के बोल ही दिया कि…“अरे!…पांच सौ से क्या होता है?…इससे कहीं ज़्यादा की दारू तो मै अकेला ही हर रोज पी जाता हूँ…'गुटखे'…खैनी और 'सिग्रेट' के पैसे अलग से"..
"एक मिनट!...तुम भी क्या याद करोगे कि किसी दिलदार से पाला पड़ा है"कह कर उसने एक दो फोन घुमाए…थोड़ी गिट्टर-पिट्टर की और कुछ देर के इंतज़ार के बाद एक नामी सिग्रेट कम्पनी का M.D अपने साथ इलाके की कैमिस्ट ऐसोसियेशन के प्रधान और कुछ पैथेलोजी लैब वालों को ले हमारी बैठक में शामिल था”…
“ओह!…
“कुछ ही देर में उनके पीछे-पीछे गुटखे वाले भी ये कहते हुए आ धमके कि…"अरे!…हम कोई अछूत थोड़े ही हैं?…हमें भी अपने साथ मिलाओ"...
“ओह!…फिर क्या हुआ"मेरे स्वर में उत्सुकता बढ़ती ही जा रही थी
“होना क्या था?…उन सब ने आपस में थोड़ी देर तक कुछ सैटिंग की और फिर मेरी तरफ मुखातिब होते हुए हाथ मिला बोले… "आज से हमारी कम्पनी की सिग्रेट पिओ और इनका गुटखा चबाओ और बस देखते जाओ"…
“क्या?”…
“यही कि … “बस..देखते जाओ…मालामाल कर देंगे….नाच मेरी बुलबुल के पैसा मिलेगा....कहाँ कद्र्दान तुझे ऐसा मिलेगा?”..“ओह!…
“अब तो हर महीने मेरा हिस्सा अपने आप मेरे घर पर पहुँच जाता है बिना मांगे ही"…
"बिना मांगे ही?”…
“हाँ!…बिना मांगे ही"…
“गुड!…
“लेकिन बस कुछ खास हिदायतों का ध्यान रखना पड़ता है"…
“मसलन?”…
“जैसे कि हमेशा ये ध्यान रखना पड़ता है कि…मुझे सिग्रेट या गुटखा…हमेशा तयशुदा ब्रांडों का ही इस्तेमाल करना है"…
“और?”…
“और उनकी खाली पैकिंग को कभी भूले से भी कूड़ेदान वगैरा में नहीं फैंकना है"…
“क्या मतलब?”…
“मुझे उन्हें…ऐसे ही…खुलेआम सड़क वगैरा पर ही फैंक देना है"..
“अरे!…वाह…डस्टबिन वगैरा में भी फैंकने की जिम्मेवारी नहीं….तुम्हारी लाटरी लग गई यार…लाटरी"..
“हाँ!..उन स्सालों ने गली-मोहल्ले के जमादारों वगैरा को भी अपनी अंटी में किया हुआ है"…
“वो किसलिए?”….
"वो इसलिए कि…पूरे शहर में कहीं भी सफाई का नामोंनिशान भी नहीं होना चाहिए”…
“इससे फायदा?”…
“मेरे मन भी यही…सेम तू सेम शंका उत्पन्न हुई थी और मैंने उन्हें कहा भी कि….
“नहीं!…कहीं ना कहीं…कुछ ना कुछ गडबड ज़रूर है...इस सब से आपको क्या फायदा?….बात कुछ हज़म नहीं हो रही है"..
"जब सारी कुतिया काशी चली जाएंगी तो यहाँ बैठ के भौंकेगा कौन?"एक कैमिस्ट बुरा सा मुंह बना बडबडाता हुआ बोला
"अरे यार!...एकदम सीधी-सीधी ही तो बात है...द होल थिंग इज़ दैट के भईय्या....सबसे बडा रुपईय्या"
“मैं कुछ समझा नहीं?”…
“अरे!…जितनी ज़्यादा गन्दगी…उतनी ज़्यादा कमाई...सिम्पल सा फण्डा है अपुन भाईयों का"…
“ओह!…
"जगह-जगह हमारे नाम का कचरा पड़ा होगा तो अपना ही नाम होगा ना?"सिग्रेट कंपनी का M.D मुझे समझाता हुआ बोला
“लेकिन इससे तो बदनामी….
“तो?..उससे कौन डरता है?…गर बदनाम हुए तो क्या नाम न होगा?"गुटखे वाला भी उसकी हाँ में अपनी हाँ मिलाता हुआ बोला
“हम्म!…(उनकी बात कुछ-कुछ मेरी समझ में आती जा रही थी)
"हमारी कम्पनी का माल पिओगे और चबाओगे तो हमारी कमाई बढेगी...साथ ही साथ ज़्यादा लोग बिमार पडेंगे..जिससे इन डाक्टर भाईयों की कमाई में इज़ाफा होगा"वो डाक्टरों की तरफ इशारा करता हुआ बोला ..
“हम्म!..
“'दवाइयाँ ज़्यादा बिकेंगी तो कैमिस्टों के वारे-न्यारे"…
“हम्म!…
"और जो टैस्ट वगैरा लिखे जाएँगे करवाने के लिए उसमें तो ये सब साझीदार हैँ ही" 'सिग्रेट कम्पनी वाला बाकी सब की तरफ इशारा करता हुआ बोला
“हम्म!…
"इस कलयुग के ज़माने में कहीं देखा है ऐसा प्यार भरा माहौल?"वो हँसते हुए बोला
“हम्म!…तो इसका मतलब इस हमाम में आप सभी नंगे हैँ"….
“बस!…आप ही की कमी है"आँखों में शैतानी चमक लिए डाक्टर बोला
“ओह!…फिर क्या हुआ?”..
"बस!…यार…तभी से उनके कहे अनुसार करता जा रहा हूँ और ज़िन्दगी के मज़े लूट रहा हूँ"दोस्त ज़ोर से खाँसता हुआ बोला
उसको यूँ खाँसता देख माथे पे एक हल्की सी शिकन तो उभरी ज़रूर लेकिन उसके ठाठ देख अगले ही पल वो भी पता नहीं कहाँ गायब हो चुकी थी|
"यार!..मेरा भी कुछ जुगाड़-पानी हो सकता है क्या?"मैँ धीमे से सकुचाता हुआ बोला
"अरे!..इसीलिए तो तेरे पास आया हूँ..जिगरी दोस्त है तू मेरा…और नहीं तो क्या मुझे तुझसे आम लेने हैं?”वो मुस्कुराता हुआ बोला
“ओह!…
"दरअसल!…बात ये है कि एक दूसरी…बड़ी कम्पनी वाले तगड़ा दाना डाल मुझे अपने खेमे में बुला रहे हैं”…
“दैट्स नाईस"…
“हाँ!…नाईस तो वो बहुत हैं और प्राईस भी बड़ा तगड़ा दे रहे हैं लेकिन….
“लेकिन?”…
"लेकिन अफसोस!...पुराने ग्रुप को कैसे छोड दूँ?….कैसे गद्दारी करूँ अपने गाड फादर के साथ?"…
“हम्म!…
“स्सालों!…ने अंगूठा लगवा पक्का एग्रीमैंट जो कर रखा है मेरे साथ वर्ना सगा तो मै अपने बाप का भी नहीं"…
“ओह!..तो फिर तुम मुझसे क्या चाहते हो?”..
“यही कि इस नई कम्पनी का काम तुम सम्भाल लो…मुझे कुछ नहीं चाहिए"...
“ओ.के"…
"बस!…मेरी बीस टका कमीशन मुझे अपने आप मिल जानी चाहिए"...
“बिलकुल!…उसकी तो तुम चिंता ही ना करो"..
“ये ध्यान रखना कि कभी टोकना ना पड़े बीच-बाज़ार"…
"अरे!…उसकी तो तुम बिलकुल ही फिक्र ना करो…इधर महीना पूरा हुआ और उधर तुम्हारा हिस्सा तुम्हारे घर"मैं खुशी के बारे लगभग उछलता हुआ बोला
“हम्म!..फिर ठीक है…तो ये डील आज से बिलकुल पक्की?”…
“बिलकुल"मेरी बाँछे खिल उठी थी"
“अच्छा!…तो फिर मैं चलता हूँ"दोस्त हाथ मिला विदा लेता हुआ बोला …
“ओ.के…बाय" मैं हाथ हिला उसे वेव करता हुआ बोला…
“और हाँ!…कल शाम को घर पर ही रहना"…
“कोई खास बात?”…
“एक कोरियर आएगा तुम्हारे नाम से"…
“अरे!…छोड़ यार…ये गिफ्ट-विफ्ट का चक्कर"मैं अपनी खुशी छिपाता हुआ बोला
“अरे!…मैं नहीं…कम्पनियाँ खुद भिजवाएंगी अपने पल्ले से"…
“लेकिन अभी तो मैंने अपना काम शुरू भी नहीं किया है …अभी से इनकी क्या ज़रूरत है?”..
“अरे!…तो क्या ये सिग्रेट और गुटखे वगैरा तू अपने पैसे से ही फूंकेगा?”..
“क्या फर्क पड़ता है?”…
“अरे वाह!…लाटरी अभी लगी नहीं कि जनाब का पैसा उड़ाना शुरू…पागल मत बन…पैसा पेड़ पे नहीं उगता…बचा के रख"…
“जी!…कह मैंने सर झुका लिया
दोस्त ने सही कहा था…दोपहर के बारह बजे से पहले ही कोरियर वाले की घंटी खड़खड़ा चुकी थी..ज़रूरत और साहुलियत का तमाम सामान करीने से सजा था उस बड़े से पैकेट में| बस!…फिर क्या था जनाब…लग गया तुरंत ही नाक की सीध में चलते हुए दोस्त के बताए हुए रस्ते पर और... "हर फिक्र को..धुँए में उडाता चला गया"...
"दे दनादन...जुगाली पे जुगाली…सूट्टे पे सूट्टा"
अब तो दिन-दूनी और रात चौगुनी तेज़ी से इतने नोट आ रहे थे मेरे पास कि मैं गिनती तक भूल चुका था……पहले थैले भरे…फिर बोरियां…अलमारी तो कब की ओवरलोड हो जवाब दे चुकी थी|अब तो बीस टके कमीशन का भी चक्कर नहीं रहा …दोस्त जो ऊपर पहुँच चुका है…बहुत ऊपर...सीधा…अल्लाह के पास...कैंसर जो हुआ था उसे|
बहुत पैसा बहाया बेचारे ने कि किसी तरीके से ठीक हो जाए लेकिन भला कैन्सर का मरीज़ कभी ठीक हुआ है जो वो हो जाता? सभी कम्पनी वाले भी मुँह फेर चुके थे उससे...काम का जो नहीं रहा था वो अब उनके|
“स्साले!…मतलबी इनसान कहीं के..नई भर्ती कर रहे है धड़ाधड़ और पुराने प्यादों की कोई खोज खबर भी नहीं"…
“ओह!…
“यही निकला है ना आप सब के मुंह से?”…..
“देखा!…मैं सही पहचाना ना?”…
लेकिन!..इस सबसे मैँ भला कहाँ रुकने वाला था?…पैसों की चौंधियाई हुई चमक के आगे कुछ दिखाई नहीं दे रहा था...माया ही कुछ ऐसी है इसकी...बड़े-बड़े अन्धे हो हो के घूमते है इसके आगे-पीछे"..
"तो मेरी भला क्या बिसात?"….
कुछ दिनों बाद पता चला कि मेरा नम्बर भी बस अब आया ही समझो| अब तो बड़े डाक्टर ने भी साफ-साफ कह दिया है कि...
"जो कुछ गिने-चुने दिन बचे हैं जिंदगी के…उन्हें पूजा-पाठ कर ध्यान में लगाओ…अब तो कुछ करे…तो ऊपरवाला ही करे …वर्ना जितना मर्ज़ी पैसा खर्चा कर लो...कोई फायदा नहीं….कोई इलाज जो नहीं है कैन्सर का"…
“बस!…अब और ज़्यादा क्या कहूँ?…छोटे मुंह बड़ी बात होगी…आप खुद ही इतने ज्यादा समझदार इंसान हैँ कि कम कहे को ही ज़्यादा समझना और जितना हो सके इस बीमारी से…इस लानत से दूर रहना| इसका साया भी अपने तथा अपने आस-पास वालों पर ना पड़ने देना"…
"मेरा तो पता नहीं लेकिन आप इस देश का नाम ज़रूर रौशन करना…और हाँ!..याद रखना कि हिन्दी हमारी राष्ट्र भाषा है|इसको साथ लिए बिना हम उन्नति के पथ पर आगे नहीं बढ सकते"
"हिन्दी हैँ हम...वतन है हिन्दोस्ताँ हमारा"
"जय हिन्द"
नोट: धूम्रपान और कुछ तथ्य (सौजन्य: ड़ा:टी.एस.दराल)
- विश्व में ११० करोड़ लोग धूम्रपान करते हैं।
- विश्व में प्रतिवर्ष ५०,००० करोड़ सिग्रेट और ८००० करोड़ बीडियाँ फूंकी जाती हैं।
- धूम्रपान से हर ८ सेकंड में एक व्यक्ति की म्रत्यु हो जाती है।
- ५० लाख लोग हर साल अकाल काल के गाल में समां जाते हैं।
- सिग्रेट के धुएं में ४००० से अधिक हानिकारक तत्व और ४० से अधिक कैंसर उत्त्पन करने वाले पदार्थ होते हैं।
- भारत में ४०% पुरूष और ३% महिलायें धूम्रपान करती हैं।
- भारत में मुहँ का कैंसर विश्व में सबसे अधिक पाया जाता है और ९०% तम्बाकू चबाने से होता है।
धूम्रपान और तम्बाकू से होने वाली हानियाँ :-
- हृदयाघात, उच्च रक्त चाप, कोलेस्ट्रोल का बढ़ना, तोंद निकलना, मधुमेह , गुर्दों पर दुष्प्रभाव ।
- स्वास रोग _ टी बी , दमा, फेफडों का कैंसर ,गले का कैंसर आदि।
- पान मसाला और गुटखा खाने से मुहँ में सफ़ेद दाग, और कैंसर होने की अत्याधिक संभावना बढ़ जाती है।
22 comments:
खूब समझाइश दी है, धुंए के साथ :)
एकदम सही कटाक्ष
देश के दुश्मन हो सारे। सिगरेट, तंबाकू और गुटका बिकने से देश का विकास होता है। शराब-सिगरेट कंपनियों से कितने बेरोजगारों को रोजगार मिलता है। कितना टैक्स सरकार को मिलता है। कितने परिवार इसे बेच-बनाकर अपना और परिवार का पेट पालते हैं। और आप सब उस पेट पर लात मारने पर तुले हुए हो। देश के विकास के बैरी। रही मरने की बात तो एक-न-एक दिन तो सबने मर ही जाना है। अमर तो कोई होने से रहा। न पीने वाला कौन जिंदा रहा है, जरा मैं भी तो जानूं। जो पीने वाला रहेगा। इलाज करने वाले डॉक्टर ने भी जिंदा नहीं रहना है और न मरीज ने ही रहना है जिंदा। फिर किसलिए बना जाए बंदा। राजीव इसमें से ऊपर वाला बॉक्स निकाल दो। देशों को तो सदा रहना है। इसका विकास होने दो। चाहे किसी भी कीमत पर हो। इसलिए हिन्दी ब्लॉगरों मत रोओ।
बहुत अच्छि लगी आज की आप की पोस्ट. धन्यवाद
sundar...haa..ha...haa.. manoranjak aur shikshaprad bhi...
Bahut shandaaar viyang hai....bahut khoob
Behad Khubsurat Maksad ko lekar likhi gai Khubsurat post...Dhanywaad.
बहुत खूब, अगर भारत सरकार ने आपकी यह पोस्ट पढ़ ली तो आपके ब्लॉग पर बैन न लगवा दे कि ये जागरुकता फ़ैला रहा है, और अपनी करोड़ों अरबों रुपये की टैक्स की कमाई का क्या होगा । :)
हा हा हा,जोरदार धांसु प्रहार,नागपंचमी की बधाई
सार्थक लेखन के लिए शुभकामनाएं-हिन्दी सेवा करते रहें।
नौजवानों की शहादत-पिज्जा बर्गर-बेरोजगारी-भ्रष्टाचार और आजादी की वर्षगाँठ
" धूम्रपान छोड़ना तो सबसे आसान काम है....
मुझे ही लो, मैं ही हज़ारों बार छोड़ चुका हूं "
(-अज्ञात)
एक बेहद उम्दा पोस्ट के लिए आपको बहुत बहुत बधाइयाँ और शुभकामनाएं !
आपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है यहां भी आएं !
भैया लम्बा बहुत हो गया, पढने में भी तकलीफ होती है रंग बिरंगी से। मेरे घर के फाटक के बाहर हमेशा ही चौराहे से उड़कर इन पोच के टुकडे आ जाते हैं हम रोज ही परेशान है इनसे। अब समझ आया कि ये तो योजना का एक अंग है कि इन्हे सडक पर ऐसे ही डालना है। बढिया लिखा है आपने।
बहुत बढ़िया व्यंग लिखा है ।
सही कहा आपने --यदि इसे पढ़कर एक भी व्यक्ति सिगरेट छोड़ देता है तो प्रयास सफल रहेगा ।
भाई अब तो धुएं वाले रेलवे इंजिन भी दिखाई नहीं देते , फिर इन्सान क्यों ----?
पहले मनरंजन, फिर ज्ञानार्जन। बहुत बढिया।
………….
सपनों का भी मतलब होता है?
साहित्यिक चोरी का निर्लज्ज कारनामा.....
शानदार व्यंग्य
प्रणाम
मनोरंजन के द्वारा ज्ञान | बहुत बढ़िया लिखते है आप | मुझे आपकी पोस्ट काफी बड़ी लगती है |
ग़ज़ब.......... कल से सिगरेट बंद.......... ही ही ही ही ही .......... पर मैं तो पीता ही नहीं ....... सी-ग्रेड...
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धनयवाद ...
आप की अपनी www.apnivani.com
बेहतरीन कटाक्ष और अच्छी जानकारी, बहुत खूब!
bahut lamba samjhaya....itna lamba ki kaiyon ne to beech me hi cigrete sulga li hogi...
main to cigrette ya gutkha ya tambakoo nahi khata isliye maine badi dhyan se aapki post padi...
panipat kab aaoge. us din jis din main bahar jaunga....
इस पोस्ट को पढ़ने के बाद नीचे वाले लिंक की पोस्ट पढ़ना बहुत ज़रूरी है :-)
आइए दीर्घायु व कैंसर से मुक्ति के लिए धूम्रपान करें.
... behatreen ....svatantrataa divas kee badhaai va shubhakaamanaayen !!!
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