तुम्हारी लंगी- कंचन सिंह चौहान

कुछ कहानियाँ के विषय एवं प्लॉट सरंचना इतनी ज़्यादा सशक्त एवं प्रभावी होती है कि पढ़ते वक्त वे आपके मन में भीतर इस कदर रच बस जाती हैं कि घँटों तक आप उनके मोहपाश..उनके तसव्वुर से बच नहीं पाते। उन्हें पढ़ चुकने के बाद भी आप उनमें इस हद तक खोए रहते हैं कि कुछ समय तक आपको किसी अन्य चीज़ की बिल्कुल भी सुधबुध नहीं रहती। उस पर भी अगर कहानियॉं वेदना..दुख..हताशा..अवसाद से लबरेज़ हों तो आप भी उसी दुःख..उसी पीड़ा..उसी वेदना में शरीक होते हुए खुद भी ऐसा महसूस करने लगते हैं जैसे सब कुछ हूबहू आपके सामने ही घट एवं आप पर ही बीत रहा हो। 

ऐसा ही कुछ मेरे साथ इस बार हुआ जब मुझे कंचन सिंह चौहान जी का कहानी संग्रह "तुम्हारी लंगी" पढ़ने को मिला। बतौर राहत बस ग़नीमत ये कि इन कहानियों का अंत किसी ना किसी प्रकार की साकारत्मकता को अपने साथ में लिए हुए चलता है।

इस संकलन में एक कहानी अपने अपने क्षेत्र में कामयाब एक ऐसे युवक और युवती की है जो अपनी शारीरिक अक्षमता की वजह से विकलांग याने के डिसेबल्ड की श्रेणी में आते हैं। संयोग से पहली बार मिलने के बावजूद भी उन दोनों का जीवन लगभग एक जैसा है कि दोनों ने अपने अपने प्यार को इस वजह से छोड़ दिया या स्वीकार करने से इनकार कर दिया कि उनकी शारीरिक कमी के चलते उनके होने वाले सक्षम पार्टनर का आने वाला जीवन कष्टमय हो जाता। 

अगली कहानी है संयोग से हवाई जहाज़ में आई ख़राबी के चलते एक ही होटल के एक ही कमरे में एक साथ रुकने को मजबूर एक रेस्टोरेंट व्यवसायी युवक और एक खूबसूरत फीमेल एस्कॉर्ट की है। वहाँ युवती के पेशे को निकृष्ट बताते हुए युवक उसे हीन भावना का शिकार बना ज़लील करना चाहता है मगर देखने वाली बात ये कि किस तरह युवती तर्कों के ज़रिए उसके और अपने धंधे के बीच कंपैरीज़न कर समानता स्थापित करते हुए उसकी हर बात..हर आरोप का दो टूक एवं अकाट्य  जवाब देती है। 

चार बहनों में तीसरे नम्बर की इंटर पास होनहार युवती अपनी माँ के लाख मना करने..समझाने के बावजूद अपने बड़े भाई के पसंद के एक दबंग विधुर, जिसका मानसिक रूप से विकलांग एक बेटा भी है, से शादी करने के लिए महज़ इसलिए हाँ कर देती है कि वो अपने भाई भाभी को नाराज़ कर परिवार पर बोझ नहीं बनना चाहती। बरसों वहाँ शारीरिक एवं मानसिक रूप से शोषित..प्रताड़ित एवं ज़लील होने के बाद जब उसकी उसी सौतेली, मानसिक रूप से अपरिपक्व, औलाद का विवाह झूठ सच बोल कर धोखे से एक कन्या कर दिया जाता है। अब सवाल ये उठता है कि क्या इस बेमेल विवाह के बाद वो अपनी बहू की होनी वाली दुर्दशा को देख चुपचाप कबूतर के माफ़िक अपनी आँखें मूंद लेती है या फिर उसे, इस सब से बचने के लिए कोई जतन..कोई प्रयास करती है?

अगली कहानी प्यार में धोखा खा गर्भवती हो चुकी एक युवती को उसके गर्भपात के बाद जबरन परिवार वालों द्वारा एक ऐसे युवक से ब्याह दिया जाता है जो खुद बच्चा पैदा करने में सक्षम नहीं है। लेकिन इसी दोष के लिए युवती को बाँझ कह कर उसके घर और समाज द्वारा जब हद से ज़्यादा प्रताड़ित किया जाता है तब ऐसे में वो अपने सर के ऊपर से ये झूठा लांछन हटाने के लिए क्या कोई आसान रास्ता चुनती है या फिर किस्मत के सहारे खुद को अकेला छोड़ देती है?

नेता का बिगड़ैल जवान बेटा जब खुद को भाव ना दिए जाने और अपने अनैतिक प्रस्ताव को कठोरता से ठुकरा दिए जाने की एवज में गरीब परिवार की कॉलेज जाने वाली लड़की को गुस्से में तेज़ाब से इस कदर जला देता है कि उसे 75% जली हालात में अस्पताल में भर्ती कराया जाता है। तमाम धमकियों और लालच के बावजूद भी जब युवती न्याय के लिए लड़ने के अपने फ़ैसले पर अटल..अडिग रहते हुए टस से मस नहीं होती। ऐसे में तमाम कोशिशों और टूटते हौसलें के बावजूद क्या उसे न्याय मिल पाता है?

एक ऐसी युवती की कहानी जिसे उसकी सास और पति, दोनों के द्वारा ईंटें..पत्थर मार मार कर एक अँधे कुएँ में मरणासन्न हालात में फैंक दिया जाता है मगर अपनी जिजीविषा के चलते वो किसी प्रकार बच तो जाती है मगर चोटों की वजह से हमेशा के लिए अपाहिज हो जाती है। लंबे कोर्ट केस के बाद कुछ ऐसा हो जाता है कि उसे, समझौता कर फिर उसी घर में बहु बन कर जाना पड़ता है। ऐसे में उसके सामने अब कशमकश भरा प्रश्न खड़ा है कि मौत या ज़िन्दगी में से उसके लिए क्या बेहतर है?

बेहद प्यार करने वाले पति की जवान मौत के बाद जब एक बच्ची की माँ अपने ही देवर के ज़रिए अनेकों बार बलात्कार का शिकार होती है तो अपने जीवन से निराश हो, वह मरने का फैसला कर लेती है। मगर बेटी की सुरक्षा एवं उसके भविष्य की चिंता उसे मरने भी नहीं देती। तमाम लोकलाज के डर और तानों के बावजूद मजबूरन उसे, उसी देवर की पत्नी बन कर लगातार शारिरिक एवं मनसिज तौर पर प्रताड़ित एवं ज़लील होना पड़ता है। ऐसे में क्या कभी उसे, उसके नारकीय जीवन से मुक्ति मिल पाती है? 

कई साल अफ़ेयर चलने के बाद जब श्रेयांश किसी और से शादी करने का फैसला करता है तो शिवानी बुरी तरह टूट जाती है। ऐसे में शिवानी का मित्र, अविनाश उसका संबल बन कर उसे इस अवसाद..इस दुख..इसी निराशा से बाहर निकलने में इस हद तक मदद करता है कि एक दिन किन्हीं कमज़ोर लम्हों में शिवानी और अविनाश एक हो जाते हैं। क्या शिवानी अपनी ज़िंदगी में अपने प्यार..अपनी मंज़िल को पा पाएगी या फिर उसके जीवन में बस भटकना ही लिखा है?

अंतिम कहानी है विक्रम और उस लड़की की जिसे उसके माँ बाप समेत सब लंगी कह कर बुलाते हैं। लंगी अर्थात लंगड़ी जो ठीक से उठना बैठना तो दूर चल भी नहीं पाती। अपनी इस शारीरिक अक्षमता की वजह से उसे जगह जगह तानों एवं अपमान से गुज़रना पड़ता है। विक्रम की प्रेरणा से हिम्मत प्राप्त कर तमाम तरह की बाधाओं को पार कर वो लंगी एक दिन अपनी अधूरी पढ़ाई पूरी कर उच्च मुकाम पर जा तो पहुँचती मगर...

सरल..प्रवाहमयी भाषा में लिखी गयी इन कहानियों की एक और ख़ासियत ये कि इनमें कहीं भी..कोई भी शब्द गैरज़रूरी नहीं। कसी हुई भाषा शैली में लिखे गए इस उम्दा कहानियों के संकलन में कुल 9 कहानियाँ हैं और इसके पेपरबैक संस्करण को छापा है राजपाल एण्ड सन्स ने और इसका मूल्य रखा गया है 225/- रुपए जो कि क्वालिटी एवं कंटैंट को देखते हुए जायज़ है। आने वाले उज्ज्वल भविष्य के लिए लेखिका तथा प्रकाशक को अनेकों अनेक शुभकामनाएं।

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