फेसबुक पर जब मैं पहले पहल आया तो खुद ब्लॉगर होने के नाते उन्हीं ब्लॉगर्स के संग दोस्ती की। समय के अंतराल के साथ इसमें बहुत से नए पुराने लेखक और कवि भी जुड़ते चले गए। उस वक्त मुझे यह खुशफहमी थी कि.. 'मैं बहुत बढ़िया लिखता हूँ।' लेकिन वो कहते हैं ना कि..'ऊँट को भी कभी ना कभी पहाड़ के नीचे आने ही पड़ता है।'
तो जी..मुझे भी आना ही पड़ गया। अब जब कुछ सालों पहले मैंने औरों का लिखा थोड़ा बहुत ढंग से पढ़ना शुरू किया तो पाया कि मेरा लेखन तो उनके आसपास भी नहीं फटकता है। खैर..इस स्वीकारोक्ति के बाद एक महत्त्वपूर्ण बात ये कि समय के साथ मेरे लेखन में भी सुधार हुआ। जिसका पूरा श्रेय मैं पढ़ने और सिर्फ़ पढ़ने को देना चाहूँगा कि और कुछ नहीं तो कम से कम मेरा निजी शब्दकोश तो ऐसा करने से विस्तृत हुआ ही है। जिसकी वजह से अब मैं वाक्यों को पहले की अपेक्षा ज़्यादा असरदार ढंग से लिखने में खुद को समर्थ पा रहा हूँ।
खैर..आज मैं ऐसी ही अपनी एक फेसबुक मित्र 'सिनीवाली' के कहानी संग्रह "गुलाबी नदी की मछलियाँ" की बात करने जा रहा हूँ। दो कहानी संग्रहों के अतिरिक्त उनकी कहानियाँ अनेक प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में भी छप चुकी हैं एवं एक कहानी संग्रह का डोगरी भाषा में अनुवाद तथा एक कहानी का हिंदी अकादमी द्वारा सफलतापूर्वक नाट्य मंचन भी हो चुका है।
धाराप्रवाह लेखन से सजे उनके इस कहानी संकलन की कहानियों में कहीं शहर से गाँव में आ कर ईंट भट्ठे के लिए धड़ाधड़ खेती की बढ़िया ज़मीन पट्टे पर लेने वाले धूर्त सेठ और उसके ख़िलाफ़ सर उठाने वाले 'तेजो' नाम के छोटे किसान की बात नज़र आती है। जो ज़्यादा पैसों के बदले भी अपनी ज़मीन को पट्टे पर ना दे उसे खुद जोतने का फ़ैसला कर अधिकतर गाँव वालों के उपहास का पात्र बनता है।
इसी संकलन की एक अन्य कहानी में जहाँ अपराधी प्रवृति के अपने बाप द्वारा फिरौती के लिए अपह्रत किए गए युवक पर, उसकी देखरेख कर रही 'लौंगिया', इस कदर मोहित हो उठती है कि उसकी जान पर बन आने की बात सुन घबरा उठती है और उसे हर हाल में बचाने की ठान लेती है। तो वहीं दूसरी तरफ़ किसी अन्य कहानी में ज़रूरी काम की वजह से शहर से बाहर गए पति की गैरमौजूदगी में, देर रात घर आए अनजान अतिथि को वह (जो दो छोटी बच्चियों की माँ भी है), रात गुज़ारने के लिए अपने दो कमरों के घर में जगह दे तो देती है मगर आशंकाओं..कुशंकाओं के चलते खुद रात भर सो नहीं पाती।
इसी संकलन की एक अन्य कहानी इस बात की तस्दीक करती दिखाई देती है कि.."किसी को सब कुछ मिल के भी कुछ नहीं मिलता।" तो वहीं इसी संकलन की एक अन्य कहानी एक भाभी और ननद की एक जैसी किस्मत की बात करती दिखाई देती है। जिसमें भाभी घर में अपने पति के साथ रहते हुए भी माँ नहीं बन पाती और ननद को तो ब्याह के बाद से ही उसका पति लेने नहीं आता। क्या कभी उनके घर आंगन और मन में कभी खुशियों की तरंगें तैर पाएँगी?
इसी संकलन की एक अन्य कहानी जहाँ एक तरफ़ बात करती है उन युवाओं की जो घर बाहर के तानों से आज़िज़ आ..काम की तलाश में गाँवों से शहरों की ओर पलायन तो कर बैठे हैं मगर शहरों के दड़बेनुमा कमरों में नारकीय जीवन बिताते हुए वहाँ की मॉल नुमा संस्कृति के साथ अपना सामंजस्य बिठाने में खुद को असमर्थ पा रहे हैं। साथ ही इसमें बात है आज के युवाओं में उपजती हताशा और कुंठा से भरे उनके भावनात्मक मगर विवेकहीन फैसलों की। इसमें बात है राह से भटक चुके युवा के फिर वापिस सही रास्ते..सही ढर्रे पर पुनः लौट आने की। तो वहीं दूसरी तरफ़ इसी संकलन की एक अन्य कहानी अर्श से फ़र्श तक के सफ़र को, संपन्न घर की बेटी के ब्याह कर गाँव के अमीर घर में आने और फिर किस्मत के चलते ग़रीब हो जाने के माध्यम से बयां करती नज़र आती है।
इसी संकलन की किसी कहानी में जहाँ एक तरफ़ गाँव देहात की चुनावी सरगर्मियों का जायज़ा लिया गया है कि किस तरह पुलिस की आँख बचा शराब गाँव में पहुँचती एवं बँटती है। कैसे धन..बाहुबल एवं पराक्रम के बल पर चुनावी हवा को अपनी ओर करने के प्रयास किए जाते हैं और किस तरह आम जनता दोनों तरफ़ से पैसे ऐंठ..अपना उल्लू साधती है। तो वहीं दूसरी तरफ़ इसी संकलन की एक अन्य कहानी में एक दूसरे से बेहद प्रेम करने वाले बालकृष्ण बाबू और सुभषिणी को उनके बुढ़ापे में बेटों के बीच बंटवारे के बाद अलग अलग बेटे के साथ रहने को मजबूर होना पड़ता है। क्या एक ही घर में अलग अलग रहने पर भी उनके बीच का प्रेम कायम रह पाएगा अथवा वक्त और परिस्थितियों की मार झेलता हुआ लुप्त होने की कगार पर पहुँच जाएगा?
इसी संकलन की एक अन्य कहानी मज़ेदार, परिस्थितियों पर आधारित एक ऐसी कहानी है। जिसमें शादी की उम्र निकल जाने के बाद देर से हो रही अपनी शादी में युवक परेशान है कि एन शादी से पहले उसके ही गाँव में बिरादरी की एक बुढ़िया मरणासन्न हालात में है और अगर वो मर गयी तो सामाजिकता निभाने के चक्कर में उसकी शादी इस साल नहीं हो पाएगी। जबकि उसी बुढ़िया के घरवाले उसका अंतिम समय आया समझ कर पंडित से उसके नाम की आखिरी पूजा करवा रहे हैं। ऐसे में क्या बुढ़िया बच पाएगी अथवा युवक की शादी सामान्य ढंग से हो पाएगी? यह सब तो आपको इस उथल पुथल भरी मज़ेदार कहानी को पढ़ कर ही पता चल पाएगा।
धाराप्रवाह एवं परिपक्व लेखन से सजे इस रोचक कहानी संकलन में मुझे लगभग ना के बराबर त्रुटियां मिली। मगर फिर भी पेज नम्बर 46 पर एक जगह मुझे टीवी की जगह टीवी और शायद किसी अन्य पेज पर 'ननिहाल' की जगह 'ननीहाल' लिखा दिखाई दिया। इसी तरह पेज नंबर 98 पर लिखा दिखाई दिया कि ..
'कुछ ने अपना काम हल्ला मचाना चुन लिया तो कुछ इस रोमांचक माहौल में एक किनारे बैठकर किसी को ऑफिस के भीतर घुसते देखता तो किसी को बाहर निकलते।'
यहाँ पर..'ऑफिस के भीतर घुसते देखता' की जगह 'ऑफिस के भीतर घुसते देखते' आएगा।
यूँ तो इस संकलन की सभी कहानियाँ मुझे बढ़िया एवं प्रभावी लगी लेकिन साथ ही साथ कुछ कहानियों में ऐसा भी लगा कि जैसे उन्हें अचानक ही एक झटके से बिना किसी हिंट या अंदेशे के समाप्त कर दिया गया हो। उन्हें और अधिक विस्तार दिया जाना चाहिए था। 128 पृष्ठीय इस उम्दा कहानी संग्रह के हार्ड बाउंड संस्करण को छापा है अंतिका प्रकाशन प्रा. लि. ने और इसका मूल्य रखा गया है 300/- रुपए जो कि मुझे थोड़ा ज़्यादा लगा। आने वाले उज्ज्वल भविष्य के लिए लेखिका एवं प्रकाशक को अनेकों अनेक शुभकामनाएं।
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