आमतौर पर किसी का शुरुआती लेखन अगर पढ़ने को मिले तो उसमें से उसकी अनगढ़ता या सोंधी महक लिए कच्चापन स्पष्ट रूप से परिलक्षित होता है। मगर सुखद आश्चर्य के रूप में कई बार किसी का शुरुआती लेखन ही अपने आप में संपूर्ण परिपक्वता लिए मिल जाता है। दोस्तों..आज मैं बात कर रहा हूँ छाया सिंह जी के पहले कहानी संकलन "साँझी छत" की।
23 कहानियों के इस संकलन में उनके धाराप्रवाह लेखन को देख कर लगता है कि पूरी तैयारी के साथ साहित्य के क्षेत्र में उन्होंने अपना आगाज़ किया है।
मानवीय संबंधों को ले कर साकारात्मक ढंग से लिखी गयी उनकी कहानियों के मध्यमवर्गीय पात्रों को हम आसानी से अपने आसपास के माहौल में देख सकते हैं।
इस संकलन की पहली कहानी 'सुनहरी भोर' में बीस साल बाद जब बिछुड़ी हुई सहेलियाँ मिलती हैं तो एक दूसरे के जीवन में आई रिक्तता को अपने अपने ढंग से दूर करने का प्रयास करती हैं। अगली कहानी 'सौदा' में एक बस एक्सीडेंट में अपने बेटे और बहू को खो चुकी कुसुमिया को जब झाड़ियों में फेंकी हुई एक लावारिस बच्ची मिलती है तो ममतावश उसे अपने अपाहिज हो चुके नाती के साथ पालने के लिए अपने घर ले आती है मगर अपने अपाहिज नाती का सही से इलाज करवाने की शर्त पर वो उस लावारिस बच्ची का सौदा एक अमीर औरत से कर बैठती है।
एक अन्य कहानी 'साँझी छत' में विदेश में रह रहे बेटे- बहू के बारे जब दादी को पोते के ज़रिए पता चलता है कि वे यहाँ..भारत का मकान बेच कर, उसे अपने पास विदेश में बतौर उनके घर की केयर टेकर इस्तेमाल करना चाहते हैं। तो वो कुछ ऐसा साहसी कदम उठाने का फैसला कर लेती है कि उसके बच्चे अपनी मनमर्ज़ी ना कर पाऍं।
आम मध्यमवर्गीय घरों के भीतर अहमियत रखने वाले छोटे बड़े मुद्दों को ले कर रची गयी उनकी छोटी छोटी कहानियाँ वैसे तो प्रभावित करती हैं। कुछ जगहों पर छोटी छोटी वर्तनी की अशुद्धियाँ दिखाई दी। इसके अलावा एक कहानी 'अपना अपना आसमान' में कुछ खामी भी दिखाई दी कि मालकिन और कामवाली बाई, दोनों की दोनों अपने अपने पतियों की बुरी आदतों की वजह से त्रस्त हैं। तो ऐसे में मालकिन, कामवाली बाई को तो राय देती है कि...वो अपनी बच्ची के साथ घर छोड़, क्रेच खोलने में उसकी मदद करे। मगर वहीं खुद, लगभग एक जैसी ही परिस्थिति में, अपने पति के साथ ही रहने का फैसला करती है।
साथ ही प्राइवेट कम्पनी से पति को मिले फ्लैट के गेस्ट हाउस में कोई कैसे अपना निजी काम(क्रेच) खोल सकता है? कुछ कहानियों में बहुत छोटे छोटे वाक्य पढ़ने को मिले जिन्हें आसानी से बड़े वाक्य में सम्मिलित कर और अधिक प्रभावी एवं परिपक्व वाक्य बनाया जा सकता था।
किसी भी किताब का मुख्य आकर्षण उसका शीर्षक तथा कवर डिज़ायन होता है। कवर ऐसा होना चाहिए जो पाठक की एक नज़र पड़ते ही उसे किताब को हाथ में उठा कर उलटने पलटने के लिए मजबूर कर दे। साथ ही किताब का दमदार या अनोखा शीर्षक, किताब के प्रति पाठकों की जिज्ञासा एवं उत्सुकता को जगाने का काम करता है। उस लिहाज़ से यह संकलन इन मुद्दों पर थोड़ा कमज़ोर लगा। उम्मीद है कि किताब के अगले संस्करण में इन छोटी छोटी कमियों को यथासंभव दूर करने का प्रयास किया जाएगा।
0 comments:
Post a Comment